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ਜੋਗ ਜਗ ਨਿਹਫਲ ਤਿਹ ਮਾਨਉ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਜਸੁ ਬਿਸਰਾਵੈ ॥੧॥
जोग जग निहफल तिह मानउ जो प्रभ जसु बिसरावै ॥१॥
जो प्रभु का यश भुला देता है, उसके योग एवं यज्ञ करने को निष्फल ही समझो।॥ १॥
ਮਾਨ ਮੋਹ ਦੋਨੋ ਕਉ ਪਰਹਰਿ ਗੋਬਿੰਦ ਕੇ ਗੁਨ ਗਾਵੈ ॥
मान मोह दोनो कउ परहरि गोबिंद के गुन गावै ॥
हे नानक ! जो अभिमान एवं मोह दोनों को त्याग कर गोविंद का गुणगान करता है,
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਇਹ ਬਿਧਿ ਕੋ ਪ੍ਰਾਨੀ ਜੀਵਨ ਮੁਕਤਿ ਕਹਾਵੈ ॥੨॥੨॥
कहु नानक इह बिधि को प्रानी जीवन मुकति कहावै ॥२॥२॥
इस विधि से ही प्राणी जीवित रहते हुए विकारों से मुक्त हो जाता है। ॥ २ ॥ २॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੯ ॥
बिलावलु महला ९ ॥
राग बिलावल, नौवें गुरु: ९ ॥
ਜਾ ਮੈ ਭਜਨੁ ਰਾਮ ਕੋ ਨਾਹੀ ॥
जा मै भजनु राम को नाही ॥
जिसने राम का भजन नहीं किया
ਤਿਹ ਨਰ ਜਨਮੁ ਅਕਾਰਥੁ ਖੋਇਆ ਯਹ ਰਾਖਹੁ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तिह नर जनमु अकारथु खोइआ यह राखहु मन माही ॥१॥ रहाउ ॥
यह बात हमेशा अपने मन में याद रखो कि उसने मनुष्य-जन्म व्यर्थ ही गंवा दिया है। ॥ १॥ रहाउ॥
ਤੀਰਥ ਕਰੈ ਬ੍ਰਤ ਫੁਨਿ ਰਾਖੈ ਨਹ ਮਨੂਆ ਬਸਿ ਜਾ ਕੋ ॥
तीरथ करै ब्रत फुनि राखै नह मनूआ बसि जा को ॥
जो व्यक्ति तीर्थ-स्नान करता है, व्रत-उपवास भी रखता है, किन्तु मन उसके वश में नहीं है,
ਨਿਹਫਲ ਧਰਮੁ ਤਾਹਿ ਤੁਮ ਮਾਨਹੁ ਸਾਚੁ ਕਹਤ ਮੈ ਯਾ ਕਉ ॥੧॥
निहफल धरमु ताहि तुम मानहु साचु कहत मै या कउ ॥१॥
तो उसका धर्म कर्म निष्फल ही मानो ! यह मैं सत्य ही कहता हूँ॥ १॥
ਜੈਸੇ ਪਾਹਨੁ ਜਲ ਮਹਿ ਰਾਖਿਓ ਭੇਦੈ ਨਾਹਿ ਤਿਹ ਪਾਨੀ ॥
जैसे पाहनु जल महि राखिओ भेदै नाहि तिह पानी ॥
जैसे पत्थर को जल में डुबोकर रखा जाता है। परन्तु उसके अन्दर पानी प्रवेश नहीं करता,
ਤੈਸੇ ਹੀ ਤੁਮ ਤਾਹਿ ਪਛਾਨਹੁ ਭਗਤਿ ਹੀਨ ਜੋ ਪ੍ਰਾਨੀ ॥੨॥
तैसे ही तुम ताहि पछानहु भगति हीन जो प्रानी ॥२॥
वैसे ही तुम भक्तिहीन प्राणी को पत्थर के समान समझो। ॥ २ ॥
ਕਲ ਮੈ ਮੁਕਤਿ ਨਾਮ ਤੇ ਪਾਵਤ ਗੁਰੁ ਯਹ ਭੇਦੁ ਬਤਾਵੈ ॥
कल मै मुकति नाम ते पावत गुरु यह भेदु बतावै ॥
गुरु ने यह भेद बताया है कि कलियुग में जीव प्रभु-नाम से ही विषय-विकारों से मुक्ति प्राप्त करता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੋਈ ਨਰੁ ਗਰੂਆ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਗੁਨ ਗਾਵੈ ॥੩॥੩॥
कहु नानक सोई नरु गरूआ जो प्रभ के गुन गावै ॥३॥३॥
हे नानक ! वही व्यक्ति श्रेष्ठ है, जो प्रभु का गुणगान करता है॥ ३ ॥ ३ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਅਸਟਪਦੀਆ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੧੦
बिलावलु असटपदीआ महला १ घरु १०
राग बिलावल, अष्टपदी, प्रथम गुरु, दसवीं ताल:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है। ॥
ਨਿਕਟਿ ਵਸੈ ਦੇਖੈ ਸਭੁ ਸੋਈ ॥
निकटि वसै देखै सभु सोई ॥
परमेश्वर जीव के निकट ही निवास करते है और वह सब देखते हैं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਿਰਲਾ ਬੂਝੈ ਕੋਈ ॥
गुरमुखि विरला बूझै कोई ॥
यह तथ्य कोई विरला गुरुमुख ही समझता है।
ਵਿਣੁ ਭੈ ਪਇਐ ਭਗਤਿ ਨ ਹੋਈ ॥
विणु भै पइऐ भगति न होई ॥
प्रभु-भय के बिना भक्ति नहीं हो सकती और
ਸਬਦਿ ਰਤੇ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥੧॥
सबदि रते सदा सुखु होई ॥१॥
शब्द में लीन होने से सदैव सुख प्राप्त होता है।१॥
ਐਸਾ ਗਿਆਨੁ ਪਦਾਰਥੁ ਨਾਮੁ ॥
ऐसा गिआनु पदारथु नामु ॥
ईश्वर का नाम ऐसा ज्ञान पदार्थ है,
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਵਸਿ ਰਸਿ ਰਸਿ ਮਾਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरमुखि पावसि रसि रसि मानु ॥१॥ रहाउ ॥
जो व्यक्ति गुरु द्वारा इसे पा लेता है, उसे बड़ा आनंद मिलता है।१॥ रहाउ॥
ਗਿਆਨੁ ਗਿਆਨੁ ਕਥੈ ਸਭੁ ਕੋਈ ॥
गिआनु गिआनु कथै सभु कोई ॥
हर कोई आध्यात्मिक ज्ञान और बुद्धि की बात करता है।,
ਕਥਿ ਕਥਿ ਬਾਦੁ ਕਰੇ ਦੁਖੁ ਹੋਈ ॥
कथि कथि बादु करे दुखु होई ॥
ऐसा करने से मनुष्य वाद-विवाद में उलझकर दुःखी हो जाता है।
ਕਥਿ ਕਹਣੈ ਤੇ ਰਹੈ ਨ ਕੋਈ ॥
कथि कहणै ते रहै न कोई ॥
कोई भी अपने ज्ञान का कथन करने एवं चर्चा करने से नहीं रुकता।
ਬਿਨੁ ਰਸ ਰਾਤੇ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਈ ॥੨॥
बिनु रस राते मुकति न होई ॥२॥
और उसे यह भी बोध नहीं कि भगवान् के नाम के अमृत बिना विकारों से मुक्ति संभव नहीं।।॥ २॥
ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਸਭੁ ਗੁਰ ਤੇ ਹੋਈ ॥
गिआनु धिआनु सभु गुर ते होई ॥
ज्ञान एवं ध्यान सब गुरु से ही प्राप्त होता है।
ਸਾਚੀ ਰਹਤ ਸਾਚਾ ਮਨਿ ਸੋਈ ॥
साची रहत साचा मनि सोई ॥
जिसका जीवन-आचरण सच्चा है, उसके ही मन में सत्य स्वरूप ईश्वर विद्यमान है।
ਮਨਮੁਖ ਕਥਨੀ ਹੈ ਪਰੁ ਰਹਤ ਨ ਹੋਈ ॥
मनमुख कथनी है परु रहत न होई ॥
मनमुख व्यक्ति आध्यात्मिक ज्ञान की केवल बात करता है किन्तु उसका जीवन-आचरण शुद्ध नहीं होता।
ਨਾਵਹੁ ਭੂਲੇ ਥਾਉ ਨ ਕੋਈ ॥੩॥
नावहु भूले थाउ न कोई ॥३॥
भगवान् के नाम से विमुख होकर, उसे कहीं भी शांति या ठहराव नहीं मिलता। ॥ ३॥
ਮਨੁ ਮਾਇਆ ਬੰਧਿਓ ਸਰ ਜਾਲਿ ॥
मनु माइआ बंधिओ सर जालि ॥
माया ने मन को मोह रूपी सरोवर के जाल में बांध लिया है,
ਘਟਿ ਘਟਿ ਬਿਆਪਿ ਰਹਿਓ ਬਿਖੁ ਨਾਲਿ ॥
घटि घटि बिआपि रहिओ बिखु नालि ॥
यद्यपि भगवान् हृदय में विराजमान हैं तथापि माया रूपी विष घट-घट में व्याप्त हो रहा है,जो आत्मिक जीवन के लिए घातक है।
ਜੋ ਆਂਜੈ ਸੋ ਦੀਸੈ ਕਾਲਿ ॥
जो आंजै सो दीसै कालि ॥
जो भी जन्म लेता है, वह आध्यात्मिक मृत्यु के वश में नज़र आ रहा है।
ਕਾਰਜੁ ਸੀਧੋ ਰਿਦੈ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲਿ ॥੪॥
कारजु सीधो रिदै सम्हालि ॥४॥
मानव जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति तभी संभव है जब ईश्वर के नाम का सदा स्मरण किया जाए और उसे हृदय में स्थान दिया जाए।॥ ४॥
ਸੋ ਗਿਆਨੀ ਜਿਨਿ ਸਬਦਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥
सो गिआनी जिनि सबदि लिव लाई ॥
वास्तव में आध्यात्मिक रूप से बुद्धिमान वही है, जिसने गुरु के दिव्य वचनों के माध्यम से स्वयं को परमात्मा से जोड़ लिया है।
ਮਨਮੁਖਿ ਹਉਮੈ ਪਤਿ ਗਵਾਈ ॥
मनमुखि हउमै पति गवाई ॥
स्वेच्छाचारी ने अहंकार में अपनी प्रतिष्ठा ही गंवा दी है।
ਆਪੇ ਕਰਤੈ ਭਗਤਿ ਕਰਾਈ ॥
आपे करतै भगति कराई ॥
सृष्टिकर्ता ईश्वर स्वयं ही प्राणियों को अपनी भक्ति और आराधना के लिए प्रेरित करते हैं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਪੇ ਦੇ ਵਡਿਆਈ ॥੫॥
गुरमुखि आपे दे वडिआई ॥५॥
और वही ईश्वर गुरु की शिक्षाओं के माध्यम से भक्तों को अपनी महिमा का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।॥ ५॥
ਰੈਣਿ ਅੰਧਾਰੀ ਨਿਰਮਲ ਜੋਤਿ ॥
रैणि अंधारी निरमल जोति ॥
सामान्यतः मनुष्य अपना जीवन आध्यात्मिक अज्ञान के अंधकार में व्यतीत करता है, जिसे केवल निष्कलंक दिव्य प्रकाश ही आलोकित कर सकता है।
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਝੂਠੇ ਕੁਚਲ ਕਛੋਤਿ ॥
नाम बिना झूठे कुचल कछोति ॥
परमात्मा के नाम बिना मनुष्य झूठे, मलिन एवं अछूत हैं।
ਬੇਦੁ ਪੁਕਾਰੈ ਭਗਤਿ ਸਰੋਤਿ ॥
बेदु पुकारै भगति सरोति ॥
वेद पुकार-पुकार कर भक्ति का उपदेश देते हैं,
ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਮਾਨੈ ਵੇਖੈ ਜੋਤਿ ॥੬॥
सुणि सुणि मानै वेखै जोति ॥६॥
जो जीव उनके उपदेश को सुन-सुनकर एकाग्रचित होते हैं, उन्हें परमज्योति के दर्शन हो जाते हैं।॥ ६॥
ਸਾਸਤ੍ਰ ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਮੰ ॥
सासत्र सिम्रिति नामु द्रिड़ामं ॥
शास्त्र एवं स्मृतियाँ भी नाम-सिमरन का ही उपदेश करती हैं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਂਤਿ ਊਤਮ ਕਰਾਮੰ ॥
गुरमुखि सांति ऊतम करामं ॥
गुरुमुख नाम-सिमरन का उत्तम कर्म करता है, जिससे उसके मन को बड़ी शान्ति मिलती है।
ਮਨਮੁਖਿ ਜੋਨੀ ਦੂਖ ਸਹਾਮੰ ॥
मनमुखि जोनी दूख सहामं ॥
स्वेच्छाचारी अनेक योनियों में पड़कर बड़ा दुःख भोगता है।
ਬੰਧਨ ਤੂਟੇ ਇਕੁ ਨਾਮੁ ਵਸਾਮੰ ॥੭॥
बंधन तूटे इकु नामु वसामं ॥७॥
लेकिन ईश्वर का नाम मन में बसाने से सब बन्धन टूट जाते हैं।॥ ७ ॥
ਮੰਨੇ ਨਾਮੁ ਸਚੀ ਪਤਿ ਪੂਜਾ ॥
मंने नामु सची पति पूजा ॥
प्रभु-नाम का मनन करना ही सच्ची पूजा एवं प्रतिष्ठा है।
ਕਿਸੁ ਵੇਖਾ ਨਾਹੀ ਕੋ ਦੂਜਾ ॥
किसु वेखा नाही को दूजा ॥
जब प्रभु के बिना अन्य कोई नहीं है तो मैं किसे देखूं ?
ਦੇਖਿ ਕਹਉ ਭਾਵੈ ਮਨਿ ਸੋਇ ॥
देखि कहउ भावै मनि सोइ ॥
मैं उसे सर्वत्र देखता हूँ, उसके गुणों का गुणगान करता हूँ, और वह मेरे हृदय को आनंद से भर देता है।
ਨਾਨਕੁ ਕਹੈ ਅਵਰੁ ਨਹੀ ਕੋਇ ॥੮॥੧॥
नानकु कहै अवरु नही कोइ ॥८॥१॥
हे नानक ! उस प्रभु के बिना अन्य कोई नहीं है।८ ॥ १॥