Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 860

Page 860

ਕਿਛੁ ਕਿਸੀ ਕੈ ਹਥਿ ਨਾਹੀ ਮੇਰੇ ਸੁਆਮੀ ਐਸੀ ਮੇਰੈ ਸਤਿਗੁਰਿ ਬੂਝ ਬੁਝਾਈ ॥ किछु किसी कै हथि नाही मेरे सुआमी ऐसी मेरै सतिगुरि बूझ बुझाई ॥ मेरे सतगुरु ने मुझे यही सूझ दी है कि किसी भी जीव के हाथ में कुछ भी नहीं है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕੀ ਆਸ ਤੂ ਜਾਣਹਿ ਹਰਿ ਦਰਸਨੁ ਦੇਖਿ ਹਰਿ ਦਰਸਨਿ ਤ੍ਰਿਪਤਾਈ ॥੪॥੧॥ जन नानक की आस तू जाणहि हरि दरसनु देखि हरि दरसनि त्रिपताई ॥४॥१॥ हे हरि ! आप जानते हैं कि आपके भक्त नानक की इच्छा है कि वह आपकी एक झलक पाए; वह आपकी कृपा दृष्टि से ही तृप्त हो सकता है। ॥ ४॥ १॥
ਗੋਂਡ ਮਹਲਾ ੪ ॥ गोंड महला ४ ॥ राग गोंड, चौथे गुरु: ४ ॥
ਐਸਾ ਹਰਿ ਸੇਵੀਐ ਨਿਤ ਧਿਆਈਐ ਜੋ ਖਿਨ ਮਹਿ ਕਿਲਵਿਖ ਸਭਿ ਕਰੇ ਬਿਨਾਸਾ ॥ ऐसा हरि सेवीऐ नित धिआईऐ जो खिन महि किलविख सभि करे बिनासा ॥ हे मेरे मन! हमें ऐसे ईश्वर की उपासना करनी चाहिए, नित्य उसका मनन करना चाहिए, जो क्षण में ही सब पाप नष्ट कर देते हैं।
ਜੇ ਹਰਿ ਤਿਆਗਿ ਅਵਰ ਕੀ ਆਸ ਕੀਜੈ ਤਾ ਹਰਿ ਨਿਹਫਲ ਸਭ ਘਾਲ ਗਵਾਸਾ ॥ जे हरि तिआगि अवर की आस कीजै ता हरि निहफल सभ घाल गवासा ॥ यदि परमात्मा को त्याग कर किसी अन्य की आशा करोगे तो सारे प्रयास निष्फल हो जाऐंगे।
ਮੇਰੇ ਮਨ ਹਰਿ ਸੇਵਿਹੁ ਸੁਖਦਾਤਾ ਸੁਆਮੀ ਜਿਸੁ ਸੇਵਿਐ ਸਭ ਭੁਖ ਲਹਾਸਾ ॥੧॥ मेरे मन हरि सेविहु सुखदाता सुआमी जिसु सेविऐ सभ भुख लहासा ॥१॥ हे मेरे मन ! सुखों के दाता, स्वामी हरि की अर्चना करो, जिसकी अर्चना करने से सारी भूख दूर हो जाती है।॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਹਰਿ ਊਪਰਿ ਕੀਜੈ ਭਰਵਾਸਾ ॥ मेरे मन हरि ऊपरि कीजै भरवासा ॥ हे मेरे मन ! हमें केवल भगवान् पर पूर्ण भरोसा रखना चाहिए।
ਜਹ ਜਾਈਐ ਤਹ ਨਾਲਿ ਮੇਰਾ ਸੁਆਮੀ ਹਰਿ ਅਪਨੀ ਪੈਜ ਰਖੈ ਜਨ ਦਾਸਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जह जाईऐ तह नालि मेरा सुआमी हरि अपनी पैज रखै जन दासा ॥१॥ रहाउ ॥ जहाँ भी जाता हूँ, वहाँ ही मेरा स्वामी मेरे साथ होते हैं। हरि अपने भक्तजनों एवं दासों की हमेशा ही लाज रखते हैं। ॥ १॥ रहाउ ॥
ਜੇ ਅਪਨੀ ਬਿਰਥਾ ਕਹਹੁ ਅਵਰਾ ਪਹਿ ਤਾ ਆਗੈ ਅਪਨੀ ਬਿਰਥਾ ਬਹੁ ਬਹੁਤੁ ਕਢਾਸਾ ॥ जे अपनी बिरथा कहहु अवरा पहि ता आगै अपनी बिरथा बहु बहुतु कढासा ॥ यदि हम अपना दुःख किसी को जाकर बताएँ तो आगे से वह अपने ही अनेक दुःख सुना देता है।
ਅਪਨੀ ਬਿਰਥਾ ਕਹਹੁ ਹਰਿ ਅਪੁਨੇ ਸੁਆਮੀ ਪਹਿ ਜੋ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੇ ਦੂਖ ਤਤਕਾਲ ਕਟਾਸਾ ॥ अपनी बिरथा कहहु हरि अपुने सुआमी पहि जो तुम्हरे दूख ततकाल कटासा ॥ इसलिए अपना दु:ख अपने स्वामी हरि के पास ही कहो, जो तेरे दुःख तत्काल ही समाप्त कर देगें।
ਸੋ ਐਸਾ ਪ੍ਰਭੁ ਛੋਡਿ ਅਪਨੀ ਬਿਰਥਾ ਅਵਰਾ ਪਹਿ ਕਹੀਐ ਅਵਰਾ ਪਹਿ ਕਹਿ ਮਨ ਲਾਜ ਮਰਾਸਾ ॥੨॥ सो ऐसा प्रभु छोडि अपनी बिरथा अवरा पहि कहीऐ अवरा पहि कहि मन लाज मरासा ॥२॥ हे मन ! सो ऐसे प्रभु को छोड़कर अपना दुःख किसी अन्य के पास कहना तो शर्म से डूबकर मरने की तरह ही है॥ २॥
ਜੋ ਸੰਸਾਰੈ ਕੇ ਕੁਟੰਬ ਮਿਤ੍ਰ ਭਾਈ ਦੀਸਹਿ ਮਨ ਮੇਰੇ ਤੇ ਸਭਿ ਅਪਨੈ ਸੁਆਇ ਮਿਲਾਸਾ ॥ जो संसारै के कुट्मब मित्र भाई दीसहि मन मेरे ते सभि अपनै सुआइ मिलासा ॥ हे मन ! संसार के जो परिवार, मित्र, भाई इत्यादि रिश्ते नज़र आते हैं, वे तुझे अपने स्वार्थ के लिए ही मिलते हैं।
ਜਿਤੁ ਦਿਨਿ ਉਨ੍ਹ੍ਹ ਕਾ ਸੁਆਉ ਹੋਇ ਨ ਆਵੈ ਤਿਤੁ ਦਿਨਿ ਨੇੜੈ ਕੋ ਨ ਢੁਕਾਸਾ ॥ जितु दिनि उन्ह का सुआउ होइ न आवै तितु दिनि नेड़ै को न ढुकासा ॥ जिस दिन उनका स्वार्थ तुझसे पूरा न हो, उस दिन से उनमें से कोई भी तेरे निकट नहीं आएगा।
ਮਨ ਮੇਰੇ ਅਪਨਾ ਹਰਿ ਸੇਵਿ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਜੋ ਤੁਧੁ ਉਪਕਰੈ ਦੂਖਿ ਸੁਖਾਸਾ ॥੩॥ मन मेरे अपना हरि सेवि दिनु राती जो तुधु उपकरै दूखि सुखासा ॥३॥ हे मेरे मन ! दिन-रात भगवान् की भक्ति करो; जो सुख और दुःख दोनों में तुम्हारी सहायता करेगा।॥ ३॥
ਤਿਸ ਕਾ ਭਰਵਾਸਾ ਕਿਉ ਕੀਜੈ ਮਨ ਮੇਰੇ ਜੋ ਅੰਤੀ ਅਉਸਰਿ ਰਖਿ ਨ ਸਕਾਸਾ ॥ तिस का भरवासा किउ कीजै मन मेरे जो अंती अउसरि रखि न सकासा ॥ हे मेरे मन ! उस पर भरोसा कैसे किया जा सकता है? जो अन्तिम समय बचा नहीं सकता।
ਹਰਿ ਜਪੁ ਮੰਤੁ ਗੁਰ ਉਪਦੇਸੁ ਲੈ ਜਾਪਹੁ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਅੰਤਿ ਛਡਾਏ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਚਿਤਾਸਾ ॥ हरि जपु मंतु गुर उपदेसु लै जापहु तिन्ह अंति छडाए जिन्ह हरि प्रीति चितासा ॥ गुरु का उपदेश लेकर हरि-मंत्र का जाप करो, अंततः वही लोग विकारों से मुक्त होते हैं जो सच्चे मन से उनसे प्रेम करते हैं।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਹਰਿ ਸੰਤਹੁ ਇਹੁ ਛੂਟਣ ਕਾ ਸਾਚਾ ਭਰਵਾਸਾ ॥੪॥੨॥ जन नानक अनदिनु नामु जपहु हरि संतहु इहु छूटण का साचा भरवासा ॥४॥२॥ नानक कहते हैं कि हे भक्तजनों ! हर समय प्रभु का नाम जपो; यही सभी रोगों से मुक्ति का सच्चा मार्ग है।॥४॥२॥
ਗੋਂਡ ਮਹਲਾ ੪ ॥ गोंड महला ४ ॥ राग गोंड, चतुर्थ गुरु: ४ ॥
ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਸਦਾ ਹੋਇ ਅਨੰਦੁ ਸੁਖੁ ਅੰਤਰਿ ਸਾਂਤਿ ਸੀਤਲ ਮਨੁ ਅਪਨਾ ॥ हरि सिमरत सदा होइ अनंदु सुखु अंतरि सांति सीतल मनु अपना ॥ परमात्मा का सिमरन करने से सदा ही आनंद एवं सुख मिलता है, इससे मन शीतल हो जाता है और बड़ी शांति मिलती है।
ਜੈਸੇ ਸਕਤਿ ਸੂਰੁ ਬਹੁ ਜਲਤਾ ਗੁਰ ਸਸਿ ਦੇਖੇ ਲਹਿ ਜਾਇ ਸਭ ਤਪਨਾ ॥੧॥ जैसे सकति सूरु बहु जलता गुर ससि देखे लहि जाइ सभ तपना ॥१॥ जैसे सूर्य रूपी माया से मन बहुत जलता रहता है, वैसे ही चन्द्रमा रूपी गुरु के दर्शन करके सारा ताप दूर हो जाता है।॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਅਨਦਿਨੁ ਧਿਆਇ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਜਪਨਾ ॥ मेरे मन अनदिनु धिआइ नामु हरि जपना ॥ हे मेरे मन ! नित्य परमेश्वर का ध्यान करो और उसका नाम जपो।
ਜਹਾ ਕਹਾ ਤੁਝੁ ਰਾਖੈ ਸਭ ਠਾਈ ਸੋ ਐਸਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸੇਵਿ ਸਦਾ ਤੂ ਅਪਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जहा कहा तुझु राखै सभ ठाई सो ऐसा प्रभु सेवि सदा तू अपना ॥१॥ रहाउ ॥ तुम्हें सदैव ऐसे ईश्वर का प्रेमपूर्वक ध्यान करना चाहिए जो इस लोक और परलोक में तुम्हारी रक्षा करेगा।॥ १॥ रहाउ॥
ਜਾ ਮਹਿ ਸਭਿ ਨਿਧਾਨ ਸੋ ਹਰਿ ਜਪਿ ਮਨ ਮੇਰੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਖੋਜਿ ਲਹਹੁ ਹਰਿ ਰਤਨਾ ॥ जा महि सभि निधान सो हरि जपि मन मेरे गुरमुखि खोजि लहहु हरि रतना ॥ हे मेरे मन ! जिसमें सर्व सुखों के भण्डार हैं, उस परमात्मा को जपते रहो तथा गुरु के माध्यम से हरि नाम रूपी रत्न को खोज लो।
ਜਿਨ ਹਰਿ ਧਿਆਇਆ ਤਿਨ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਮੇਰਾ ਸੁਆਮੀ ਤਿਨ ਕੇ ਚਰਣ ਮਲਹੁ ਹਰਿ ਦਸਨਾ ॥੨॥ जिन हरि धिआइआ तिन हरि पाइआ मेरा सुआमी तिन के चरण मलहु हरि दसना ॥२॥ जिन्होंने हरि का ध्यान किया है, उन्होंने उसे पा लिया है, हरि के उन दासों के चरणों की सेवा करो। २॥
ਸਬਦੁ ਪਛਾਣਿ ਰਾਮ ਰਸੁ ਪਾਵਹੁ ਓਹੁ ਊਤਮੁ ਸੰਤੁ ਭਇਓ ਬਡ ਬਡਨਾ ॥ सबदु पछाणि राम रसु पावहु ओहु ऊतमु संतु भइओ बड बडना ॥ गुरु के उपदेश समझकर भगवान् के नाम का मूल सार ग्रहण करो; जो इसे पा लेता है, वह भाग्यशाली और परम संत कहलाता है।
ਤਿਸੁ ਜਨ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ਹਰਿ ਆਪਿ ਵਧਾਈ ਓਹੁ ਘਟੈ ਨ ਕਿਸੈ ਕੀ ਘਟਾਈ ਇਕੁ ਤਿਲੁ ਤਿਲੁ ਤਿਲਨਾ ॥੩॥ तिसु जन की वडिआई हरि आपि वधाई ओहु घटै न किसै की घटाई इकु तिलु तिलु तिलना ॥३॥ अपने उस सेवक की प्रतिष्ठा परमात्मा ने स्वयं बड़ाई है और उसकी वह बड़ाई किसी के घटाने से एक तिल मात्र भी कम नहीं होती ॥ ३॥


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