Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 705

Page 705

ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक॥
ਚਿਤਿ ਜਿ ਚਿਤਵਿਆ ਸੋ ਮੈ ਪਾਇਆ ॥ जो कुछ मैंने अपने चित में चाहा था, वह मुझे मिल गया है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਸੁਖ ਸਬਾਇਆ ॥੪॥ हे नानक ! भगवान का ध्यान करने से मुझे सर्व सुख प्राप्त हो गया है॥ ४॥
ਛੰਤੁ ॥ छंद ॥
ਅਬ ਮਨੁ ਛੂਟਿ ਗਇਆ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਮਿਲੇ ॥ संतों-महापुरुषों की पावन संगति में रहने से अब मेरा मन संसार के बन्धनों से छूट गया है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਲਇਆ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਰਲੇ ॥ गुरु के सान्निध्य में रहकर नाम-सिमरन करने से मेरी ज्योति परम ज्योति में विलीन हो गई है।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਿਮਰਤ ਮਿਟੇ ਕਿਲਬਿਖ ਬੁਝੀ ਤਪਤਿ ਅਘਾਨਿਆ ॥ हरि-नाम का सिमरन करने से सभी किल्विष-पाप मिट गए हैं, तृष्णाग्नि बुझ चुकी है और मैं तृप्त हो गया हूँ।
ਗਹਿ ਭੁਜਾ ਲੀਨੇ ਦਇਆ ਕੀਨੇ ਆਪਨੇ ਕਰਿ ਮਾਨਿਆ ॥ भगवान ने दया करके मुझे बाँह से पकड़कर अपना बना लिया है।
ਲੈ ਅੰਕਿ ਲਾਏ ਹਰਿ ਮਿਲਾਏ ਜਨਮ ਮਰਣਾ ਦੁਖ ਜਲੇ ॥ गुरु ने मुझे अपने गले से लगाकर भगवान के संग मिला दिया है, जिससे मेरा जन्म-मरण का दु:ख नष्ट हो गया है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਦਇਆ ਧਾਰੀ ਮੇਲਿ ਲੀਨੇ ਇਕ ਪਲੇ ॥੪॥੨॥ नानक प्रार्थना करते हैं कि भगवान ने मुझ पर बड़ी दया की है और एक क्षण में ही मुझे अपने साथ मिला लिया है॥ ४॥ २॥
ਜੈਤਸਰੀ ਛੰਤ ਮਃ ੫ ॥ जैतसरी छंत मः ५ ॥
ਪਾਧਾਣੂ ਸੰਸਾਰੁ ਗਾਰਬਿ ਅਟਿਆ ॥ यह संसार तो एक मुसाफिर है परन्तु फिर भी संसार के लोग अहंकार से भरे हुए हैं।
ਕਰਤੇ ਪਾਪ ਅਨੇਕ ਮਾਇਆ ਰੰਗ ਰਟਿਆ ॥ वे माया के रंग में मग्न होकर जीवन में अनेक पाप कर्म करते हैं और
ਲੋਭਿ ਮੋਹਿ ਅਭਿਮਾਨਿ ਬੂਡੇ ਮਰਣੁ ਚੀਤਿ ਨ ਆਵਏ ॥ लालच, मोह एवं में ही डूबे लोगों को मृत्यु याद नहीं आती।
ਪੁਤ੍ਰ ਮਿਤ੍ਰ ਬਿਉਹਾਰ ਬਨਿਤਾ ਏਹ ਕਰਤ ਬਿਹਾਵਏ ॥ अपने पुत्र, मित्र एवं धर्मपत्नी के मोह में कार्य करते हुए उनकी तमाम आयु बीत जाती है।
ਪੁਜਿ ਦਿਵਸ ਆਏ ਲਿਖੇ ਮਾਏ ਦੁਖੁ ਧਰਮ ਦੂਤਹ ਡਿਠਿਆ ॥ हे माता ! अब जब जीवन के लिखे हुए दिवस पूरे हो गए हैं तो वे यमराज के दूतों को देखकर दु:खी होते हैं।
ਕਿਰਤ ਕਰਮ ਨ ਮਿਟੈ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਨਾਮ ਧਨੁ ਨਹੀ ਖਟਿਆ ॥੧॥ हे नानक ! अपने जीवन में उन्होंने हरि-नाम रूपी धन संचित नहीं किया, जिसके परिणामस्वरूप उनके कृत्य कर्मों के फल मिट नहीं सकते ॥१॥
ਉਦਮ ਕਰਹਿ ਅਨੇਕ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨ ਗਾਵਹੀ ॥ मनुष्य अपने जीवन में अनेक उद्यम करता रहता है किन्तु भगवान के नाम को वह स्मरण नहीं करता।
ਭਰਮਹਿ ਜੋਨਿ ਅਸੰਖ ਮਰਿ ਜਨਮਹਿ ਆਵਹੀ ॥ इसलिए वह अनगिनत योनियों में भटकता रहता है, आवागमन में फँसकर पुनः पुनः संसार में जन्मता-मरता रहता है।
ਪਸੂ ਪੰਖੀ ਸੈਲ ਤਰਵਰ ਗਣਤ ਕਛੂ ਨ ਆਵਏ ॥ वह पशु, पक्षी, पत्थर एवं पेड़ों की योनियों में पड़ता है, जिनकी गिनती नहीं की जा सकती।
ਬੀਜੁ ਬੋਵਸਿ ਭੋਗ ਭੋਗਹਿ ਕੀਆ ਅਪਣਾ ਪਾਵਏ ॥ मनुष्य अपने कर्मों का जैसा बीज बोता है, वैसा ही उसे फल प्राप्त होता है। वह अपने किए हुए कर्मों का ही फल भोगता है।
ਰਤਨ ਜਨਮੁ ਹਾਰੰਤ ਜੂਐ ਪ੍ਰਭੂ ਆਪਿ ਨ ਭਾਵਹੀ ॥ अपना हीरे जैसा अनमोल मानव जन्म वह जुए में हार देता है और फिर वह अपने प्रभु को भी भला नहीं लगता।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਭਰਮਹਿ ਭ੍ਰਮਾਏ ਖਿਨੁ ਏਕੁ ਟਿਕਣੁ ਨ ਪਾਵਹੀ ॥੨॥ नानक प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु ! ये जीव दुविधा में पड़कर भटकते ही रहते हैं और एक क्षण भर के लिए भी उन्हें सुख का ठिकाना नहीं मिलता॥ २॥
ਜੋਬਨੁ ਗਇਆ ਬਿਤੀਤਿ ਜਰੁ ਮਲਿ ਬੈਠੀਆ ॥ मनुष्य का सुन्दर यौवन व्यतीत हो गया है और उसके शरीर पर बुढ़ापा कब्जा करके बैठ गया है।
ਕਰ ਕੰਪਹਿ ਸਿਰੁ ਡੋਲ ਨੈਣ ਨ ਡੀਠਿਆ ॥ बुढ़ापे के कारण उसके हाथ थर-थर कांपते हैं, सिर डोलता है और आंखों से कुछ भी साफ नजर नहीं आता।
ਨਹ ਨੈਣ ਦੀਸੈ ਬਿਨੁ ਭਜਨ ਈਸੈ ਛੋਡਿ ਮਾਇਆ ਚਾਲਿਆ ॥ ईश्वर के भजन बिना वह अपना धन छोड़कर चल पड़ा है।
ਕਹਿਆ ਨ ਮਾਨਹਿ ਸਿਰਿ ਖਾਕੁ ਛਾਨਹਿ ਜਿਨ ਸੰਗਿ ਮਨੁ ਤਨੁ ਜਾਲਿਆ ॥ जिन परिजनों हेतु उसने अपना तन-मन जला दिया था, वे उसकी आज्ञा का पालन नहीं करते अपितु उसके सिर पर धूल ही डालते है अर्थात् उसे अपमानित करते हैं।
ਸ੍ਰੀਰਾਮ ਰੰਗ ਅਪਾਰ ਪੂਰਨ ਨਹ ਨਿਮਖ ਮਨ ਮਹਿ ਵੂਠਿਆ ॥ भगवान का पूर्ण एवं अपार प्रेम-रंग एक क्षण भर के लिए उसके मन में निवास नहीं कर सका।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਕੋਟਿ ਕਾਗਰ ਬਿਨਸ ਬਾਰ ਨ ਝੂਠਿਆ ॥੩॥ नानक प्रार्थना करते हैं कि जैसे करोड़ों कागज पल भर में जलकर राख हो जाते हैं, वैसा ही इस देह का नाश होने में कोई देरी नहीं होती ॥ ३॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਰਣਾਇ ਨਾਨਕੁ ਆਇਆ ॥ नानक तो परमेश्वर के चरण-कमलों की शरण में आया है।
ਦੁਤਰੁ ਭੈ ਸੰਸਾਰੁ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਿ ਤਰਾਇਆ ॥ इस दुष्कर एवं भयानक संसार-सागर से मुझे प्रभु ने स्वयं ही पार कर दिया है।
ਮਿਲਿ ਸਾਧਸੰਗੇ ਭਜੇ ਸ੍ਰੀਧਰ ਕਰਿ ਅੰਗੁ ਪ੍ਰਭ ਜੀ ਤਾਰਿਆ ॥ संतों की पावन संगति में भजन करने से प्रभु ने मेरा पक्ष लेकर मुझे भवसागर से पार कर दिया है।
ਹਰਿ ਮਾਨਿ ਲੀਏ ਨਾਮ ਦੀਏ ਅਵਰੁ ਕਛੁ ਨ ਬੀਚਾਰਿਆ ॥ भगवान ने मुझे स्वीकार करके अपना नाम प्रदान किया है और किसी गुण-अवगुण की ओर ध्यान नहीं दिया।
ਗੁਣ ਨਿਧਾਨ ਅਪਾਰ ਠਾਕੁਰ ਮਨਿ ਲੋੜੀਦਾ ਪਾਇਆ ॥ मैंने गुणों के भण्डार, अपरंपार एवं मनोवांछित ठाकुर जी को पा लिया है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕੁ ਸਦਾ ਤ੍ਰਿਪਤੇ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਭੋਜਨੁ ਖਾਇਆ ॥੪॥੨॥੩॥ नानक प्रार्थना करते हैं कि हरि-नाम रूपी भोजन खाने से मैं हमेशा के लिए तृप्त हो चुका हूँ॥ ४॥ २॥ ३॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਵਾਰ ਸਲੋਕਾ ਨਾਲਿ जैतसरी महला ५ वार सलोका नालि
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਸਲੋਕ ॥ श्लोक ॥
ਆਦਿ ਪੂਰਨ ਮਧਿ ਪੂਰਨ ਅੰਤਿ ਪੂਰਨ ਪਰਮੇਸੁਰਹ ॥ जो सृष्टि रचना से पूर्व भी सर्वव्यापक था, सृष्टि काल में अब भी विद्यमान है और सृष्टि के अन्त तक भी सर्वव्यापी रहेगा,
ਸਿਮਰੰਤਿ ਸੰਤ ਸਰਬਤ੍ਰ ਰਮਣੰ ਨਾਨਕ ਅਘਨਾਸਨ ਜਗਦੀਸੁਰਹ ॥੧॥ सभी सन्त-महात्मा उस सर्वत्र रमण करने वाले परमेश्वर का ही सिमरन करते रहते हैं। हे नानक ! वह जगदीश्वर सर्व पापों का हरण करने वाला है॥ १॥


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