Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 185

Page 185

ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰੁ ॥ प्रभु-परमेश्वर के नाम में विद्यमान है, जो मेरे मन एवं प्राणों का आधार है।
ਸਾਚਾ ਧਨੁ ਪਾਇਓ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ॥ मैंने प्रभु के प्रेम की सच्ची दौलत प्राप्त की है।
ਦੁਤਰੁ ਤਰੇ ਸਾਧ ਕੈ ਸੰਗਿ ॥੩॥ साधु-संतों की संगत से ही विषम संसार सागर पार किया जा सकता है॥ ३॥
ਸੁਖਿ ਬੈਸਹੁ ਸੰਤ ਸਜਨ ਪਰਵਾਰੁ ॥ हे संतजनो ! सज्जनों के परिवार सहित सुख में विराजो।
ਹਰਿ ਧਨੁ ਖਟਿਓ ਜਾ ਕਾ ਨਾਹਿ ਸੁਮਾਰੁ ॥ मैंने हरिनाम का धन कमाया है जो गणना से बाहर है।
ਜਿਸਹਿ ਪਰਾਪਤਿ ਤਿਸੁ ਗੁਰੁ ਦੇਇ ॥ यह नाम-धन उसे ही मिलता है, जिसे गुरु जी देते हैं।
ਨਾਨਕ ਬਿਰਥਾ ਕੋਇ ਨ ਹੇਇ ॥੪॥੨੭॥੯੬॥ हे नानक ! गुरु के द्वार से कोई भी व्यक्ति खाली हाथ नहीं जाता ॥४॥२७॥९६॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी गुआरेरी महला ५ ॥
ਹਸਤ ਪੁਨੀਤ ਹੋਹਿ ਤਤਕਾਲ ॥ हाथ तत्काल ही पवित्र हो जाते हैं,
ਬਿਨਸਿ ਜਾਹਿ ਮਾਇਆ ਜੰਜਾਲ ॥ एवं माया के जंजाल नाश हो जाते हैं,"
ਰਸਨਾ ਰਮਹੁ ਰਾਮ ਗੁਣ ਨੀਤ ॥ यदि जिव्हा के साथ सदैव ही राम का यशोगान किया जाए तो
ਸੁਖੁ ਪਾਵਹੁ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ਮੀਤ ॥੧॥ हे मेरे भाई एवं मित्र ! इस तरह तू सुख-शांति प्राप्त कर॥ १॥
ਲਿਖੁ ਲੇਖਣਿ ਕਾਗਦਿ ਮਸਵਾਣੀ ॥ अपनी कलम एवं दवात से तू कागज पर
ਰਾਮ ਨਾਮ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਣੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ राम का नाम एवं हरि की अमृतमयी वाणी लिख॥ १॥ रहाउ॥
ਇਹ ਕਾਰਜਿ ਤੇਰੇ ਜਾਹਿ ਬਿਕਾਰ ॥ इस कर्म से तेरे पाप धुल जाएँगे।
ਸਿਮਰਤ ਰਾਮ ਨਾਹੀ ਜਮ ਮਾਰ ॥ राम का भजन करने से यमदूत तुझे दण्ड नहीं देगा।
ਧਰਮ ਰਾਇ ਕੇ ਦੂਤ ਨ ਜੋਹੈ ॥ धर्मराज के दूत तेरी ओर नहीं देख सकेंगे।
ਮਾਇਆ ਮਗਨ ਨ ਕਛੂਐ ਮੋਹੈ ॥੨॥ मोहिनी का उन्माद तुझे तनिक मात्र भी मुग्ध नहीं करेगा॥ २॥
ਉਧਰਹਿ ਆਪਿ ਤਰੈ ਸੰਸਾਰੁ ॥ तेरा स्वयं उद्धार हो जाएगा और तेरे द्वारा संसार का भी कल्याण हो जाएगा,
ਰਾਮ ਨਾਮ ਜਪਿ ਏਕੰਕਾਰੁ ॥ जब तू राम का नाम सिमरन और एक ऑकार का स्मरण करता रहेगा ॥
ਆਪਿ ਕਮਾਉ ਅਵਰਾ ਉਪਦੇਸ ॥ नाम-स्मरण की स्वयं साधना कर और दूसरों को उपदेश दे।
ਰਾਮ ਨਾਮ ਹਿਰਦੈ ਪਰਵੇਸ ॥੩॥ राम के नाम को अपने हृदय में विराजमान कर॥ ३ ॥
ਜਾ ਕੈ ਮਾਥੈ ਏਹੁ ਨਿਧਾਨੁ ॥ जिसके मस्तक पर उसकी किस्मत में नाम-भण्डार की उपलब्धि का लेख लिखा हुआ है,
ਸੋਈ ਪੁਰਖੁ ਜਪੈ ਭਗਵਾਨੁ ॥ वही पुरुष भगवान की आराधना करता है।
ਆਠ ਪਹਰ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥ जो आठ प्रहर हरि- परमेश्वर की महिमा-स्तुति करता रहता है,"
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਹਉ ਤਿਸੁ ਬਲਿ ਜਾਉ ॥੪॥੨੮॥੯੭॥ हे नानक ! मैं उस व्यक्ति पर बलिहारी जाता हूँ, ॥ ४॥ २८ ॥ ९ ७॥
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਚਉਪਦੇ ਦੁਪਦੇ रागु गउड़ी गुआरेरी महला ५ चउपदे दुपदे
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਜੋ ਪਰਾਇਓ ਸੋਈ ਅਪਨਾ ॥ जो धन पराया हो जाना है, उसे मनुष्य अपना समझता है।
ਜੋ ਤਜਿ ਛੋਡਨ ਤਿਸੁ ਸਿਉ ਮਨੁ ਰਚਨਾ ॥੧॥ जो कुछ त्याग जाना है, उससे उसका मन लीन रहता है॥ १॥
ਕਹਹੁ ਗੁਸਾਈ ਮਿਲੀਐ ਕੇਹ ॥ बताओ, गुसाई-प्रभु कैसे मिल सकता है?
ਜੋ ਬਿਬਰਜਤ ਤਿਸ ਸਿਉ ਨੇਹ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जो कुछ वर्जित किया हुआ है, उससे उसका स्नेह है॥ १॥ रहाउ ॥
ਝੂਠੁ ਬਾਤ ਸਾ ਸਚੁ ਕਰਿ ਜਾਤੀ ॥ झूठी बात को वह सत्य करके जानता है।
ਸਤਿ ਹੋਵਨੁ ਮਨਿ ਲਗੈ ਨ ਰਾਤੀ ॥੨॥ जो सदा सत्य है, क्षण भर भी हृदय उससे जुड़ा हुआ नहीं है॥ २॥
ਬਾਵੈ ਮਾਰਗੁ ਟੇਢਾ ਚਲਨਾ ॥ वह वाम मार्ग टेढा होकर चलता है।
ਸੀਧਾ ਛੋਡਿ ਅਪੂਠਾ ਬੁਨਨਾ ॥੩॥ जीवन के सन्मार्ग को त्याग कर जीवन के ताने-बाने को उल्टा बुन रहा है॥ ३॥
ਦੁਹਾ ਸਿਰਿਆ ਕਾ ਖਸਮੁ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਈ ॥ लोक-परलोक दोनों कोनों का स्वामी प्रभु स्वयं ही है।
ਜਿਸੁ ਮੇਲੇ ਨਾਨਕ ਸੋ ਮੁਕਤਾ ਹੋਈ ॥੪॥੨੯॥੯੮॥ हे नानक ! जिसको परमात्मा अपने साथ मिला लेता है, यह मुक्ति प्राप्त कर लेता है॥ ४ ॥ २९॥ ९ ८॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी गुआरेरी महला ५ ॥
ਕਲਿਜੁਗ ਮਹਿ ਮਿਲਿ ਆਏ ਸੰਜੋਗ ॥ कलियुग में संयोगवश पति-पत्नी पूर्व संबंधों के कारण इहलोक में आकर मिलते है।
ਜਿਚਰੁ ਆਗਿਆ ਤਿਚਰੁ ਭੋਗਹਿ ਭੋਗ ॥੧॥ जब तक परमात्मा का हुक्म होता है, तब तक वह भोग भोगते हैं॥ १॥
ਜਲੈ ਨ ਪਾਈਐ ਰਾਮ ਸਨੇਹੀ ॥ जो स्त्री अपने मृत पति के साथ जल कर मर जाती है, उसे प्रियतम राम नहीं मिलता।
ਕਿਰਤਿ ਸੰਜੋਗਿ ਸਤੀ ਉਠਿ ਹੋਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ वह अपने किए हुए कर्मों के संयोग कारण उठकर अपने पति के साथ जल कर सती हो जाती है॥ १ ॥ रहाउ॥
ਦੇਖਾ ਦੇਖੀ ਮਨਹਠਿ ਜਲਿ ਜਾਈਐ ॥ देखादेखी और मन के हठ द्वारा जल जाती है।
ਪ੍ਰਿਅ ਸੰਗੁ ਨ ਪਾਵੈ ਬਹੁ ਜੋਨਿ ਭਵਾਈਐ ॥੨॥ वह मरणोपरांत अपने मृत पति को भी नहीं मिलती और अनेक योनियों में भटकती रहती है॥ २॥
ਸੀਲ ਸੰਜਮਿ ਪ੍ਰਿਅ ਆਗਿਆ ਮਾਨੈ ॥ जिसके पास शील एवं संयम है और पति-परमेश्वर की आज्ञा मानती है,
ਤਿਸੁ ਨਾਰੀ ਕਉ ਦੁਖੁ ਨ ਜਮਾਨੈ ॥੩॥ वह जीव-स्त्री यमदूतों से कष्ट नहीं प्राप्त करती ॥ ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਿਨਿ ਪ੍ਰਿਉ ਪਰਮੇਸਰੁ ਕਰਿ ਜਾਨਿਆ ॥ हे नानक ! जो जीव-स्त्री परमेश्वर को अपने पति के रूप में जानती है,
ਧੰਨੁ ਸਤੀ ਦਰਗਹ ਪਰਵਾਨਿਆ ॥੪॥੩੦॥੯੯॥ वह जीव-स्त्री धन्य है और वह ईश्वर के दरबार में स्वीकार हो जाती है॥ ४ ॥ ३० ॥ ९९॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी गुआरेरी महला ५ ॥
ਹਮ ਧਨਵੰਤ ਭਾਗਠ ਸਚ ਨਾਇ ॥ प्रभु के सत्य-नाम से मैं धनवान एवं भाग्यशाली बन गया हूँ,
ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਹ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मैं सहज-स्वभाव ही हरि-परमेश्वर की गुण-स्तुति करता रहता हूँ॥ १॥ रहाउ॥


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