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ਜਿਸੁ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ॥
गुरु की कृपा से जिसे परमात्मा के नाम का आधार मिल गया है,
ਕੋਟਿ ਮਧੇ ਕੋ ਜਨੁ ਆਪਾਰੁ ॥੭॥
करोड़ों में कोई विरला ही प्रभु का भक्त है॥ ७॥
ਏਕੁ ਬੁਰਾ ਭਲਾ ਸਚੁ ਏਕੈ ॥
दुनिया में चाहे कोई बुरा अथवा भला है, लेकिन एक परमात्मा ही सत्य है।
ਬੂਝੁ ਗਿਆਨੀ ਸਤਗੁਰ ਕੀ ਟੇਕੈ ॥
हे ज्ञानी ! सतगुरु का सहारा लेकर इस रहस्य को समझो।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਿਰਲੀ ਏਕੋ ਜਾਣਿਆ ॥
गुरु से उपदेश लेकर किसी विरले ने एक ईश्वर को समझा है और
ਆਵਣੁ ਜਾਣਾ ਮੇਟਿ ਸਮਾਣਿਆ ॥੮॥
वह आवागमन मिटा कर सत्य में ही विलीन हो गया है॥ ८॥
ਜਿਨ ਕੈ ਹਿਰਦੈ ਏਕੰਕਾਰੁ ॥
जिसके हृदय में ऑकार है,
ਸਰਬ ਗੁਣੀ ਸਾਚਾ ਬੀਚਾਰੁ ॥
वह सर्वगुणसम्पन्न सच्चे प्रभु का चिंतन करता है।
ਗੁਰ ਕੈ ਭਾਣੈ ਕਰਮ ਕਮਾਵੈ ॥
हे नानक ! ऐसा जीव गुरु की रज़ानुसार कर्म करता है और
ਨਾਨਕ ਸਾਚੇ ਸਾਚਿ ਸਮਾਵੈ ॥੯॥੪॥
परम सत्य में ही विलीन हो जाता है॥ ६ ॥ ४॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
रामकली महला १ ॥
ਹਠੁ ਨਿਗ੍ਰਹੁ ਕਰਿ ਕਾਇਆ ਛੀਜੈ ॥
हठयोग की क्रिया एवं इन्द्रियों को निग्रह करने से काया क्षीण हो जाती है।
ਵਰਤੁ ਤਪਨੁ ਕਰਿ ਮਨੁ ਨਹੀ ਭੀਜੈ ॥
व्रत-उपवास एवं तपस्या करने से भी मन संतुष्ट नहीं होता।
ਰਾਮ ਨਾਮ ਸਰਿ ਅਵਰੁ ਨ ਪੂਜੈ ॥੧॥
राम-नाम के समान अन्य पहुँचने वाला नहीं है॥ १॥
ਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਮਨਾ ਹਰਿ ਜਨ ਸੰਗੁ ਕੀਜੈ ॥
हे मन ! गुरु की सेवा करो और भक्तजनों की संगति करो।
ਜਮੁ ਜੰਦਾਰੁ ਜੋਹਿ ਨਹੀ ਸਾਕੈ ਸਰਪਨਿ ਡਸਿ ਨ ਸਕੈ ਹਰਿ ਕਾ ਰਸੁ ਪੀਜੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि का रस पीने से निर्दयी यमदूत भी पास नहीं आते और माया रूपी नागिन भी डंक नहीं मार सकती ॥ १॥ रहाउ॥
ਵਾਦੁ ਪੜੈ ਰਾਗੀ ਜਗੁ ਭੀਜੈ ॥
समूचा जगत् वाद-विवाद में पड़ा रहता है और रागों संगीत द्वारा प्रसन्न होता रहता है।
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਬਿਖਿਆ ਜਨਮਿ ਮਰੀਜੈ ॥
त्रिगुणात्मक माया रूपी विष में पड़कर जीव जन्मता-मरता रहता है और
ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਦੂਖੁ ਸਹੀਜੈ ॥੨॥
राम-नाम के बिना बड़ा दुख सहन करता है॥ २।
ਚਾੜਸਿ ਪਵਨੁ ਸਿੰਘਾਸਨੁ ਭੀਜੈ ॥
योगी र्प्राणायाम करता है और आसन पर बैठकर बड़ा प्रसन्न होता है।
ਨਿਉਲੀ ਕਰਮ ਖਟੁ ਕਰਮ ਕਰੀਜੈ ॥
वह निउली कर्म एवं छः हठयोग कर्म भी करता रहता है लेकिन
ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਬਿਰਥਾ ਸਾਸੁ ਲੀਜੈ ॥੩॥
राम नाम के बिना वह व्यर्थ सॉस लेता है ३॥
ਅੰਤਰਿ ਪੰਚ ਅਗਨਿ ਕਿਉ ਧੀਰਜੁ ਧੀਜੈ ॥
जब अन्तर्मन में काम-क्रोध इत्यादि पॉच विकारों की अग्नि जलती रहती है तो कैसे धैर्य हो सकता है।
ਅੰਤਰਿ ਚੋਰੁ ਕਿਉ ਸਾਦੁ ਲਹੀਜੈ ॥
अन्तर्मन में कामादिक चौरों का वास है, फिर जीवन का कैसे स्वाद मिल सकता है ?"
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਇ ਕਾਇਆ ਗੜੁ ਲੀਜੈ ॥੪॥
गुरमुख बनने से शरीर रूपी किंले पर जीत प्राप्त हो सकती है। ४॥
ਅੰਤਰਿ ਮੈਲੁ ਤੀਰਥ ਭਰਮੀਜੈ ॥
मन में मैल होने के कारण तीथों में भटकने का कोई फायदा नहीं है।
ਮਨੁ ਨਹੀ ਸੂਚਾ ਕਿਆ ਸੋਚ ਕਰੀਜੈ ॥
यदि मन ही शुद्ध नहीं तो शौचादि करने का क्या अभिप्राय है ?
ਕਿਰਤੁ ਪਇਆ ਦੋਸੁ ਕਾ ਕਉ ਦੀਜੈ ॥੫॥
जब भाग्य लेख ही ऐसा है तो फिर किसे दोष दिया जाए ॥ ५ ॥
ਅੰਨੁ ਨ ਖਾਹਿ ਦੇਹੀ ਦੁਖੁ ਦੀਜੈ ॥
जो भोजन नहीं करता, उपवास रखता है। वह तो अपने शरीर को दुख ही देता है।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਗਿਆਨ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਨਹੀ ਥੀਜੈ ॥
गुरु के ज्ञान बिना जीव की तृप्ति नहीं होती और
ਮਨਮੁਖਿ ਜਨਮੈ ਜਨਮਿ ਮਰੀਜੈ ॥੬॥
स्वेच्छाचारी जीव आवागमन के चक्र में पड़कर जन्मता मरता रहता है॥ ६ ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਪੂਛਿ ਸੰਗਤਿ ਜਨ ਕੀਜੈ ॥
सतगुरु से पूछकर भक्तजनों की संगति करनी चाहिए।
ਮਨੁ ਹਰਿ ਰਾਚੈ ਨਹੀ ਜਨਮਿ ਮਰੀਜੈ ॥
यदि मन परमात्मा में लीन रहे तो वह जन्म-मरण से छूट जाता है।
ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਕਿਆ ਕਰਮੁ ਕੀਜੈ ॥੭॥
राम-नाम का सिमरन किए बिना अन्य धर्म-कर्म करने का कोई लाभ नहीं है॥ ७ ॥
ਊਂਦਰ ਦੂੰਦਰ ਪਾਸਿ ਧਰੀਜੈ ॥
चूहे की तरह शोर मचा रहे मन के ख्यालों को एक तरफ कर दो।
ਧੁਰ ਕੀ ਸੇਵਾ ਰਾਮੁ ਰਵੀਜੈ ॥
राम नाम का सिमरन ही सच्ची सेवा है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭ ਕੀਜੈ ॥੮॥੫॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु ! ऐसी कृपा करो केि मुझे नाम का दान मिल जाए ॥ ८ ॥ ५॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
रामकली महला १ ॥
ਅੰਤਰਿ ਉਤਭੁਜੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥
परमात्मा के अलावा अन्य कोई भी वनस्पति इत्यादि जीवों की उत्पति करने वाला नहीं
ਜੋ ਕਹੀਐ ਸੋ ਪ੍ਰਭ ਤੇ ਹੋਈ ॥
जिस वस्तु का भी कथन किया जाए, वह प्रभु से ही पैदा हुई है।
ਜੁਗਹ ਜੁਗੰਤਰਿ ਸਾਹਿਬੁ ਸਚੁ ਸੋਈ ॥
युग-युगान्तरों से एक परमेश्वर ही सत्य है,
ਉਤਪਤਿ ਪਰਲਉ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥੧॥
विश्व की उत्पति एवं प्रलय करने वाला उसके अतिरिक्त कोई नहीं है।॥ १॥
ਐਸਾ ਮੇਰਾ ਠਾਕੁਰੁ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰੁ ॥
मेरा ठाकुर ऐसा गहन-गंभीर है,
ਜਿਨਿ ਜਪਿਆ ਤਿਨ ਹੀ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਕੈ ਨਾਮਿ ਨ ਲਗੈ ਜਮ ਤੀਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिसने भी उसका जाप किया है, उसे ही सुख उपलब्ध हुआ है। हरि का नाम-स्मरण करने से यम का तीर नहीं लगता॥ १॥ रहाउ॥
ਨਾਮੁ ਰਤਨੁ ਹੀਰਾ ਨਿਰਮੋਲੁ ॥
प्रभु का नाम अमूल्य रत्न एवं हीरा है,
ਸਾਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਅਮਰੁ ਅਤੋਲੁ ॥
वह सच्चा मालिक अमर एवं अतुलनीय है।
ਜਿਹਵਾ ਸੂਚੀ ਸਾਚਾ ਬੋਲੁ ॥
उसकी जिह्म शुद्ध एवं वचन सत्य है।
ਘਰਿ ਦਰਿ ਸਾਚਾ ਨਾਹੀ ਰੋਲੁ ॥੨॥
उसका घर द्वार सदैव सत्य है और कोई अस्त-व्यस्तता नहीं है॥ २ ॥
ਇਕਿ ਬਨ ਮਹਿ ਬੈਸਹਿ ਡੂਗਰਿ ਅਸਥਾਨੁ ॥
कोई जगलों में जाकर बैठता है तो कोई पहाड़ों में गुफा इत्यादि स्थान पर बैठ जाता है।
ਨਾਮੁ ਬਿਸਾਰਿ ਪਚਹਿ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥
ऐसे व्यक्ति नाम को भुलाकर अभिमान में पीडित होते हैं।
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਕਿਆ ਗਿਆਨ ਧਿਆਨੁ ॥
परमात्मा के नाम बिना ज्ञान-ध्यान का कोई महत्व नहीं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਵਹਿ ਦਰਗਹਿ ਮਾਨੁ ॥੩॥
गुरमुख ही सत्य के दरबार में शोभा का पात्र बनता है॥ ३॥
ਹਠੁ ਅਹੰਕਾਰੁ ਕਰੈ ਨਹੀ ਪਾਵੈ ॥
जो व्यक्ति हठ एवं अहंकार करता है, उसे सत्य की प्राप्ति नहीं होती।
ਪਾਠ ਪੜੈ ਲੇ ਲੋਕ ਸੁਣਾਵੈ ॥
कोई धार्मिक ग्रंथों का पाठ पढ़कर लोगों को सुनाता है एवं