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ਪੇਖਨ ਸੁਨਨ ਸੁਨਾਵਨੋ ਮਨ ਮਹਿ ਦ੍ਰਿੜੀਐ ਸਾਚੁ ॥
उस परम-सत्य ईश्वर को मन में भली भांति याद करते रहना चाहिए, जो स्वयं ही सुनने, देखने एवं सुनाने वाला है।
ਪੂਰਿ ਰਹਿਓ ਸਰਬਤ੍ਰ ਮੈ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਰਾਚੁ ॥੨॥
हे नानक ! उस सर्वव्यापी परमेश्वर के प्रेम में मग्न रहना चाहिए॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਹਰਿ ਏਕੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਗਾਈਐ ਸਭ ਅੰਤਰਿ ਸੋਈ ॥
जो सबके अन्तर में मौजूद है, उस एक निरंजन परमेश्वर का ही यशोगान करना चाहिए।
ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥ ਪ੍ਰਭੁ ਜੋ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਈ ॥
प्रभु प्रत्येक कार्य करने एवं करवाने में समर्थ है, वह जो कुछ भी करता है, वही होता है।
ਖਿਨ ਮਹਿ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪਦਾ ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਨਹੀ ਕੋਈ ॥
वह एक क्षण में ही दुनिया को बनाकर उसका विनाश भी कर देता है, उसके सिवाय दूसरा कोई रचयिता नहीं।
ਖੰਡ ਬ੍ਰਹਮੰਡ ਪਾਤਾਲ ਦੀਪ ਰਵਿਆ ਸਭ ਲੋਈ ॥
वह देशों, ब्रह्माण्डों, पातालों, दीपों एवं सब लोकों में विद्यमान है।
ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਬੁਝਾਏ ਸੋ ਬੁਝਸੀ ਨਿਰਮਲ ਜਨੁ ਸੋਈ ॥੧॥
परमात्मा जिसे स्वयं ज्ञान प्रदान करता है, वही उसे समझता है और वही व्यक्ति पावन हो जाता है॥१॥
ਸਲੋਕ ॥
श्लोक ॥
ਰਚੰਤਿ ਜੀਅ ਰਚਨਾ ਮਾਤ ਗਰਭ ਅਸਥਾਪਨੰ ॥
रचयिता परमात्मा जीव की रचना करके उसे माता के गर्भ में स्थापित कर देता है।
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਸਿਮਰੰਤਿ ਨਾਨਕ ਮਹਾ ਅਗਨਿ ਨ ਬਿਨਾਸਨੰ ॥੧॥
तदुपरांत वह माता के गर्भ में आकर श्वास-श्वास से उसका सिमरन करता है। हे नानक ! इस तरह भगवान का सिमरन करने से गर्भ की भयानक अग्नि जीव का विनाश नहीं कर पाती ॥ १॥
ਮੁਖੁ ਤਲੈ ਪੈਰ ਉਪਰੇ ਵਸੰਦੋ ਕੁਹਥੜੈ ਥਾਇ ॥
हे जीव ! माता के गर्भ में तेरा मुँह नीचे एवं पैर ऊपर की ओर थे। इस तरह तू अपवित्र स्थान पर निवास कर रहा था।
ਨਾਨਕ ਸੋ ਧਣੀ ਕਿਉ ਵਿਸਾਰਿਓ ਉਧਰਹਿ ਜਿਸ ਦੈ ਨਾਇ ॥੨॥
नानक का कथन है कि हे जीव ! तूने अपने उस मालिक को क्यों विस्मृत कर दिया, जिसके नाम का सिमरन करने से तू गर्भ में से बाहर निकला है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
ਰਕਤੁ ਬਿੰਦੁ ਕਰਿ ਨਿੰਮਿਆ ਅਗਨਿ ਉਦਰ ਮਝਾਰਿ ॥
जीव माँ के रक्त एवं पिता के वीर्य द्वारा पेट की अग्नि में पैदा हुआ था।
ਉਰਧ ਮੁਖੁ ਕੁਚੀਲ ਬਿਕਲੁ ਨਰਕਿ ਘੋਰਿ ਗੁਬਾਰਿ ॥
हे जीव ! तेर मुँह नीचे था और तू मलिन एवं भयानक नरक समान घोर अन्धेरे में रहता था।
ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਤੂ ਨਾ ਜਲਹਿ ਮਨਿ ਤਨਿ ਉਰ ਧਾਰਿ ॥
भगवान का सिमरन करने से तू जल नहीं सका था। अतः अब तू अपने मन, तन एवं ह्रदय में स्मरण करता रह।
ਬਿਖਮ ਥਾਨਹੁ ਜਿਨਿ ਰਖਿਆ ਤਿਸੁ ਤਿਲੁ ਨ ਵਿਸਾਰਿ ॥
जिसने तेरी विषम स्थान से रक्षा की है, तू उसे एक क्षण भर के लिए भी मत भुला।
ਪ੍ਰਭ ਬਿਸਰਤ ਸੁਖੁ ਕਦੇ ਨਾਹਿ ਜਾਸਹਿ ਜਨਮੁ ਹਾਰਿ ॥੨॥
चूंकि प्रभु को भुला कर तुझे कभी सुख प्राप्त नहीं होगा और तू अपना अमूल्य जन्म व्यर्थ ही गंवा कर चला जाएगा ॥२॥
ਸਲੋਕ ॥
श्लोक ॥
ਮਨ ਇਛਾ ਦਾਨ ਕਰਣੰ ਸਰਬਤ੍ਰ ਆਸਾ ਪੂਰਨਹ ॥
जो हमें मनोवांछित दान प्रदान करता है, हमारी समस्त अभिलाषाएँ पूरी करता है,
ਖੰਡਣੰ ਕਲਿ ਕਲੇਸਹ ਪ੍ਰਭ ਸਿਮਰਿ ਨਾਨਕ ਨਹ ਦੂਰਣਹ ॥੧॥
हमारे दुःखों-क्लेशों का नाश करता है, अतः हे नानक ! हमें उस प्रभु का ही सिमरन करते रहना चाहिए, जो हमसे कहीं दूर नहीं अर्थात् हमारे पास ही है ॥१॥
ਹਭਿ ਰੰਗ ਮਾਣਹਿ ਜਿਸੁ ਸੰਗਿ ਤੈ ਸਿਉ ਲਾਈਐ ਨੇਹੁ ॥
जिसकी करुणा-दृष्टि से हम सभी सुख भोगते हैं, हमें तो उसके साथ ही अपना प्रेम लगाना चाहिए।
ਸੋ ਸਹੁ ਬਿੰਦ ਨ ਵਿਸਰਉ ਨਾਨਕ ਜਿਨਿ ਸੁੰਦਰੁ ਰਚਿਆ ਦੇਹੁ ॥੨॥
हे नानक ! जिसने इस सुन्दर शरीर का निर्माण किया है, उस मालिक को हमें एक क्षण भर के लिए भी विस्मृत नहीं करना चाहिए ॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਜੀਉ ਪ੍ਰਾਨ ਤਨੁ ਧਨੁ ਦੀਆ ਦੀਨੇ ਰਸ ਭੋਗ ॥
हे जीव ! भगवान ने तुझे जीवन, प्राण, शरीर एवं धन प्रदान किया है और सर्व प्रकार के रस भोग दिए हैं।
ਗ੍ਰਿਹ ਮੰਦਰ ਰਥ ਅਸੁ ਦੀਏ ਰਚਿ ਭਲੇ ਸੰਜੋਗ ॥
भले संयोग बनाकर ही उसने तुझे घर, महल, रथ एवं घोड़े दिए हैं।
ਸੁਤ ਬਨਿਤਾ ਸਾਜਨ ਸੇਵਕ ਦੀਏ ਪ੍ਰਭ ਦੇਵਨ ਜੋਗ ॥
सभी को देने में समर्थ उस प्रभु ने तुझे पुत्र, पत्नी, मित्र एवं सेवक दिए हैं।
ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਤਨੁ ਮਨੁ ਹਰਿਆ ਲਹਿ ਜਾਹਿ ਵਿਜੋਗ ॥
उस भगवान का भजन करने से तन एवं मन हर्षित हो जाते हैं तथा वियोग भी समाप्त हो जाते हैं।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਰਮਹੁ ਬਿਨਸੇ ਸਭਿ ਰੋਗ ॥੩॥
अतः संतों-महापुरुषों की पवित्र सभा में सम्मिलित होकर भगवान का गुणगान करो, जिससे सभी रोग नाश हो जाएँगे।॥ ३॥
ਸਲੋਕ ॥
श्लोक॥
ਕੁਟੰਬ ਜਤਨ ਕਰਣੰ ਮਾਇਆ ਅਨੇਕ ਉਦਮਹ ॥
अपने परिवार की भलाई के लिए मानव जीव अथक यत्न करता है और धन कमाने हेतु भरसक प्रयास करता रहता है।
ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਭਾਵ ਹੀਣੰ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਬਿਸਰਤ ਤੇ ਪ੍ਰੇਤਤਹ ॥੧॥
परन्तु यदि यह भगवान की भक्ति भावना से विहीन है तो हे नानक ! प्रभु को विस्मृत करने वाला जीव प्रेत ही माना जाता है।॥ १॥
ਤੁਟੜੀਆ ਸਾ ਪ੍ਰੀਤਿ ਜੋ ਲਾਈ ਬਿਅੰਨ ਸਿਉ ॥
वह प्रेम जो भगवान के अलावा किसी दूसरे से लगाया जाता है, वह अंततः टूट ही जाता है।
ਨਾਨਕ ਸਚੀ ਰੀਤਿ ਸਾਂਈ ਸੇਤੀ ਰਤਿਆ ॥੨॥
हे नानक ! भगवान के साथ मग्न रहने की मर्यादा ही सत्य एवं शाश्वत है॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
ਜਿਸੁ ਬਿਸਰਤ ਤਨੁ ਭਸਮ ਹੋਇ ਕਹਤੇ ਸਭਿ ਪ੍ਰੇਤੁ ॥
जिस आत्मा के जुदा होने से मानव का शरीर भस्म हो जाता है, उस मृत शरीर को फिर लोग प्रेत कहने लगते हैं।
ਖਿਨੁ ਗ੍ਰਿਹ ਮਹਿ ਬਸਨ ਨ ਦੇਵਹੀ ਜਿਨ ਸਿਉ ਸੋਈ ਹੇਤੁ ॥
जिन परिजनों के साथ मानव का इतना गहरा प्रेम था, वे अब घर में एक क्षण भर के लिए भी रहने नहीं देते।
ਕਰਿ ਅਨਰਥ ਦਰਬੁ ਸੰਚਿਆ ਸੋ ਕਾਰਜਿ ਕੇਤੁ ॥
वह अनेक अनर्थ करके धन संचित करने में लगा रहा परन्तु अब वह उसके किसी काम का नहीं रहा।
ਜੈਸਾ ਬੀਜੈ ਸੋ ਲੁਣੈ ਕਰਮ ਇਹੁ ਖੇਤੁ ॥
मानव जीव जैसा बीज बोता है, वैसा ही उसे काटता है। यह तन कर्मभूमि है।
ਅਕਿਰਤਘਣਾ ਹਰਿ ਵਿਸਰਿਆ ਜੋਨੀ ਭਰਮੇਤੁ ॥੪॥
एहसान-फरामोश जीवों को परमात्मा भूल गया है, इसलिए वे योनि-चक्र में ही भटकते रहते हैं॥ ४ ॥
ਸਲੋਕ ॥
श्लोक ॥
ਕੋਟਿ ਦਾਨ ਇਸਨਾਨੰ ਅਨਿਕ ਸੋਧਨ ਪਵਿਤ੍ਰਤਹ ॥
हे नानक ! करोड़ों दान, स्नान, अनेक शुद्धिकरण एवं पवित्रता का फल प्राप्त हो जाता है
ਉਚਰੰਤਿ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਹਰਿ ਰਸਨਾ ਸਰਬ ਪਾਪ ਬਿਮੁਚਤੇ ॥੧॥
अपनी जुबान से भगवान का नाम उच्चारण करने से तमाम पाप नाश हो जाते हैं ॥ १॥
ਈਧਣੁ ਕੀਤੋਮੂ ਘਣਾ ਭੋਰੀ ਦਿਤੀਮੁ ਭਾਹਿ ॥
मैंने अत्याधिक ईंधन संग्रह किया और जब उसमें थोड़ी-सी चिंगारी लगाई तो वह जल कर भस्म हो गया।