Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 722

Page 722

ਮੇਰੈ ਕੰਤ ਨ ਭਾਵੈ ਚੋਲੜਾ ਪਿਆਰੇ ਕਿਉ ਧਨ ਸੇਜੈ ਜਾਏ ॥੧॥ मेरै कंत न भावै चोलड़ा पिआरे किउ धन सेजै जाए ॥१॥ मेरे पति, परमात्मा, आत्मवधू इस कर्म और जीवन के वस्त्र से संतुष्ट नहीं हैं। ऐसे में आत्मवधु उनके साथ सच्चे मिलन की आशा कैसे रख सकती है?॥ १॥
ਹੰਉ ਕੁਰਬਾਨੈ ਜਾਉ ਮਿਹਰਵਾਨਾ ਹੰਉ ਕੁਰਬਾਨੈ ਜਾਉ ॥ हंउ कुरबानै जाउ मिहरवाना हंउ कुरबानै जाउ ॥ हे मेरे दयालु प्रभु ! मैं आप पर बलिहारी जाता हूँ।
ਹੰਉ ਕੁਰਬਾਨੈ ਜਾਉ ਤਿਨਾ ਕੈ ਲੈਨਿ ਜੋ ਤੇਰਾ ਨਾਉ ॥ हंउ कुरबानै जाउ तिना कै लैनि जो तेरा नाउ ॥ मैं सदैव ही उन पर बलिहारी जाता हूँ जो आपका नाम लेते हैं।
ਲੈਨਿ ਜੋ ਤੇਰਾ ਨਾਉ ਤਿਨਾ ਕੈ ਹੰਉ ਸਦ ਕੁਰਬਾਨੈ ਜਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ लैनि जो तेरा नाउ तिना कै हंउ सद कुरबानै जाउ ॥१॥ रहाउ ॥ मैं अपने आप को उन भक्तों को समर्पित करता हूँ जो श्रद्धापूर्वक आपके नाम का ध्यान करते हैं। ॥ १॥ रहाउ॥
ਕਾਇਆ ਰੰਙਣਿ ਜੇ ਥੀਐ ਪਿਆਰੇ ਪਾਈਐ ਨਾਉ ਮਜੀਠ ॥ काइआ रंङणि जे थीऐ पिआरे पाईऐ नाउ मजीठ ॥ हे मेरे प्यारे ! यदि यह काया ललारी की भट्टी बन जाए और उसमें नाम रूपी मजीठ डाला जाए।
ਰੰਙਣ ਵਾਲਾ ਜੇ ਰੰਙੈ ਸਾਹਿਬੁ ਐਸਾ ਰੰਗੁ ਨ ਡੀਠ ॥੨॥ रंङण वाला जे रंङै साहिबु ऐसा रंगु न डीठ ॥२॥ यदि रंगने वाले मेरे प्रभु स्वयं मेरे तन रूपी चोले को रंगे तो उसे ऐसा सुन्दर रंग चढ़ जाता है, जो पहले कभी देखा नहीं होता।॥२॥
ਜਿਨ ਕੇ ਚੋਲੇ ਰਤੜੇ ਪਿਆਰੇ ਕੰਤੁ ਤਿਨਾ ਕੈ ਪਾਸਿ ॥ जिन के चोले रतड़े पिआरे कंतु तिना कै पासि ॥ हे प्यारे ! जिन जीव-स्त्रियों के तन रूपी चोले नाम रूपी रंग में रंगे हुए हैं, उनके पति-प्रभु सर्वदा उनके साथ रहते हैं।
ਧੂੜਿ ਤਿਨਾ ਕੀ ਜੇ ਮਿਲੈ ਜੀ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਕੀ ਅਰਦਾਸਿ ॥੩॥ धूड़ि तिना की जे मिलै जी कहु नानक की अरदासि ॥३॥ नानक की प्रार्थना है कि मुझे उनकी चरण-धूलि मिल जाए॥ ३॥
ਆਪੇ ਸਾਜੇ ਆਪੇ ਰੰਗੇ ਆਪੇ ਨਦਰਿ ਕਰੇਇ ॥ आपे साजे आपे रंगे आपे नदरि करेइ ॥ प्रभु स्वयं ही जीव-स्त्रियों को पैदा करते हैं, स्वयं ही उन्हें नाम रूपी रंग में रगते हैं और स्वयं ही उन पर अपनी कृपा दृष्टि करते हैं।
ਨਾਨਕ ਕਾਮਣਿ ਕੰਤੈ ਭਾਵੈ ਆਪੇ ਹੀ ਰਾਵੇਇ ॥੪॥੧॥੩॥ नानक कामणि कंतै भावै आपे ही रावेइ ॥४॥१॥३॥ हे नानक ! जब जीव-स्त्री अपने पति-प्रभु को अच्छी लगने लगती है तो वह स्वयं ही उसे अपने साथ मिला लेते हैं॥ ४ ॥ १॥ ३ ॥
ਤਿਲੰਗ ਮਃ ੧ ॥ तिलंग मः १ ॥ राग तिलंग, प्रथम गुरु: १ ॥
ਇਆਨੜੀਏ ਮਾਨੜਾ ਕਾਇ ਕਰੇਹਿ ॥ इआनड़ीए मानड़ा काइ करेहि ॥ हे नादान जीव-स्त्री ! तू घमण्ड क्यों करती है ?
ਆਪਨੜੈ ਘਰਿ ਹਰਿ ਰੰਗੋ ਕੀ ਨ ਮਾਣੇਹਿ ॥ आपनड़ै घरि हरि रंगो की न माणेहि ॥ तू अपने हृदय-घर में विद्यमान हरि का प्रेम क्यों नहीं लेती ?
ਸਹੁ ਨੇੜੈ ਧਨ ਕੰਮਲੀਏ ਬਾਹਰੁ ਕਿਆ ਢੂਢੇਹਿ ॥ सहु नेड़ै धन कमलीए बाहरु किआ ढूढेहि ॥ हे बावली स्त्री ! तेरे पति-प्रभु तेरे पास ही है, तेरे हृदय में रहते हैं, तू उसे बाहर क्यों ढूंढती है ?
ਭੈ ਕੀਆ ਦੇਹਿ ਸਲਾਈਆ ਨੈਣੀ ਭਾਵ ਕਾ ਕਰਿ ਸੀਗਾਰੋ ॥ भै कीआ देहि सलाईआ नैणी भाव का करि सीगारो ॥ अपने नयनों में प्रभु के डर रूपी सुरमे की सिलाइयाँ डाल और प्रभु-प्रेम का श्रृंगार कर।
ਤਾ ਸੋਹਾਗਣਿ ਜਾਣੀਐ ਲਾਗੀ ਜਾ ਸਹੁ ਧਰੇ ਪਿਆਰੋ ॥੧॥ ता सोहागणि जाणीऐ लागी जा सहु धरे पिआरो ॥१॥ यदि पति-प्रभु जीव-स्त्री से प्रेम करेगा तो ही वह सुहागिन जानी जाएगी॥ १॥
ਇਆਣੀ ਬਾਲੀ ਕਿਆ ਕਰੇ ਜਾ ਧਨ ਕੰਤ ਨ ਭਾਵੈ ॥ इआणी बाली किआ करे जा धन कंत न भावै ॥ नादान एवं नासमझ जीव-स्त्री क्या कर सकती है, यदि पति प्रभु उसे पसंद ही न करे।
ਕਰਣ ਪਲਾਹ ਕਰੇ ਬਹੁਤੇਰੇ ਸਾ ਧਨ ਮਹਲੁ ਨ ਪਾਵੈ ॥ करण पलाह करे बहुतेरे सा धन महलु न पावै ॥ ऐसी जीव-स्त्री कितने ही करुणा-प्रलाप करती है लेकिन पति-प्रभु की अनुकंपा के बिना उसका महल प्राप्त नहीं करती।
ਵਿਣੁ ਕਰਮਾ ਕਿਛੁ ਪਾਈਐ ਨਾਹੀ ਜੇ ਬਹੁਤੇਰਾ ਧਾਵੈ ॥ विणु करमा किछु पाईऐ नाही जे बहुतेरा धावै ॥ ईश्वर की कृपा के बिना कुछ भी प्राप्त नहीं होता, भले ही वह इधर-उधर कितनी ही भागदौड़ करती रहे।
ਲਬ ਲੋਭ ਅਹੰਕਾਰ ਕੀ ਮਾਤੀ ਮਾਇਆ ਮਾਹਿ ਸਮਾਣੀ ॥ लब लोभ अहंकार की माती माइआ माहि समाणी ॥ लालच,लोभ एवं अहंकार में मग्न हुई वह माया में ही समाई रहती है।
ਇਨੀ ਬਾਤੀ ਸਹੁ ਪਾਈਐ ਨਾਹੀ ਭਈ ਕਾਮਣਿ ਇਆਣੀ ॥੨॥ इनी बाती सहु पाईऐ नाही भई कामणि इआणी ॥२॥ जीव-स्त्री नासमझ ही बनी हुई है और उसे इन बातों से स्वामी-प्रभु प्राप्त नहीं होते।॥ २॥
ਜਾਇ ਪੁਛਹੁ ਸੋਹਾਗਣੀ ਵਾਹੈ ਕਿਨੀ ਬਾਤੀ ਸਹੁ ਪਾਈਐ ॥ जाइ पुछहु सोहागणी वाहै किनी बाती सहु पाईऐ ॥ चाहे सुहागिन स्त्रियों से जाकर पूछ लो कि उन्होंने किन बातों से अपने पति-प्रभु को पाया है।
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰੇ ਸੋ ਭਲਾ ਕਰਿ ਮਾਨੀਐ ਹਿਕਮਤਿ ਹੁਕਮੁ ਚੁਕਾਈਐ ॥ जो किछु करे सो भला करि मानीऐ हिकमति हुकमु चुकाईऐ ॥ जो कुछ प्रभु करते हैं, उसे भला समझ कर स्वीकार करो और अपनी चालाकी व स्वेच्छाचारिता छोड़ दो।
ਜਾ ਕੈ ਪ੍ਰੇਮਿ ਪਦਾਰਥੁ ਪਾਈਐ ਤਉ ਚਰਣੀ ਚਿਤੁ ਲਾਈਐ ॥ जा कै प्रेमि पदारथु पाईऐ तउ चरणी चितु लाईऐ ॥ उस प्रभु के चरणों में चित्त लगाना चाहिए, जिसके प्रेम से मोक्ष पदार्थ मिलता है।
ਸਹੁ ਕਹੈ ਸੋ ਕੀਜੈ ਤਨੁ ਮਨੋ ਦੀਜੈ ਐਸਾ ਪਰਮਲੁ ਲਾਈਐ ॥ सहु कहै सो कीजै तनु मनो दीजै ऐसा परमलु लाईऐ ॥ जो प्रभु कहते हैं, वही कार्य करो। ऐसी सुगन्धि लगाओ कि अपना तन एवं मन अर्पण कर दो ।
ਏਵ ਕਹਹਿ ਸੋਹਾਗਣੀ ਭੈਣੇ ਇਨੀ ਬਾਤੀ ਸਹੁ ਪਾਈਐ ॥੩॥ एव कहहि सोहागणी भैणे इनी बाती सहु पाईऐ ॥३॥ हे बहन ! सुहागिन स्त्री इस तरह ही कहती है कि इन बातों से ही पति प्रभु मिलता है। ३॥
ਆਪੁ ਗਵਾਈਐ ਤਾ ਸਹੁ ਪਾਈਐ ਅਉਰੁ ਕੈਸੀ ਚਤੁਰਾਈ ॥ आपु गवाईऐ ता सहु पाईऐ अउरु कैसी चतुराई ॥ यदि अहंकार को दूर कर दिया जाए तो ही पति प्रभु मिलते हैं, इसके अतिरिक्त कोई अन्य चतुराई व्यर्थ है।
ਸਹੁ ਨਦਰਿ ਕਰਿ ਦੇਖੈ ਸੋ ਦਿਨੁ ਲੇਖੈ ਕਾਮਣਿ ਨਉ ਨਿਧਿ ਪਾਈ ॥ सहु नदरि करि देखै सो दिनु लेखै कामणि नउ निधि पाई ॥ वह दिन वास्तव में धन्य होता है जब पति-प्रभु अपनी कृपा-दृष्टि करते हैं तब ऐसा अनुभव होता है जैसे उसे समस्त नौ खजाने एक साथ प्राप्त हो गए हों।
ਆਪਣੇ ਕੰਤ ਪਿਆਰੀ ਸਾ ਸੋਹਾਗਣਿ ਨਾਨਕ ਸਾ ਸਭਰਾਈ ॥ आपणे कंत पिआरी सा सोहागणि नानक सा सभराई ॥ हे नानक ! जो जीव-स्त्री अपने पति-प्रभु को प्यारी लगती है, वही सुहागिन है और वह सब में शोभा प्राप्त करती है।
ਐਸੈ ਰੰਗਿ ਰਾਤੀ ਸਹਜ ਕੀ ਮਾਤੀ ਅਹਿਨਿਸਿ ਭਾਇ ਸਮਾਣੀ ॥ ऐसै रंगि राती सहज की माती अहिनिसि भाइ समाणी ॥ जो प्रभु प्रेम में रंगी हुई है और सहजावस्था में रात दिन प्रभु-प्रेम में लीन रहती है,
ਸੁੰਦਰਿ ਸਾਇ ਸਰੂਪ ਬਿਚਖਣਿ ਕਹੀਐ ਸਾ ਸਿਆਣੀ ॥੪॥੨॥੪॥ सुंदरि साइ सरूप बिचखणि कहीऐ सा सिआणी ॥४॥२॥४॥ वही सुन्दर, रूपवान, विलक्षण स्वरूप वाली एवं चतुर कहलाती है॥ ४॥ २॥ ४॥
ਤਿਲੰਗ ਮਹਲਾ ੧ ॥ तिलंग महला १ ॥ राग तिलंग, प्रथम गुरु: १ ॥
ਜੈਸੀ ਮੈ ਆਵੈ ਖਸਮ ਕੀ ਬਾਣੀ ਤੈਸੜਾ ਕਰੀ ਗਿਆਨੁ ਵੇ ਲਾਲੋ ॥ जैसी मै आवै खसम की बाणी तैसड़ा करी गिआनु वे लालो ॥ हे भाई लालो ! मेरे मालिक-प्रभु का वाणी रूप में मुझे जो ज्ञान हुआ है, वैसा ज्ञान मैं तुझे वर्णित करता हूँ।
ਪਾਪ ਕੀ ਜੰਞ ਲੈ ਕਾਬਲਹੁ ਧਾਇਆ ਜੋਰੀ ਮੰਗੈ ਦਾਨੁ ਵੇ ਲਾਲੋ ॥ पाप की जंञ लै काबलहु धाइआ जोरी मंगै दानु वे लालो ॥ हे लालो! पाप एवं जुल्म की बारात लेकर बाबर काबुल से भारत आया है और बलपूर्वक हमारी भूमि को अपनी शादी का उपहार समझकर मांग रहा है
ਸਰਮੁ ਧਰਮੁ ਦੁਇ ਛਪਿ ਖਲੋਏ ਕੂੜੁ ਫਿਰੈ ਪਰਧਾਨੁ ਵੇ ਲਾਲੋ ॥ सरमु धरमु दुइ छपि खलोए कूड़ु फिरै परधानु वे लालो ॥ हे लालो ! शर्म एवं धर्म दोनों ही लुप्त हो गए हैं और झूठ प्रधान बनकर फिर रहा है।
ਕਾਜੀਆ ਬਾਮਣਾ ਕੀ ਗਲ ਥਕੀ ਅਗਦੁ ਪੜੈ ਸੈਤਾਨੁ ਵੇ ਲਾਲੋ ॥ काजीआ बामणा की गल थकी अगदु पड़ै सैतानु वे लालो ॥ हे लालो! काजियों एवं ब्राह्मणों की विवाह करवाने की परंपरा समाप्त हो गई है और स्त्रियों पर अत्याचार हो रहे हैं और उन्हें बलपूर्वक विवाह के बंधन में बांधा जा रहा है, ऐसा प्रतीत होता है मानो अब शैतान ही विवाह-संस्कार आयोजित कर रहा है।
ਮੁਸਲਮਾਨੀਆ ਪੜਹਿ ਕਤੇਬਾ ਕਸਟ ਮਹਿ ਕਰਹਿ ਖੁਦਾਇ ਵੇ ਲਾਲੋ ॥ मुसलमानीआ पड़हि कतेबा कसट महि करहि खुदाइ वे लालो ॥ हे लालो ! इस अत्याचार व मुसीबत के समय मुसलमान औरतें कुरान शरीफ पढ़ रही हैं और कष्ट में अपने खुदा को याद कर रही हैं।
ਜਾਤਿ ਸਨਾਤੀ ਹੋਰਿ ਹਿਦਵਾਣੀਆ ਏਹਿ ਭੀ ਲੇਖੈ ਲਾਇ ਵੇ ਲਾਲੋ ॥ जाति सनाती होरि हिदवाणीआ एहि भी लेखै लाइ वे लालो ॥ ऊँची एवं निम्न जाति की अन्य हिन्दू औरतों पर भी बड़ा जुल्म हो रहा है।


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