Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 706

Page 706

ਪੇਖਨ ਸੁਨਨ ਸੁਨਾਵਨੋ ਮਨ ਮਹਿ ਦ੍ਰਿੜੀਐ ਸਾਚੁ ॥ पेखन सुनन सुनावनो मन महि द्रिड़ीऐ साचु ॥ उस परम-सत्य ईश्वर को मन में भली भांति याद करते रहना चाहिए, जो स्वयं ही सुनने, देखने एवं सुनाने वाला है।
ਪੂਰਿ ਰਹਿਓ ਸਰਬਤ੍ਰ ਮੈ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਰਾਚੁ ॥੨॥ पूरि रहिओ सरबत्र मै नानक हरि रंगि राचु ॥२॥ हे नानक ! उस सर्वव्यापी परमेश्वर के प्रेम में मग्न रहना चाहिए॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी॥
ਹਰਿ ਏਕੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਗਾਈਐ ਸਭ ਅੰਤਰਿ ਸੋਈ ॥ हरि एकु निरंजनु गाईऐ सभ अंतरि सोई ॥ जो सबके भीतर व्यापत है, उस एक निरंजन परमेश्वर का ही यशोगान करना चाहिए।
ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥ ਪ੍ਰਭੁ ਜੋ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਈ ॥ करण कारण समरथ प्रभु जो करे सु होई ॥ प्रभु प्रत्येक कार्य करने एवं करवाने में समर्थ है, वह जो कुछ भी करता है, वही होता है।
ਖਿਨ ਮਹਿ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪਦਾ ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਨਹੀ ਕੋਈ ॥ खिन महि थापि उथापदा तिसु बिनु नही कोई ॥ वह एक क्षण में ही दुनिया को बनाकर उसका विनाश भी कर देता है, उसके अतिरिक्त दूसरा कोई रचयिता नहीं।
ਖੰਡ ਬ੍ਰਹਮੰਡ ਪਾਤਾਲ ਦੀਪ ਰਵਿਆ ਸਭ ਲੋਈ ॥ खंड ब्रहमंड पाताल दीप रविआ सभ लोई ॥ वह देशों, ब्रह्माण्डों, पातालों, दीपों एवं सब लोकों में विद्यमान है।
ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਬੁਝਾਏ ਸੋ ਬੁਝਸੀ ਨਿਰਮਲ ਜਨੁ ਸੋਈ ॥੧॥ जिसु आपि बुझाए सो बुझसी निरमल जनु सोई ॥१॥ परमात्मा जिसे स्वयं ज्ञान प्रदान करता है, वही उसे समझता है और वही व्यक्ति पावन हो जाता है॥१॥
ਸਲੋਕ ॥ सलोक ॥ श्लोक ॥
ਰਚੰਤਿ ਜੀਅ ਰਚਨਾ ਮਾਤ ਗਰਭ ਅਸਥਾਪਨੰ ॥ रचंति जीअ रचना मात गरभ असथापनं ॥ रचयिता परमात्मा जीव की रचना करके उसे माता के गर्भ में स्थापित कर देता है।
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਸਿਮਰੰਤਿ ਨਾਨਕ ਮਹਾ ਅਗਨਿ ਨ ਬਿਨਾਸਨੰ ॥੧॥ सासि सासि सिमरंति नानक महा अगनि न बिनासनं ॥१॥ तदुपरांत वह माता के गर्भ में आकर श्वास-श्वास से उसका सिमरन करता है। हे नानक ! इस तरह भगवान् का सिमरन करने से गर्भ की भयानक अग्नि जीव का विनाश नहीं कर पाती ॥ १॥
ਮੁਖੁ ਤਲੈ ਪੈਰ ਉਪਰੇ ਵਸੰਦੋ ਕੁਹਥੜੈ ਥਾਇ ॥ मुखु तलै पैर उपरे वसंदो कुहथड़ै थाइ ॥ हे जीव ! माता के गर्भ में तेरा मुँह नीचे एवं पैर ऊपर की ओर थे। इस तरह तू अपवित्र स्थान पर निवास कर रहा था।
ਨਾਨਕ ਸੋ ਧਣੀ ਕਿਉ ਵਿਸਾਰਿਓ ਉਧਰਹਿ ਜਿਸ ਦੈ ਨਾਇ ॥੨॥ नानक सो धणी किउ विसारिओ उधरहि जिस दै नाइ ॥२॥ भक्त नानक कहते हैं कि हे जीव ! तूने अपने उस मालिक को क्यों विस्मृत कर दिया, जिसके नाम का सिमरन करने से तू गर्भ में से बाहर निकला है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी ॥
ਰਕਤੁ ਬਿੰਦੁ ਕਰਿ ਨਿੰਮਿਆ ਅਗਨਿ ਉਦਰ ਮਝਾਰਿ ॥ रकतु बिंदु करि निमिआ अगनि उदर मझारि ॥ जीव माँ के रक्त एवं पिता के वीर्य द्वारा पेट की अग्नि में पैदा हुआ था।
ਉਰਧ ਮੁਖੁ ਕੁਚੀਲ ਬਿਕਲੁ ਨਰਕਿ ਘੋਰਿ ਗੁਬਾਰਿ ॥ उरध मुखु कुचील बिकलु नरकि घोरि गुबारि ॥ हे जीव ! तेर मुँह नीचे था और तू मलिन एवं भयानक नरक समान घोर अन्धेरे में रहता था।
ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਤੂ ਨਾ ਜਲਹਿ ਮਨਿ ਤਨਿ ਉਰ ਧਾਰਿ ॥ हरि सिमरत तू ना जलहि मनि तनि उर धारि ॥ परमेश्वर के स्मरण से तू अग्निमय गर्भ में भी नष्ट नहीं हुआ; अतः उस प्रभु को अपने शरीर, मन और हृदय में दृढ़ता से स्थापित कर।
ਬਿਖਮ ਥਾਨਹੁ ਜਿਨਿ ਰਖਿਆ ਤਿਸੁ ਤਿਲੁ ਨ ਵਿਸਾਰਿ ॥ बिखम थानहु जिनि रखिआ तिसु तिलु न विसारि ॥ जिसने तेरी विषम स्थान से रक्षा की है, तू उसे एक क्षण भर के लिए भी मत भुला।
ਪ੍ਰਭ ਬਿਸਰਤ ਸੁਖੁ ਕਦੇ ਨਾਹਿ ਜਾਸਹਿ ਜਨਮੁ ਹਾਰਿ ॥੨॥ प्रभ बिसरत सुखु कदे नाहि जासहि जनमु हारि ॥२॥ चूंकि प्रभु को भुला कर तुझे कभी सुख प्राप्त नहीं होगा और तू अपना अमूल्य जन्म व्यर्थ ही गंवा कर चला जाएगा ॥२॥
ਸਲੋਕ ॥ सलोक ॥ श्लोक ॥
ਮਨ ਇਛਾ ਦਾਨ ਕਰਣੰ ਸਰਬਤ੍ਰ ਆਸਾ ਪੂਰਨਹ ॥ मन इछा दान करणं सरबत्र आसा पूरनह ॥ जो हमें मनोवांछित दान प्रदान करते हैं, हमारी समस्त अभिलाषाएँ पूरी करते हैं,
ਖੰਡਣੰ ਕਲਿ ਕਲੇਸਹ ਪ੍ਰਭ ਸਿਮਰਿ ਨਾਨਕ ਨਹ ਦੂਰਣਹ ॥੧॥ खंडणं कलि कलेसह प्रभ सिमरि नानक नह दूरणह ॥१॥ हे नानक, परमात्मा तुम्हारे सारे संकटों का अंत कर देते हैं; सदा स्मरण रखो कि वह तुम्हारे अति समीप है, कभी दूर नहीं होते। ॥१॥
ਹਭਿ ਰੰਗ ਮਾਣਹਿ ਜਿਸੁ ਸੰਗਿ ਤੈ ਸਿਉ ਲਾਈਐ ਨੇਹੁ ॥ हभि रंग माणहि जिसु संगि तै सिउ लाईऐ नेहु ॥ जिसकी करुणा-दृष्टि से हम सभी सुख भोगते हैं, हमें तो उसके साथ ही अपना प्रेम लगाना चाहिए।
ਸੋ ਸਹੁ ਬਿੰਦ ਨ ਵਿਸਰਉ ਨਾਨਕ ਜਿਨਿ ਸੁੰਦਰੁ ਰਚਿਆ ਦੇਹੁ ॥੨॥ सो सहु बिंद न विसरउ नानक जिनि सुंदरु रचिआ देहु ॥२॥ हे नानक ! जिसने इस सुन्दर शरीर का निर्माण किया है, उस मालिक को हमें एक क्षण भर के लिए भी विस्मृत नहीं करना चाहिए ॥२॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी॥
ਜੀਉ ਪ੍ਰਾਨ ਤਨੁ ਧਨੁ ਦੀਆ ਦੀਨੇ ਰਸ ਭੋਗ ॥ जीउ प्रान तनु धनु दीआ दीने रस भोग ॥ हे जीव ! भगवान् ने तुझे जीवन, प्राण, शरीर एवं धन प्रदान किया है और सर्व प्रकार के रस भोग दिए हैं।
ਗ੍ਰਿਹ ਮੰਦਰ ਰਥ ਅਸੁ ਦੀਏ ਰਚਿ ਭਲੇ ਸੰਜੋਗ ॥ ग्रिह मंदर रथ असु दीए रचि भले संजोग ॥ भले संयोग बनाकर ही उसने तुझे घर, महल, रथ एवं घोड़े दिए हैं।
ਸੁਤ ਬਨਿਤਾ ਸਾਜਨ ਸੇਵਕ ਦੀਏ ਪ੍ਰਭ ਦੇਵਨ ਜੋਗ ॥ सुत बनिता साजन सेवक दीए प्रभ देवन जोग ॥ सभी को देने में समर्थ उस प्रभु ने तुझे पुत्र, पत्नी, मित्र एवं सेवक दिए हैं।
ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਤਨੁ ਮਨੁ ਹਰਿਆ ਲਹਿ ਜਾਹਿ ਵਿਜੋਗ ॥ हरि सिमरत तनु मनु हरिआ लहि जाहि विजोग ॥ उस भगवान् का भजन करने से तन एवं मन हर्षित हो जाते हैं तथा वियोग भी समाप्त हो जाता है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਰਮਹੁ ਬਿਨਸੇ ਸਭਿ ਰੋਗ ॥੩॥ साधसंगि हरि गुण रमहु बिनसे सभि रोग ॥३॥ अतः संतों-महापुरुषों की पवित्र सभा में सम्मिलित होकर भगवान् का गुणगान करो, जिससे सभी रोग नाश हो जाएँगे।॥ ३॥
ਸਲੋਕ ॥ सलोक ॥ श्लोक॥
ਕੁਟੰਬ ਜਤਨ ਕਰਣੰ ਮਾਇਆ ਅਨੇਕ ਉਦਮਹ ॥ कुट्मब जतन करणं माइआ अनेक उदमह ॥ अपने परिवार की भलाई के लिए मानव जीव अथक यत्न करता है और धन कमाने हेतु भरसक प्रयास करता रहता है।
ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਭਾਵ ਹੀਣੰ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਬਿਸਰਤ ਤੇ ਪ੍ਰੇਤਤਹ ॥੧॥ हरि भगति भाव हीणं नानक प्रभ बिसरत ते प्रेततह ॥१॥ हे नानक ! परन्तु यदि यह भगवान् की भक्ति भावना से विहीन है तो प्रभु को विस्मृत करने वाला ऐसा जीव प्रेत ही माना जाता है।॥ १॥
ਤੁਟੜੀਆ ਸਾ ਪ੍ਰੀਤਿ ਜੋ ਲਾਈ ਬਿਅੰਨ ਸਿਉ ॥ तुटड़ीआ सा प्रीति जो लाई बिअंन सिउ ॥ वह प्रेम जो भगवान् के अतिरिक्त किसी दूसरे से लगाया जाता है, वह अंततः टूट ही जाता है।
ਨਾਨਕ ਸਚੀ ਰੀਤਿ ਸਾਂਈ ਸੇਤੀ ਰਤਿਆ ॥੨॥ नानक सची रीति सांई सेती रतिआ ॥२॥ हे नानक ! भगवान् के साथ मग्न रहने की मर्यादा ही सत्य एवं शाश्वत है॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी ॥
ਜਿਸੁ ਬਿਸਰਤ ਤਨੁ ਭਸਮ ਹੋਇ ਕਹਤੇ ਸਭਿ ਪ੍ਰੇਤੁ ॥ जिसु बिसरत तनु भसम होइ कहते सभि प्रेतु ॥ जब शरीर आत्मा से अलग हो जाता है, तो वह केवल राख बन जाता है, और सभी उसे 'भूत' कहकर पुकारते हैं।
ਖਿਨੁ ਗ੍ਰਿਹ ਮਹਿ ਬਸਨ ਨ ਦੇਵਹੀ ਜਿਨ ਸਿਉ ਸੋਈ ਹੇਤੁ ॥ खिनु ग्रिह महि बसन न देवही जिन सिउ सोई हेतु ॥ जिन परिजनों के साथ मानव का इतना गहरा प्रेम था, वे अब घर में एक क्षण भर के लिए भी रहने नहीं देते।
ਕਰਿ ਅਨਰਥ ਦਰਬੁ ਸੰਚਿਆ ਸੋ ਕਾਰਜਿ ਕੇਤੁ ॥ करि अनरथ दरबु संचिआ सो कारजि केतु ॥ वह अनेक अनर्थ करके धन संचित करने में लगा रहा परन्तु अब वह उसके किसी काम का नहीं रहा।
ਜੈਸਾ ਬੀਜੈ ਸੋ ਲੁਣੈ ਕਰਮ ਇਹੁ ਖੇਤੁ ॥ जैसा बीजै सो लुणै करम इहु खेतु ॥ मानव जीव जैसा बीज बोता है, वैसा ही उसे काटता है। यह तन कर्मभूमि है।
ਅਕਿਰਤਘਣਾ ਹਰਿ ਵਿਸਰਿਆ ਜੋਨੀ ਭਰਮੇਤੁ ॥੪॥ अकिरतघणा हरि विसरिआ जोनी भरमेतु ॥४॥ इसलिए जो कृतघ्न जन भगवान् के उपकारों को विस्मृत कर देते हैं, वे अनेक योनियों में जन्म लेते हुए संसार-सागर में भटकते रहते हैं। ॥ ४ ॥
ਸਲੋਕ ॥ सलोक ॥ श्लोक ॥
ਕੋਟਿ ਦਾਨ ਇਸਨਾਨੰ ਅਨਿਕ ਸੋਧਨ ਪਵਿਤ੍ਰਤਹ ॥ कोटि दान इसनानं अनिक सोधन पवित्रतह ॥ हे नानक ! करोड़ों दान, स्नान, अनेक शुद्धिकरण एवं पवित्रता का फल प्राप्त हो जाता है
ਉਚਰੰਤਿ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਹਰਿ ਰਸਨਾ ਸਰਬ ਪਾਪ ਬਿਮੁਚਤੇ ॥੧॥ उचरंति नानक हरि हरि रसना सरब पाप बिमुचते ॥१॥ अपनी जिह्वा से भगवान् का नाम उच्चारण करने से समस्त पापों का नाश हो जाता है। ॥ १॥
ਈਧਣੁ ਕੀਤੋਮੂ ਘਣਾ ਭੋਰੀ ਦਿਤੀਮੁ ਭਾਹਿ ॥ ईधणु कीतोमू घणा भोरी दितीमु भाहि ॥ मैंने अत्याधिक ईंधन संग्रह किया और जब उसमें थोड़ी-सी चिंगारी लगाई तो वह जल कर भस्म हो गया।


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top