Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 886

Page 886

ਬਡੈ ਭਾਗਿ ਸਾਧਸੰਗੁ ਪਾਇਓ ॥੧॥ अहोभाग्य से ही संतों की संगति प्राप्त हुई है॥ १॥
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਨਾਹੀ ਉਧਾਰੁ ॥ पूर्ण गुरु के बिना किसी का उद्धार नहीं होता
ਬਾਬਾ ਨਾਨਕੁ ਆਖੈ ਏਹੁ ਬੀਚਾਰੁ ॥੨॥੧੧॥ बाबा नानक तुझे यही विचार बताता है ॥ २॥ ११॥
ਰਾਗੁ ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨ रागु रामकली महला ५ घरु २
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਚਾਰਿ ਪੁਕਾਰਹਿ ਨਾ ਤੂ ਮਾਨਹਿ ॥ चार वेद भी कह रहे हैं किन्तु तू नहीं मानता।
ਖਟੁ ਭੀ ਏਕਾ ਬਾਤ ਵਖਾਨਹਿ ॥ छः शास्त्र भी एक की बात का बखान कर रहे हैं।
ਦਸ ਅਸਟੀ ਮਿਲਿ ਏਕੋ ਕਹਿਆ ॥ अठारह पुराणों ने भी मिलकर एक परमेश्वर की ही महिमा की है लेकिन
ਤਾ ਭੀ ਜੋਗੀ ਭੇਦੁ ਨ ਲਹਿਆ ॥੧॥ फिर भी हे योगी ! तूने यह भेद नहीं समझा ॥ १॥
ਕਿੰਕੁਰੀ ਅਨੂਪ ਵਾਜੈ ॥ ਜੋਗੀਆ ਮਤਵਾਰੋ ਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हर समय अनुपम वीणा बज रही है। हे योगी मतवाले ! ॥ १॥ रहाउ॥
ਪ੍ਰਥਮੇ ਵਸਿਆ ਸਤ ਕਾ ਖੇੜਾ ॥ सर्वप्रथम सतयुग रूपी सत्य का नगर बसा था।
ਤ੍ਰਿਤੀਏ ਮਹਿ ਕਿਛੁ ਭਇਆ ਦੁਤੇੜਾ ॥ तदुपरांत त्रैता युग में धर्म में कुछ दरार आ गई थी।
ਦੁਤੀਆ ਅਰਧੋ ਅਰਧਿ ਸਮਾਇਆ ॥ द्वापर युग में धर्म का आधा भाग ही रह गया था।
ਏਕੁ ਰਹਿਆ ਤਾ ਏਕੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥੨॥ कलियुग में धर्म का एक भाग ही रह गया है और
ਏਕੈ ਸੂਤਿ ਪਰੋਏ ਮਣੀਏ ॥ ਗਾਠੀ ਭਿਨਿ ਭਿਨਿ ਭਿਨਿ ਭਿਨਿ ਤਣੀਏ ॥ सतगुरु ने जगत् को मुक्ति का एक नाम मार्ग दिखाया है जैसे माला के सारे मनके एक ही धागे में पिरोए होते हैं और भिन्न-भिन्न गाँठों द्वारा उन्हें भिन्न रखा होता है।
ਫਿਰਤੀ ਮਾਲਾ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਭਾਇ ॥ यह माला अनेक विधियों द्वारा प्रेम से फेरी हुई फिरती रहती है।
ਖਿੰਚਿਆ ਸੂਤੁ ਤ ਆਈ ਥਾਇ ॥੩॥ जब माला का धागा खींच लिया जाता है तो सारी माला एक ही स्थान आ जाती है॥ ३॥
ਚਹੁ ਮਹਿ ਏਕੈ ਮਟੁ ਹੈ ਕੀਆ ॥ चारों युगों में रहने के लिए प्रभु ने यह जगत् रूपी एक मठ बनाया है।
ਤਹ ਬਿਖੜੇ ਥਾਨ ਅਨਿਕ ਖਿੜਕੀਆ ॥ इस में विकारों से भरपूर कई दुखदायक स्थान हैं और इसमें से बाहर निकलने के लिए अनेक ही योनियां रूपी खिड़कियां हैं।
ਖੋਜਤ ਖੋਜਤ ਦੁਆਰੇ ਆਇਆ ॥ हे नानक! जब कोई मनुष्य तलाश करता-करता गुरु के दर पर आ पहुँचता है
ਤਾ ਨਾਨਕ ਜੋਗੀ ਮਹਲੁ ਘਰੁ ਪਾਇਆ ॥੪॥ तब प्रभु-चरणों में जुड़े उस मनुष्य को परमात्मा का महल घर मिल जाता है ॥ ४॥
ਇਉ ਕਿੰਕੁਰੀ ਆਨੂਪ ਵਾਜੈ ॥ इस तरह अब बहुत ही वीणा उसके आत्मस्वरूप में बज रही है,
ਸੁਣਿ ਜੋਗੀ ਕੈ ਮਨਿ ਮੀਠੀ ਲਾਗੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ਦੂਜਾ ॥੧॥੧੨॥ जिसे सुनने से यह योगी के मन में मीठी लगती है॥ १॥ रहाउ दूसरा ॥ १॥ १२ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ रामकली महला ५ ॥
ਤਾਗਾ ਕਰਿ ਕੈ ਲਾਈ ਥਿਗਲੀ ॥ परमात्मा ने पवन रूपी प्राणों को धागा बनाकर शरीर रूपी कफनी को अंग रूपी सिलाई किया है और
ਲਉ ਨਾੜੀ ਸੂਆ ਹੈ ਅਸਤੀ ॥ हड्डियों रूपी सुई से नाड़ियों को जोड़ा हुआ है।
ਅੰਭੈ ਕਾ ਕਰਿ ਡੰਡਾ ਧਰਿਆ ॥ वीर्य रूपी रक्त-बिंदु बनाकर इस कफनी रूपी शरीर का निर्माण किया है।
ਕਿਆ ਤੂ ਜੋਗੀ ਗਰਬਹਿ ਪਰਿਆ ॥੧॥ हे योगी ! तू किस बात का घमण्ड करता है ? ॥ १॥
ਜਪਿ ਨਾਥੁ ਦਿਨੁ ਰੈਨਾਈ ॥ दिन-रात भगवान् का जाप कर,
ਤੇਰੀ ਖਿੰਥਾ ਦੋ ਦਿਹਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ चूंकि तेरी यह शरीर रूपी कफनी तो दो दिन ही चलेगी॥ १॥ रहाउ॥
ਗਹਰੀ ਬਿਭੂਤ ਲਾਇ ਬੈਠਾ ਤਾੜੀ ॥ तू शरीर पर विभूति मलकर समाधि लगाकर बैठा है।
ਮੇਰੀ ਤੇਰੀ ਮੁੰਦ੍ਰਾ ਧਾਰੀ ॥ तूने अहंत्व की मुद्राएं धारण की हुई हैं।
ਮਾਗਹਿ ਟੂਕਾ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਨ ਪਾਵੈ ॥ तू घर-घर से भोजन मांगता रहता है किन्तु तृप्ति नहीं होती।
ਨਾਥੁ ਛੋਡਿ ਜਾਚਹਿ ਲਾਜ ਨ ਆਵੈ ॥੨॥ ईश्वर को छोड़कर दूसरों से मांगते हुए तुझे शर्म नहीं आती॥ २॥
ਚਲ ਚਿਤ ਜੋਗੀ ਆਸਣੁ ਤੇਰਾ ॥ हे योगी ! तेरा आसन लगा हुआ है, लेकिन तेरा मन चंचल बना हुआ है।
ਸਿੰਙੀ ਵਾਜੈ ਨਿਤ ਉਦਾਸੇਰਾ ॥ बेशक सिंगी बजती रहती है, फिर भी तेरा मन नित्य ही उदास रहता है।
ਗੁਰ ਗੋਰਖ ਕੀ ਤੈ ਬੂਝ ਨ ਪਾਈ ॥ जगद्गुरु परमेश्वर की तुझे अभी तक सूझ नहीं हुई।
ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਜੋਗੀ ਆਵੈ ਜਾਈ ॥੩॥ हे योगी ! इसी कारण तू बार-बार जन्मता-मरता रहता है॥ ३॥
ਜਿਸ ਨੋ ਹੋਆ ਨਾਥੁ ਕ੍ਰਿਪਾਲਾ ॥ जिस पर मालिक कृपालु हो गया है,
ਰਹਰਾਸਿ ਹਮਾਰੀ ਗੁਰ ਗੋਪਾਲਾ ॥ उस गुरु परमेश्वर के समक्ष हमारी प्रार्थना है।
ਨਾਮੈ ਖਿੰਥਾ ਨਾਮੈ ਬਸਤਰੁ ॥ नाम ही जिसकी कफनी एवं वस्त्र है ,"
ਜਨ ਨਾਨਕ ਜੋਗੀ ਹੋਆ ਅਸਥਿਰੁ ॥੪॥ हे नानक ! वही योगी स्थिर हुआ है ॥ ४॥
ਇਉ ਜਪਿਆ ਨਾਥੁ ਦਿਨੁ ਰੈਨਾਈ ॥ जिसने इस प्रकार दिन-रात ईश्वर का जाप किया है,
ਹੁਣਿ ਪਾਇਆ ਗੁਰੁ ਗੋਸਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ਦੂਜਾ ॥੨॥੧੩॥ उसने अब मानव-जन्म में गुरु-परमेश्वर को पा लिया है ॥१॥ रहाउ दूसरा ॥२॥१३॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ रामकली महला ५ ॥
ਕਰਨ ਕਰਾਵਨ ਸੋਈ ॥ परमेश्वर ही करने-कराने वाला है,
ਆਨ ਨ ਦੀਸੈ ਕੋਈ ॥ उसके अतिरिक्त अन्य कोई दृष्टिगत नहीं होता।
ਠਾਕੁਰੁ ਮੇਰਾ ਸੁਘੜੁ ਸੁਜਾਨਾ ॥ मेरा ठाकुर बड़ा चतुर एवं सर्वज्ञाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਿਲਿਆ ਰੰਗੁ ਮਾਨਾ ॥੧॥ गुरु के माध्यम से जब वह मिला तो ही आनंद प्राप्त हुआ है॥ १॥
ਐਸੋ ਰੇ ਹਰਿ ਰਸੁ ਮੀਠਾ ॥ हरि-रस इतना मीठा है किं
ਗੁਰਮੁਖਿ ਕਿਨੈ ਵਿਰਲੈ ਡੀਠਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ किसी विरले ने गुरुमुख बनकर ही इसे चखा है॥ १॥ रहाउ॥
ਨਿਰਮਲ ਜੋਤਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹਰਿ ਨਾਮ ॥ उसकी ज्योति निर्मल है, हरि का नाम अमृत है,


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