Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 842

Page 842

ਤੂ ਸੁਖਦਾਤਾ ਲੈਹਿ ਮਿਲਾਇ ॥ तू सुखदाता है और स्वयं ही अपने साथ मिला लेता है।
ਏਕਸ ਤੇ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥ एक परमात्मा के अलावा अन्य कोई नहीं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝੈ ਸੋਝੀ ਹੋਇ ॥੯॥ गुरुमुख ही इस तथ्य को बूझता है और उसे इस तथ्य की सूझ हो जाती है।॥९॥
ਪੰਦ੍ਰਹ ਥਿਤੀ ਤੈ ਸਤ ਵਾਰ ॥ जैसे पन्द्रह तिथियाँ, सात वार,
ਮਾਹਾ ਰੁਤੀ ਆਵਹਿ ਵਾਰ ਵਾਰ ॥ ਦਿਨਸੁ ਰੈਣਿ ਤਿਵੈ ਸੰਸਾਰੁ ॥ बारह महीने, छ: ऋतुएँ और दिन-रात पुनः पुन आते रहते हैं, वैसे ही यह संसार है।
ਆਵਾ ਗਉਣੁ ਕੀਆ ਕਰਤਾਰਿ ॥ करतार ने जीवों के लिए आवागमन बनाया हुआ है।
ਨਿਹਚਲੁ ਸਾਚੁ ਰਹਿਆ ਕਲ ਧਾਰਿ ॥ वह सदैव शाश्वत, निश्चल है और उसकी शक्ति भरपूर है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝੈ ਕੋ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਿ ॥੧੦॥੧॥ हे नानक ! कोई गुरुमुख ही शब्द के चिंतन द्वारा इस तथ्य को बूझता है॥ १० ॥ १॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥ बिलावलु महला ३ ॥
ਆਦਿ ਪੁਰਖੁ ਆਪੇ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਸਾਜੇ ॥ आदिपुरुष स्वयं ही सृष्टि-रचना करता है और
ਜੀਅ ਜੰਤ ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਪਾਜੇ ॥ सब जीवों को उसने माया-मोह में लगाया हुआ है।
ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਪਰਪੰਚਿ ਲਾਗੇ ॥ द्वैतभाव द्वारा जीव जगत् प्रपंच में लगे हुए हैं।
ਆਵਹਿ ਜਾਵਹਿ ਮਰਹਿ ਅਭਾਗੇ ॥ इस तरह भाग्यहीन जीव जगत् में आते जाते और मरते रहते हैं।
ਸਤਿਗੁਰਿ ਭੇਟਿਐ ਸੋਝੀ ਪਾਇ ॥ लेकिन सतगुरु से साक्षात्कार होने से ज्ञान प्राप्त हो जाता है और
ਪਰਪੰਚੁ ਚੂਕੈ ਸਚਿ ਸਮਾਇ ॥੧॥ जीव जगत्-प्रपंच से छूटकर सत्य में विलीन हो जाता है।॥ १॥
ਜਾ ਕੈ ਮਸਤਕਿ ਲਿਖਿਆ ਲੇਖੁ ॥ जिसके भाग्य में लिखा हुआ है,
ਤਾ ਕੈ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਪ੍ਰਭੁ ਏਕੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ उसके मन में एक प्रभु बस गया है॥ १॥ रहाउ॥
ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਉਪਾਇ ਆਪੇ ਸਭੁ ਵੇਖੈ ॥ हे प्रभु ! सृष्टि को पैदा करके तू स्वयं ही सबकी देखभाल करता है।
ਕੋਇ ਨ ਮੇਟੈ ਤੇਰੈ ਲੇਖੈ ॥ तेरे विधान को कोई भी मिटा नहीं सकता।
ਸਿਧ ਸਾਧਿਕ ਜੇ ਕੋ ਕਹੈ ਕਹਾਏ ॥ यदि कोई खुद को बड़ा सिद्ध या साधक कहता अथवा कहलाता है,
ਭਰਮੇ ਭੂਲਾ ਆਵੈ ਜਾਏ ॥ वह भी भ्रमों में भूलकर जन्मता-मरता रहता है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੈ ਸੋ ਜਨੁ ਬੂਝੈ ॥ जो व्यक्ति सतगुरु की सेवा करता है, उसे ज्ञान हो जाता है।
ਹਉਮੈ ਮਾਰੇ ਤਾ ਦਰੁ ਸੂਝੈ ॥੨॥ यदि वह अहंत्व को समाप्त कर दे तो उसे अपने द्वार की सूझ हो जाती है ॥२॥
ਏਕਸੁ ਤੇ ਸਭੁ ਦੂਜਾ ਹੂਆ ॥ एक परमात्मा से यह दूसरा सब उत्पन्न हुआ है।
ਏਕੋ ਵਰਤੈ ਅਵਰੁ ਨ ਬੀਆ ॥ एक वही सर्वव्यापक है, अन्य कोई नहीं।
ਦੂਜੇ ਤੇ ਜੇ ਏਕੋ ਜਾਣੈ ॥ यदि कोई इस दूसरे (जग) को त्याग कर एक परमात्मा को जान ले,
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਹਰਿ ਦਰਿ ਨੀਸਾਣੈ ॥ तो वह गुरु के शब्द द्वारा उसके द्वार पर परवाना लेकर पहुँच जाता है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟੇ ਤਾ ਏਕੋ ਪਾਏ ॥ यदि सतगुरु मिल जाए तो ईश्वर प्राप्त हो जाता है और
ਵਿਚਹੁ ਦੂਜਾ ਠਾਕਿ ਰਹਾਏ ॥੩॥ मन में द्वैतभाव को रोका जा सकता है॥ ३॥
ਜਿਸ ਦਾ ਸਾਹਿਬੁ ਡਾਢਾ ਹੋਇ ॥ जिसका मालिक ताकतवर है,
ਤਿਸ ਨੋ ਮਾਰਿ ਨ ਸਾਕੈ ਕੋਇ ॥ उसे कोई मार नहीं सकता।
ਸਾਹਿਬ ਕੀ ਸੇਵਕੁ ਰਹੈ ਸਰਣਾਈ ॥ वह सेवक अपने मालिक की शरण में पड़ा रहता है और
ਆਪੇ ਬਖਸੇ ਦੇ ਵਡਿਆਈ ॥ वह स्वयं ही सेवक को बड़ाई प्रदान करता है।
ਤਿਸ ਤੇ ਊਪਰਿ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥ मालिक से बड़ा अन्य कोई नहीं।
ਕਉਣੁ ਡਰੈ ਡਰੁ ਕਿਸ ਕਾ ਹੋਇ ॥੪॥ कौन डरता है ? उसे किस का डर है।॥ ४॥
ਗੁਰਮਤੀ ਸਾਂਤਿ ਵਸੈ ਸਰੀਰ ॥ गुरु मतानुसार रहने से शरीर में शान्ति पैदा हो जाती है।
ਸਬਦੁ ਚੀਨ੍ਹ੍ਹਿ ਫਿਰਿ ਲਗੈ ਨ ਪੀਰ ॥ शब्द को पहचान कर फिर कोई पीड़ा नहीं लगती।
ਆਵੈ ਨ ਜਾਇ ਨਾ ਦੁਖੁ ਪਾਏ ॥ वह जन्म-मरण से छूट जाता है और उसे कोई दुख नहीं लगता।
ਨਾਮੇ ਰਾਤੇ ਸਹਜਿ ਸਮਾਏ ॥ नाम में लीन होकर वह सहज ही समाया रहता है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਵੇਖੈ ਹਦੂਰਿ ॥ हे नानक ! गुरुमुख परमात्मा को अपने पास ही देखता है।
ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸਦ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰਿ ॥੫॥ सच तो यही है कि मेरा प्रभु सदैव सर्वव्यापक है ॥५॥
ਇਕਿ ਸੇਵਕ ਇਕਿ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਏ ॥ कोई सेवक बना हुआ है और कोई भ्रमो में भटका हुआ है।
ਆਪੇ ਕਰੇ ਹਰਿ ਆਪਿ ਕਰਾਏ ॥ ईश्वर स्वयं ही सब करता और करवाता है।
ਏਕੋ ਵਰਤੈ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥ परमात्मा सबमें व्याप्त है, उसके अतिरिक्त अन्य कोई नहीं।
ਮਨਿ ਰੋਸੁ ਕੀਜੈ ਜੇ ਦੂਜਾ ਹੋਇ ॥ मन में रोष तो ही करो यदि कोई दूसरा हो।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਕਰਣੀ ਸਾਰੀ ॥ सतगुरु की सेवा ही अच्छा आचरण है।
ਦਰਿ ਸਾਚੈ ਸਾਚੇ ਵੀਚਾਰੀ ॥੬॥ सत्य के द्वार पर इन कर्मशीलों को सत्यवादी माना जाता है॥ ६॥
ਥਿਤੀ ਵਾਰ ਸਭਿ ਸਬਦਿ ਸੁਹਾਏ ॥ सब तिथियों एवं वार शब्द से ही सुन्दर लगते हैं।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਤਾ ਫਲੁ ਪਾਏ ॥ सतगुरु की सेवा करने से फल प्राप्त होता है।
ਥਿਤੀ ਵਾਰ ਸਭਿ ਆਵਹਿ ਜਾਹਿ ॥ यह तिथियाँ एवं वार आते-जाते रहते हैं।
ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਨਿਹਚਲੁ ਸਦਾ ਸਚਿ ਸਮਾਹਿ ॥ लेकिन गुरु के शब्द द्वारा जीव निश्चल होकर सत्य में ही विलीन हो जाता है।
ਥਿਤੀ ਵਾਰ ਤਾ ਜਾ ਸਚਿ ਰਾਤੇ ॥ तिथियां एवं वार तभी शुभ होते हैं, जब जीव सत्य में लीन रहे।
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਸਭਿ ਭਰਮਹਿ ਕਾਚੇ ॥੭॥ परमात्मा के नाम बिना सब नाशवान जीव योनियों में भटकते रहते हैं।॥ ७॥
ਮਨਮੁਖ ਮਰਹਿ ਮਰਿ ਬਿਗਤੀ ਜਾਹਿ ॥ जब मनमुखी जीव मरते हैं तो उनकी मुक्ति नहीं होती।
ਏਕੁ ਨ ਚੇਤਹਿ ਦੂਜੈ ਲੋਭਾਹਿ ॥ वे परमात्मा को याद नहीं करते अपितु द्वैतभाव में ही फंसे रहते हैं।
ਅਚੇਤ ਪਿੰਡੀ ਅਗਿਆਨ ਅੰਧਾਰੁ ॥ चेतनाहीन जीव को अज्ञान का अँधेरा बना रहता है।
ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਕਿਉ ਪਾਏ ਪਾਰੁ ॥ शब्द के बिना वह कैसे पार हो सकता है?
ਆਪਿ ਉਪਾਏ ਉਪਾਵਣਹਾਰੁ ॥ पैदा करने वाले परमात्मा ने ही सब को पैदा किया है
ਆਪੇ ਕੀਤੋਨੁ ਗੁਰ ਵੀਚਾਰੁ ॥੮॥ और स्वयं ही गुरु का ज्ञान रचा है॥ ८ ॥
ਬਹੁਤੇ ਭੇਖ ਕਰਹਿ ਭੇਖਧਾਰੀ ॥ वेषधारी अनेक वेष धारण करते रहते हैं।
ਭਵਿ ਭਵਿ ਭਰਮਹਿ ਕਾਚੀ ਸਾਰੀ ॥ वे कच्चे पासे की तरह भटकते रहते हैं।
ਐਥੈ ਸੁਖੁ ਨ ਆਗੈ ਹੋਇ ॥ उन्हें न ही इहलोक में सुख मिलता है और न ही परलोक में सुख उपलब्ध होता है।


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