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ਚਰਨ ਕਮਲ ਸੰਗਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਮਨਿ ਲਾਗੀ ਸੁਰਿ ਜਨ ਮਿਲੇ ਪਿਆਰੇ ॥
जब मन की प्रीति ईश्वर के सुन्दर चरण-कमलों के संग लग गई तो प्यारे महापुरुषों की संगति मिल गई।
ਨਾਨਕ ਅਨਦ ਕਰੇ ਹਰਿ ਜਪਿ ਜਪਿ ਸਗਲੇ ਰੋਗ ਨਿਵਾਰੇ ॥੨॥੧੦॥੧੫॥
हे नानक ! मैं हरि-नाम जप-जपकर आनंद करता रहता हूँ और इसने मेरे सारे रोग दूर कर दिए है॥ २॥ १०॥ १५ ॥
ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੩ ਚਉਪਦੇ
राग तोड़ी, पाँचवें गुरु, तीसरी ताल, चार छंद:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਹਾਂ ਹਾਂ ਲਪਟਿਓ ਰੇ ਮੂੜ੍ਹ੍ਹੇ ਕਛੂ ਨ ਥੋਰੀ ॥
अरे मूर्ख ! निःसंदेह तू माया से लिपटा पड़ा है किन्तु इसका मोह भी तुम्हारे हृदय को पूरी तरह से बाँधे हुए है।
ਤੇਰੋ ਨਹੀ ਸੁ ਜਾਨੀ ਮੋਰੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥
जिसे तू अपना समझता है, वास्तव में वह तेरी नहीं है॥ रहाउ॥
ਆਪਨ ਰਾਮੁ ਨ ਚੀਨੋ ਖਿਨੂਆ ॥
ईश्वर ही हमारे सच्चे सहायक है, परन्तु तुम उसे एक क्षण के लिये भी स्मरण नहीं करते।
ਜੋ ਪਰਾਈ ਸੁ ਅਪਨੀ ਮਨੂਆ ॥੧॥
जो (माया) पराई है, उसे तू अपनी मानता है॥ १॥
ਨਾਮੁ ਸੰਗੀ ਸੋ ਮਨਿ ਨ ਬਸਾਇਓ ॥
ईश्वर का नाम ही तेरा साथी है, किन्तु उसे तूने अपने मन में नहीं बसाया।
ਛੋਡਿ ਜਾਹਿ ਵਾਹੂ ਚਿਤੁ ਲਾਇਓ ॥੨॥
जिसने तुझे छोड़ जाना है, अपना चित्त तूने उसके साथ लगाया हुआ है॥ २॥
ਸੋ ਸੰਚਿਓ ਜਿਤੁ ਭੂਖ ਤਿਸਾਇਓ ॥
तुमने उन पदार्थों को संचित कर लिया जो तुम्हारी भूख एवं तृष्णा में वृद्धि करते हैं।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਤੋਸਾ ਨਹੀ ਪਾਇਓ ॥੩॥
तुमने परमात्मा का अमृत नाम जो जीवन-यात्रा का खर्च है, उसे प्राप्त ही नहीं किया ॥३॥
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧਿ ਮੋਹ ਕੂਪਿ ਪਰਿਆ ॥
तुम तो काम, क्रोध एवं मोह रूपी कुएँ में पड़े हुए हो।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਨਾਨਕ ਕੋ ਤਰਿਆ ॥੪॥੧॥੧੬॥
हे नानक ! गुरु की कृपा से कोई विरला पुरुष ही भवसागर से पार हुआ है ॥४॥१॥१६॥
ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग तोडी, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਹਮਾਰੈ ਏਕੈ ਹਰੀ ਹਰੀ ॥
हमारे मन में तो एक परमेश्वर ही बसा हुआ है तथा
ਆਨ ਅਵਰ ਸਿਞਾਣਿ ਨ ਕਰੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥
उसके अतिरिक्त किसी अन्य से हमारी जान-पहचान ही नहीं ॥ रहाउ ॥
ਵਡੈ ਭਾਗਿ ਗੁਰੁ ਅਪੁਨਾ ਪਾਇਓ ॥
सौभाग्य से मुझे अपने गुरु प्राप्त हुए है तथा
ਗੁਰਿ ਮੋ ਕਉ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਓ ॥੧॥
गुरु ने कृपा कर ईश्वर के नाम को मेरे हृदय में प्रतिष्ठित करने में मेरी सहायता की।॥१॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਾਪ ਤਾਪ ਬ੍ਰਤ ਨੇਮਾ ॥
मेरा ध्यान, तप, व्रत और समस्त धार्मिक आचरण केवल भगवान् के भक्तिपूर्वक स्मरण में ही समर्पित हैं।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਧਿਆਇ ਕੁਸਲ ਸਭਿ ਖੇਮਾ ॥੨॥
मैं सदा प्रभु का स्मरण कर आनंद और आत्मिक सुख की अनुभूति करता हूँ। ॥२॥
ਆਚਾਰ ਬਿਉਹਾਰ ਜਾਤਿ ਹਰਿ ਗੁਨੀਆ ॥
भगवान् का भजन ही हमारा जीवन-आचरण, व्यवहार एवं श्रेष्ठ जाति है तथा
ਮਹਾ ਅਨੰਦ ਕੀਰਤਨ ਹਰਿ ਸੁਨੀਆ ॥੩॥
उसका कीर्तन सुनने से महा आनंद मिलता है॥३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਿਨਿ ਠਾਕੁਰੁ ਪਾਇਆ ॥
हे नानक ! जिसने ठाकुर जी को पाया है,
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤਿਸ ਕੇ ਗ੍ਰਿਹ ਮਹਿ ਆਇਆ ॥੪॥੨॥੧੭॥
उसके हृदय-घर में सब कुछ आ गया है॥ ४॥ २॥ १७ ॥
ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੪ ਦੁਪਦੇ
राग तोड़ी, पांचवें गुरु, चतुर्थ ताल, दोहे:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਰੂੜੋ ਮਨੁ ਹਰਿ ਰੰਗੋ ਲੋੜੈ ॥
मेरा यह सुन्दर मन भगवान् के प्रेम-रंग की कामना करता है किन्तु
ਗਾਲੀ ਹਰਿ ਨੀਹੁ ਨ ਹੋਇ ॥ ਰਹਾਉ ॥
बातों द्वारा उसका प्रेम नहीं मिलता॥ रहाउ ॥
ਹਉ ਢੂਢੇਦੀ ਦਰਸਨ ਕਾਰਣਿ ਬੀਥੀ ਬੀਥੀ ਪੇਖਾ ॥
उसके दर्शन करने के लिए मैं गली-गली ढूंढती हुई देख रही हूँ।
ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਭਰਮੁ ਗਵਾਇਆ ਹੇ ॥੧॥
अब गुरु को मिलने से ही मेरा भ्रम दूर हुआ है॥१॥
ਇਹ ਬੁਧਿ ਪਾਈ ਮੈ ਸਾਧੂ ਕੰਨਹੁ ਲੇਖੁ ਲਿਖਿਓ ਧੁਰਿ ਮਾਥੈ ॥
यह ज्ञान मुझे मेरे मस्तक पर लिखे पूर्व-नियत भाग्य के अनुसार, गुरु की कृपा से प्राप्त हुआ है।
ਇਹ ਬਿਧਿ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਨੈਣ ਅਲੋਇ ॥੨॥੧॥੧੮॥
हे नानक ! इस प्रकार मैंने अपनी आत्मिक दृष्टि से परमात्मा का साक्षात्कार किया।॥२॥१॥१८॥
ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग तोडी, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਗਰਬਿ ਗਹਿਲੜੋ ਮੂੜੜੋ ਹੀਓ ਰੇ ॥
इस विमूढ़ हृदय को घमण्ड ने जकड़ रखा है।
ਹੀਓ ਮਹਰਾਜ ਰੀ ਮਾਇਓ ॥ ਡੀਹਰ ਨਿਆਈ ਮੋਹਿ ਫਾਕਿਓ ਰੇ ॥ ਰਹਾਉ ॥
"जैसे काँटे में फँसी मछली तड़पती है, वैसे ही यह हृदय भगवान् द्वारा रचित माया अर्थात् सांसारिक धन, सुख और शक्ति के मोह में उलझकर व्याकुल हो उठा है।॥ रहाउ ॥
ਘਣੋ ਘਣੋ ਘਣੋ ਸਦ ਲੋੜੈ ਬਿਨੁ ਲਹਣੇ ਕੈਠੈ ਪਾਇਓ ਰੇ ॥
यह सदैव ही अत्याधिक धन-दौलत की कामना करता रहता है परंतु जब तक भाग्य में पूर्वनिर्धारित न हो, तब तक उसे उससे अधिक कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता।
ਮਹਰਾਜ ਰੋ ਗਾਥੁ ਵਾਹੂ ਸਿਉ ਲੁਭੜਿਓ ਨਿਹਭਾਗੜੋ ਭਾਹਿ ਸੰਜੋਇਓ ਰੇ ॥੧॥
वह भगवान् के दिए हुए सांसारिक धन के मोह में फँसा हुआ है। यह अभागा मनुष्य स्वयं को तृष्णा की अग्नि से जोड़ रहा है॥१॥
ਸੁਣਿ ਮਨ ਸੀਖ ਸਾਧੂ ਜਨ ਸਗਲੋ ਥਾਰੇ ਸਗਲੇ ਪ੍ਰਾਛਤ ਮਿਟਿਓ ਰੇ ॥
हे मन ! तू साधुजनों की शिक्षा को ध्यानपूर्वक सुन, इस तरह तेरे समस्त पाप पूर्णतया मिट जाएँगे।
ਜਾ ਕੋ ਲਹਣੋ ਮਹਰਾਜ ਰੀ ਗਾਠੜੀਓ ਜਨ ਨਾਨਕ ਗਰਭਾਸਿ ਨ ਪਉੜਿਓ ਰੇ ॥੨॥੨॥੧੯॥
हे नानक ! जिसकी किस्मत में ईश्वर-नाम की गठरी से कुछ लेना लिखा हुआ है, वह गर्भ-योनि में नहीं आता और उसे मोक्ष मिल जाता है॥ २ ॥ २॥ १६॥