Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 785

Page 785

ਸਭ ਕੈ ਮਧਿ ਸਭ ਹੂ ਤੇ ਬਾਹਰਿ ਰਾਗ ਦੋਖ ਤੇ ਨਿਆਰੋ ॥ भगवान सब जीवों में बसता है और सबसे बाहर भी मौजूद रहता है, वह राग-द्वेष से निर्लिप्त है।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਗੋਬਿੰਦ ਸਰਣਾਈ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਮਨਹਿ ਸਧਾਰੋ ॥੩॥ दास नानक गोविंद की शरण में है और प्यारा प्रभु ही उसके मन का एकमात्र सहारा है॥ ३॥
ਮੈ ਖੋਜਤ ਖੋਜਤ ਜੀ ਹਰਿ ਨਿਹਚਲੁ ਸੁ ਘਰੁ ਪਾਇਆ ॥ खोजते-खोजते मैंने हरि का निश्चल घर पा लिया है।
ਸਭਿ ਅਧ੍ਰੁਵ ਡਿਠੇ ਜੀਉ ਤਾ ਚਰਨ ਕਮਲ ਚਿਤੁ ਲਾਇਆ ॥ दुनिया में मुझे जब सब नाशवान दिखाई दिए तो मैंने प्रभु के चरण-कमल से ही चित्त लगाया।
ਪ੍ਰਭੁ ਅਬਿਨਾਸੀ ਹਉ ਤਿਸ ਕੀ ਦਾਸੀ ਮਰੈ ਨ ਆਵੈ ਜਾਏ ॥ मैं अविनाशी प्रभु की दासी हूँ, जो जन्म-मरण से मुक्त है।
ਧਰਮ ਅਰਥ ਕਾਮ ਸਭਿ ਪੂਰਨ ਮਨਿ ਚਿੰਦੀ ਇਛ ਪੁਜਾਏ ॥ धर्म, अर्थ एवं काम ये सारे पदार्थ उसमें भरपूर हैं और वह मनोकामनाएँ पूरी कर देता है।
ਸ੍ਰੁਤਿ ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਗੁਨ ਗਾਵਹਿ ਕਰਤੇ ਸਿਧ ਸਾਧਿਕ ਮੁਨਿ ਜਨ ਧਿਆਇਆ ॥ वेद एवं स्मृतियाँ उस कर्तार का ही गुणगान करती हैं तथा सिद्ध, साधक एवं मुनि जनों ने उसका ही मनन किया है।
ਨਾਨਕ ਸਰਨਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਿ ਸੁਆਮੀ ਵਡਭਾਗੀ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗਾਇਆ ॥੪॥੧॥੧੧॥ हे नानक ! मैं कृपानिधि स्वामी की ही शरण में हूँ और बड़ा भाग्यशाली हूँ जो परमात्मा का यशगान किया है॥ ४॥ १॥ ११॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਵਾਰ ਸੂਹੀ ਕੀ ਸਲੋਕਾ ਨਾਲਿ ਮਹਲਾ ੩ ॥ वार सूही की सलोका नालि महला ३ ॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੩ ॥ श्लोक महला ३॥
ਸੂਹੈ ਵੇਸਿ ਦੋਹਾਗਣੀ ਪਰ ਪਿਰੁ ਰਾਵਣ ਜਾਇ ॥ जो पराए पति के संग रमण करने जाती है, ऐसी स्त्री तो सुहाग के वेष में भी विधवा ही है।
ਪਿਰੁ ਛੋਡਿਆ ਘਰਿ ਆਪਣੈ ਮੋਹੀ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ॥ वह अपना घर व पति-प्रभु को छोड़ कर द्वैतभाव में लीन बनी हुई है।
ਮਿਠਾ ਕਰਿ ਕੈ ਖਾਇਆ ਬਹੁ ਸਾਦਹੁ ਵਧਿਆ ਰੋਗੁ ॥ जिस पदार्थ को उसने मीठा मान कर खाया है, उसके अधिक स्वाद से उसके शरीर में रोग और भी बढ़ गया है।
ਸੁਧੁ ਭਤਾਰੁ ਹਰਿ ਛੋਡਿਆ ਫਿਰਿ ਲਗਾ ਜਾਇ ਵਿਜੋਗੁ ॥ उसने अपने शुद्ध पति हरि को छोड़ दिया है और उसका फिर वियोग हो गया है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਸੁ ਪਲਟਿਆ ਹਰਿ ਰਾਤੀ ਸਾਜਿ ਸੀਗਾਰਿ ॥ जो जीव-स्त्री गुरुमुख बन गई है, वह द्वैतभाव से पलट गई है और अपना हार-शृंगार बनाकर हरि के रंग में लीन रहती है।
ਸਹਜਿ ਸਚੁ ਪਿਰੁ ਰਾਵਿਆ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ਉਰ ਧਾਰਿ ॥ उसने हरि-नाम को अपने हृदय में बसाकर सहज ही सच्चे प्रभु से रमण किया है।
ਆਗਿਆਕਾਰੀ ਸਦਾ ਸੋੁਹਾਗਣਿ ਆਪਿ ਮੇਲੀ ਕਰਤਾਰਿ ॥ प्रभु की आज्ञाकारिणी जीव-स्त्री सदा सुहागिन है और उसे परमात्मा ने स्वयं अपने साथ मिला लिया है।
ਨਾਨਕ ਪਿਰੁ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਸਾਚਾ ਸਦਾ ਸੋੁਹਾਗਣਿ ਨਾਰਿ ॥੧॥ हे नानक ! उसने अपना सच्चा पति हरि पा लिया है और वह सदा सुहागिन नारी बनी रहती हैं।॥ १॥
ਮਃ ੩ ॥ महला ३॥
ਸੂਹਵੀਏ ਨਿਮਾਣੀਏ ਸੋ ਸਹੁ ਸਦਾ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲਿ ॥ हे सुहाग की वेशभूषा वाली जीव रूपी नारी ! अपने मालिक को सदैव याद रख।
ਨਾਨਕ ਜਨਮੁ ਸਵਾਰਹਿ ਆਪਣਾ ਕੁਲੁ ਭੀ ਛੁਟੀ ਨਾਲਿ ॥੨॥ हे नानक ! इस तरह वह अपना जन्म संवार लेती है और साथ ही उसका वंश भी छूट जाता है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥
ਆਪੇ ਤਖਤੁ ਰਚਾਇਓਨੁ ਆਕਾਸ ਪਤਾਲਾ ॥ ईश्वर ने स्वयं ही आकाश एवं पाताल रूपी अपने सिंहासन की रचना की है।
ਹੁਕਮੇ ਧਰਤੀ ਸਾਜੀਅਨੁ ਸਚੀ ਧਰਮ ਸਾਲਾ ॥ उसके हुक्म से ही धरती का निर्माण हुआ है, जो जीवों के लिए धर्म कमाने की सच्ची धर्मशाला है।
ਆਪਿ ਉਪਾਇ ਖਪਾਇਦਾ ਸਚੇ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ॥ हे सच्चे दीनदयाल ! तू स्वयं ही दुनिया को बनाकर नष्ट कर देता है।
ਸਭਨਾ ਰਿਜਕੁ ਸੰਬਾਹਿਦਾ ਤੇਰਾ ਹੁਕਮੁ ਨਿਰਾਲਾ ॥ तू सब जीवों को भोजन देता है और तेरा हुक्म बड़ा निराला है।
ਆਪੇ ਆਪਿ ਵਰਤਦਾ ਆਪੇ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਾ ॥੧॥ वह सब जीवों में क्रियान्वित है और स्वयं ही उनका पोषण करता है।॥ १॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੩ ॥ श्लोक महला ३॥
ਸੂਹਬ ਤਾ ਸੋਹਾਗਣੀ ਜਾ ਮੰਨਿ ਲੈਹਿ ਸਚੁ ਨਾਉ ॥ हे सुहाग के परिधान वाली जीव-स्त्री ! तू सुहागिन तो ही बन सकती है, यदि तू सत्य-नाम को मन में बसा ले।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਅਪਣਾ ਮਨਾਇ ਲੈ ਰੂਪੁ ਚੜੀ ਤਾ ਅਗਲਾ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਥਾਉ ॥ यदि तू अपने सतिगुरु को प्रसन्न कर ले तो तेरा रूप हजार गुणा बढ़ जाएगा। नाम प्राप्त करने के लिए गुरु के सिवा अन्य कोई स्थान नहीं।
ਐਸਾ ਸੀਗਾਰੁ ਬਣਾਇ ਤੂ ਮੈਲਾ ਕਦੇ ਨ ਹੋਵਈ ਅਹਿਨਿਸਿ ਲਾਗੈ ਭਾਉ ॥ तू अपना ऐसा श्रृंगार बना, जो कभी भी मैला न हो और रात-दिन तेरा प्रेम प्रभु से बना रहे
ਨਾਨਕ ਸੋਹਾਗਣਿ ਕਾ ਕਿਆ ਚਿਹਨੁ ਹੈ ਅੰਦਰਿ ਸਚੁ ਮੁਖੁ ਉਜਲਾ ਖਸਮੈ ਮਾਹਿ ਸਮਾਇ ॥੧॥ हे नानक ! सुहागिन की वास्तव में यही निशानी है कि उसके मन में सत्य स्थित हो, उसका मुख उज्ज्वल हो और यह प्रभु में ही विलीन रहे॥ १॥
ਮਃ ੩ ॥ महला ३॥
ਲੋਕਾ ਵੇ ਹਉ ਸੂਹਵੀ ਸੂਹਾ ਵੇਸੁ ਕਰੀ ॥ हे लोगो! मैं सुहाग के लाल वस्त्रों में हूँ और मैंने नववधु जैसा वेष किया हुआ है।
ਵੇਸੀ ਸਹੁ ਨ ਪਾਈਐ ਕਰਿ ਕਰਿ ਵੇਸ ਰਹੀ ॥ लेकिन सुहाग का वेष धारण करने से मालिक-प्रभु प्राप्त नहीं हुआ और मैं तो वेष बना बनाकर थक गई हूँ ।
ਨਾਨਕ ਤਿਨੀ ਸਹੁ ਪਾਇਆ ਜਿਨੀ ਗੁਰ ਕੀ ਸਿਖ ਸੁਣੀ ॥ हे नानक ! प्रभु उन्हें ही प्राप्त हुआ है, जिन्होंने गुरु की शिक्षा सुनी है।
ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੋ ਥੀਐ ਇਨ ਬਿਧਿ ਕੰਤ ਮਿਲੀ ॥੨॥ इस विधि द्वारा ही पति-प्रभु मिलता है जो वेष उसे उपयुक्त लगता है, जीव-स्त्री उसी वेष वाली बन जाए॥ २॥


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