Guru Granth Sahib Translation Project

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Page 84

ਵਖਤੁ ਵੀਚਾਰੇ ਸੁ ਬੰਦਾ ਹੋਇ ॥ जो प्राणी जीवन के उद्देश्य पर विचार करता है, वही परमात्मा का सच्चा भक्त होता है।
ਕੁਦਰਤਿ ਹੈ ਕੀਮਤਿ ਨਹੀ ਪਾਇ ॥ प्रभु सृष्टि के कण-कण में निवास करते हैं किन्तु उनका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।
ਜਾ ਕੀਮਤਿ ਪਾਇ ਤ ਕਹੀ ਨ ਜਾਇ ॥ यदि मनुष्य प्रभु का मूल्य जान भी ले, तो भी वह वर्णन नहीं कर सकता।
ਸਰੈ ਸਰੀਅਤਿ ਕਰਹਿ ਬੀਚਾਰੁ ॥ ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਕੈਸੇ ਪਾਵਹਿ ਪਾਰੁ ॥ जो लोग केवल शरई या शरीयत (धार्मिक संहिता और अनुष्ठान) पर विचार करते हैं,
ਸਿਦਕੁ ਕਰਿ ਸਿਜਦਾ ਮਨੁ ਕਰਿ ਮਖਸੂਦੁ ॥ जीवन के परम उद्देश्य को समझे बिना वह विकारों से मुक्ति कैसे प्राप्त कर सकते हैं ?
ਜਿਹ ਧਿਰਿ ਦੇਖਾ ਤਿਹ ਧਿਰਿ ਮਉਜੂਦੁ ॥੧॥ हे भाई, ईश्वर में सच्ची आस्था को प्रार्थना में नमन करो और मन को नाम-सिमरन में लगाने का जीवन-मनोरथ बनाओ ।
ਮਃ ੩ ॥ फिर जिस तरफ भी देखोगे, उधर ही ईश्वर के प्रत्यक्ष दर्शन करोगे ॥१॥
ਗੁਰ ਸਭਾ ਏਵ ਨ ਪਾਈਐ ਨਾ ਨੇੜੈ ਨਾ ਦੂਰਿ ॥ श्लोक महला ३ ॥
ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰੁ ਤਾਂ ਮਿਲੈ ਜਾ ਮਨੁ ਰਹੈ ਹਦੂਰਿ ॥੨॥ गुरु की संगति का सच्चा लाभ (शारीरिक रूप से) निकट अथवा दूर रहने से प्राप्त नहीं होता।
ਪਉੜੀ ॥ हे नानक ! वास्तव में जीव को सतगुरु तभी मिलते हैं, यदि उस जीव का मन उनकी शिक्षाओं का पालन करने को सदैव तत्पर रहे ॥२॥
ਸਪਤ ਦੀਪ ਸਪਤ ਸਾਗਰਾ ਨਵ ਖੰਡ ਚਾਰਿ ਵੇਦ ਦਸ ਅਸਟ ਪੁਰਾਣਾ ॥ पउड़ी ॥
ਹਰਿ ਸਭਨਾ ਵਿਚਿ ਤੂੰ ਵਰਤਦਾ ਹਰਿ ਸਭਨਾ ਭਾਣਾ ॥ सृष्टि में सात द्वीप, सात समुद्र, नौ खण्ड, चार वेद एवं अठारह पुराण हैं।
ਸਭਿ ਤੁਝੈ ਧਿਆਵਹਿ ਜੀਅ ਜੰਤ ਹਰਿ ਸਾਰਗ ਪਾਣਾ ॥ प्रभु ! आप इन सभी में विद्यमान हो और सबको प्रिय हो।
ਜੋ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਆਰਾਧਦੇ ਤਿਨ ਹਉ ਕੁਰਬਾਣਾ ॥ हे ब्रह्मांड के परमेश्वर ! समस्त जीव-जन्तु सदैव आपका ही सिमरन करते हैं।
ਤੂੰ ਆਪੇ ਆਪਿ ਵਰਤਦਾ ਕਰਿ ਚੋਜ ਵਿਡਾਣਾ ॥੪॥ जो गुरमुख हरि की वंदना करते हैं एवं गुरु जी की शिक्षाओं का पालन करते हैं , मैं उन पर बलिहारी जाता हूँ।
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥ हे ईश्वर ! संसार के इस आश्चर्यजनक नाटक को रचकर आप स्वयं ही सब में विद्यमान हो रहे हो ॥४॥
ਕਲਉ ਮਸਾਜਨੀ ਕਿਆ ਸਦਾਈਐ ਹਿਰਦੈ ਹੀ ਲਿਖਿ ਲੇਹੁ ॥ श्लोक महला ३ ॥
ਸਦਾ ਸਾਹਿਬ ਕੈ ਰੰਗਿ ਰਹੈ ਕਬਹੂੰ ਨ ਤੂਟਸਿ ਨੇਹੁ ॥ क़लम और स्याही मंगवाने की क्या आवश्यकता है? उस प्रभु का नाम अपने हृदय में ही लिखो।
ਕਲਉ ਮਸਾਜਨੀ ਜਾਇਸੀ ਲਿਖਿਆ ਭੀ ਨਾਲੇ ਜਾਇ ॥ हृदय में लिख लेने से तुम सदैव प्रभु के प्रेम में लीन रहोगे और कभी भी उस परमेश्वर से अलग नहीं होगे।
ਨਾਨਕ ਸਹ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨ ਜਾਇਸੀ ਜੋ ਧੁਰਿ ਛੋਡੀ ਸਚੈ ਪਾਇ ॥੧॥ क़लम और स्याही द्वारा लिखित काग़ज़ नष्ट हो जाएगा।
ਮਃ ੩ ॥ हे नानक ! जो प्रेम प्रभु ने प्रारम्भ से ही जीव के भाग्य में लिख दिया है, वह प्रेम कभी भी मिट नहीं सकता ॥१॥
ਨਦਰੀ ਆਵਦਾ ਨਾਲਿ ਨ ਚਲਈ ਵੇਖਹੁ ਕੋ ਵਿਉਪਾਇ ॥ महला ३ ॥
ਸਤਿਗੁਰਿ ਸਚੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ਸਚਿ ਰਹਹੁ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥ जो वस्तु दृश्यमान है, वह कभी अनंतकाल तक प्राणी का साथ नहीं देती। चाहे तुम परख कर देख सकते हो।
ਨਾਨਕ ਸਬਦੀ ਸਚੁ ਹੈ ਕਰਮੀ ਪਲੈ ਪਾਇ ॥੨॥ अतः सतगुरु ने दृढ़तापूर्वक सदैव इस सत्य की प्रेरणा दी है कि हमें सदैव शाश्वत ईश्वर के प्रति समर्पित रहना चाहिए।
ਪਉੜੀ ॥ हे नानक ! यदि परमेश्वर कृपा करें तभी उस सत्य प्रभु को गुरु उपदेश द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।॥२॥
ਹਰਿ ਅੰਦਰਿ ਬਾਹਰਿ ਇਕੁ ਤੂੰ ਤੂੰ ਜਾਣਹਿ ਭੇਤੁ ॥ पउड़ी ॥
ਜੋ ਕੀਚੈ ਸੋ ਹਰਿ ਜਾਣਦਾ ਮੇਰੇ ਮਨ ਹਰਿ ਚੇਤੁ ॥ हे प्रभु ! अन्दर-बाहर अर्थात् समस्त सृष्टि में आप ही उपस्थित है। अतः इस रहस्य को आप ही जानते हो।
ਸੋ ਡਰੈ ਜਿ ਪਾਪ ਕਮਾਵਦਾ ਧਰਮੀ ਵਿਗਸੇਤੁ ॥ हे मेरे मन ! मनुष्य जो कुछ भी करता है, उसको परमात्मा जानता है। अतः तू सदा ईश्वर का चिन्तन कर।
ਤੂੰ ਸਚਾ ਆਪਿ ਨਿਆਉ ਸਚੁ ਤਾ ਡਰੀਐ ਕੇਤੁ ॥ जो प्राणी पाप करता है, केवल वही भय में रहता है। परन्तु धर्म करने वाला नित्य प्रसन्नचित्त रहता है।
ਜਿਨਾ ਨਾਨਕ ਸਚੁ ਪਛਾਣਿਆ ਸੇ ਸਚਿ ਰਲੇਤੁ ॥੫॥ हे भगवान् ! आप सत्य-स्वरूप हो, आपका न्याय भी सत्य है। अतः (प्रभु की शरण में) हमें किस बात का भय है।
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥ हे नानक ! जिन्होंने सत्य (परमात्मा) को पहचान लिया, वे उस सत्य स्वरूप उस परमात्मा में ही विलीन हो जाते हैं ॥५॥
ਕਲਮ ਜਲਉ ਸਣੁ ਮਸਵਾਣੀਐ ਕਾਗਦੁ ਭੀ ਜਲਿ ਜਾਉ ॥ श्लोक महला ३ ॥
ਲਿਖਣ ਵਾਲਾ ਜਲਿ ਬਲਉ ਜਿਨਿ ਲਿਖਿਆ ਦੂਜਾ ਭਾਉ ॥ स्याही सहित क़लम भी जल जाए, लिखा हुआ काग़ज़ भी जल जाए,
ਨਾਨਕ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਕਮਾਵਣਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕਰਣਾ ਜਾਇ ॥੧॥ यहाँ तक कि स्वयं लिखने वाला वो लेखक भी जल कर मर सकताहै, जिसने द्वैत-भाव(माया) के प्रति प्रेम लिखा हो।
ਮਃ ੩ ॥ हे नानक ! प्राणी वही कर्म करता है, जो उसके पूर्व-जन्म के कर्म-फलानुसार है। अन्य कुछ नहीं किया जा सकता॥१॥
ਹੋਰੁ ਕੂੜੁ ਪੜਣਾ ਕੂੜੁ ਬੋਲਣਾ ਮਾਇਆ ਨਾਲਿ ਪਿਆਰੁ ॥ महला ३ ॥
ਨਾਨਕ ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਕੋ ਥਿਰੁ ਨਹੀ ਪੜਿ ਪੜਿ ਹੋਇ ਖੁਆਰੁ ॥੨॥ भगवान् के नाम के प्रति प्रेम को छोड़कर अन्य कुछ पढ़ना एवं बोलना मिथ्या एवं व्यर्थ है। यह माया के लिए प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है।
ਪਉੜੀ ॥ हे नानक ! भगवान् के नाम के अतिरिक्त कुछ भी अटल नहीं रह सकता। इसके अतिरिक्त अन्य पढ़-पढ़कर मनुष्य अंत में दुःखी ही होते हैं।
ਹਰਿ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ਵਡੀ ਹੈ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਹਰਿ ਕਾ ॥ पउड़ी ॥
ਹਰਿ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ਵਡੀ ਹੈ ਜਾ ਨਿਆਉ ਹੈ ਧਰਮ ਕਾ ॥ भगवान् की महिमा महान् है और भगवान् का भजन करना ही जीव हेतु उत्तम कर्म है।
ਹਰਿ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ਵਡੀ ਹੈ ਜਾ ਫਲੁ ਹੈ ਜੀਅ ਕਾ ॥ जिस ईश्वर का न्याय धर्म पर आधारित है, उसकी महिमा गाना मनुष्य के लिए सबसे श्रेष्ठ कर्म है।
ਹਰਿ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ਵਡੀ ਹੈ ਜਾ ਨ ਸੁਣਈ ਕਹਿਆ ਚੁਗਲ ਕਾ ॥ भगवान् की महिमा महान् है, ईश्वर की महिमा का गुणगान करना सर्वोत्तम कर्म है, क्योंकि यही मनुष्य के जीवन का प्रतिफल व उद्देश्य है।
ਹਰਿ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ਵਡੀ ਹੈ ਅਪੁਛਿਆ ਦਾਨੁ ਦੇਵਕਾ ॥੬॥ भगवान् की महिमा गाना अधिक श्रेष्ठ है, क्योंकि वह निंदक की बात नहीं सुनता।
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥ भगवान् की महिमा गाना श्रेष्ठ है, क्योंकि वह बिना पूछे ही सबकी कामनाएँ पूरी करता है ॥६॥
ਹਉ ਹਉ ਕਰਤੀ ਸਭ ਮੁਈ ਸੰਪਉ ਕਿਸੈ ਨ ਨਾਲਿ ॥ श्लोक महला ३ ॥
ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਦੁਖੁ ਪਾਇਆ ਸਭ ਜੋਹੀ ਜਮਕਾਲਿ ॥ वें सभी, जो अपनी सांसारिक संपत्ति के अहंकार में लिप्त रहते हैं, आध्यात्मिक पतन से गुजरते हैं क्योंकि सांसारिक संपत्ति मृत्यु के बाद किसी के साथ नहीं जाती है।
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