Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 725

Page 725

ਆਪੇ ਜਾਣੈ ਕਰੇ ਆਪਿ ਜਿਨਿ ਵਾੜੀ ਹੈ ਲਾਈ ॥੧॥ जिस प्रभु रूपी बागबां ने यह जगत् रूपी वाटिका लगाई है, वह स्वयं ही इस बारे जानता है और स्वयं ही इसकी देखरेख करता है॥ १॥
ਰਾਇਸਾ ਪਿਆਰੇ ਕਾ ਰਾਇਸਾ ਜਿਤੁ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥ उस प्यारे प्रभु का गुणगान करो, जिससे सदा सुख प्राप्त होता है॥ रहाउ॥
ਜਿਨਿ ਰੰਗਿ ਕੰਤੁ ਨ ਰਾਵਿਆ ਸਾ ਪਛੋ ਰੇ ਤਾਣੀ ॥ जिन जीव-स्त्रियों ने प्रेम से पति-प्रभु को याद नहीं किया, वे अन्त में पछताती रहती हैं।
ਹਾਥ ਪਛੋੜੈ ਸਿਰੁ ਧੁਣੈ ਜਬ ਰੈਣਿ ਵਿਹਾਣੀ ॥੨॥ जब उनकी जीवन रूपी रात्रि बीत जाती है तो वे अपने हाथ मलती हैं और अपना सिर पटकती हैं॥ २ ॥
ਪਛੋਤਾਵਾ ਨਾ ਮਿਲੈ ਜਬ ਚੂਕੈਗੀ ਸਾਰੀ ॥ जब उनका सारा जीवन ही खत्म हो जाएगा तो फिर पछताने से कुछ भी हासिल नहीं होगा।
ਤਾ ਫਿਰਿ ਪਿਆਰਾ ਰਾਵੀਐ ਜਬ ਆਵੈਗੀ ਵਾਰੀ ॥੩॥ उस प्यारे प्रभु को वे फिर तब ही याद करेंगी, जब उनकी जीवन की बारी आएगी।॥ ३॥
ਕੰਤੁ ਲੀਆ ਸੋਹਾਗਣੀ ਮੈ ਤੇ ਵਧਵੀ ਏਹ ॥ हे सखी ! जिस सूहागिन जीव-स्त्री ने अपना पति-प्रभु पा लिया है, वह मुझ से सर्वोत्तम है।
ਸੇ ਗੁਣ ਮੁਝੈ ਨ ਆਵਨੀ ਕੈ ਜੀ ਦੋਸੁ ਧਰੇਹ ॥੪॥ उस जैसे शुभ-गुण मुझ में नहीं हैं, फिर मैं किसे दोष दूँ॥ ४॥
ਜਿਨੀ ਸਖੀ ਸਹੁ ਰਾਵਿਆ ਤਿਨ ਪੂਛਉਗੀ ਜਾਏ ॥ जिन सखियों ने पति-प्रभु पा लिया है, मैं उन से जाकर पूछूंगी।
ਪਾਇ ਲਗਉ ਬੇਨਤੀ ਕਰਉ ਲੇਉਗੀ ਪੰਥੁ ਬਤਾਏ ॥੫॥ मैं उनके चरणों में पडूंगी उनसे विनती करूँगी और उनसे पति-प्रभु के मिलन का मार्ग पूछ लूंगी ॥ ५ ॥
ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣੈ ਨਾਨਕਾ ਭਉ ਚੰਦਨੁ ਲਾਵੈ ॥ हे नानक ! जो जीव-स्त्री प्रभु का हुक्म पहचान लेती है, वह उसका भय रूपी चंदन अपने शरीर को लगा लेती है।
ਗੁਣ ਕਾਮਣ ਕਾਮਣਿ ਕਰੈ ਤਉ ਪਿਆਰੇ ਕਉ ਪਾਵੈ ॥੬॥ जब वह शुभ गुण ग्रहण करने का जादू टोना करती है तो वह अपने प्यारे प्रभु को पा लेती है॥ ६॥
ਜੋ ਦਿਲਿ ਮਿਲਿਆ ਸੁ ਮਿਲਿ ਰਹਿਆ ਮਿਲਿਆ ਕਹੀਐ ਰੇ ਸੋਈ ॥ जो दिल प्रभु से मिला है, वह सदा ही उससे मिला रहता है और उसे वास्तव में प्रभु से मिला कहा जाता है।
ਜੇ ਬਹੁਤੇਰਾ ਲੋਚੀਐ ਬਾਤੀ ਮੇਲੁ ਨ ਹੋਈ ॥੭॥ यदि कोई व्यक्ति अधिकतर लालसा करता है तो सिर्फ बातों से उसका प्रभु से मेल नहीं होता ॥ ७ ॥
ਧਾਤੁ ਮਿਲੈ ਫੁਨਿ ਧਾਤੁ ਕਉ ਲਿਵ ਲਿਵੈ ਕਉ ਧਾਵੈ ॥ जैसे धातु पुनः धातु में ही मिल जाती है, वैसे ही मनुष्य का प्रेम प्रभु के प्रेम से मिलने के लिए दौड़ता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਜਾਣੀਐ ਤਉ ਅਨਭਉ ਪਾਵੈ ॥੮॥ गुरु की कृपा से जब मनुष्य इस बात को जान लेता है तो वह प्रभु को पा लेता है॥ ८ ॥
ਪਾਨਾ ਵਾੜੀ ਹੋਇ ਘਰਿ ਖਰੁ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣੈ ॥ यदि घर में पान की बगीची लगी हुई तो भी गधा उसकी कद्र को नहीं जानता।
ਰਸੀਆ ਹੋਵੈ ਮੁਸਕ ਕਾ ਤਬ ਫੂਲੁ ਪਛਾਣੈ ॥੯॥ यदि इन्सान सुगन्धि का रसिया हो तो वह फूल की कद्र को पहचान लेता है॥ ६ ॥
ਅਪਿਉ ਪੀਵੈ ਜੋ ਨਾਨਕਾ ਭ੍ਰਮੁ ਭ੍ਰਮਿ ਸਮਾਵੈ ॥ हे नानक ! जो व्यक्ति नाम रूपी अमृत पीता है, उसके मन का भ्रम समाप्त हो जाता है।
ਸਹਜੇ ਸਹਜੇ ਮਿਲਿ ਰਹੈ ਅਮਰਾ ਪਦੁ ਪਾਵੈ ॥੧੦॥੧॥ वह सहज ही प्रभु से मिला रहता है और अमर पदवी पा लेता है॥ १० ॥ १॥
ਤਿਲੰਗ ਮਹਲਾ ੪ ॥ तिलंग महला ४ ॥
ਹਰਿ ਕੀਆ ਕਥਾ ਕਹਾਣੀਆ ਗੁਰਿ ਮੀਤਿ ਸੁਣਾਈਆ ॥ हरि की कथा-कहानियां मुझे मित्र गुरु ने सुनाई हैं।
ਬਲਿਹਾਰੀ ਗੁਰ ਆਪਣੇ ਗੁਰ ਕਉ ਬਲਿ ਜਾਈਆ ॥੧॥ मैं अपने गुरु पर बलिहारी हूँ और उस पर ही कुर्बान जाता हूँ॥ १॥
ਆਇ ਮਿਲੁ ਗੁਰਸਿਖ ਆਇ ਮਿਲੁ ਤੂ ਮੇਰੇ ਗੁਰੂ ਕੇ ਪਿਆਰੇ ॥ ਰਹਾਉ ॥ हे गुरु के शिष्य ! मुझे आकर मिल। हे मेरे गुरु के प्यारे ! तू मुझे आकर मिल॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਹਰਿ ਭਾਵਦੇ ਸੇ ਗੁਰੂ ਤੇ ਪਾਏ ॥ हरि के गुण हरि को बहुत अच्छे लगते हैं और वे गुण मैंने गुरु से पाए हैं।
ਜਿਨ ਗੁਰ ਕਾ ਭਾਣਾ ਮੰਨਿਆ ਤਿਨ ਘੁਮਿ ਘੁਮਿ ਜਾਏ ॥੨॥ जिन्होंने गुरु की रज़ा को खुशी-खुशी माना है, मैं उन पर हमेशा कुर्बान जाता हूँ॥ २॥
ਜਿਨ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਿਆਰਾ ਦੇਖਿਆ ਤਿਨ ਕਉ ਹਉ ਵਾਰੀ ॥ जिन्होंने प्यारे सतिगुरु के दर्शन किए हैं, मैं उन पर बार-बार कुर्बान जाता हूँ।
ਜਿਨ ਗੁਰ ਕੀ ਕੀਤੀ ਚਾਕਰੀ ਤਿਨ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥੩॥ जिन्होंने गुरु की चाकरी की है, उन पर मैं सदैव बलिहारी हूँ॥ ३॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਤੇਰਾ ਨਾਮੁ ਹੈ ਦੁਖ ਮੇਟਣਹਾਰਾ ॥ हे प्रभु! तेरा नाम सब दुःख मिटाने वाला है।
ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤੇ ਪਾਈਐ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਿਸਤਾਰਾ ॥੪॥ यह (नाम) गुरु की सेवा करने से पाया जाता है तथा गुरुमुख बनने से आदमी का भवसागर से उद्धार हो जाता है॥ ४॥
ਜੋ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਦੇ ਤੇ ਜਨ ਪਰਵਾਨਾ ॥ जो व्यक्ति हरि-नाम का ध्यान करते हैं वे प्रभु को परवान हो जाते हैं।
ਤਿਨ ਵਿਟਹੁ ਨਾਨਕੁ ਵਾਰਿਆ ਸਦਾ ਸਦਾ ਕੁਰਬਾਨਾ ॥੫॥ नानक उन पर न्योछावर है और हमेशा ही कुर्बान जाता है। ५॥
ਸਾ ਹਰਿ ਤੇਰੀ ਉਸਤਤਿ ਹੈ ਜੋ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵੈ ॥ हे हरि ! वही तेरी उस्तति है, जो तुझे अच्छी लगती है।
ਜੋ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਿਆਰਾ ਸੇਵਦੇ ਤਿਨ ਹਰਿ ਫਲੁ ਪਾਵੈ ॥੬॥ जो गुरुमुख प्यारे प्रभु की सेवा करते हैं, वे फल पा लेते हैं।॥ ६॥
ਜਿਨਾ ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਪਿਰਹੜੀ ਤਿਨਾ ਜੀਅ ਪ੍ਰਭ ਨਾਲੇ ॥ जिन लोगों का हरि से प्रेम हो जाता है उनके दिल प्रभु से ही मिले रहते हैं।
ਓਇ ਜਪਿ ਜਪਿ ਪਿਆਰਾ ਜੀਵਦੇ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲੇ ॥੭॥ वे अपने प्यारे प्रभु को जप-जप कर ही जिंदा रहते हैं और हरि का नाम ही याद करते रहते हैं ॥ ७॥
ਜਿਨ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਿਆਰਾ ਸੇਵਿਆ ਤਿਨ ਕਉ ਘੁਮਿ ਜਾਇਆ ॥ जिन गुरुमुखों ने प्यारे प्रभु का सिमरन किया है, मैं उन पर बार-बार कुर्बान जाता हूँ।
ਓਇ ਆਪਿ ਛੁਟੇ ਪਰਵਾਰ ਸਿਉ ਸਭੁ ਜਗਤੁ ਛਡਾਇਆ ॥੮॥ वे अपने परिवार सहित स्वयं छूट गए हैं और उन्होंने सारे जगत् को भी छुड़ा लिया है॥ ८ ॥
ਗੁਰਿ ਪਿਆਰੈ ਹਰਿ ਸੇਵਿਆ ਗੁਰੁ ਧੰਨੁ ਗੁਰੁ ਧੰਨੋ ॥ मेरे प्यारे गुरु ने हरि का सिमरन किया है, इसलिए मेरा गुरु धन्य-धन्य है।
ਗੁਰਿ ਹਰਿ ਮਾਰਗੁ ਦਸਿਆ ਗੁਰ ਪੁੰਨੁ ਵਡ ਪੁੰਨੋ ॥੯॥ गुरु ने मुझे हरि का मार्ग बताया है, गुरु ने मुझ पर बड़ा उपकार किया है॥९॥


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