Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 931

Page 931

ਓਹੁ ਬਿਧਾਤਾ ਮਨੁ ਤਨੁ ਦੇਇ ॥ वही विधाता है और वही मन-तन प्रदान करता है।
ਓਹੁ ਬਿਧਾਤਾ ਮਨਿ ਮੁਖਿ ਸੋਇ ॥ मन एवं मुख में वह विधाता ही विद्यमान है।
ਪ੍ਰਭੁ ਜਗਜੀਵਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥ प्रभु ही जगत् का जीवन है और उसके अलावा अन्य कोई नहीं।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਪਤਿ ਹੋਇ ॥੯॥ हे नानक ! जो प्रभु-नाम में लीन रहता है, उसकी ही कीर्ति होती है ॥६॥
ਰਾਜਨ ਰਾਮ ਰਵੈ ਹਿਤਕਾਰਿ ॥ जो हितकारी राम का नाम जपता रहता है,
ਰਣ ਮਹਿ ਲੂਝੈ ਮਨੂਆ ਮਾਰਿ ॥ वह मन को मारकर जगत् रूपी रणभूमि में डटकर जूझता है और
ਰਾਤਿ ਦਿਨੰਤਿ ਰਹੈ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ॥ दिन-रात परमात्मा के रंग में लीन रहता है।
ਤੀਨਿ ਭਵਨ ਜੁਗ ਚਾਰੇ ਜਾਤਾ ॥ ऐसा व्यक्ति तीनों लोकों एवं चारों युगों में लोकप्रिय हो जाता है।
ਜਿਨਿ ਜਾਤਾ ਸੋ ਤਿਸ ਹੀ ਜੇਹਾ ॥ जिसने भगवान को समझ लिया है, वह उस जैसा ही हो जाता है।
ਅਤਿ ਨਿਰਮਾਇਲੁ ਸੀਝਸਿ ਦੇਹਾ ॥ उसका मन निर्मल एवं शरीर सफल हो जाता है और
ਰਹਸੀ ਰਾਮੁ ਰਿਦੈ ਇਕ ਭਾਇ ॥ एक श्रद्धा भावना से राम उसके हृदय में बसा रहता है।
ਅੰਤਰਿ ਸਬਦੁ ਸਾਚਿ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥੧੦॥ उसके अन्तर में शब्द स्थित हो जाता है और सत्य में ही लगन लगी रहती है ॥१०॥
ਰੋਸੁ ਨ ਕੀਜੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਜੈ ਰਹਣੁ ਨਹੀ ਸੰਸਾਰੇ ॥ मन में रोष नहीं करना चाहिए, नामामृत का पान करना चाहिए, चूंकि किसी ने भी इस संसार में नहीं रहना।
ਰਾਜੇ ਰਾਇ ਰੰਕ ਨਹੀ ਰਹਣਾ ਆਇ ਜਾਇ ਜੁਗ ਚਾਰੇ ॥ राजा, महाराजा एवं भिखारी किसी ने भी दुनिया में नहीं रहना और चारों युगों में जन्म-मरण का चक्र पड़ा रहता है।
ਰਹਣ ਕਹਣ ਤੇ ਰਹੈ ਨ ਕੋਈ ਕਿਸੁ ਪਹਿ ਕਰਉ ਬਿਨੰਤੀ ॥ यह कहने पर भी कि मैं सदा यहाँ ही रहूँगा, कोई यहाँ नहीं रहता। फिर मैं किसके पास विनती करूँ ?"
ਏਕੁ ਸਬਦੁ ਰਾਮ ਨਾਮ ਨਿਰੋਧਰੁ ਗੁਰੁ ਦੇਵੈ ਪਤਿ ਮਤੀ ॥੧੧॥ राम नाम एक शब्द ही जीव का उद्धारक है और गुरु ही बुद्धि एवं प्रतिष्ठा देता है ॥११॥
ਲਾਜ ਮਰੰਤੀ ਮਰਿ ਗਈ ਘੂਘਟੁ ਖੋਲਿ ਚਲੀ ॥ लोक लाज में मरने वाली जीव-स्त्री की लाज ही मर गई है और अब वह घूंघट खोल कर चलती है।
ਸਾਸੁ ਦਿਵਾਨੀ ਬਾਵਰੀ ਸਿਰ ਤੇ ਸੰਕ ਟਲੀ ॥ उसकी अविद्या रूपी सास माया बावली हो गई है और सिर से माया रूपी सास का डर दूर हो गया है।
ਪ੍ਰੇਮਿ ਬੁਲਾਈ ਰਲੀ ਸਿਉ ਮਨ ਮਹਿ ਸਬਦੁ ਅਨੰਦੁ ॥ उसके प्रभु ने प्रेम एवं चाव से उसे अपने पास बुला लिया है, उसके मन में शब्द द्वारा आनंद हो गया है।
ਲਾਲਿ ਰਤੀ ਲਾਲੀ ਭਈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਈ ਨਿਚਿੰਦੁ ॥੧੨॥ वह अपने लाल प्रभु के प्रेम में रंग गई है, जिससे उसके चेहरे पर लाली आ गई है। वह गुरु द्वारा निश्चिन्त हो गई है ॥१२॥
ਲਾਹਾ ਨਾਮੁ ਰਤਨੁ ਜਪਿ ਸਾਰੁ ॥ नाम रूपी रत्न का जाप ही सच्चा लाभ है।
ਲਬੁ ਲੋਭੁ ਬੁਰਾ ਅਹੰਕਾਰੁ ॥ लालच, लोभ एवं अहंकार्.
ਲਾੜੀ ਚਾੜੀ ਲਾਇਤਬਾਰੁ ॥ निंदा, खुशामद, छेड़छाड़ एवं चुगली सब बुरे कार्य हैं।
ਮਨਮੁਖੁ ਅੰਧਾ ਮੁਗਧੁ ਗਵਾਰੁ ॥ इन बुरी आदतों के कारण मनमुख जीव अंधा, मूर्ख एवं गंवार हो गया है।
ਲਾਹੇ ਕਾਰਣਿ ਆਇਆ ਜਗਿ ॥ जीव तो जग में नाम रूपी पाने लाभ के लिए आया था
ਹੋਇ ਮਜੂਰੁ ਗਇਆ ਠਗਾਇ ਠਗਿ ॥ परन्तु माया का मजदूर बनकर माया द्वारा ठग कर जगत् से खाली हाथ लौट जाता है।
ਲਾਹਾ ਨਾਮੁ ਪੂੰਜੀ ਵੇਸਾਹੁ ॥ हे नानक ! सच्चा लाभ केवल प्रभु नाम रूपी पूंजी प्राप्त करने से ही होता है।
ਨਾਨਕ ਸਚੀ ਪਤਿ ਸਚਾ ਪਾਤਿਸਾਹੁ ॥੧੩॥ सच्चा पातशाह प्रभु उसे सच्ची प्रतिष्ठा प्रदान करता है ॥१३॥
ਆਇ ਵਿਗੂਤਾ ਜਗੁ ਜਮ ਪੰਥੁ ॥ जगत् में जन्म लेकर जीव यम के मार्ग में पड़कर बर्बाद हो रहा है और
ਆਈ ਨ ਮੇਟਣ ਕੋ ਸਮਰਥੁ ॥ मोह-माया को नाश करने के लिए उसमें समर्था नहीं।
ਆਥਿ ਸੈਲ ਨੀਚ ਘਰਿ ਹੋਇ ॥ जिस नीच व्यक्ति के घर में बहुत सारा धन होता है तो
ਆਥਿ ਦੇਖਿ ਨਿਵੈ ਜਿਸੁ ਦੋਇ ॥ अमीर-गरीब दोनों ही उसके धन को देखकर झुककर उसे प्रणाम करते हैं।
ਆਥਿ ਹੋਇ ਤਾ ਮੁਗਧੁ ਸਿਆਨਾ ॥ जिसके पास बेशुमार धन होता है, वह मूर्ख भी चतुर माना जाता है।
ਭਗਤਿ ਬਿਹੂਨਾ ਜਗੁ ਬਉਰਾਨਾ ॥ भक्तिविहीन होकर समूचा जगत् बावला बनकर इधर-उधर भटक रहा है।
ਸਭ ਮਹਿ ਵਰਤੈ ਏਕੋ ਸੋਇ ॥ परन्तु एक ईश्वर ही सब जीवों में विद्यमान है,
ਜਿਸ ਨੋ ਕਿਰਪਾ ਕਰੇ ਤਿਸੁ ਪਰਗਟੁ ਹੋਇ ॥੧੪॥ वह जिस पर अपनी कृपा करता है, उसके मन में प्रगट हो जाता है॥ १४॥
ਜੁਗਿ ਜੁਗਿ ਥਾਪਿ ਸਦਾ ਨਿਰਵੈਰੁ ॥ युग-युगांतरों से संसार को बनाने वाला ईश्वर सदैव स्थिर है, वैर से रहित है
ਜਨਮਿ ਮਰਣਿ ਨਹੀ ਧੰਧਾ ਧੈਰੁ ॥ प्रेमस्वरूप वह जन्म-मरण के चक्र से रहित है और दुनिया के धंधों से मुक्त है।
ਜੋ ਦੀਸੈ ਸੋ ਆਪੇ ਆਪਿ ॥ जो कुछ भी दिखाई देता है, वह उसका ही रूप है।
ਆਪਿ ਉਪਾਇ ਆਪੇ ਘਟ ਥਾਪਿ ॥ वह स्वयं ही पैदा करता है और स्वयं ही प्रत्येक हदय में स्थित है।
ਆਪਿ ਅਗੋਚਰੁ ਧੰਧੈ ਲੋਈ ॥ वह स्वयं ही अगोचर है और उसने सारी दुनिया को विभिन्न कायों में लगाया हुआ है
ਜੋਗ ਜੁਗਤਿ ਜਗਜੀਵਨੁ ਸੋਈ ॥ योग की युक्ति में भी जग का जीवन वह परमेश्वर ही है।
ਕਰਿ ਆਚਾਰੁ ਸਚੁ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥ भक्ति का उत्तम कार्य करने से सच्चा सुख उपलब्ध होता है,
ਨਾਮ ਵਿਹੂਣਾ ਮੁਕਤਿ ਕਿਵ ਹੋਈ ॥੧੫॥ परन्तु नामविहीन जीव की मुक्ति नहीं हो सकती ॥ १५ ॥
ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਵੇਰੋਧੁ ਸਰੀਰ ॥ नाम के बिना जीना अपने शरीर से विरोध करने की तरह है।
ਕਿਉ ਨ ਮਿਲਹਿ ਕਾਟਹਿ ਮਨ ਪੀਰ ॥ तू प्रभु से क्यों नहीं मिलता ? वह तेरे मन की पीड़ा को दूर कर देगा।
ਵਾਟ ਵਟਾਊ ਆਵੈ ਜਾਇ ॥ जीव रूपी पथिक बार-बार जग रूपी पथ पर आता जाता रहता है।
ਕਿਆ ਲੇ ਆਇਆ ਕਿਆ ਪਲੈ ਪਾਇ ॥ यह क्या लेकर जगत् में आया है और क्या लाभ प्राप्त करके जा रहा है।
ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਤੋਟਾ ਸਭ ਥਾਇ ॥ नाम के बिना हर स्थान में नुक्सान ही होता है।
ਲਾਹਾ ਮਿਲੈ ਜਾ ਦੇਇ ਬੁਝਾਇ ॥ उसे नाम रूपी लाभ तभी हासिल होता है, जब परमात्मा उसे सूझ प्रदान करता है।
ਵਣਜੁ ਵਾਪਾਰੁ ਵਣਜੈ ਵਾਪਾਰੀ ॥ सच्चा व्यापारी तो प्रभु-नाम का ही वाणिज्य एवं व्यापार करता है,
ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਕੈਸੀ ਪਤਿ ਸਾਰੀ ॥੧੬॥ फिर नाम के बिना जीव कैसे शोभा प्राप्त कर सकता है?॥ १६॥
ਗੁਣ ਵੀਚਾਰੇ ਗਿਆਨੀ ਸੋਇ ॥ वही सच्चा ज्ञानी है, जो परम-सत्य के गुणों का विचार करता है।
ਗੁਣ ਮਹਿ ਗਿਆਨੁ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥ गुणों में ही उसे ज्ञान प्राप्त होता है।
ਗੁਣਦਾਤਾ ਵਿਰਲਾ ਸੰਸਾਰਿ ॥ संसार में कोई विरला मनुष्य ही है जो गुणों के दाता परमेश्वर का ध्यान करता है।
ਸਾਚੀ ਕਰਣੀ ਗੁਰ ਵੀਚਾਰਿ ॥ गुरु के उपदेश द्वारा ही नाम-स्मरण की सच्ची करनी हो सकती है।
ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਕੀਮਤਿ ਨਹੀ ਪਾਇ ॥ अगम्य, मन-वाणी से परे परमेश्वर का सही मूल्य नहीं आंका जा सकता।


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