Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 873

Page 873

ਗੋਂਡ ॥ गोंड ॥
ਧੰਨੁ ਗੁਪਾਲ ਧੰਨੁ ਗੁਰਦੇਵ ॥ हे ईश्वर, हे गुरुदेव ! तू धन्य है।
ਧੰਨੁ ਅਨਾਦਿ ਭੂਖੇ ਕਵਲੁ ਟਹਕੇਵ ॥ यह अन्नादि भी धन्य है, जिसे खाकर भूखे आदमी का हृदय कमल खिल जाता है
ਧਨੁ ਓਇ ਸੰਤ ਜਿਨ ਐਸੀ ਜਾਨੀ ॥ वे संतजन धन्य है जिन्होंने यह बात समझ ली है और
ਤਿਨ ਕਉ ਮਿਲਿਬੋ ਸਾਰਿੰਗਪਾਨੀ ॥੧॥ उन्हें परमात्मा मिल गया है।१॥
ਆਦਿ ਪੁਰਖ ਤੇ ਹੋਇ ਅਨਾਦਿ ॥ यह अन्न इत्यादि पदार्थ आदिपुरुष परमेश्वर से ही पैदा हुआ है।
ਜਪੀਐ ਨਾਮੁ ਅੰਨ ਕੈ ਸਾਦਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ अन्न के स्वाद की तरह ही भगवान का नाम जपना चाहिए।॥ १॥ रहाउ॥
ਜਪੀਐ ਨਾਮੁ ਜਪੀਐ ਅੰਨੁ ॥ परमात्मा का नाम जपना और अन्न को भी जपना वैसे ही है,
ਅੰਭੈ ਕੈ ਸੰਗਿ ਨੀਕਾ ਵੰਨੁ ॥ जिस तरह जल के साथ मिलकर भोजन और भी स्वादिष्ट बन जाता है।
ਅੰਨੈ ਬਾਹਰਿ ਜੋ ਨਰ ਹੋਵਹਿ ॥ जो व्यक्ति अन्न को त्याग देता है,
ਤੀਨਿ ਭਵਨ ਮਹਿ ਅਪਨੀ ਖੋਵਹਿ ॥੨॥ वह तीनों लोकों में अपनी प्रतिष्ठा गंवा देता है॥ २ ॥
ਛੋਡਹਿ ਅੰਨੁ ਕਰਹਿ ਪਾਖੰਡ ॥ जो व्यक्ति भोजन खाना छोड़ देते हैं, वे पाखण्ड ही करते हैं।
ਨਾ ਸੋਹਾਗਨਿ ਨਾ ਓਹਿ ਰੰਡ ॥ न ही वे सुहागिन हैं और न ही ये विधवा कहलाने के हकदार हैं।
ਜਗ ਮਹਿ ਬਕਤੇ ਦੂਧਾਧਾਰੀ ॥ जग में जो लोग दुग्धाहारी कहे जाते हैं,
ਗੁਪਤੀ ਖਾਵਹਿ ਵਟਿਕਾ ਸਾਰੀ ॥੩॥ वे पंजीरी बना कर लोगों से चोरी-चोरी खाते रहते हैं।॥ ३॥
ਅੰਨੈ ਬਿਨਾ ਨ ਹੋਇ ਸੁਕਾਲੁ ॥ दुनिया में अन्न के बिना सुख-समृद्धि नहीं होती और
ਤਜਿਐ ਅੰਨਿ ਨ ਮਿਲੈ ਗੁਪਾਲੁ ॥ अन्न का त्याग करने से भगवान् भी नहीं मिलता।
ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਹਮ ਐਸੇ ਜਾਨਿਆ ॥ कबीर जी कहते हैं कि मैंने यह ज्ञान समझ लिया है कि
ਧੰਨੁ ਅਨਾਦਿ ਠਾਕੁਰ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ॥੪॥੮॥੧੧॥ अन्न धन्य है, जिसे खाने से मेरा मन ठाकुर जी के ध्यान में लीन है॥ ४॥ ८॥ ११॥
ਰਾਗੁ ਗੋਂਡ ਬਾਣੀ ਨਾਮਦੇਉ ਜੀ ਕੀ ਘਰੁ ੧ रागु गोंड बाणी नामदेउ जी की घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਅਸੁਮੇਧ ਜਗਨੇ ॥ चाहे कोई अश्वमेध यज्ञ करवा ले,
ਤੁਲਾ ਪੁਰਖ ਦਾਨੇ ॥ चाहे अपने भार के बराबर तोलकर सोना, चाँदी एवं अनाज इत्यादि का दान करे,
ਪ੍ਰਾਗ ਇਸਨਾਨੇ ॥੧॥ चाहे प्रयागराज तीर्थ में जाकर स्नान कर ले॥ १॥
ਤਉ ਨ ਪੁਜਹਿ ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਨਾਮਾ ॥ तो भी यह सभी पुण्य कर्म ईश्वर की कीर्ति के बराबर नहीं आते।
ਅਪੁਨੇ ਰਾਮਹਿ ਭਜੁ ਰੇ ਮਨ ਆਲਸੀਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे आलसी मन, अपने राम का भजन कर ले ॥ १॥ रहाउ ॥
ਗਇਆ ਪਿੰਡੁ ਭਰਤਾ ॥ चाहे कोई गया तीर्थ पर जाकर अपने पूर्वजों के नमित्त पिण्डदान करवाता है,
ਬਨਾਰਸਿ ਅਸਿ ਬਸਤਾ ॥ चाहे बनारस के निकट असि नदी के तट पर जाकर बसता है,
ਮੁਖਿ ਬੇਦ ਚਤੁਰ ਪੜਤਾ ॥੨॥ चाहे मुख से चार वेदों का पाठ करता है॥ २॥
ਸਗਲ ਧਰਮ ਅਛਿਤਾ ॥ चाहे वह सभी धर्म-कर्म निर्विघ्न करता है,
ਗੁਰ ਗਿਆਨ ਇੰਦ੍ਰੀ ਦ੍ਰਿੜਤਾ ॥ चाहे गुरु के दिए ज्ञान द्वारा अपनी इन्द्रियों को वशीभूत करता है,
ਖਟੁ ਕਰਮ ਸਹਿਤ ਰਹਤਾ ॥੩॥ चाहे छः कर्म करता हुआ अपना जीवन-व्यतीत करता है तो भी कल्याण नहीं होता ॥ ३ ॥
ਸਿਵਾ ਸਕਤਿ ਸੰਬਾਦੰ ॥ ਮਨ ਛੋਡਿ ਛੋਡਿ ਸਗਲ ਭੇਦੰ ॥ चाहे वह शिवा-शक्ति के संवाद में मग्न रहता है। हे मन ! इन सभी धर्म-कर्मो को छोड़ दे, क्योंकि ये सभी कर्म परमात्मा से दूर ले जाने वाले हैं।
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਗੋਬਿੰਦੰ ॥ ਭਜੁ ਨਾਮਾ ਤਰਸਿ ਭਵ ਸਿੰਧੰ ॥੪॥੧॥ नामदेव जी कहते हैं कि हरदम गोविंद का सिमरन करते रहो, उसका भजन करने से तू भवसागर से पार हो जाएगा॥ ४ ।१॥
ਗੋਂਡ ॥ गोंड ॥
ਨਾਦ ਭ੍ਰਮੇ ਜੈਸੇ ਮਿਰਗਾਏ ॥ जैसे मृग संगीत की ध्वनि को सुनकर उस ओर भागता है और
ਪ੍ਰਾਨ ਤਜੇ ਵਾ ਕੋ ਧਿਆਨੁ ਨ ਜਾਏ ॥੧॥ अपने प्राण गंवा देता है, परन्तु उसका ध्यान नहीं भूलता ॥ १॥
ਐਸੇ ਰਾਮਾ ਐਸੇ ਹੇਰਉ ॥ में भी राम की ओर ऐसे ही ध्यान लगाकर रखता हूँ और
ਰਾਮੁ ਛੋਡਿ ਚਿਤੁ ਅਨਤ ਨ ਫੇਰਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ राम को छोड़कर अपना चित्त कहीं ओर नहीं लगाता॥ १॥ रहाउ॥
ਜਿਉ ਮੀਨਾ ਹੇਰੈ ਪਸੂਆਰਾ ॥ जैसे बगुला मछलियों को देखता रहता है,
ਸੋਨਾ ਗਢਤੇ ਹਿਰੈ ਸੁਨਾਰਾ ॥੨॥ जैसे सुनार स्वर्ण को गढ़ता आभूषण की ओर देखता रहता है॥ २ ॥
ਜਿਉ ਬਿਖਈ ਹੇਰੈ ਪਰ ਨਾਰੀ ॥ जैसे कामी इन्सान पराई नारी को कुदृष्टि से देखता है,
ਕਉਡਾ ਡਾਰਤ ਹਿਰੈ ਜੁਆਰੀ ॥੩॥ जैसे जुआरी कौड़ियाँ फेंकते उनकी ओर देखता रहता है॥ ३॥
ਜਹ ਜਹ ਦੇਖਉ ਤਹ ਤਹ ਰਾਮਾ ॥ वैसे ही मैं जिधर भी देखता हूँ, उधर ही मुझे राम नजर आता है।
ਹਰਿ ਕੇ ਚਰਨ ਨਿਤ ਧਿਆਵੈ ਨਾਮਾ ॥੪॥੨॥ अब नामदेव नित्य हरि के चरणों का ध्यान करता रहता है।॥ ४ ॥ २ ॥
ਗੋਂਡ ॥ गोंड ॥
ਮੋ ਕਉ ਤਾਰਿ ਲੇ ਰਾਮਾ ਤਾਰਿ ਲੇ ॥ हे मेरे राम ! मुझे भवसागर से तार दो, मेरा उद्धार कर दो ।
ਮੈ ਅਜਾਨੁ ਜਨੁ ਤਰਿਬੇ ਨ ਜਾਨਉ ਬਾਪ ਬੀਠੁਲਾ ਬਾਹ ਦੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मैं तेरा अनजान सेवक तैरना नहीं जानता; हे परमपिता ! मुझे बाँह देकर आसरा दीजिए॥ १ ॥ रहाउ ॥
ਨਰ ਤੇ ਸੁਰ ਹੋਇ ਜਾਤ ਨਿਮਖ ਮੈ ਸਤਿਗੁਰ ਬੁਧਿ ਸਿਖਲਾਈ ॥ सतगुरु ने मुझे ऐसी बुद्धि सिखलाई है, जिससे मानव पल में ही देवता बन जाता है।
ਨਰ ਤੇ ਉਪਜਿ ਸੁਰਗ ਕਉ ਜੀਤਿਓ ਸੋ ਅਵਖਧ ਮੈ ਪਾਈ ॥੧॥ मैंने वह औषधि प्राप्त कर ली है, जिससे मानव-जन्म लेकर स्वर्ग को भी जीता जा सकता है॥ १॥
ਜਹਾ ਜਹਾ ਧੂਅ ਨਾਰਦੁ ਟੇਕੇ ਨੈਕੁ ਟਿਕਾਵਹੁ ਮੋਹਿ ॥ हे परमेश्वर ! मुझे भी उस स्थान पर टिका दो, जहाँ-जहाँ तूने भक्त ध्रुव एवं नारद मुनि को टिकाया है।
ਤੇਰੇ ਨਾਮ ਅਵਿਲੰਬਿ ਬਹੁਤੁ ਜਨ ਉਧਰੇ ਨਾਮੇ ਕੀ ਨਿਜ ਮਤਿ ਏਹ ॥੨॥੩॥ नामदेव की मति यही है की तेरे नाम के अवलंब द्वारा बहुत सारे भक्तजन भवसागर से पार हो गए हैं।२॥ ३॥


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