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ਛਿਅ ਦਰਸਨ ਕੀ ਸੋਝੀ ਪਾਇ ॥੪॥੫॥
उसे छः दर्शनों की सूझ प्राप्त हो जाती है।॥ ४॥ ५॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
रामकली महला १ ॥
ਹਮ ਡੋਲਤ ਬੇੜੀ ਪਾਪ ਭਰੀ ਹੈ ਪਵਣੁ ਲਗੈ ਮਤੁ ਜਾਈ ॥
हम डोल रहे हैं, क्योंकि हमारी जीवन-नैया पापों से भरी हुई है, डर लग रहा है कि तूफान के कारण कहीं यह डूब न जाए।
ਸਨਮੁਖ ਸਿਧ ਭੇਟਣ ਕਉ ਆਏ ਨਿਹਚਉ ਦੇਹਿ ਵਡਿਆਈ ॥੧॥
हे मालिक ! हम तुझे मिलने के लिए तेरे पास आए हैं, निश्चय ही बड़ाई दीजिए ॥१॥
ਗੁਰ ਤਾਰਿ ਤਾਰਣਹਾਰਿਆ ॥
हे तरन-तारन गुरु ! संसार-सागर से तिरा दो,
ਦੇਹਿ ਭਗਤਿ ਪੂਰਨ ਅਵਿਨਾਸੀ ਹਉ ਤੁਝ ਕਉ ਬਲਿਹਾਰਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हे पूर्ण अविनाशी ! अपनी भक्ति प्रदान कीजिए, मैं तुझ पर बलिहारी जाता हूँ ॥१ ॥ रहाउ ॥
ਸਿਧ ਸਾਧਿਕ ਜੋਗੀ ਅਰੁ ਜੰਗਮ ਏਕੁ ਸਿਧੁ ਜਿਨੀ ਧਿਆਇਆ ॥
जिन्होंने परमेश्वर रूपी सिद्ध का ध्यान किया है, दरअसल वही सच्चा सिद्ध-साधक, योगी एवं जंगम है।
ਪਰਸਤ ਪੈਰ ਸਿਝਤ ਤੇ ਸੁਆਮੀ ਅਖਰੁ ਜਿਨ ਕਉ ਆਇਆ ॥੨॥
जिन्हें परमात्मा का नाम मिल गया है, वे जगत् के स्वामी प्रभु के चरण छू कर सफल हो गए हैं।॥ २॥
ਜਪ ਤਪ ਸੰਜਮ ਕਰਮ ਨ ਜਾਨਾ ਨਾਮੁ ਜਪੀ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰਾ ॥
हे प्रभु! मैं कोई जप, तप, संयम इत्यादि धर्म कर्म को नहीं जानता, सिर्फ तेरा ही नाम जपता रहता हूँ।
ਗੁਰੁ ਪਰਮੇਸਰੁ ਨਾਨਕ ਭੇਟਿਓ ਸਾਚੈ ਸਬਦਿ ਨਿਬੇਰਾ ॥੩॥੬॥
हे नानक ! जिसकी गुरु-परमेश्वर से भेंट हो गई है, सच्चे शब्द द्वारा उसके कर्मों का लेखा-जोखा मिट गया है॥ ३ ॥ ६ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
रामकली महला १ ॥
ਸੁਰਤੀ ਸੁਰਤਿ ਰਲਾਈਐ ਏਤੁ ॥
इस मानव-जन्म में अपना ध्यान भगवान में ऐसे लगाकर रखना चाहिए कि
ਤਨੁ ਕਰਿ ਤੁਲਹਾ ਲੰਘਹਿ ਜੇਤੁ ॥
अपने तन को ही नैया बना लो, जिससे भवसागर से पार हुआ जाए।
ਅੰਤਰਿ ਭਾਹਿ ਤਿਸੈ ਤੂ ਰਖੁ ॥
अन्तर्मन में जो तृष्णाग्नि जल रही है, उसे दबाकर रखो ताकि
ਅਹਿਨਿਸਿ ਦੀਵਾ ਬਲੈ ਅਥਕੁ ॥੧॥
मन में दिन-रात ज्ञान का दीपक जलता रहे। १॥
ਐਸਾ ਦੀਵਾ ਨੀਰਿ ਤਰਾਇ ॥
यदि शरीर रूपी जल में ऐसा दीपक जलाया जाए तो
ਜਿਤੁ ਦੀਵੈ ਸਭ ਸੋਝੀ ਪਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
उस दीपक द्वारा सारा ज्ञान प्राप्त हो सकता है॥ १॥ रहाउ ॥
ਹਛੀ ਮਿਟੀ ਸੋਝੀ ਹੋਇ ॥
यदि अच्छी सूझ-बूझ रूपी मिट्टी हो तो
ਤਾ ਕਾ ਕੀਆ ਮਾਨੈ ਸੋਇ ॥
उस मिट्टी से बने दीपक को प्रभु स्वीकार कर लेता है।
ਕਰਣੀ ਤੇ ਕਰਿ ਚਕਹੁ ਢਾਲਿ ॥
अपने शुभ-कर्मों को चाक बनाओ, उस चाक पर दीपक बनाओ।
ਐਥੈ ਓਥੈ ਨਿਬਹੀ ਨਾਲਿ ॥੨॥
ऐसा दीपक लोक-परलोक में सहायक होगा।॥ २ ॥
ਆਪੇ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਜਾ ਸੋਇ ॥
जब परमात्मा अपनी कृपा-दृष्टि करता है तो
ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਿਰਲਾ ਬੂਝੈ ਕੋਇ ॥
कोई विरला गुरुमुख इस तथ्य को समझ जाता है
ਤਿਤੁ ਘਟਿ ਦੀਵਾ ਨਿਹਚਲੁ ਹੋਇ ॥
और उसके हृदय में यह दीपक निश्चल हो जाता है।
ਪਾਣੀ ਮਰੈ ਨ ਬੁਝਾਇਆ ਜਾਇ ॥
ऐसा दीपक पानी द्वारा न नाश होता है और न ही इसे बुझाया जा सकता है।
ਐਸਾ ਦੀਵਾ ਨੀਰਿ ਤਰਾਇ ॥੩॥
सो ऐसा दीपक शरीर रूपी जल में तैराना चाहिए॥ ३॥
ਡੋਲੈ ਵਾਉ ਨ ਵਡਾ ਹੋਇ ॥
हवा इस दीपक को डुला नहीं सकती और न ही यह बड़ा होता है।
ਜਾਪੈ ਜਿਉ ਸਿੰਘਾਸਣਿ ਲੋਇ ॥
इस दीपक के आलोक से अन्तर्मन रूपी सिंहासन पर विराजमान परमेश्वर नजर आने लगता है।
ਖਤ੍ਰੀ ਬ੍ਰਾਹਮਣੁ ਸੂਦੁ ਕਿ ਵੈਸੁ ॥
क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य एवं शूद्र किसी ने भी
ਨਿਰਤਿ ਨ ਪਾਈਆ ਗਣੀ ਸਹੰਸ ॥
हजारों बार गिनती करके भी उसका मूल्यांकन नहीं किया।
ਐਸਾ ਦੀਵਾ ਬਾਲੇ ਕੋਇ ॥
हे नानक ! जो जीव अपने ह्रदय में ऐसा दीपक प्रज्वलित कर लेता है,
ਨਾਨਕ ਸੋ ਪਾਰੰਗਤਿ ਹੋਇ ॥੪॥੭॥
उसका उद्धार हो जाता है।४॥ ७ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
रामकली महला १ ॥
ਤੁਧਨੋ ਨਿਵਣੁ ਮੰਨਣੁ ਤੇਰਾ ਨਾਉ ॥
हे परमेशवर ! तेरे नाम का मनन करना ही तेरी अर्चना अथवा वंदना है,
ਸਾਚੁ ਭੇਟ ਬੈਸਣ ਕਉ ਥਾਉ ॥
सत्य-नाम की भेंट देने से तेरे दरबार में बैठने को स्थान मिल जाता है।
ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਹੋਵੈ ਅਰਦਾਸਿ ॥
जो व्यक्ति सत्य एवं संतोष की प्रार्थना करता है,
ਤਾ ਸੁਣਿ ਸਦਿ ਬਹਾਲੇ ਪਾਸਿ ॥੧॥
तू उसकी प्रार्थना सुनकर बुला कर अपने पास बिठा लेता है॥ १॥
ਨਾਨਕ ਬਿਰਥਾ ਕੋਇ ਨ ਹੋਇ ॥
हे नानक ! वह सच्चा परमात्मा ऐसा है और
ਐਸੀ ਦਰਗਹ ਸਾਚਾ ਸੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
उसका दरबार भी ऐसा है कि उससे कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता ॥ १॥ रहाउ॥
ਪ੍ਰਾਪਤਿ ਪੋਤਾ ਕਰਮੁ ਪਸਾਉ ॥
तेरी रहमत एवं कृपा का खजाना प्राप्त हो जाए।
ਤੂ ਦੇਵਹਿ ਮੰਗਤ ਜਨ ਚਾਉ ॥
मुझ जैसे भिखारी के मन में यही चाव है कि तू मुझे यह खजाना प्रदान कर दे।
ਭਾਡੈ ਭਾਉ ਪਵੈ ਤਿਤੁ ਆਇ ॥
उसके हृदय रूपी बर्तन में तेरी प्रीति स्वयं ही आ पड़ती है
ਧੁਰਿ ਤੈ ਛੋਡੀ ਕੀਮਤਿ ਪਾਇ ॥੨॥
जिसके हृदय में तूने आरम्भ से ही श्रद्धा रूपी कीमत डाल रखी है ॥ २॥
ਜਿਨਿ ਕਿਛੁ ਕੀਆ ਸੋ ਕਿਛੁ ਕਰੈ ॥
जिस परमात्मा ने यह सबकुछ पैदा किया है, वही सबकुछ कर रहा है,
ਅਪਨੀ ਕੀਮਤਿ ਆਪੇ ਧਰੈ ॥
वह श्रद्धा रूपी कीमत भी हृदय रूपी बर्तन में स्वयं ही डालता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਰਗਟੁ ਹੋਆ ਹਰਿ ਰਾਇ ॥
ईश्वर गुरुमुख के हृदय-घर में प्रगट हुआ है,
ਨਾ ਕੋ ਆਵੈ ਨਾ ਕੋ ਜਾਇ ॥੩॥
फिर उसका जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो जाता है।३॥
ਲੋਕੁ ਧਿਕਾਰੁ ਕਹੈ ਮੰਗਤ ਜਨ ਮਾਗਤ ਮਾਨੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥
भिखारी को लोग तिरस्कृत ही करते हैं और उनका कहना है कि मांगने से सम्मान प्राप्त नहीं होता।
ਸਹ ਕੀਆ ਗਲਾ ਦਰ ਕੀਆ ਬਾਤਾ ਤੈ ਤਾ ਕਹਣੁ ਕਹਾਇਆ ॥੪॥੮॥
परमात्मा की बातें, उसके दरबार की बातें, उस मालिक ने स्वयं ही मुझसे मुख से कहलवाई हैं।॥ ४॥ ८ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
रामकली महला १ ॥
ਸਾਗਰ ਮਹਿ ਬੂੰਦ ਬੂੰਦ ਮਹਿ ਸਾਗਰੁ ਕਵਣੁ ਬੁਝੈ ਬਿਧਿ ਜਾਣੈ ॥
सागर में बूंद एवं बूंद में ही सागर समाया हुआ है किन्तु इस भेद को कौन समझता और कौन इस विधि को जानता है ?
ਉਤਭੁਜ ਚਲਤ ਆਪਿ ਕਰਿ ਚੀਨੈ ਆਪੇ ਤਤੁ ਪਛਾਣੈ ॥੧॥
ईश्वर स्वयं ही उद्भज इत्यादि चारों स्रोतों को पैदा करके उनके तमाशे को जानता है और स्वयं ही रहस्य को पहचानता भी है।१॥