Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 160

Page 160

ਤਿਨ ਤੂੰ ਵਿਸਰਹਿ ਜਿ ਦੂਜੈ ਭਾਏ ॥ जो जीव माया के मोह में लीन रहते हैं, उन्हें प्रभु विस्मृत हो जाते हैं।
ਮਨਮੁਖ ਅਗਿਆਨੀ ਜੋਨੀ ਪਾਏ ॥੨॥ ज्ञानहीन स्वेच्छाचारी जीवों को पुनर्जन्म प्राप्त होते हैं। ॥ २॥
ਜਿਨ ਇਕ ਮਨਿ ਤੁਠਾ ਸੇ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵਾ ਲਾਏ ॥ जिन प्राणियों पर परमात्मा प्रसन्न होता है, उनको वह सतगुरु की सेवा में लगा देते हैं।
ਜਿਨ ਇਕ ਮਨਿ ਤੁਠਾ ਤਿਨ ਹਰਿ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥ जिन प्राणियों पर भगवान प्रसन्न होते हैं, भगवान् उनके मन में स्वयं स्थापित होते हैं ।
ਗੁਰਮਤੀ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਏ ॥੩॥ गुरु के उपदेश से वह हरि के नाम में विलीन हो जाते हैं।॥ ३ ॥
ਜਿਨਾ ਪੋਤੈ ਪੁੰਨੁ ਸੇ ਗਿਆਨ ਬੀਚਾਰੀ ॥ जिनके भाग्य में पिछले पुण्यों का लेखा है, वे आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करते हैं।
ਜਿਨਾ ਪੋਤੈ ਪੁੰਨੁ ਤਿਨ ਹਉਮੈ ਮਾਰੀ ॥ और वें अपने अहंकार को नष्ट कर देते हैं।
ਨਾਨਕ ਜੋ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਤਿਨ ਕਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥੪॥੭॥੨੭॥ हे नानक ! जो ईश्वर के नाम में मग्न रहते हैं, मैं उन पर बलिहारी जाता हूँ॥ ४॥ ७॥ २७॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥ राग गौड़ी ग्वरायरी, तृतीय गुरु द्वारा रचित ॥
ਤੂੰ ਅਕਥੁ ਕਿਉ ਕਥਿਆ ਜਾਹਿ ॥ हे भगवान् ! आप अकथनीय है। फिर आपका वर्णन किस तरह किया जा सकता है?
ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਮਾਰਣੁ ਮਨ ਮਾਹਿ ਸਮਾਹਿ ॥ जो व्यक्ति गुरु के शब्द से अपने मन को वश में कर लेते हैं, भगवान् उसके मन में निवास करते हैं।
ਤੇਰੇ ਗੁਣ ਅਨੇਕ ਕੀਮਤਿ ਨਹ ਪਾਹਿ ॥੧॥ हे ईश्वर ! तेरे गुण अनेक हैं और उनका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता ॥ १॥
ਜਿਸ ਕੀ ਬਾਣੀ ਤਿਸੁ ਮਾਹਿ ਸਮਾਣੀ ॥ यह गुरुवाणी उसी में समाहित रहती है जिसकी वह है।
ਤੇਰੀ ਅਕਥ ਕਥਾ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਵਖਾਣੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे प्रभु ! तेरी अकथनीय कथा को गुरु के शब्द द्वारा ही वर्णन किया गया है॥ १॥ रहाउ ॥
ਜਹ ਸਤਿਗੁਰੁ ਤਹ ਸਤਸੰਗਤਿ ਬਣਾਈ ॥ जहाँ सतगुरु होते हैं, वहाँ सत्संगति होती है।
ਜਹ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਹਜੇ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਈ ॥ सतगुरु सत्संगति में सहज ही भगवान् की गुणस्तुति करते हैं।
ਜਹ ਸਤਿਗੁਰੁ ਤਹਾ ਹਉਮੈ ਸਬਦਿ ਜਲਾਈ ॥੨॥ जहाँ सतगुरु जी होते हैं, वहाँ नाम द्वारा प्राणियों का अहंकार जल जाता है। २॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੇਵਾ ਮਹਲੀ ਥਾਉ ਪਾਏ ॥ गुरमुख ईश्वर की सेवा-भक्ति करके उसके आत्म-स्वरूप में स्थान प्राप्त कर लेता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਅੰਤਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਸਾਏ ॥ गुरमुख ही अपने हृदय में भगवान् के नाम को बसा लेता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਗਤਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਏ ॥੩॥ गुरमुख भक्ति द्वारा भगवान् के नाम में ही समा जाता है॥ ३॥
ਆਪੇ ਦਾਤਿ ਕਰੇ ਦਾਤਾਰੁ ॥ दाता प्रभु जिस व्यक्ति को नाम की देन प्रदान करता है,
ਪੂਰੇ ਸਤਿਗੁਰ ਸਿਉ ਲਗੈ ਪਿਆਰੁ ॥ उस व्यक्ति का पूर्ण सतगुरु से प्रेम हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਤਿਨ ਕਉ ਜੈਕਾਰੁ ॥੪॥੮॥੨੮॥ हे नानक ! जो व्यक्ति नाम में मग्न रहते हैं, उनकी लोक-परलोक में जय-जयकार होती है ॥ ४ ॥ ८ ॥ २८ ॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥ राग गौड़ी ग्वरायरी, तृतीय गुरु द्वारा ३ ॥
ਏਕਸੁ ਤੇ ਸਭਿ ਰੂਪ ਹਹਿ ਰੰਗਾ ॥ एक ईश्वर से ही समस्त रूप एवं रंग उत्पन्न हुए हैं।
ਪਉਣੁ ਪਾਣੀ ਬੈਸੰਤਰੁ ਸਭਿ ਸਹਲੰਗਾ ॥ पवन, जल एवं अग्नि सब में मिले हुए हैं।
ਭਿੰਨ ਭਿੰਨ ਵੇਖੈ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਰੰਗਾ ॥੧॥ हरि-प्रभु इन भिन्न-भिन्न रंगों वाले जीवों एवं पदार्थों की देखभाल स्वयं करते हैं। ॥ १॥
ਏਕੁ ਅਚਰਜੁ ਏਕੋ ਹੈ ਸੋਈ ॥ यह एक अदभुत कौतुक है कि यह सारा जगत-प्रसार एक ईश्वर का ही है और वह स्वयं सर्वत्र विद्यमान है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਵੀਚਾਰੇ ਵਿਰਲਾ ਕੋਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ कोई विरला पुरुष ही गुरु के माध्यम से इस कौतुक पर विचार करता है॥ १॥ रहाउ ॥
ਸਹਜਿ ਭਵੈ ਪ੍ਰਭੁ ਸਭਨੀ ਥਾਈ ॥ परमेश्वर सहज ही सर्वव्यापक हो रहा है।
ਕਹਾ ਗੁਪਤੁ ਪ੍ਰਗਟੁ ਪ੍ਰਭਿ ਬਣਤ ਬਣਾਈ ॥ परमेश्वर ने ऐसी सृष्टि रचना की है कि किसी स्थान पर वह लुप्त है और कहीं प्रत्यक्ष है।
ਆਪੇ ਸੁਤਿਆ ਦੇਇ ਜਗਾਈ ॥੨॥ भगवान् स्वयं ही अज्ञानता की निद्रा में सोए हुए जीवों को ज्ञान देकर जगा देता है॥ २॥
ਤਿਸ ਕੀ ਕੀਮਤਿ ਕਿਨੈ ਨ ਹੋਈ ॥ उसका मूल्यांकन कोई नहीं कर सका।
ਕਹਿ ਕਹਿ ਕਥਨੁ ਕਹੈ ਸਭੁ ਕੋਈ ॥ चाहे सभी लोग उसके गुणों को कह-कहकर कथन कर रहे हैं।
ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਸਮਾਵੈ ਬੂਝੈ ਹਰਿ ਸੋਈ ॥੩॥ जो प्राणी गुरु के शब्द में लीन होता है, वह भगवान् को समझ लेता है॥ ३॥
ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਵੇਖੈ ਸਬਦਿ ਮਿਲਾਏ ॥ भगवान् जीवों की प्रार्थना सुनते हैं और उनका पालन-पोषण करते हैं तथा नाम द्वारा अपने साथ मिला लेते हैं।
ਵਡੀ ਵਡਿਆਈ ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤੇ ਪਾਏ ॥ गुरु की सेवा करने से मनुष्य को बड़ी शोभा प्राप्त होती है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਏ ॥੪॥੯॥੨੯॥ हे नानक ! जो व्यक्ति नाम में मग्न रहते हैं, वह भगवान् के नाम में ही समा जाते हैं॥ ४॥ ६ ॥ २९ ॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥ राग गौड़ी ग्वरायरी, तृतीय गुरु द्वारा ३ ॥
ਮਨਮੁਖਿ ਸੂਤਾ ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਪਿਆਰਿ ॥ स्वेच्छाचारी जीव माया के मोह एवं प्रेम में फंस कर अज्ञानता की निदा में सोया रहता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਗੇ ਗੁਣ ਗਿਆਨ ਬੀਚਾਰਿ ॥ परन्तु गुरमुख भगवान के गुणों का चिंतन करके ज्ञान द्वारा विवेकी रहता है।
ਸੇ ਜਨ ਜਾਗੇ ਜਿਨ ਨਾਮ ਪਿਆਰਿ ॥੧॥ जो व्यक्ति प्रभु के नाम से प्रेम करते हैं, वहीं जागते रहते हैं।॥ १॥
ਸਹਜੇ ਜਾਗੈ ਸਵੈ ਨ ਕੋਇ ॥ जो व्यक्ति सहज ही जागता रहता है, वह अज्ञानता की निद्रा में नहीं सोता।
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਬੂਝੈ ਜਨੁ ਕੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ इस तथ्य को कोई पुरुष पूर्ण गुरु द्वारा समझता है॥ १॥ रहाउ॥
ਅਸੰਤੁ ਅਨਾੜੀ ਕਦੇ ਨ ਬੂਝੈ ॥ दुष्ट एवं अनाड़ी व्यक्ति समझाने से कभी भी नहीं समझता।
ਕਥਨੀ ਕਰੇ ਤੈ ਮਾਇਆ ਨਾਲਿ ਲੂਝੈ ॥ वह बातें तो बहुत करता रहता है परन्तु माया से ही उलझा रहता है।
ਅੰਧੁ ਅਗਿਆਨੀ ਕਦੇ ਨ ਸੀਝੈ ॥੨॥ मोह-माया में अन्धा हुआ ज्ञानहीन व्यक्ति कभी भी अपने जीवन-मनोरथ में सफल नहीं होता ॥ २॥
ਇਸੁ ਜੁਗ ਮਹਿ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਨਿਸਤਾਰਾ ॥ इस युग में राम के नाम द्वारा ही मोक्ष संभव है।
ਵਿਰਲਾ ਕੋ ਪਾਏ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰਾ ॥ कोई विरला पुरुष ही गुरु के शब्द द्वारा इस तथ्य को समझता है।
ਆਪਿ ਤਰੈ ਸਗਲੇ ਕੁਲ ਉਧਾਰਾ ॥੩॥ वह स्वयं तो भवसागर से पार होता है और अपने समूचे वंश को भी बचा लेता है॥ ३॥


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