Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 159

Page 159

ਭਗਤਿ ਕਰਹਿ ਮੂਰਖ ਆਪੁ ਜਣਾਵਹਿ ॥ कई मूर्ख व्यक्ति प्रदर्शन करके भक्ति करते हैं और स्वयं को भक्त होने का दिखावा ही करते हैं।
ਨਚਿ ਨਚਿ ਟਪਹਿ ਬਹੁਤੁ ਦੁਖੁ ਪਾਵਹਿ ॥ वे निरन्तर नृत्य करते और कूदते हैं और बहुत दुःख सहन करते हैं
ਨਚਿਐ ਟਪਿਐ ਭਗਤਿ ਨ ਹੋਇ ॥ नृत्य करने एवं कूदने से प्रभु की भक्ति नहीं होती।
ਸਬਦਿ ਮਰੈ ਭਗਤਿ ਪਾਏ ਜਨੁ ਸੋਇ ॥੩॥ प्रभु की भक्ति वही व्यक्ति प्राप्त करता है, जो गुरु के शब्द द्वारा अपने अहंकार को नष्ट कर देता है॥ ३॥
ਭਗਤਿ ਵਛਲੁ ਭਗਤਿ ਕਰਾਏ ਸੋਇ ॥ भक्तवत्सल प्रभु स्वयं ही भक्तों को अपनी भक्तिपूर्ण पूजा करने के लिए प्रेरित करता है। ।।
ਸਚੀ ਭਗਤਿ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਖੋਇ ॥ सच्ची भक्ति में अन्तर्मन से अहंकार का नाश हो जाता है।
ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸਾਚਾ ਸਭ ਬਿਧਿ ਜਾਣੈ ॥ मेरा सत्यस्वरूप प्रभु जीवों से भक्ति करवाने की समस्त विधियों को जानता है।
ਨਾਨਕ ਬਖਸੇ ਨਾਮੁ ਪਛਾਣੈ ॥੪॥੪॥੨੪॥ हे नानक ! भगवान् उन्हें ही क्षमा कर देता है, जो उसके नाम को पहचान लेता है॥ ४ ॥ ४ ॥ २४ ॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥ राग गौड़ी गुआरेरी तृतीय गुरु ३ ॥
ਮਨੁ ਮਾਰੇ ਧਾਤੁ ਮਰਿ ਜਾਇ ॥ जब मनुष्य अपने मन को नियंत्रण में कर लेता है तो उसकी समस्त दुविघा समाप्त हो जाती है।
ਬਿਨੁ ਮੂਏ ਕੈਸੇ ਹਰਿ ਪਾਇ ॥ मन को नियंत्रण में किए बिना भगवान् की प्राप्ति कैसे हो सकती है?
ਮਨੁ ਮਰੈ ਦਾਰੂ ਜਾਣੈ ਕੋਇ ॥ कोई विरला पुरुष ही मन को नियंत्रण में करने की औषधि को जानता है।
ਮਨੁ ਸਬਦਿ ਮਰੈ ਬੂਝੈ ਜਨੁ ਸੋਇ ॥੧॥ मन भगवान के नाम द्वारा ही नियंत्रण में आता है परन्तु इस भेद को वही जानता है जो नाम-सिमरन करता है। ॥ १॥
ਜਿਸ ਨੋ ਬਖਸੇ ਦੇ ਵਡਿਆਈ ॥ ईश्वर जिसे क्षमा कर देता है, उसे ही वह शोभा प्रदान करता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਹਰਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुरु की कृपा से ईश्वर आकर उसके हृदय में निवास करता है॥ १॥ रहाउ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਕਰਣੀ ਕਾਰ ਕਮਾਵੈ ॥ जो व्यक्ति गुरमुख बनकर शुभ कर्मों के आचरण की कमाई करता है,
ਤਾ ਇਸੁ ਮਨ ਕੀ ਸੋਝੀ ਪਾਵੈ ॥ उसे ही मन के स्वभाव की सूझ होती है।
ਮਨੁ ਮੈ ਮਤੁ ਮੈਗਲ ਮਿਕਦਾਰਾ ॥ मनुष्य का मन मदिरा में मस्त हुए हाथी की भाँति है।
ਗੁਰੁ ਅੰਕਸੁ ਮਾਰਿ ਜੀਵਾਲਣਹਾਰਾ ॥੨॥ गुरु ही आत्मिक रूप से मृत इस मन को अपनी वाणी द्वारा अंकुश लगाकर आत्मिक जीवन प्रदान करने में समर्थ है॥ २॥
ਮਨੁ ਅਸਾਧੁ ਸਾਧੈ ਜਨੁ ਕੋਇ ॥ यह मन सहज रूप में नियंत्रण में आने वाला नहीं। कोई विरला पुरुष ही इसे नियंत्रण में करता है।
ਅਚਰੁ ਚਰੈ ਤਾ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਇ ॥ यदि मनुष्य आत्मग्लानि को नष्ट कर दे, केवल तभी यह मन पवित्र होता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਇਹੁ ਮਨੁ ਲਇਆ ਸਵਾਰਿ ॥ गुरमुख जीव ने यह मन सुन्दर बना लिया है।
ਹਉਮੈ ਵਿਚਹੁ ਤਜੇ ਵਿਕਾਰ ॥੩॥ वह अपने भीतर से अहंकार रूपी विकार को बाहर निकाल देता है॥ ३॥
ਜੋ ਧੁਰਿ ਰਾਖਿਅਨੁ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਇ ॥ जिन लोगों को परमात्मा ने आदि से ही साधुओं के मिलाप में मिला रखा है,
ਕਦੇ ਨ ਵਿਛੁੜਹਿ ਸਬਦਿ ਸਮਾਇ ॥ वह कदाचित प्रभु से अलग नहीं होते और ईश्वर में ही लीन रहते हैं।
ਆਪਣੀ ਕਲਾ ਆਪੇ ਹੀ ਜਾਣੈ ॥ सर्वकला सम्पूर्ण परमात्मा अपनी कला (शक्ति) स्वयं ही जानता है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਪਛਾਣੈ ॥੪॥੫॥੨੫॥ हे नानक ! गुरमुख ही नाम को पहचानता है॥ ४॥ ५॥ २५ ॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥ राग गौड़ी ग्वरायरी, तृतीय गुरु: ३ ॥
ਹਉਮੈ ਵਿਚਿ ਸਭੁ ਜਗੁ ਬਉਰਾਨਾ ॥ सारी दुनिया अहंकार में फँसकर पागल हो रही है
ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਨਾ ॥ तथा द्वैत-भाव के कारण भ्रम में पड़कर कुमार्गगामी होकर भटकता है।
ਬਹੁ ਚਿੰਤਾ ਚਿਤਵੈ ਆਪੁ ਨ ਪਛਾਨਾ ॥ चिंता में पड़कर लोग बहुत सोचते रहते हैं परन्तु अपने स्वरूप की पहचान नहीं करते।
ਧੰਧਾ ਕਰਤਿਆ ਅਨਦਿਨੁ ਵਿਹਾਨਾ ॥੧॥ अपने कर्म (धंधा) करते हुए उनके रात-दिन बीत जाते हैं।॥ १॥
ਹਿਰਦੈ ਰਾਮੁ ਰਮਹੁ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥ हे मेरे भाई ! अपने हृदय में राम का सिमरन करते रहो।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਰਸਨਾ ਹਰਿ ਰਸਨ ਰਸਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुर उपदेश के माध्यम से जिह्वा हरि-रस का आनंद प्राप्त करती रहती है॥ १॥ रहाउ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਿਰਦੈ ਜਿਨਿ ਰਾਮੁ ਪਛਾਤਾ ॥ जो गुरमुख अपने ह्रदय में राम को पहचान लेते हैं,
ਜਗਜੀਵਨੁ ਸੇਵਿ ਜੁਗ ਚਾਰੇ ਜਾਤਾ ॥ वह जगजीवन प्रभु की सेवा करके चारों युगों में प्रसिद्ध हो जाते हैं।
ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਪਛਾਤਾ ॥ वह अपना अहंकार नष्ट कर के गुरु के शब्द द्वारा प्रभु को समझ लेते हैं।
ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਪ੍ਰਭ ਕਰਮ ਬਿਧਾਤਾ ॥੨॥ कर्मविधाता प्रभु उन पर अपनी कृपा करता है॥ २॥
ਸੇ ਜਨ ਸਚੇ ਜੋ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਮਿਲਾਏ ॥ जिन लोगों को गुरु के शब्द द्वारा भगवान् और अपने साथ मिला लेता है, वहीं व्यक्ति सत्यवादी हैं।
ਧਾਵਤ ਵਰਜੇ ਠਾਕਿ ਰਹਾਏ ॥ वह अपने मन को विकारों की ओर दौड़ने से वर्जित करते हैं और उस पर विराम लगाते हैं।
ਨਾਮੁ ਨਵ ਨਿਧਿ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਏ ॥ नवनिधियों के समान नाम को वह गुरु से प्राप्त करते हैं।
ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਹਰਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਏ ॥੩॥ भगवान् अपनी कृपा करके उनके मन में आकर निवास कर लेता है॥ ३॥
ਰਾਮ ਰਾਮ ਕਰਤਿਆ ਸੁਖੁ ਸਾਂਤਿ ਸਰੀਰ ॥ 'राम-राम' नाम का सिमरन करने से शरीर को सुख एवं शांति प्राप्त होती है।
ਅੰਤਰਿ ਵਸੈ ਨ ਲਾਗੈ ਜਮ ਪੀਰ ॥ जिस प्राणी के हृदय में प्रभु-नाम आ बसता है, उसको मृत्यु की पीड़ा स्पर्श नहीं करती।
ਆਪੇ ਸਾਹਿਬੁ ਆਪਿ ਵਜੀਰ ॥ ईश्वर स्वयं ही जगत् का स्वामी है और स्वयं ही मंत्री है।
ਨਾਨਕ ਸੇਵਿ ਸਦਾ ਹਰਿ ਗੁਣੀ ਗਹੀਰ ॥੪॥੬॥੨੬॥ हे नानक ! सदैव ही गुणों के भण्डार भगवान की सेवा करते रहो॥ ४॥ ६॥ २६॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥ राग गौड़ी ग्वरायरी, तृतीय गुरु: ३ ॥
ਸੋ ਕਿਉ ਵਿਸਰੈ ਜਿਸ ਕੇ ਜੀਅ ਪਰਾਨਾ ॥ उस भगवान् को हम क्यों विस्मृत करें ? जिसके हमें ये आत्मा और प्राण दिए हुए हैं।
ਸੋ ਕਿਉ ਵਿਸਰੈ ਸਭ ਮਾਹਿ ਸਮਾਨਾ ॥ उसे हम क्यों विस्मृत करें ? जो समस्त जीवों में समाया हुआ है।
ਜਿਤੁ ਸੇਵਿਐ ਦਰਗਹ ਪਤਿ ਪਰਵਾਨਾ ॥੧॥ जिसकी सेवा-भक्ति करने से जीव उसके दरबार में स्वीकार हो जाता है तथा वहाँ उसे बड़ी शोभा मिलती है। ॥ १॥
ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਵਿਟਹੁ ਬਲਿ ਜਾਉ ॥ मैं हरि के नाम पर बलिहारी जाता हूँ।
ਤੂੰ ਵਿਸਰਹਿ ਤਦਿ ਹੀ ਮਰਿ ਜਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे मेरे प्रभु! मैं आध्यात्मिक रूप से उसी क्षण मर जाता हूँ जब मैं आपको त्याग देता हूँ।॥ १॥ रहाउ॥
ਤਿਨ ਤੂੰ ਵਿਸਰਹਿ ਜਿ ਤੁਧੁ ਆਪਿ ਭੁਲਾਏ ॥ हे परमात्मा ! आप उन्हें ही विस्मृत हो जाते हो, जिन्हें आपने स्वयं ही कुमार्गगामी बनाया है।


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