Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 715

Page 715

ਚਰਨ ਕਮਲ ਸੰਗਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਮਨਿ ਲਾਗੀ ਸੁਰਿ ਜਨ ਮਿਲੇ ਪਿਆਰੇ ॥ जब मन की प्रीति ईश्वर के सुन्दर चरण-कमलों के संग लग गई तो प्यारे महापुरुषों की संगति मिल गई।
ਨਾਨਕ ਅਨਦ ਕਰੇ ਹਰਿ ਜਪਿ ਜਪਿ ਸਗਲੇ ਰੋਗ ਨਿਵਾਰੇ ॥੨॥੧੦॥੧੫॥ हे नानक ! मैं हरि-नाम जप-जपकर आनंद करता रहता हूँ और इसने मेरे सारे रोग दूर कर दिए है॥ २॥ १०॥ १५ ॥
ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੩ ਚਉਪਦੇ टोडी महला ५ घरु ३ चउपदे
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਹਾਂ ਹਾਂ ਲਪਟਿਓ ਰੇ ਮੂੜ੍ਹ੍ਹੇ ਕਛੂ ਨ ਥੋਰੀ ॥ अरे मूर्ख ! निःसंदेह तू माया से लिपटा पड़ा है किन्तु इसमें तेरा मोह कुछ थोड़ा नहीं है।
ਤੇਰੋ ਨਹੀ ਸੁ ਜਾਨੀ ਮੋਰੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥ जिसे तू अपना समझता है, दरअसल वह तेरी नहीं है॥ रहाउ॥
ਆਪਨ ਰਾਮੁ ਨ ਚੀਨੋ ਖਿਨੂਆ ॥ अपने राम को तू एक पल भर के लिए भी पहचानता नहीं लेकिन
ਜੋ ਪਰਾਈ ਸੁ ਅਪਨੀ ਮਨੂਆ ॥੧॥ जो (माया) पराई है, उसे तू अपनी मानता है॥ १॥
ਨਾਮੁ ਸੰਗੀ ਸੋ ਮਨਿ ਨ ਬਸਾਇਓ ॥ ईश्वर का नाम ही तेरा साथी है, किन्तु उसे तूने अपने मन में नहीं बसाया।
ਛੋਡਿ ਜਾਹਿ ਵਾਹੂ ਚਿਤੁ ਲਾਇਓ ॥੨॥ जिसने तुझे छोड़ जाना है, अपना चित्त तूने उसके साथ लगाया हुआ है॥ २॥
ਸੋ ਸੰਚਿਓ ਜਿਤੁ ਭੂਖ ਤਿਸਾਇਓ ॥ तुमने उन पदार्थों को संचित कर लिया जो तुम्हारी भूख एवं तृष्णा में वृद्धि करते हैं।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਤੋਸਾ ਨਹੀ ਪਾਇਓ ॥੩॥ तुमने परमात्मा का अमृत नाम जो जीवन-यात्रा का खर्च है, उसे प्राप्त ही नहीं किया ॥३॥
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧਿ ਮੋਹ ਕੂਪਿ ਪਰਿਆ ॥ तुम तो काम, क्रोध एवं मोह रूपी कुएँ में पड़े हुए हो।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਨਾਨਕ ਕੋ ਤਰਿਆ ॥੪॥੧॥੧੬॥ हे नानक ! गुरु की कृपा से कोई विरला पुरुष ही भवसागर से पार हुआ है ॥४॥१॥१६॥
ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ टोडी महला ५ ॥
ਹਮਾਰੈ ਏਕੈ ਹਰੀ ਹਰੀ ॥ हमारे मन में तो एक परमेश्वर ही बसा हुआ है तथा
ਆਨ ਅਵਰ ਸਿਞਾਣਿ ਨ ਕਰੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥ उसके अलावा किसी अन्य से हमारी जान-पहचान ही नहीं ॥ रहाउ ॥
ਵਡੈ ਭਾਗਿ ਗੁਰੁ ਅਪੁਨਾ ਪਾਇਓ ॥ अहोभाग्य से मुझे अपना गुरु प्राप्त हुआ है तथा
ਗੁਰਿ ਮੋ ਕਉ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਓ ॥੧॥ गुरु ने मुझे परमेश्वर का नाम दृढ़ करवाया है॥१॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਾਪ ਤਾਪ ਬ੍ਰਤ ਨੇਮਾ ॥ एक परमेश्वर ही हमारा जाप, तपस्या, व्रत एवं जीवन आचरण बना हुआ है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਧਿਆਇ ਕੁਸਲ ਸਭਿ ਖੇਮਾ ॥੨॥ एक ईश्वर का ध्यान-मनन करने से हमारी सब कुशल क्षेम बनी हुई है॥२॥
ਆਚਾਰ ਬਿਉਹਾਰ ਜਾਤਿ ਹਰਿ ਗੁਨੀਆ ॥ भगवान का भजन ही हमारा जीवन-आचरण, व्यवहार एवं श्रेष्ठ जाति है तथा
ਮਹਾ ਅਨੰਦ ਕੀਰਤਨ ਹਰਿ ਸੁਨੀਆ ॥੩॥ उसका कीर्तन सुनने से महा आनंद मिलता है॥३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਿਨਿ ਠਾਕੁਰੁ ਪਾਇਆ ॥ हे नानक ! जिसने ठाकुर जी को पाया है,
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤਿਸ ਕੇ ਗ੍ਰਿਹ ਮਹਿ ਆਇਆ ॥੪॥੨॥੧੭॥ उसके हृदय-घर में सब कुछ आ गया है॥ ४॥ २॥ १७ ॥
ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੪ ਦੁਪਦੇ टोडी महला ५ घरु ४ दुपदे
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਰੂੜੋ ਮਨੁ ਹਰਿ ਰੰਗੋ ਲੋੜੈ ॥ मेरा यह सुन्दर मन भगवान के प्रेम-रंग की कामना करता है किन्तु
ਗਾਲੀ ਹਰਿ ਨੀਹੁ ਨ ਹੋਇ ॥ ਰਹਾਉ ॥ बातों द्वारा उसका प्रेम नहीं मिलता॥ रहाउ ॥
ਹਉ ਢੂਢੇਦੀ ਦਰਸਨ ਕਾਰਣਿ ਬੀਥੀ ਬੀਥੀ ਪੇਖਾ ॥ उसके दर्शन करने के लिए मैं गली-गली ढूंढती हुई देख रही हूँ।
ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਭਰਮੁ ਗਵਾਇਆ ਹੇ ॥੧॥ अब गुरु को मिलने से ही मेरा भ्रम दूर हुआ है॥१॥
ਇਹ ਬੁਧਿ ਪਾਈ ਮੈ ਸਾਧੂ ਕੰਨਹੁ ਲੇਖੁ ਲਿਖਿਓ ਧੁਰਿ ਮਾਥੈ ॥ यह बुद्धि मुझे साधु से उपलब्ध हुई है, चूंकि मेरे माथे पर प्रारम्भ से ऐसी तकदीर लिखी हुई थी।
ਇਹ ਬਿਧਿ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਨੈਣ ਅਲੋਇ ॥੨॥੧॥੧੮॥ हे नानक ! इस विधि द्वारा अपने नेत्रों से मैंने भगवान के दर्शन प्राप्त किए हैं॥२॥१॥१८॥
ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ टोडी महला ५ ॥
ਗਰਬਿ ਗਹਿਲੜੋ ਮੂੜੜੋ ਹੀਓ ਰੇ ॥ इस विमूढ़ हृदय को घमण्ड ने जकड़ रखा है।
ਹੀਓ ਮਹਰਾਜ ਰੀ ਮਾਇਓ ॥ ਡੀਹਰ ਨਿਆਈ ਮੋਹਿ ਫਾਕਿਓ ਰੇ ॥ ਰਹਾਉ ॥ परमेश्वर की माया ने डायन की तरह हृदय को अपने मोह में फँसाया हुआ है॥ रहाउ ॥
ਘਣੋ ਘਣੋ ਘਣੋ ਸਦ ਲੋੜੈ ਬਿਨੁ ਲਹਣੇ ਕੈਠੈ ਪਾਇਓ ਰੇ ॥ यह सदैव ही अत्याधिक धन-दौलत की कामना करता रहता है परन्तु तकदीर में लिखी हुई उपलब्धि के बिना वह इसे कैसे पा सकता है?
ਮਹਰਾਜ ਰੋ ਗਾਥੁ ਵਾਹੂ ਸਿਉ ਲੁਭੜਿਓ ਨਿਹਭਾਗੜੋ ਭਾਹਿ ਸੰਜੋਇਓ ਰੇ ॥੧॥ वह भगवान के दिए हुए धन से फँसा हुआ है। यह दुर्भाग्यशाली हृदय स्वयं को तृष्णा की अग्नि से जोड़ रहा है॥१॥
ਸੁਣਿ ਮਨ ਸੀਖ ਸਾਧੂ ਜਨ ਸਗਲੋ ਥਾਰੇ ਸਗਲੇ ਪ੍ਰਾਛਤ ਮਿਟਿਓ ਰੇ ॥ हे मन ! तू साधुजनों की शिक्षा को ध्यानपूर्वक सुन, इस तरह तेरे समस्त पाप पूर्णतया मिट जाएँगे।
ਜਾ ਕੋ ਲਹਣੋ ਮਹਰਾਜ ਰੀ ਗਾਠੜੀਓ ਜਨ ਨਾਨਕ ਗਰਭਾਸਿ ਨ ਪਉੜਿਓ ਰੇ ॥੨॥੨॥੧੯॥ हे नानक ! जिसकी किस्मत में ईश्वर-नाम की गठरी से कुछ लेना लिखा हुआ है, वह गर्भ-योनि में नहीं आता और उसे मोक्ष मिल जाता है॥ २ ॥ २॥ १६॥


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