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ਹਰਿ ਮੰਗਲ ਰਸਿ ਰਸਨ ਰਸਾਏ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਪ੍ਰਗਾਸਾ ॥੨॥
हरि मंगल रसि रसन रसाए नानक नामु प्रगासा ॥२॥
हे नानक ! वह अपनी जीभा से प्रेमपूर्वक प्रभु की स्तुति का रस लेता है, और परमात्मा का नाम उसे आध्यात्मिक रूप से जागृत और प्रबुद्ध कर देता है। ॥ २॥
ਅੰਤਰਿ ਰਤਨੁ ਬੀਚਾਰੇ ॥ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਪਿਆਰੇ ॥
अंतरि रतनु बीचारे ॥ गुरमुखि नामु पिआरे ॥
जीव अपने अंतर्मन में विद्यमान नाम रूपी रत्न का ही चिंतन करता है। गुरुमुख को परमात्मा का नाम बड़ा प्यारा लगता है।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਪਿਆਰੇ ਸਬਦਿ ਨਿਸਤਾਰੇ ਅਗਿਆਨੁ ਅਧੇਰੁ ਗਵਾਇਆ ॥
हरि नामु पिआरे सबदि निसतारे अगिआनु अधेरु गवाइआ ॥
जिसे हरिनाम प्यारा लगता है, गुरु ने शब्द द्वारा उसका उद्धार कर दिया है और उसके अन्तर में से अज्ञान रूपी अंधेरा समाप्त कर दिया है।
ਗਿਆਨੁ ਪ੍ਰਚੰਡੁ ਬਲਿਆ ਘਟਿ ਚਾਨਣੁ ਘਰ ਮੰਦਰ ਸੋਹਾਇਆ ॥
गिआनु प्रचंडु बलिआ घटि चानणु घर मंदर सोहाइआ ॥
उसके हृदय में ज्ञान रूपी प्रचंड अग्नि प्रज्वलित हो गई है और प्रभु-ज्योति का आलोक हो गया है। उसके घर एवं मन्दिर सुन्दर बन गए हैं।
ਤਨੁ ਮਨੁ ਅਰਪਿ ਸੀਗਾਰ ਬਣਾਏ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਸਾਚੇ ਭਾਇਆ ॥
तनु मनु अरपि सीगार बणाए हरि प्रभ साचे भाइआ ॥
उसने अपना तन एवं मन अर्पण करके शुभ गुणों का श्रृंगार किया है, जो सत्यस्वरूप प्रभु को अच्छा लगा है।
ਜੋ ਪ੍ਰਭੁ ਕਹੈ ਸੋਈ ਪਰੁ ਕੀਜੈ ਨਾਨਕ ਅੰਕਿ ਸਮਾਇਆ ॥੩॥
जो प्रभु कहै सोई परु कीजै नानक अंकि समाइआ ॥३॥
जो प्रभु कहता है, वही वह भलीभांति करता है। हे नानक ! वह प्रभु-चरणों में लीन हो गया है॥ ३॥
ਹਰਿ ਪ੍ਰਭਿ ਕਾਜੁ ਰਚਾਇਆ ॥
हरि प्रभि काजु रचाइआ ॥
हे भाई ! प्रभु ने विवाह रचाया है और
ਗੁਰਮੁਖਿ ਵੀਆਹਣਿ ਆਇਆ ॥
गुरमुखि वीआहणि आइआ ॥
वह गुरु के माध्यम से विवाह करवाने आया है।
ਵੀਆਹਣਿ ਆਇਆ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਸਾ ਧਨ ਕੰਤ ਪਿਆਰੀ ॥
वीआहणि आइआ गुरमुखि हरि पाइआ सा धन कंत पिआरी ॥
वह विवाह करवाने आया है और जीव-स्त्री ने गुरु के माध्यम से हरी को पा लिया है। वह जीव-स्त्री प्रभु को बड़ी प्यारी लगती है।
ਸੰਤ ਜਨਾ ਮਿਲਿ ਮੰਗਲ ਗਾਏ ਹਰਿ ਜੀਉ ਆਪਿ ਸਵਾਰੀ ॥
संत जना मिलि मंगल गाए हरि जीउ आपि सवारी ॥
संतजनों ने मिलकर विवाह के मंगल गीत गाए हैं तथा श्री हरि ने स्वयं ही शुभ गुणों से अलंकृत किया है।
ਸੁਰਿ ਨਰ ਗਣ ਗੰਧਰਬ ਮਿਲਿ ਆਏ ਅਪੂਰਬ ਜੰਞ ਬਣਾਈ ॥
सुरि नर गण गंधरब मिलि आए अपूरब जंञ बणाई ॥
इस शुभावसर पर देवता, नर एवं गंधर्व मिल कर आए हैं और अपूर्व बारात बन गई।
ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ਮੈ ਸਾਚਾ ਨਾ ਕਦੇ ਮਰੈ ਨ ਜਾਈ ॥੪॥੧॥੩॥
नानक प्रभु पाइआ मै साचा ना कदे मरै न जाई ॥४॥१॥३॥
हे नानक ! मैंने सच्चा प्रभु पा लिया है, जो जन्म-मरण के चक्र से मुक्त है॥ ४॥ १॥ ३॥
ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਛੰਤ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੩
रागु सूही छंत महला ४ घरु ३
राग सूही, छंद, चतुर्थ गुरु, तीसरी ताल:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है। ॥
ਆਵਹੋ ਸੰਤ ਜਨਹੁ ਗੁਣ ਗਾਵਹ ਗੋਵਿੰਦ ਕੇਰੇ ਰਾਮ ॥
आवहो संत जनहु गुण गावह गोविंद केरे राम ॥
हे संतजनो ! आओ, हम गोविंद का गुणगान करें।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਿਲਿ ਰਹੀਐ ਘਰਿ ਵਾਜਹਿ ਸਬਦ ਘਨੇਰੇ ਰਾਮ ॥
गुरमुखि मिलि रहीऐ घरि वाजहि सबद घनेरे राम ॥
गुरुमुख बनकर मिलकर रहें और हमारे हृदय-घर में अनेक प्रकार के शब्द बजते रहते हैं।
ਸਬਦ ਘਨੇਰੇ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੇ ਤੂ ਕਰਤਾ ਸਭ ਥਾਈ ॥
सबद घनेरे हरि प्रभ तेरे तू करता सभ थाई ॥
हे प्रभु ! यह अनेक प्रकार के अनहद शब्द आपके द्वारा ही बजाए बजते हैं, आप जगत् के रचयिता है और सर्वव्यापक है।
ਅਹਿਨਿਸਿ ਜਪੀ ਸਦਾ ਸਾਲਾਹੀ ਸਾਚ ਸਬਦਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥
अहिनिसि जपी सदा सालाही साच सबदि लिव लाई ॥
ऐसी कृपा करो कि मैं रात-दिन आपका नाम जपता रहूँ, सदैव आपकी स्तुति करता रहूँ और सच्चे शब्द में अपनी वृत्ति लगाकर रखूं।
ਅਨਦਿਨੁ ਸਹਜਿ ਰਹੈ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਰਿਦ ਪੂਜਾ ॥
अनदिनु सहजि रहै रंगि राता राम नामु रिद पूजा ॥
मैं रात-दिन सहज स्वभाव आपका रंग में लीन रहूँ और अपने हृदय में राम नाम की पूजा-अर्चना करता रहूँ।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਏਕੁ ਪਛਾਣੈ ਅਵਰੁ ਨ ਜਾਣੈ ਦੂਜਾ ॥੧॥
नानक गुरमुखि एकु पछाणै अवरु न जाणै दूजा ॥१॥
हे नानक ! गुरु के माध्यम से मैं एक परमात्मा को ही पहचानता हूँ और किसी अन्य को नहीं जानता॥ १॥
ਸਭ ਮਹਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਰਾਮ ॥
सभ महि रवि रहिआ सो प्रभु अंतरजामी राम ॥
वह प्रभु अन्तर्यामी है और सब जीवों में समाया हुआ है।
ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਰਵੈ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ਸੁਆਮੀ ਰਾਮ ॥
गुर सबदि रवै रवि रहिआ सो प्रभु मेरा सुआमी राम ॥
जो जीव शब्द-गुरु द्वारा उसका मनन करता है, मेरा स्वामी प्रभु उसे सब में बसा हुआ नज़र आता है।
ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ਸੁਆਮੀ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਵਿਆ ਸੋਈ ॥
प्रभु मेरा सुआमी अंतरजामी घटि घटि रविआ सोई ॥
मेरे स्वामी अन्तर्यामी प्रभु सबके हृदय में विद्यमान है।
ਗੁਰਮਤਿ ਸਚੁ ਪਾਈਐ ਸਹਜਿ ਸਮਾਈਐ ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥
गुरमति सचु पाईऐ सहजि समाईऐ तिसु बिनु अवरु न कोई ॥
गुरु की शिक्षा द्वारा ही सत्य की प्राप्ति होती है और जीव सहज ही उसमें समा जाता है, उसके अतिरिक्त अन्य कोई समर्थवान नहीं है।
ਸਹਜੇ ਗੁਣ ਗਾਵਾ ਜੇ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵਾ ਆਪੇ ਲਏ ਮਿਲਾਏ ॥
सहजे गुण गावा जे प्रभ भावा आपे लए मिलाए ॥
यदि प्रभु को उपयुक्त लगे तो मैं सहज ही उसका गुणानुवाद करूँ और वह स्वयं ही मुझे अपने चरणों से मिला ले।
ਨਾਨਕ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਸਬਦੇ ਜਾਪੈ ਅਹਿਨਿਸਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਏ ॥੨॥
नानक सो प्रभु सबदे जापै अहिनिसि नामु धिआए ॥२॥
हे नानक ! शब्द-गुरु द्वारा उस प्रभु की सूझ होती है और रात-दिन उसके नाम का भजन होता है॥ २॥
ਇਹੁ ਜਗੋ ਦੁਤਰੁ ਮਨਮੁਖੁ ਪਾਰਿ ਨ ਪਾਈ ਰਾਮ ॥
इहु जगो दुतरु मनमुखु पारि न पाई राम ॥
यह जगत् ऐसा सागर है, जिसमें से पार होना बहुत कठिन है और मन की इच्छानुसार चलने वाला जीव तो इससे पार ही नहीं हो सकता।
ਅੰਤਰੇ ਹਉਮੈ ਮਮਤਾ ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਚਤੁਰਾਈ ਰਾਮ ॥
अंतरे हउमै ममता कामु क्रोधु चतुराई राम ॥
ऐसे जीव के अन्तर्मन में अभिमान, ममत्व, काम, क्रोध एवं चतुराई ही भरे होते हैं।
ਅੰਤਰਿ ਚਤੁਰਾਈ ਥਾਇ ਨ ਪਾਈ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥
अंतरि चतुराई थाइ न पाई बिरथा जनमु गवाइआ ॥
अन्तर्मन में चतुराई होने के कारण उसका जीवन सफल नहीं होता और अपना जीवन व्यर्थ ही गंवा देता है।
ਜਮ ਮਗਿ ਦੁਖੁ ਪਾਵੈ ਚੋਟਾ ਖਾਵੈ ਅੰਤਿ ਗਇਆ ਪਛੁਤਾਇਆ ॥
जम मगि दुखु पावै चोटा खावै अंति गइआ पछुताइआ ॥
वह मृत्यु के मार्ग में बहुत दुःख प्राप्त करता है, मृत्यु से चोटें खाता है तथा अन्तिम समय जगत् को छोड़ता हुआ पछताता है।
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਕੋ ਬੇਲੀ ਨਾਹੀ ਪੁਤੁ ਕੁਟੰਬੁ ਸੁਤੁ ਭਾਈ ॥
बिनु नावै को बेली नाही पुतु कुट्मबु सुतु भाई ॥
परमात्मा के नाम के अतिरिक्त पुत्र, परिवार, सुपुत्र एवं भाई इत्यादि कोई उसका साथी नहीं बना।
ਨਾਨਕ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਪਸਾਰਾ ਆਗੈ ਸਾਥਿ ਨ ਜਾਈ ॥੩॥
नानक माइआ मोहु पसारा आगै साथि न जाई ॥३॥
हे नानक ! यह मोह-माया का प्रसार आगे परलोक में जीव के साथ नहीं जाता॥ ३॥
ਹਉ ਪੂਛਉ ਅਪਨਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਦਾਤਾ ਕਿਨ ਬਿਧਿ ਦੁਤਰੁ ਤਰੀਐ ਰਾਮ ॥
हउ पूछउ अपना सतिगुरु दाता किन बिधि दुतरु तरीऐ राम ॥
मेरा सतगुरु नाम का दाता है, मैं उससे पूछता हूँ कि इस अगम्य संसार-सागर से कैसे पार हुआ जा सकता है ?
ਸਤਿਗੁਰ ਭਾਇ ਚਲਹੁ ਜੀਵਤਿਆ ਇਵ ਮਰੀਐ ਰਾਮ ॥
सतिगुर भाइ चलहु जीवतिआ इव मरीऐ राम ॥
सतगुरु की इच्छानुसार चलो, फिर जीते-जी सांसारिक प्रलोभनों से दूर रहा जाता है।
ਜੀਵਤਿਆ ਮਰੀਐ ਭਉਜਲੁ ਤਰੀਐ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਵੈ ॥
जीवतिआ मरीऐ भउजलु तरीऐ गुरमुखि नामि समावै ॥
जब जीवित रहते हुए व्यक्ति सांसारिक इच्छाओं से विमुख हो जाता है, तो वह विकारों के संसार-सागर को पार कर लेता है; और फिर गुरु की कृपा से वह प्रभु-नाम में लीन हो जाता है