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ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੪ ਦੁਪਦੇ॥
जैतसरी महला ५ घरु ४ दुपदे
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
अब मैंने गुरु की आज्ञा में रहकर सुख प्राप्त कर लिया है।
ਅਬ ਮੈ ਸੁਖੁ ਪਾਇਓ ਗੁਰ ਆਗ੍ਯ੍ਯਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਤਜੀ ਸਿਆਨਪ ਚਿੰਤ ਵਿਸਾਰੀ ਅਹੰ ਛੋਡਿਓ ਹੈ ਤਿਆਗ੍ਯ੍ਯਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मैंने हर प्रकार की चालाकी छोड़ दी है, अपनी चिन्ता को भुला दिया है और अपने अहंत्व को पूर्णतया छोड़ दिया है॥१॥ रहाउ॥
ਜਉ ਦੇਖਉ ਤਉ ਸਗਲ ਮੋਹਿ ਮੋਹੀਅਉ ਤਉ ਸਰਨਿ ਪਰਿਓ ਗੁਰ ਭਾਗਿ ॥
मैंने जब यह देखा कि दुनिया के सभी लोग माया के मोह में ही लिप्त हैं तो मैं तुरंत ही गुरु की शरण में भागकर आ गया।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਟਹਲ ਹਰਿ ਲਾਇਓ ਤਉ ਜਮਿ ਛੋਡੀ ਮੋਰੀ ਲਾਗਿ ॥੧॥
जब गुरु ने कृपा करके मुझे भगवान की उपासना में लगाया तो यमों ने भी मेरा पीछा छोड़ दिया ॥१॥
ਤਰਿਓ ਸਾਗਰੁ ਪਾਵਕ ਕੋ ਜਉ ਸੰਤ ਭੇਟੇ ਵਡ ਭਾਗਿ ॥
अहोभाग्य से जब मेरी संतों से भेंट हुई तो जगत के अग्नि सागर को पार कर लिया।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਸਰਬ ਸੁਖ ਪਾਏ ਮੋਰੋ ਹਰਿ ਚਰਨੀ ਚਿਤੁ ਲਾਗਿ ॥੨॥੧॥੫॥
नानक का कथन है कि अब मैंने सर्व सुख प्राप्त कर लिए हैं चूंकि मेरा चित भगवान के सुन्दर चरणों में ही लग गया है ॥२॥१॥५॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
जैतसरी महला ५ ॥
ਮਨ ਮਹਿ ਸਤਿਗੁਰ ਧਿਆਨੁ ਧਰਾ ॥
मैंने अपने मन में सतगुरु का ध्यान धारण किया,
ਦ੍ਰਿੜਿ੍ਹ੍ਹਓ ਗਿਆਨੁ ਮੰਤ੍ਰੁ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ਪ੍ਰਭ ਜੀਉ ਮਇਆ ਕਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मैंने अपने मन में भगवान का नाम-मंत्र एवं ज्ञान को दृढ़ कर लिया है, जिसके फलस्वरूप प्रभु ने मुझ पर बड़ी करुणा की है।॥१॥ रहाउ ॥
ਕਾਲ ਜਾਲ ਅਰੁ ਮਹਾ ਜੰਜਾਲਾ ਛੁਟਕੇ ਜਮਹਿ ਡਰਾ ॥
अब काल का जाल, सांसारिक बन्धनों का महा जंजाल एवं मृत्यु का भय अब सभी लुप्त हो चुके हैं।
ਆਇਓ ਦੁਖ ਹਰਣ ਸਰਣ ਕਰੁਣਾਪਤਿ ਗਹਿਓ ਚਰਣ ਆਸਰਾ ॥੧॥
हे करुणापति ! तू समस्त दुःख हरण करने वाला है, अतः मैं तेरी शरण में आया हूँ और तेरे चरणों का ही सहारा लिया है॥१॥
ਨਾਵ ਰੂਪ ਭਇਓ ਸਾਧਸੰਗੁ ਭਵ ਨਿਧਿ ਪਾਰਿ ਪਰਾ ॥
साधु-संतों की संगति भवसागर से पार होने के लिए एक नाव का रूप है।
ਅਪਿਉ ਪੀਓ ਗਤੁ ਥੀਓ ਭਰਮਾ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਅਜਰੁ ਜਰਾ ॥੨॥੨॥੬॥
हे नानक ! अब मैंने नामामृत पान कर लिया है, जिससे मेरी दुविधा का नाश हो गया है तथा अजर अवस्था प्राप्त होने के कारण अब मुझे बुढ़ापा भी नहीं आ सकता ॥२॥२॥६॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
जैतसरी महला ५ ॥
ਜਾ ਕਉ ਭਏ ਗੋਵਿੰਦ ਸਹਾਈ ॥
जिस जीव का परमात्मा सहायक बन गया है,
ਸੂਖ ਸਹਜ ਆਨੰਦ ਸਗਲ ਸਿਉ ਵਾ ਕਉ ਬਿਆਧਿ ਨ ਕਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
वह आत्मिक सुख एवं तमाम हर्षोल्लास प्राप्त कर लेता है और उसे कोई भारी व्याधि प्रभावित नहीं करती ॥१॥ रहाउ॥
ਦੀਸਹਿ ਸਭ ਸੰਗਿ ਰਹਹਿ ਅਲੇਪਾ ਨਹ ਵਿਆਪੈ ਉਨ ਮਾਈ ॥
वह सब के साथ रहता दृष्टिगत होता है परन्तु फिर भी निर्लिप्त रहता है और माया उसे बिल्कुल भी स्पर्श नहीं करती।
ਏਕੈ ਰੰਗਿ ਤਤ ਕੇ ਬੇਤੇ ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਬੁਧਿ ਪਾਈ ॥੧॥
वह एक परमेश्वर के रंग में मग्न रहता है तथा तत्ववेता बन जाता है परन्तु यह बुद्धि भी उसे सतगुरु से ही प्राप्त हुई है॥१॥
ਦਇਆ ਮਇਆ ਕਿਰਪਾ ਠਾਕੁਰ ਕੀ ਸੇਈ ਸੰਤ ਸੁਭਾਈ ॥
जिन पर ठाकुर जी की दया, मेहर एवं कृपा होती है, वही संत स्वभाव वाले हैं।
ਤਿਨ ਕੈ ਸੰਗਿ ਨਾਨਕ ਨਿਸਤਰੀਐ ਜਿਨ ਰਸਿ ਰਸਿ ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਈ ॥੨॥੩॥੭॥
हे नानक ! जो महापुरुष प्रेमपूर्वक भगवान का गुणगान करते हैं, उनकी संगति में रहने से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।॥२॥३॥७॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
जैतसरी महला ५ ॥
ਗੋਬਿੰਦ ਜੀਵਨ ਪ੍ਰਾਨ ਧਨ ਰੂਪ ॥
हे गोविन्द ! तू ही हमारा जीवन, प्राण, धन-दौलत एवं सौन्दर्य है।
ਅਗਿਆਨ ਮੋਹ ਮਗਨ ਮਹਾ ਪ੍ਰਾਨੀ ਅੰਧਿਆਰੇ ਮਹਿ ਦੀਪ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अज्ञान के कारण प्राणी मोह में मग्न रहता है और इस अज्ञानता के अन्धेरे में परमेश्वर ही एकमात्र ज्ञान का दीपक है॥ १॥ रहाउ ॥
ਸਫਲ ਦਰਸਨੁ ਤੁਮਰਾ ਪ੍ਰਭ ਪ੍ਰੀਤਮ ਚਰਨ ਕਮਲ ਆਨੂਪ ॥
हे प्रियतम प्रभु ! तेरे चरण कमल बड़े अनुपम हैं और तुम्हारे दर्शन बड़े फलदायक हैं।
ਅਨਿਕ ਬਾਰ ਕਰਉ ਤਿਹ ਬੰਦਨ ਮਨਹਿ ਚਰ੍ਹਾਵਉ ਧੂਪ ॥੧॥
मैं बार-बार तेरी ही वन्दना करता हूँ एवं अपने मन को धूप-सामग्री के रूप में अर्पण करता हूँ॥ १॥
ਹਾਰਿ ਪਰਿਓ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੈ ਪ੍ਰਭ ਦੁਆਰੈ ਦ੍ਰਿੜ੍ਹ੍ਹੁ ਕਰਿ ਗਹੀ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੀ ਲੂਕ ॥
हे प्रभु ! मायूस होकर अब मैं तुम्हारे द्वार पर आया हूँ और तेरे सहारे को जकड़ कर पकड़ लिया है।
ਕਾਢਿ ਲੇਹੁ ਨਾਨਕ ਅਪੁਨੇ ਕਉ ਸੰਸਾਰ ਪਾਵਕ ਕੇ ਕੂਪ ॥੨॥੪॥੮॥
नानक प्रार्थना करता है कि हे प्रभु ! इस संसार रूपी अग्नि के कुएँ में से मुझे बाहर निकाल दो॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
जैतसरी महला ५ ॥
ਕੋਈ ਜਨੁ ਹਰਿ ਸਿਉ ਦੇਵੈ ਜੋਰਿ ॥
कोई महापुरुष मुझे भगवान के साथ मिला दे तो
ਚਰਨ ਗਹਉ ਬਕਉ ਸੁਭ ਰਸਨਾ ਦੀਜਹਿ ਪ੍ਰਾਨ ਅਕੋਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मैं उसके चरण पकड़ लूं, अपनी जीभ से शुभ वचन बोलूं तथा अपने प्राण भी उसे ही अर्पण कर दूँ॥ १॥ रहाउ ॥
ਮਨੁ ਤਨੁ ਨਿਰਮਲ ਕਰਤ ਕਿਆਰੋ ਹਰਿ ਸਿੰਚੈ ਸੁਧਾ ਸੰਜੋਰਿ ॥
अपने मन एवं तन को निर्मल क्यारियाँ बनाकर मैं उन्हें हरिनामामृत से भलीभांति सींचता हूँ।
ਇਆ ਰਸ ਮਹਿ ਮਗਨੁ ਹੋਤ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਮਹਾ ਬਿਖਿਆ ਤੇ ਤੋਰਿ ॥੧॥
भगवान की कृपा से ही प्राणी इस अमृत में मग्न होता है और विषय-विकारों से अलग हो जाता है॥१॥
ਆਇਓ ਸਰਣਿ ਦੀਨ ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਚਿਤਵਉ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੀ ਓਰਿ ॥
हे दीनों के दुःख नष्ट करने वाले प्रभु ! मैं तेरी ही शरण में आया हूँ और तुम्हारी ओट को ही स्मरण करता रहता हूँ।