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ਆਪੇ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪਿ ਸਬਦਿ ਨਿਵਾਜਿਆ ॥੫॥
तूने ही यह संसार उत्पन्न किया है, तू स्वयं ही पैदा करके नाश कर देता है और शब्द द्वारा कई जीवों को तू सत्कृत करता है॥ ५॥
ਦੇਹੀ ਭਸਮ ਰੁਲਾਇ ਨ ਜਾਪੀ ਕਹ ਗਇਆ ॥
पता नहीं लगता कि जीव अपनी देहि को मिट्टी में मिलाकर कहीं चला गया है ?
ਆਪੇ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ਸੋ ਵਿਸਮਾਦੁ ਭਇਆ ॥੬॥
परमात्मा स्वयं ही सब में समाया हुआ है और यह बहुत बड़ा आश्चर्य है॥ ६॥
ਤੂੰ ਨਾਹੀ ਪ੍ਰਭ ਦੂਰਿ ਜਾਣਹਿ ਸਭ ਤੂ ਹੈ ॥
हे प्रभु ! तू कहीं दूर नहीं बसता, सभी जानते हैं कि एक तू ही है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਵੇਖਿ ਹਦੂਰਿ ਅੰਤਰਿ ਭੀ ਤੂ ਹੈ ॥੭॥
गुरमुख तुझे अपने समक्ष ही देखते हैं और सभी के हृदय में तू ही बसता है॥ ७॥
ਮੈ ਦੀਜੈ ਨਾਮ ਨਿਵਾਸੁ ਅੰਤਰਿ ਸਾਂਤਿ ਹੋਇ ॥
हे मालिक ! मुझे अपने नाम में निवास दीजिए ताकि मेरे मन में शांति प्राप्त हो।
ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਨਾਨਕ ਦਾਸੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਤਿ ਦੇਇ ॥੮॥੩॥੫॥
दास नानक का कथन है कि यदि सतगुरु सदुपदेश दे तो वह निरंकार का गुणगान करता रहे॥ ८॥ ३॥ ५॥
ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੩ ਘਰੁ ੧ ਅਸਟਪਦੀਆ
रागु सूही महला ३ घरु १ असटपदीआ
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਨਾਮੈ ਹੀ ਤੇ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹੋਆ ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਨਾਮੁ ਨ ਜਾਪੈ ॥
हे भाई ! परमेश्वर के नाम से ही सबकुछ उत्पन्न हुआ है, परन्तु सतगुरु के बिना नाम का ज्ञान नहीं होता।
ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਮਹਾ ਰਸੁ ਮੀਠਾ ਬਿਨੁ ਚਾਖੇ ਸਾਦੁ ਨ ਜਾਪੈ ॥
गुरु का शब्द मीठा महारस है लेकिन चखे बिना इसका स्वाद पता नहीं लगता।
ਕਉਡੀ ਬਦਲੈ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ਚੀਨਸਿ ਨਾਹੀ ਆਪੈ ॥
जिस इन्सान ने कौड़ियों के भाव अपना अमूल्य जन्म व्यर्थ ही गंवा लिया है, वह अपने आत्मस्वरूप को नहीं जानता।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਤਾ ਏਕੋ ਜਾਣੈ ਹਉਮੈ ਦੁਖੁ ਨ ਸੰਤਾਪੈ ॥੧॥
यदि वह गुरुमुख बन जाए तो वह एक परमात्मा को ही जाने और उसे अहम् रूपी दुख पीड़ित न करे॥ १॥
ਬਲਿਹਾਰੀ ਗੁਰ ਅਪਣੇ ਵਿਟਹੁ ਜਿਨਿ ਸਾਚੇ ਸਿਉ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥
मैं अपने गुरु पर बलिहारी जाता हूँ, जिसने सत्य (प्रभु) से मेरी लगन लगा दी है!
ਸਬਦੁ ਚੀਨ੍ਹ੍ਹਿ ਆਤਮੁ ਪਰਗਾਸਿਆ ਸਹਜੇ ਰਹਿਆ ਸਮਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
शब्द को पहचान कर मन में प्रकाश हो गया और मैं सहज ही सत्य में विलीन रहता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਗਾਵੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਬਦੁ ਬੀਚਾਰੇ ॥
गुरुमुख परमात्मा के ही गुण गाता रहता है, वह परम-सत्य को ही समझाता है और शब्द का ही चिंतन करता रहता है।
ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਗੁਰ ਤੇ ਉਪਜੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਕਾਰਜ ਸਵਾਰੇ ॥
प्राण एवं शरीर सब गुरु से ही उत्पन्न होते हैं और गुरुमुख अपने कार्य संवार लेता है।
ਮਨਮੁਖਿ ਅੰਧਾ ਅੰਧੁ ਕਮਾਵੈ ਬਿਖੁ ਖਟੇ ਸੰਸਾਰੇ ॥
मनमुखी अंधा आदमी अंधे कार्य ही करता है और वह संसार में माया रूपी विष ही अर्जित करता है।
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਸਦਾ ਦੁਖੁ ਪਾਏ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਅਤਿ ਪਿਆਰੇ ॥੨॥
अत्यंत प्यारे गुरु के बिना वह माया के मोह में फँसकर सदा ही दुख प्राप्त करता है॥ २॥
ਸੋਈ ਸੇਵਕੁ ਜੇ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵੇ ਚਾਲੈ ਸਤਿਗੁਰ ਭਾਏ ॥
वही सच्चा सेवक है, जो सतगुरु की सेवा करता है और गुरु की रज़ा में चलता है।
ਸਾਚਾ ਸਬਦੁ ਸਿਫਤਿ ਹੈ ਸਾਚੀ ਸਾਚਾ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥
परमात्मा का नाम सत्य है और उसकी कीर्ति भी सत्य है, अतः यह उस सत्य को ही मन में बसाता है।
ਸਚੀ ਬਾਣੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਖੈ ਹਉਮੈ ਵਿਚਹੁ ਜਾਏ ॥
गुरुमुख तो सच्ची वाणी ही उच्चरित करता है और उसके अन्तर्मन में से अहंत्व दूर हो जाता है।
ਆਪੇ ਦਾਤਾ ਕਰਮੁ ਹੈ ਸਾਚਾ ਸਾਚਾ ਸਬਦੁ ਸੁਣਾਏ ॥੩॥
सतगुरु स्वयं ही दाता है और उसकी कृपा भी सत्य है। वह हमेशा सच्चा शब्द ही सुनाता है॥ ३॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਘਾਲੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਖਟੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਜਪਾਏ ॥
गुरुमुख नाम की साधना करता है, नाम धन संचित करता है और दूसरों से भी परमात्मा के नाम का ही जाप करवाता है।
ਸਦਾ ਅਲਿਪਤੁ ਸਾਚੈ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ਗੁਰ ਕੈ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਏ ॥
वह सदा माया से निर्लिप्त रहकर सत्य के रंग में रंगा रहता है और गुरु के प्रेम द्वारा सहजावस्था में लीन रहता है।
ਮਨਮੁਖੁ ਸਦ ਹੀ ਕੂੜੋ ਬੋਲੈ ਬਿਖੁ ਬੀਜੈ ਬਿਖੁ ਖਾਏ ॥
लेकिन मनमुखी सदैव झूठ ही बोलता है, माया रूपी विष बोता है और उस विष को ही खाता है।
ਜਮਕਾਲਿ ਬਾਧਾ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਦਾਧਾ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਕਵਣੁ ਛਡਾਏ ॥੪॥
यह मृत्यु के बन्धन में फंसकर तृष्णा की अग्नि में ही जलता रहता है। गुरु के बिना उसे मृत्यु से कौन छुड़ा सकता है॥ ४॥
ਸਚਾ ਤੀਰਥੁ ਜਿਤੁ ਸਤ ਸਰਿ ਨਾਵਣੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਪਿ ਬੁਝਾਏ ॥
सतगुर ही तीर्थ है, जहाँ सत्य (नाम) रूपी सरोवर में स्नान होता है लेकिन गुरु स्वयं ही यह सूझ देता है।
ਅਠਸਠਿ ਤੀਰਥ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਦਿਖਾਏ ਤਿਤੁ ਨਾਤੈ ਮਲੁ ਜਾਏ ॥
गुरु के शब्द ने ही अड़सठ तीर्थ दिखा दिए हैं, जहाँ स्नान करने से अहंकार रूपी मैल दूर हो जाती है।
ਸਚਾ ਸਬਦੁ ਸਚਾ ਹੈ ਨਿਰਮਲੁ ਨਾ ਮਲੁ ਲਗੈ ਨ ਲਾਏ ॥
शब्द-गुरु शाश्वत है और वह निर्मल तीर्थ है, जिसे कोई मैल नहीं लगती है और न ही माया उसे मैल लगाती है।
ਸਚੀ ਸਿਫਤਿ ਸਚੀ ਸਾਲਾਹ ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਏ ॥੫॥
सच्ची महिमा-स्तुति पूर्ण गुरु से ही प्राप्त होती है॥ ५॥
ਤਨੁ ਮਨੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹਰਿ ਤਿਸੁ ਕੇਰਾ ਦੁਰਮਤਿ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਏ ॥
यह तन एवं मन सबकुछ उस परमात्मा का दिया हुआ है परन्तु दुर्बुद्धि वाले व्यक्ति से यह कहा नहीं जाता।
ਹੁਕਮੁ ਹੋਵੈ ਤਾ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਵੈ ਹਉਮੈ ਵਿਚਹੁ ਜਾਏ ॥
जब ईश्वर का हुक्म होता है तो उस की बुद्धि निर्मल हो जाती है एवं उसके मन में से अहंत्व दूर हो जाता है।
ਗੁਰ ਕੀ ਸਾਖੀ ਸਹਜੇ ਚਾਖੀ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਅਗਨਿ ਬੁਝਾਏ ॥
जिस व्यक्ति ने गुरु की शिक्षा सहज ही धारण की है, उसकी तृषाग्नि बुझ गई है।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਰਾਤਾ ਸਹਜੇ ਮਾਤਾ ਸਹਜੇ ਰਹਿਆ ਸਮਾਏ ॥੬॥
वह गुरु के शब्द द्वारा प्रभु-प्रेम में मग्न हुआ सहज ही उस में समाया रहता है॥ ६॥