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ਜਨੁ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਲਾਵ ਪਹਿਲੀ ਆਰੰਭੁ ਕਾਜੁ ਰਚਾਇਆ ॥੧॥
नानक जी कहते हैं कि पहले फेरे द्वारा विवाह का आरंभ कार्य रचाया है॥ १॥
ਹਰਿ ਦੂਜੜੀ ਲਾਵ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਮਿਲਾਇਆ ਬਲਿ ਰਾਮ ਜੀਉ ॥
मैं राम पर कुर्बान हूँ। जब (हरि के) विवाह का दूसरा फेरा करवाया गया तो उसने जीव-स्त्री को सतगुरु से मिला दिया।
ਨਿਰਭਉ ਭੈ ਮਨੁ ਹੋਇ ਹਉਮੈ ਮੈਲੁ ਗਵਾਇਆ ਬਲਿ ਰਾਮ ਜੀਉ ॥
जीव-स्त्री का मन प्रभु के भय से निर्भय हो गया है और उसकी अहंत्व रूपी मैल दूर हो गई है।
ਨਿਰਮਲੁ ਭਉ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ਹਰਿ ਵੇਖੈ ਰਾਮੁ ਹਦੂਰੇ ॥
जब उसके मन में निर्मल प्रभु का भय उत्पन्न हो गया तो उसने हरि का गुणगान किया। अब वह हरि को आसपास ही देखती है।
ਹਰਿ ਆਤਮ ਰਾਮੁ ਪਸਾਰਿਆ ਸੁਆਮੀ ਸਰਬ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰੇ ॥
आत्मा में ही परमात्मा है, स्वामी प्रभु सर्वव्यापक है।
ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਏਕੋ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਜਨ ਮੰਗਲ ਗਾਏ ॥
उस जीव-स्त्री को एक प्रभु ही अपने हृदय एवं बाहर दुनिया में बसता दिखाई देता है। हरि-भक्तों ने मिलकर जीव-स्त्री के विवाह की खुशी के गीत गाए हैं।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਦੂਜੀ ਲਾਵ ਚਲਾਈ ਅਨਹਦ ਸਬਦ ਵਜਾਏ ॥੨॥
हे नानक ! जब दूसरा फेरा सम्पन्न करवाया गया तो जीव-स्त्री के हृदय में आनंद शब्द गूंजने लगा ॥ २॥
ਹਰਿ ਤੀਜੜੀ ਲਾਵ ਮਨਿ ਚਾਉ ਭਇਆ ਬੈਰਾਗੀਆ ਬਲਿ ਰਾਮ ਜੀਉ ॥
हे राम ! मैं तुझ पर कुर्बान हूँ। जब (हरि के) विवाह का तीसरा फेरा करवाया गया तो जीव-स्त्री के वैरागी मन में चाव पैदा हो गया।
ਸੰਤ ਜਨਾ ਹਰਿ ਮੇਲੁ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਵਡਭਾਗੀਆ ਬਲਿ ਰਾਮ ਜੀਉ ॥
जब भाग्यशाली संतजनों से उसका मेल हुआ तो उसने हरि को पा लिया।
ਨਿਰਮਲੁ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ਮੁਖਿ ਬੋਲੀ ਹਰਿ ਬਾਣੀ ॥
जब उसने निर्मल हरि को पा लिया तो ही उसने हरि का गुणगान किया। उसने अपने मुख से हरि की वाणी उच्चरित की।
ਸੰਤ ਜਨਾ ਵਡਭਾਗੀ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਕਥੀਐ ਅਕਥ ਕਹਾਣੀ ॥
भाग्यवान जीव-स्त्री ने उन संतजनों से मिलकर अपना पति-प्रभु पा लिया और संतजन हरि की अकथनीय कहानी कथन करते रहते हैं।
ਹਿਰਦੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਧੁਨਿ ਉਪਜੀ ਹਰਿ ਜਪੀਐ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗੁ ਜੀਉ ॥
उस जीव-स्त्री के हृदय में हरि के नाम की ध्वनि पैदा हो गई है। वह हरि का जाप करती रहती है क्योंकि उसके माथे पर ऐसा भाग्य लिखा हुआ था।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਬੋਲੇ ਤੀਜੀ ਲਾਵੈ ਹਰਿ ਉਪਜੈ ਮਨਿ ਬੈਰਾਗੁ ਜੀਉ ॥੩॥
नानक कहते हैं कि तीसरे फेरे में जीव-स्त्री के मन में वैराग्य उत्पन्न हो जाता है।॥ ३॥
ਹਰਿ ਚਉਥੜੀ ਲਾਵ ਮਨਿ ਸਹਜੁ ਭਇਆ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਬਲਿ ਰਾਮ ਜੀਉ ॥
हे राम ! मैं तुझ पर बलिहारी हूँ। जब (हरि के) विवाह का चौथा फेरा हुआ तो जीव-स्त्री के मन में सहज उत्पन्न हो गया और उसने अपने परमात्मा को पा लिया।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਿਲਿਆ ਸੁਭਾਇ ਹਰਿ ਮਨਿ ਤਨਿ ਮੀਠਾ ਲਾਇਆ ਬਲਿ ਰਾਮ ਜੀਉ ॥
उसे गुरु द्वारा सहज स्वभाव ही प्रभु मिला है, जिसने उसके मन एवं तन में हरि मीठा लगा दिया है।
ਹਰਿ ਮੀਠਾ ਲਾਇਆ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਭ ਭਾਇਆ ਅਨਦਿਨੁ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥
गुरु ने जीव-स्त्री को हरि मीठा लगा दिया है और यह बात मेरे प्रभु को अच्छी लगी है।जीव-स्त्री रात-दिन हरि में ध्यानरथ रहती है।
ਮਨ ਚਿੰਦਿਆ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ਸੁਆਮੀ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਵਜੀ ਵਾਧਾਈ ॥
उसने मनोवांछित स्वामी पा लिया है और उसे हरि नाम की शुभ-कामनाएँ मिल रही हैं।
ਹਰਿ ਪ੍ਰਭਿ ਠਾਕੁਰਿ ਕਾਜੁ ਰਚਾਇਆ ਧਨ ਹਿਰਦੈ ਨਾਮਿ ਵਿਗਾਸੀ ॥
स्वामी प्रभु ने जीव-स्त्री से अपना विवाह करवाया है। जीव-स्त्री नाम द्वारा अपने हृदय में बहुत प्रसन्न रहती है।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਬੋਲੇ ਚਉਥੀ ਲਾਵੈ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਪ੍ਰਭੁ ਅਵਿਨਾਸੀ ॥੪॥੨॥
नानक कहते हैं, जब विवाह का चौथा फेरा संपन्न करवाया गया तो जीव-स्त्री ने अविनाशी प्रभु को पा लिया ॥ ४॥ २॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਛੰਤ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੨ ॥
रागु सूही छंत महला ४ घरु २ ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥
गुरु के सान्निध्य में हरि के ही गुण गाए हैं और
ਹਿਰਦੈ ਰਸਨ ਰਸਾਏ ॥
हृदय एवं जिह्मा द्वारा उस महारस का ही आनंद लिया है।
ਹਰਿ ਰਸਨ ਰਸਾਏ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਭ ਭਾਏ ਮਿਲਿਆ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਏ ॥
जिसने अपनी जिह्वा से गुणों का आनंद लिया है, वही मेरे प्रभु को भा गया है और वह सहज स्वभाव ही प्रभु से मिल गया है।
ਅਨਦਿਨੁ ਭੋਗ ਭੋਗੇ ਸੁਖਿ ਸੋਵੈ ਸਬਦਿ ਰਹੈ ਲਿਵ ਲਾਏ ॥
वह प्रतिदिन स्वादिष्ट पदार्थ सेवन करता है, सुख की नीद सोता है और शब्द में सुरति लगाकर रखता है।
ਵਡੈ ਭਾਗਿ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਈਐ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਏ ॥
पूर्ण गुरु की प्राप्ति अहोभाग्य से ही होती है और फिर जीव रात-दिन परमात्मा के नाम का मनन करता रहता है।
ਸਹਜੇ ਸਹਜਿ ਮਿਲਿਆ ਜਗਜੀਵਨੁ ਨਾਨਕ ਸੁੰਨਿ ਸਮਾਏ ॥੧॥
हे नानक ! जगत् का जीवन प्रभु उसे सहज स्वभाव ही मिल गया है और अब वह शून्यावस्था में शब्द में विलीन हुआ रहता है॥ १॥
ਸੰਗਤਿ ਸੰਤ ਮਿਲਾਏ ॥ ਹਰਿ ਸਰਿ ਨਿਰਮਲਿ ਨਾਏ ॥
प्रभु ने मुझे संतों की संगति में मिला दिया है और अब हरि-नाम रूपी सरोवर में स्नान करता रहता हूँ।
ਨਿਰਮਲਿ ਜਲਿ ਨਾਏ ਮੈਲੁ ਗਵਾਏ ਭਏ ਪਵਿਤੁ ਸਰੀਰਾ ॥
मैंने नाम रूपी निर्मल जल में स्नान करके अपने पापों की मैल दूर कर दी है और मेरा शरीर पवित्र हो गया है।
ਦੁਰਮਤਿ ਮੈਲੁ ਗਈ ਭ੍ਰਮੁ ਭਾਗਾ ਹਉਮੈ ਬਿਨਠੀ ਪੀਰਾ ॥
मेरी दुर्मति रूपी मैल निवृत्त हो गई है, मेरा भ्रम भाग गया है और अहंत्व की पीड़ा भी नाश हो गई है।
ਨਦਰਿ ਪ੍ਰਭੂ ਸਤਸੰਗਤਿ ਪਾਈ ਨਿਜ ਘਰਿ ਹੋਆ ਵਾਸਾ ॥
प्रभु की करुणा-दृष्टि से मुझे सत्संगति की प्राप्ति हो गई है और मेरा आत्मस्वरूप में निवास हो गया है।