Page 760
ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੩
रागु सूही महला ५ घरु ३
राग सूही, पंचम गुरु, तीसरी ताल:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है। ॥
ਮਿਥਨ ਮੋਹ ਅਗਨਿ ਸੋਕ ਸਾਗਰ ॥
मिथन मोह अगनि सोक सागर ॥
यह संसार मिथ्या, मोह, कामना की अग्नि और दुःख के विशाल समुद्र के समान है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਉਧਰੁ ਹਰਿ ਨਾਗਰ ॥੧॥
करि किरपा उधरु हरि नागर ॥१॥
हे श्री हरि ! कृपा करके मुझे बचा लो॥ १॥
ਚਰਣ ਕਮਲ ਸਰਣਾਇ ਨਰਾਇਣ ॥
चरण कमल सरणाइ नराइण ॥
हे नारायण ! मैं आपके चरणों की शरण में हूँ।
ਦੀਨਾ ਨਾਥ ਭਗਤ ਪਰਾਇਣ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दीना नाथ भगत पराइण ॥१॥ रहाउ ॥
हे नम्र स्वामी और भक्तों के आश्रय, कृपया हमें हमारे विकारों और पापों से बचाएँ।॥ १॥ रहाउ॥
ਅਨਾਥਾ ਨਾਥ ਭਗਤ ਭੈ ਮੇਟਨ ॥
अनाथा नाथ भगत भै मेटन ॥
हे अनाथों के नाथ ! आप अपने भक्तों के हर प्रकार के भय मिटाने वाले है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਜਮਦੂਤ ਨ ਭੇਟਨ ॥੨॥
साधसंगि जमदूत न भेटन ॥२॥
आपके साधुओं की संगति करने से यमदूत भी पास नहीं आते॥ २॥
ਜੀਵਨ ਰੂਪ ਅਨੂਪ ਦਇਆਲਾ ॥
जीवन रूप अनूप दइआला ॥
हे अतुलनीय सौंदर्य के स्वामी और जीवन के स्रोत, दयालु भगवान्
ਰਵਣ ਗੁਣਾ ਕਟੀਐ ਜਮ ਜਾਲਾ ॥੩॥
रवण गुणा कटीऐ जम जाला ॥३॥
आपके गुण याद करने से मृत्यु का जाल भी कट जाता है॥ ३॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਰਸਨ ਨਿਤ ਜਾਪੈ ॥
अम्रित नामु रसन नित जापै ॥
जो व्यक्ति अपनी जिह्वा से नित्य ही हरि के अमृत-नाम को जपता है,
ਰੋਗ ਰੂਪ ਮਾਇਆ ਨ ਬਿਆਪੈ ॥੪॥
रोग रूप माइआ न बिआपै ॥४॥
वह माया और सांसारिक धन के प्रति मोह, जो सभी बुराइयों का स्रोत है, उससे पूर्णतः परे है। ॥ ४॥
ਜਪਿ ਗੋਬਿੰਦ ਸੰਗੀ ਸਭਿ ਤਾਰੇ ॥
जपि गोबिंद संगी सभि तारे ॥
हे भाई, भगवान् के नाम का सदैव प्रेमपूर्वक स्मरण करो; जो ऐसा करता है, वह न केवल स्वयं, बल्कि अपने सभी साथियों को भी इस संसार-सागर से पार लगा देता है।
ਪੋਹਤ ਨਾਹੀ ਪੰਚ ਬਟਵਾਰੇ ॥੫॥
पोहत नाही पंच बटवारे ॥५॥
काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार-यह पाँचों लुटेरे अब उसे दुःखी नहीं करते॥ ५ ॥
ਮਨ ਬਚ ਕ੍ਰਮ ਪ੍ਰਭੁ ਏਕੁ ਧਿਆਏ ॥
मन बच क्रम प्रभु एकु धिआए ॥
जो व्यक्ति मन, वचन एवं कर्म से एक प्रभु का ही ध्यान करता है,
ਸਰਬ ਫਲਾ ਸੋਈ ਜਨੁ ਪਾਏ ॥੬॥
सरब फला सोई जनु पाए ॥६॥
उसी व्यक्ति को मानव जीवन के सभी फल प्राप्त होते हैं। ६॥
ਧਾਰਿ ਅਨੁਗ੍ਰਹੁ ਅਪਨਾ ਪ੍ਰਭਿ ਕੀਨਾ ॥
धारि अनुग्रहु अपना प्रभि कीना ॥
प्रभु ने अनुग्रह करके जिसे भी अपना बनाया है,
ਕੇਵਲ ਨਾਮੁ ਭਗਤਿ ਰਸੁ ਦੀਨਾ ॥੭॥
केवल नामु भगति रसु दीना ॥७॥
उसे केवल नाम एवं भक्ति का ही रस दिया है॥ ७॥
ਆਦਿ ਮਧਿ ਅੰਤਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਈ ॥
आदि मधि अंति प्रभु सोई ॥
सृष्टि के आदि, वर्तमान एवं अन्त में भी एक प्रभु ही है।
ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥੮॥੧॥੨॥
नानक तिसु बिनु अवरु न कोई ॥८॥१॥२॥
हे नानक ! उसके बिना अन्य कोई नहीं है॥ ८ ॥ १॥ २ ॥
ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ਅਸਟਪਦੀਆ ਘਰੁ ੯
रागु सूही महला ५ असटपदीआ घरु ९
राग सूही, पांचवें गुरु, अष्टपदी, नौवीं ताल:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है। ॥
ਜਿਨ ਡਿਠਿਆ ਮਨੁ ਰਹਸੀਐ ਕਿਉ ਪਾਈਐ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਸੰਗੁ ਜੀਉ ॥
जिन डिठिआ मनु रहसीऐ किउ पाईऐ तिन्ह संगु जीउ ॥
जिन संतों को देखने से मन प्रसन्न हो जाता है, मुझे उनका साथ कैसे प्राप्त हो ?
ਸੰਤ ਸਜਨ ਮਨ ਮਿਤ੍ਰ ਸੇ ਲਾਇਨਿ ਪ੍ਰਭ ਸਿਉ ਰੰਗੁ ਜੀਉ ॥
संत सजन मन मित्र से लाइनि प्रभ सिउ रंगु जीउ ॥
वे संत, शुभचिंतक और सच्चे मित्र हैं, जो मुझे प्रेरित करते हैं और भगवान् के प्रेम में मेरे जुड़ने में सहायता करते हैं।
ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨ ਤੁਟਈ ਕਬਹੁ ਨ ਹੋਵੈ ਭੰਗੁ ਜੀਉ ॥੧॥
तिन्ह सिउ प्रीति न तुटई कबहु न होवै भंगु जीउ ॥१॥
उनसे मेरी प्रीति कभी न टूटे और न ही कभी साथ समाप्त हो ॥ १॥
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪ੍ਰਭ ਕਰਿ ਦਇਆ ਗੁਣ ਗਾਵਾ ਤੇਰੇ ਨਿਤ ਜੀਉ ॥
पारब्रहम प्रभ करि दइआ गुण गावा तेरे नित जीउ ॥
हे परब्रह्म प्रभु ! दया करो, ताकि मैं नित्य ही आपका गुणगान करता रहूँ।
ਆਇ ਮਿਲਹੁ ਸੰਤ ਸਜਣਾ ਨਾਮੁ ਜਪਹ ਮਨ ਮਿਤ ਜੀਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आइ मिलहु संत सजणा नामु जपह मन मित जीउ ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे सज्जन संतजनो ! आ कर मुझे मिलो, ताकि हम मन के मीत प्रभु का नाम जपें॥ १॥ रहाउ॥
ਦੇਖੈ ਸੁਣੇ ਨ ਜਾਣਈ ਮਾਇਆ ਮੋਹਿਆ ਅੰਧੁ ਜੀਉ ॥
देखै सुणे न जाणई माइआ मोहिआ अंधु जीउ ॥
माया के मोह में अंधा बना हुआ आदमी सच्चाई को न देखता, सुनता और न ही समझता है।
ਕਾਚੀ ਦੇਹਾ ਵਿਣਸਣੀ ਕੂੜੁ ਕਮਾਵੈ ਧੰਧੁ ਜੀਉ ॥
काची देहा विणसणी कूड़ु कमावै धंधु जीउ ॥
कच्ची गागर के समान उसका यह शरीर नाश हो जाना है, लेकिन वह दुनिया में झूठे धंधे ही करता रहता है।
ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਹਿ ਸੇ ਜਿਣਿ ਚਲੇ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਸਨਬੰਧੁ ਜੀਉ ॥੨॥
नामु धिआवहि से जिणि चले गुर पूरे सनबंधु जीउ ॥२॥
जिनका संबंध पूर्ण गुरु से हो जाता है, वह परमात्मा के नाम का ध्यान करके अपना जीवन साकार करके चले जाते हैं। ॥२॥
ਹੁਕਮੇ ਜੁਗ ਮਹਿ ਆਇਆ ਚਲਣੁ ਹੁਕਮਿ ਸੰਜੋਗਿ ਜੀਉ ॥
हुकमे जुग महि आइआ चलणु हुकमि संजोगि जीउ ॥
यह जीव इस कलियुग में प्रभु के से ही जगत् में आया है और संयोग से उसके आदेश में ही उसका प्रस्थान हो जाता है।
ਹੁਕਮੇ ਪਰਪੰਚੁ ਪਸਰਿਆ ਹੁਕਮਿ ਕਰੇ ਰਸ ਭੋਗ ਜੀਉ ॥
हुकमे परपंचु पसरिआ हुकमि करे रस भोग जीउ ॥
परमात्मा के आदेश से ही जगत-प्रपंच का प्रसार हुआ है और उसके आदेश में ही जीव पदार्थों का स्वाद भोग रहा है।
ਜਿਸ ਨੋ ਕਰਤਾ ਵਿਸਰੈ ਤਿਸਹਿ ਵਿਛੋੜਾ ਸੋਗੁ ਜੀਉ ॥੩॥
जिस नो करता विसरै तिसहि विछोड़ा सोगु जीउ ॥३॥
जिसे परमात्मा भूल जाता है, उसे ही वियोग एवं चिंता लगी रहती है। ३॥
ਆਪਨੜੇ ਪ੍ਰਭ ਭਾਣਿਆ ਦਰਗਹ ਪੈਧਾ ਜਾਇ ਜੀਉ ॥
आपनड़े प्रभ भाणिआ दरगह पैधा जाइ जीउ ॥
जो अपने ईश्वर को प्रसन्न कर लेता है, वह सम्मानपूर्वक उसकी उपस्थिति में जाता है।
ਐਥੈ ਸੁਖੁ ਮੁਖੁ ਉਜਲਾ ਇਕੋ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਜੀਉ ॥
ऐथै सुखु मुखु उजला इको नामु धिआइ जीउ ॥
एक परमात्मा के नाम का ध्यान करने से उसे इहलोक में सुख एवं परलोक में मुख उज्ज्वल हुआ है।
ਆਦਰੁ ਦਿਤਾ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮਿ ਗੁਰੁ ਸੇਵਿਆ ਸਤ ਭਾਇ ਜੀਉ ॥੪॥
आदरु दिता पारब्रहमि गुरु सेविआ सत भाइ जीउ ॥४॥
उसने यहाँ सच्चे प्रेम से गुरु की बड़ी सेवा की है, इसलिए परमात्मा ने इतना आदर दिया है॥ ४ ॥
ਥਾਨ ਥਨੰਤਰਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸਰਬ ਜੀਆ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ਜੀਉ ॥
थान थनंतरि रवि रहिआ सरब जीआ प्रतिपाल जीउ ॥
सब जीवों का पोषण करने वाला परमात्मा हर जगह पर बसा हुआ है।
ਸਚੁ ਖਜਾਨਾ ਸੰਚਿਆ ਏਕੁ ਨਾਮੁ ਧਨੁ ਮਾਲ ਜੀਉ ॥
सचु खजाना संचिआ एकु नामु धनु माल जीउ ॥
मैंने भी सत्य-नाम का खजाना संचित कर लिया है और यह नाम रूपी धन-माल ही मेरे साथ जाएगा।
ਮਨ ਤੇ ਕਬਹੁ ਨ ਵੀਸਰੈ ਜਾ ਆਪੇ ਹੋਇ ਦਇਆਲ ਜੀਉ ॥੫॥
मन ते कबहु न वीसरै जा आपे होइ दइआल जीउ ॥५॥
यदि वह स्वयं दयालु हो जाए तो वह मन से कभी भी नहीं भूलता ॥ ५ ॥