Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 184

Page 184

ਜਨ ਕੀ ਟੇਕ ਏਕ ਗੋਪਾਲ ॥ उस सेवक का सहारा एक गोपाल ही है।
ਏਕਾ ਲਿਵ ਏਕੋ ਮਨਿ ਭਾਉ ॥ वह सेवक एक परमेश्वर में ही अपनी सुरति लगाता है और उसके मन में एक प्रभु का ही प्रेम होता है।
ਸਰਬ ਨਿਧਾਨ ਜਨ ਕੈ ਹਰਿ ਨਾਉ ॥੩॥ सेवक के लिए हरि का नाम ही तमाम भण्डार है। ॥३॥
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਸਿਉ ਲਾਗੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥ जो पारब्रह्म से प्रेम करता है,
ਨਿਰਮਲ ਕਰਣੀ ਸਾਚੀ ਰੀਤਿ ॥ उसके कर्म पवित्र और जीवन-आचरण सत्य है।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਮੇਟਿਆ ਅੰਧਿਆਰਾ ॥ पूर्ण गुरु ने अज्ञानता का अंधकार मिटा दिया है।
ਨਾਨਕ ਕਾ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪਰ ਅਪਾਰਾ ॥੪॥੨੪॥੯੩॥ नानक का प्रभु असीम एवं अनन्त है। ॥४॥२४॥६३॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी गुआरेरी महला ५ ॥
ਜਿਸੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ਤਰੈ ਜਨੁ ਸੋਇ ॥ जिस व्यक्ति के हृदय में ईश्वर निवास करता है, वह संसार सागर से पार हो जाता है।
ਜਾ ਕੈ ਕਰਮਿ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥ जिसकी किस्मत में लिखा होता है, वह ईश्वर को प्राप्त कर लेता है।
ਦੂਖੁ ਰੋਗੁ ਕਛੁ ਭਉ ਨ ਬਿਆਪੈ ॥ दुख, रोग एवं भय उसको तनिक मात्र भी प्रभावित नहीं करते,
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਰਿਦੈ ਹਰਿ ਜਾਪੈ ॥੧॥ जो अपने हृदय में ईश्वर के अमृत नाम का सिमरन करते रहते हैं। ॥१॥
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪਰਮੇਸੁਰੁ ਧਿਆਈਐ ॥ हमें पारब्रह्म-परमेश्वर का ही ध्यान करना चाहिए।
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਤੇ ਇਹ ਮਤਿ ਪਾਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ पूर्ण गुरु से यह सूझ प्राप्त होती है॥ १॥ रहाउ॥
ਕਰਣ ਕਰਾਵਨਹਾਰ ਦਇਆਲ ॥ दयावान प्रभु स्वयं ही सब कुछ करने वाला एवं जीवों से कराने वाला है।
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਗਲੇ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ॥ वह सृष्टि के समस्त जीव-जन्तुओं की पालना करता है।
ਅਗਮ ਅਗੋਚਰ ਸਦਾ ਬੇਅੰਤਾ ॥ प्रभु सदैव ही अगम्य, अगोचर एवं अनन्त है।
ਸਿਮਰਿ ਮਨਾ ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਮੰਤਾ ॥੨॥ हे मेरे मन ! पूर्ण गुरु के उपदेश से प्रभु का सिमरन कर ॥ २ ॥
ਜਾ ਕੀ ਸੇਵਾ ਸਰਬ ਨਿਧਾਨੁ ॥ प्रभु की सेवा करने से तमाम भण्डार प्राप्त हो जाते हैं।
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪੂਜਾ ਪਾਈਐ ਮਾਨੁ ॥ प्रभु की पूजा करने से मान-सम्मान प्राप्त होता है।
ਜਾ ਕੀ ਟਹਲ ਨ ਬਿਰਥੀ ਜਾਇ ॥ प्रभु की सेवा व्यर्थ नहीं जाती,
ਸਦਾ ਸਦਾ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਇ ॥੩॥ अतः नित्य ही उसका गुणानुवाद करते रहो ॥ ३॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥ अन्तर्यामी प्रभु मुझ पर कृपा कीजिए।
ਸੁਖ ਨਿਧਾਨ ਹਰਿ ਅਲਖ ਸੁਆਮੀ ॥ जगत् का स्वामी, अलक्ष्य परमेश्वर सुखों का खजाना है।
ਜੀਅ ਜੰਤ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾਈ ॥ समस्त जीव-जन्तु तेरी शरण में हैं।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਵਡਿਆਈ ॥੪॥੨੫॥੯੪॥ हे नानक ! मुझे प्रभु का नाम मिल जाए चूंकि उसका नाम ही मेरे लिए बड़ाई है। ॥४॥२५॥९४॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी गुआरेरी महला ५ ॥
ਜੀਅ ਜੁਗਤਿ ਜਾ ਕੈ ਹੈ ਹਾਥ ॥ जिस भगवान के वश में जीवों की जीवन-युक्ति है,
ਸੋ ਸਿਮਰਹੁ ਅਨਾਥ ਕੋ ਨਾਥੁ ॥ उसका ही सिमरन करो, वह अनाथों का नाथ है।
ਪ੍ਰਭ ਚਿਤਿ ਆਏ ਸਭੁ ਦੁਖੁ ਜਾਇ ॥ यदि मनुष्य भगवान को स्मरण करता रहे तो उसके समस्त दुख नष्ट हो जाते हैं।
ਭੈ ਸਭ ਬਿਨਸਹਿ ਹਰਿ ਕੈ ਨਾਇ ॥੧॥ हरि के नाम सिमरन से समस्त भय नाश हो जाते हैं।॥ १॥
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਭਉ ਕਾਹੇ ਕਾ ਮਾਨਹਿ ॥ हे प्राणी ! तू ईश्वर के अलावा किसी दूसरे का भय क्यों अनुभव करता है ?
ਹਰਿ ਬਿਸਰਤ ਕਾਹੇ ਸੁਖੁ ਜਾਨਹਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ यदि तू प्रभु को विस्मृत कर देता है तो फिर तू अपने आप को सुख में क्यों समझते हो॥ १ ॥ रहाउ ॥
ਜਿਨਿ ਧਾਰੇ ਬਹੁ ਧਰਣਿ ਅਗਾਸ ॥ जिसने अनेकों धरती-आकाश कायम किए हैं,
ਜਾ ਕੀ ਜੋਤਿ ਜੀਅ ਪਰਗਾਸ ॥ जिसकी ज्योति का समस्त जीवों में प्रकाश है,
ਜਾ ਕੀ ਬਖਸ ਨ ਮੇਟੈ ਕੋਇ ॥ जिसकी दया को कोई भी मिटा नहीं सकता।
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਨਿਰਭਉ ਹੋਇ ॥੨॥ उस प्रभु का सिमरन करने से मनुष्य निर्भय हो जाता है॥ २॥
ਆਠ ਪਹਰ ਸਿਮਰਹੁ ਪ੍ਰਭ ਨਾਮੁ ॥ दिन के आठ प्रहर प्रभु के नाम का सिमरन करते रहो।
ਅਨਿਕ ਤੀਰਥ ਮਜਨੁ ਇਸਨਾਨੁ ॥ चूंकि प्रभु का नाम-सिमरन ही अनेकों तीर्थों का स्नान है।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕੀ ਸਰਣੀ ਪਾਹਿ ॥ परब्रह्म की शरण में आने से
ਕੋਟਿ ਕਲੰਕ ਖਿਨ ਮਹਿ ਮਿਟਿ ਜਾਹਿ ॥੩॥ मनुष्य के करोड़ों ही कलंक एक क्षण में मिट जाते हैं।॥ ३॥
ਬੇਮੁਹਤਾਜੁ ਪੂਰਾ ਪਾਤਿਸਾਹੁ ॥ वह बेपरवाह पूर्ण बादशाह है।
ਪ੍ਰਭ ਸੇਵਕ ਸਾਚਾ ਵੇਸਾਹੁ ॥ ईश्वर के सेवक की उसमें सच्ची आस्था है।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਰਾਖੇ ਦੇ ਹਾਥ ॥ अपना हाथ देकर पूर्ण गुरु जी उसकी रक्षा करते हैं।
ਨਾਨਕ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਸਮਰਾਥ ॥੪॥੨੬॥੯੫॥ हे नानक ! पारब्रह्म प्रभु सब कुछ करने में समर्थ है ॥४॥२६॥९५॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी गुआरेरी महला ५ ॥
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਨਾਮਿ ਮਨੁ ਲਾਗਾ ॥ गुरु की कृपा से मेरा मन प्रभु के नाम में लग गया है।
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕਾ ਸੋਇਆ ਜਾਗਾ ॥ यह मन जन्म-जन्मांतरों से अज्ञानता की निद्रा में सोया हुआ था परन्तु अब यह जाग गया है अर्थात् इसे ज्ञान हो गया है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਗੁਣ ਉਚਰੈ ਪ੍ਰਭ ਬਾਣੀ ॥ वही प्राणी प्रभु की वाणी द्वारा उसके अमृतमयी गुणों का उच्चारण करता है,
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਕੀ ਸੁਮਤਿ ਪਰਾਣੀ ॥੧॥ जिसे पूर्ण गुरु की सुमति प्राप्त हो जाती है॥ १॥
ਪ੍ਰਭ ਸਿਮਰਤ ਕੁਸਲ ਸਭਿ ਪਾਏ ॥ प्रभु का सिमरन करने से मुझे सर्वसुख प्राप्त हो गए हैं।
ਘਰਿ ਬਾਹਰਿ ਸੁਖ ਸਹਜ ਸਬਾਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ घर के भीतर एवं बाहर मुझे सहज ही सर्वसुख प्राप्त हो गया है॥ १॥ रहाउ॥
ਸੋਈ ਪਛਾਤਾ ਜਿਨਹਿ ਉਪਾਇਆ ॥ मैंने उस प्रभु को पहचान लिया है, जिसने मुझे उत्पन्न किया है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਿ ਮਿਲਾਇਆ ॥ प्रभु ने कृपा करके मुझे अपने साथ मिला लिया है।
ਬਾਹ ਪਕਰਿ ਲੀਨੋ ਕਰਿ ਅਪਨਾ ॥ भुजा से पकड़कर प्रभु ने मुझे अपना बना लिया है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਥਾ ਸਦਾ ਜਪੁ ਜਪਨਾ ॥੨॥ हरि की सुन्दर हरि-कथा एवं नाम का मैं हमेशा जाप जपता हूँ॥ २॥
ਮੰਤ੍ਰੁ ਤੰਤ੍ਰੁ ਅਉਖਧੁ ਪੁਨਹਚਾਰੁ ॥ मन्त्र-तन्त्र, औषधि, प्रायश्चित कर्म समूह


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