Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 774

Page 774

ਜਨੁ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਲਾਵ ਪਹਿਲੀ ਆਰੰਭੁ ਕਾਜੁ ਰਚਾਇਆ ॥੧॥ जनु कहै नानकु लाव पहिली आर्मभु काजु रचाइआ ॥१॥ भक्त नानक कहते हैं कि, पहला फेरा यह है कि प्रेमपूर्वक भगवान् का स्मरण किया जाए; यही वह आरंभिक चरण है जो आत्मा-दुल्हन और पति-परमेश्वर के मिलन का शुभारंभ करता है। १
ਹਰਿ ਦੂਜੜੀ ਲਾਵ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਮਿਲਾਇਆ ਬਲਿ ਰਾਮ ਜੀਉ ॥ हरि दूजड़ी लाव सतिगुरु पुरखु मिलाइआ बलि राम जीउ ॥ मैं राम पर बलिहारी हूँ। जब (हरि के) विवाह का दूसरा फेरा करवाया गया तो उसने जीव-स्त्री को सतगुरु से मिला दिया।
ਨਿਰਭਉ ਭੈ ਮਨੁ ਹੋਇ ਹਉਮੈ ਮੈਲੁ ਗਵਾਇਆ ਬਲਿ ਰਾਮ ਜੀਉ ॥ निरभउ भै मनु होइ हउमै मैलु गवाइआ बलि राम जीउ ॥ जीव-स्त्री का मन प्रभु के भय से निर्भय हो गया है और उसकी अहंकार रूपी मैल दूर हो गई है।
ਨਿਰਮਲੁ ਭਉ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ਹਰਿ ਵੇਖੈ ਰਾਮੁ ਹਦੂਰੇ ॥ निरमलु भउ पाइआ हरि गुण गाइआ हरि वेखै रामु हदूरे ॥ जब उसके मन में निर्मल प्रभु का भय उत्पन्न हो गया तो उसने हरि का गुणगान किया। अब वह हरि को आसपास ही देखती है।
ਹਰਿ ਆਤਮ ਰਾਮੁ ਪਸਾਰਿਆ ਸੁਆਮੀ ਸਰਬ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰੇ ॥ हरि आतम रामु पसारिआ सुआमी सरब रहिआ भरपूरे ॥ आत्मा में ही परमात्मा है, स्वामी प्रभु सर्वव्यापक है।
ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਏਕੋ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਜਨ ਮੰਗਲ ਗਾਏ ॥ अंतरि बाहरि हरि प्रभु एको मिलि हरि जन मंगल गाए ॥ उस जीव-स्त्री को एक प्रभु ही अपने हृदय एवं बाहर दुनिया में बसता दिखाई देता है। हरि-भक्तों ने मिलकर जीव-स्त्री के विवाह की खुशी के गीत गाए हैं।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਦੂਜੀ ਲਾਵ ਚਲਾਈ ਅਨਹਦ ਸਬਦ ਵਜਾਏ ॥੨॥ जन नानक दूजी लाव चलाई अनहद सबद वजाए ॥२॥ हे नानक ! जब दूसरा फेरा सम्पन्न करवाया गया तो जीव-स्त्री के हृदय में आनंद शब्द गूंजने लगा ॥ २॥
ਹਰਿ ਤੀਜੜੀ ਲਾਵ ਮਨਿ ਚਾਉ ਭਇਆ ਬੈਰਾਗੀਆ ਬਲਿ ਰਾਮ ਜੀਉ ॥ हरि तीजड़ी लाव मनि चाउ भइआ बैरागीआ बलि राम जीउ ॥ हे राम ! मैं आप पर बलिहारी हूँ। जब (हरि के) विवाह का तीसरा फेरा करवाया गया तो जीव-स्त्री के वैरागी मन में उमंग पैदा हो गई।
ਸੰਤ ਜਨਾ ਹਰਿ ਮੇਲੁ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਵਡਭਾਗੀਆ ਬਲਿ ਰਾਮ ਜੀਉ ॥ संत जना हरि मेलु हरि पाइआ वडभागीआ बलि राम जीउ ॥ जब भाग्यशाली संतजनों से उसका मेल हुआ तो उसने हरि को पा लिया।
ਨਿਰਮਲੁ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ਮੁਖਿ ਬੋਲੀ ਹਰਿ ਬਾਣੀ ॥ निरमलु हरि पाइआ हरि गुण गाइआ मुखि बोली हरि बाणी ॥ जब उसने निर्मल हरि को पा लिया तो ही उसने हरि का गुणगान किया। उसने अपने मुख से हरि की वाणी उच्चारित की।
ਸੰਤ ਜਨਾ ਵਡਭਾਗੀ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਕਥੀਐ ਅਕਥ ਕਹਾਣੀ ॥ संत जना वडभागी पाइआ हरि कथीऐ अकथ कहाणी ॥ भाग्यवान जीव-स्त्री ने उन संतजनों से मिलकर अपना पति-प्रभु पा लिया और संतजन हरि की अकथनीय कहानी कथन करते रहते हैं।
ਹਿਰਦੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਧੁਨਿ ਉਪਜੀ ਹਰਿ ਜਪੀਐ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗੁ ਜੀਉ ॥ हिरदै हरि हरि हरि धुनि उपजी हरि जपीऐ मसतकि भागु जीउ ॥ उस जीव-स्त्री के हृदय में हरि के नाम की ध्वनि पैदा हो गई है। वह हरि का जाप करती रहती है क्योंकि उसके माथे पर पूर्व से ही ऐसा भाग्य लिखा हुआ था।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਬੋਲੇ ਤੀਜੀ ਲਾਵੈ ਹਰਿ ਉਪਜੈ ਮਨਿ ਬੈਰਾਗੁ ਜੀਉ ॥੩॥ जनु नानकु बोले तीजी लावै हरि उपजै मनि बैरागु जीउ ॥३॥ नानक कहते हैं कि तीसरे फेरे में जीव-स्त्री के मन में वैराग्य उत्पन्न हो जाता है।॥ ३॥
ਹਰਿ ਚਉਥੜੀ ਲਾਵ ਮਨਿ ਸਹਜੁ ਭਇਆ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਬਲਿ ਰਾਮ ਜੀਉ ॥ हरि चउथड़ी लाव मनि सहजु भइआ हरि पाइआ बलि राम जीउ ॥ हे राम ! मैं आप पर बलिहारी हूँ। जब (हरि के) विवाह का चौथा फेरा हुआ तो आत्मा-दुल्हन के भीतर आध्यात्मिक संतुलन और स्थिरता की भावना उत्पन्न होती है, और वह पूर्णता के साथ आप में एकाकार हो जाती है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਿਲਿਆ ਸੁਭਾਇ ਹਰਿ ਮਨਿ ਤਨਿ ਮੀਠਾ ਲਾਇਆ ਬਲਿ ਰਾਮ ਜੀਉ ॥ गुरमुखि मिलिआ सुभाइ हरि मनि तनि मीठा लाइआ बलि राम जीउ ॥ उसे गुरु द्वारा सहज स्वभाव ही प्रभु मिला है, जिसने उसके मन एवं तन में हरि मीठा लगा दिया है।
ਹਰਿ ਮੀਠਾ ਲਾਇਆ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਭ ਭਾਇਆ ਅਨਦਿਨੁ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥ हरि मीठा लाइआ मेरे प्रभ भाइआ अनदिनु हरि लिव लाई ॥ गुरु ने जीव-स्त्री को हरि मीठा लगा दिया है और यह बात मेरे प्रभु को अच्छी लगी है। जीव-स्त्री रात-दिन हरि में ध्यानस्थ रहती है।
ਮਨ ਚਿੰਦਿਆ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ਸੁਆਮੀ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਵਜੀ ਵਾਧਾਈ ॥ मन चिंदिआ फलु पाइआ सुआमी हरि नामि वजी वाधाई ॥ उसने मनोवांछित स्वामी पा लिया है और उसे हरि नाम की शुभ-कामनाएँ मिल रही हैं।
ਹਰਿ ਪ੍ਰਭਿ ਠਾਕੁਰਿ ਕਾਜੁ ਰਚਾਇਆ ਧਨ ਹਿਰਦੈ ਨਾਮਿ ਵਿਗਾਸੀ ॥ हरि प्रभि ठाकुरि काजु रचाइआ धन हिरदै नामि विगासी ॥ स्वामी प्रभु ने जीव-स्त्री से अपना विवाह करवाया है। जीव-स्त्री नाम द्वारा अपने हृदय में बहुत प्रसन्न रहती है।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਬੋਲੇ ਚਉਥੀ ਲਾਵੈ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਪ੍ਰਭੁ ਅਵਿਨਾਸੀ ॥੪॥੨॥ जनु नानकु बोले चउथी लावै हरि पाइआ प्रभु अविनासी ॥४॥२॥ नानक कहते हैं, जब विवाह का चौथा फेरा संपन्न करवाया गया तो जीव-स्त्री ने अविनाशी प्रभु को पा लिया ॥ ४॥ २॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है। ॥
ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਛੰਤ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੨ ॥ रागु सूही छंत महला ४ घरु २ ॥ राग सूही, छंद, चतुर्थ गुरु, द्वितीय ताल:
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥ गुरमुखि हरि गुण गाए ॥ गुरु के सान्निध्य में हरि के ही गुण गाए हैं और
ਹਿਰਦੈ ਰਸਨ ਰਸਾਏ ॥ हिरदै रसन रसाए ॥ हृदय एवं जिह्वा द्वारा उस महारस का ही आनंद लिया है।
ਹਰਿ ਰਸਨ ਰਸਾਏ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਭ ਭਾਏ ਮਿਲਿਆ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਏ ॥ हरि रसन रसाए मेरे प्रभ भाए मिलिआ सहजि सुभाए ॥ जिसने अपनी जिह्वा से गुणों का आनंद लिया है, वही मेरे प्रभु को भा गया है और वह सहज स्वभाव ही प्रभु से मिल गया है।
ਅਨਦਿਨੁ ਭੋਗ ਭੋਗੇ ਸੁਖਿ ਸੋਵੈ ਸਬਦਿ ਰਹੈ ਲਿਵ ਲਾਏ ॥ अनदिनु भोग भोगे सुखि सोवै सबदि रहै लिव लाए ॥ वह प्रतिदिन स्वादिष्ट पदार्थ सेवन करता है, सुख की नींद सोता है और शब्द में सुरति लगाकर रखता है।
ਵਡੈ ਭਾਗਿ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਈਐ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਏ ॥ वडै भागि गुरु पूरा पाईऐ अनदिनु नामु धिआए ॥ पूर्ण गुरु की प्राप्ति सौभाग्य से ही होती है और फिर जीव रात-दिन परमात्मा के नाम का मनन करता रहता है।
ਸਹਜੇ ਸਹਜਿ ਮਿਲਿਆ ਜਗਜੀਵਨੁ ਨਾਨਕ ਸੁੰਨਿ ਸਮਾਏ ॥੧॥ सहजे सहजि मिलिआ जगजीवनु नानक सुंनि समाए ॥१॥ हे नानक ! जगत् का जीवन प्रभु उसे सहज स्वभाव ही मिल गया है और अब वह शून्यावस्था में शब्द में विलीन हुआ रहता है॥ १॥
ਸੰਗਤਿ ਸੰਤ ਮਿਲਾਏ ॥ ਹਰਿ ਸਰਿ ਨਿਰਮਲਿ ਨਾਏ ॥ संगति संत मिलाए ॥ हरि सरि निरमलि नाए ॥ प्रभु ने मुझे संतों की संगति में मिला दिया है और अब हरि-नाम रूपी सरोवर में स्नान करता रहता हूँ।
ਨਿਰਮਲਿ ਜਲਿ ਨਾਏ ਮੈਲੁ ਗਵਾਏ ਭਏ ਪਵਿਤੁ ਸਰੀਰਾ ॥ निरमलि जलि नाए मैलु गवाए भए पवितु सरीरा ॥ मैंने नाम रूपी निर्मल जल में स्नान करके अपने पापों की मैल दूर कर दी है और मेरा शरीर पवित्र हो गया है।
ਦੁਰਮਤਿ ਮੈਲੁ ਗਈ ਭ੍ਰਮੁ ਭਾਗਾ ਹਉਮੈ ਬਿਨਠੀ ਪੀਰਾ ॥ दुरमति मैलु गई भ्रमु भागा हउमै बिनठी पीरा ॥ मेरी दुर्मति रूपी मैल निवृत्त हो गई है, मेरा भ्रम भाग गया है और अहंकार की पीड़ा भी नष्ट हो गई है।
ਨਦਰਿ ਪ੍ਰਭੂ ਸਤਸੰਗਤਿ ਪਾਈ ਨਿਜ ਘਰਿ ਹੋਆ ਵਾਸਾ ॥ नदरि प्रभू सतसंगति पाई निज घरि होआ वासा ॥ प्रभु की करुणा-दृष्टि से मुझे सत्संगति की प्राप्ति हो गई है और मेरा आत्मस्वरूप में निवास हो गया है।


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top