Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 659

Page 659

ਸਾਚੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਹਮ ਤੁਮ ਸਿਉ ਜੋਰੀ ॥ मैंने तो तुझ से सच्ची प्रीति जोड़ ली है और
ਤੁਮ ਸਿਉ ਜੋਰਿ ਅਵਰ ਸੰਗਿ ਤੋਰੀ ॥੩॥ तुम से प्रीति जोड़कर दूसरों के साथ नाता तोड़ लिया है।३ ।
ਜਹ ਜਹ ਜਾਉ ਤਹਾ ਤੇਰੀ ਸੇਵਾ ॥ जहाँ-जहाँ भी मैं जाता हूँ वहाँ ही मैं तेरी आराधना करता हूँ।
ਤੁਮ ਸੋ ਠਾਕੁਰੁ ਅਉਰੁ ਨ ਦੇਵਾ ॥੪॥ हे प्रभु जी ! तुझ जैसा ठाकुर एवं पूज्य देव दूसरा कोई नहीं।॥४॥
ਤੁਮਰੇ ਭਜਨ ਕਟਹਿ ਜਮ ਫਾਂਸਾ ॥ तुम्हारा भजन करने से मृत्यु की फाँसी कट जाती है।
ਭਗਤਿ ਹੇਤ ਗਾਵੈ ਰਵਿਦਾਸਾ ॥੫॥੫॥ तेरी भक्ति प्राप्त करने के लिए रविदास तेरा ही गुणगान करता है॥ ५॥ ५॥
ਜਲ ਕੀ ਭੀਤਿ ਪਵਨ ਕਾ ਥੰਭਾ ਰਕਤ ਬੁੰਦ ਕਾ ਗਾਰਾ ॥ इस मानव शरीर की दीवारें जल की बनी हुई हैं, जिसके नीचे पवन का स्तंभ स्थापित किया हुआ है और इसे माँ के रक्त एवं पिता के वीर्य का गारा लगा हुआ है।
ਹਾਡ ਮਾਸ ਨਾੜੀ ਕੋ ਪਿੰਜਰੁ ਪੰਖੀ ਬਸੈ ਬਿਚਾਰਾ ॥੧॥ यह शरीर मांस एवं नाड़ियों का बना हुआ एक ढाँचा है, जिसमें बेचारा जीव रूपी पक्षी निवास करता है।१।
ਪ੍ਰਾਨੀ ਕਿਆ ਮੇਰਾ ਕਿਆ ਤੇਰਾ ॥ हे नश्वर प्राणी ! इस दुनिया में क्या मेरा है और क्या तेरा है?
ਜੈਸੇ ਤਰਵਰ ਪੰਖਿ ਬਸੇਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ यह बात यूं है जैसे वृक्ष पर पक्षी का बसेरा होता है॥१॥ रहाउ ॥
ਰਾਖਹੁ ਕੰਧ ਉਸਾਰਹੁ ਨੀਵਾਂ ॥ तू गहरी बुनियाद खोद कर उन पर महल बनाने के लिए दीवारें खड़ी कर रहा है
ਸਾਢੇ ਤੀਨਿ ਹਾਥ ਤੇਰੀ ਸੀਵਾਂ ॥੨॥ परन्तु तेरे शरीर की सीमा अधिक से अधिक साढ़े तीन हाथों की है ॥२ ॥
ਬੰਕੇ ਬਾਲ ਪਾਗ ਸਿਰਿ ਡੇਰੀ ॥ तेरे सिर पर सुन्दर केश हैं और तू सिर पर तिरछी पगड़ी सुशोभित करता है
ਇਹੁ ਤਨੁ ਹੋਇਗੋ ਭਸਮ ਕੀ ਢੇਰੀ ॥੩॥ किन्तु तेरा यह शरीर एक न एक दिन भस्म की ढेरी बन जाएगा ॥३॥
ਊਚੇ ਮੰਦਰ ਸੁੰਦਰ ਨਾਰੀ ॥ लेकिन ऊँचे महलों एवं सुन्दर पत्नी के प्रेम में पड़कर
ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਬਾਜੀ ਹਾਰੀ ॥੪॥ राम नाम के बिना तूने अपनी जीवन-बाजी हार दी है।॥४॥
ਮੇਰੀ ਜਾਤਿ ਕਮੀਨੀ ਪਾਂਤਿ ਕਮੀਨੀ ਓਛਾ ਜਨਮੁ ਹਮਾਰਾ ॥ मेरी जाति नीच है और मेरा गोत्र नीच है तथा मेरा जन्म भी औछा ही है।
ਤੁਮ ਸਰਨਾਗਤਿ ਰਾਜਾ ਰਾਮ ਚੰਦ ਕਹਿ ਰਵਿਦਾਸ ਚਮਾਰਾ ॥੫॥੬॥ रविदास चमार का कथन है हे राजा राम ! फिर भी मैंने तेरी ही शरण ली है ॥५॥६॥
ਚਮਰਟਾ ਗਾਂਠਿ ਨ ਜਨਈ ॥ मैं चमार गाँठना नहीं जानता परन्तु
ਲੋਗੁ ਗਠਾਵੈ ਪਨਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ लोग मुझसे अपने जूते बनवाते हैं ॥१॥ रहाउ ॥
ਆਰ ਨਹੀ ਜਿਹ ਤੋਪਉ ॥ मेरे पास आर नहीं हैं, जिससे मैं जूतों को गाँठु और
ਨਹੀ ਰਾਂਬੀ ਠਾਉ ਰੋਪਉ ॥੧॥ न ही मेरे पास खुरपी है, जिससे मैं जोड़ लगा सकूं।॥१॥
ਲੋਗੁ ਗੰਠਿ ਗੰਠਿ ਖਰਾ ਬਿਗੂਚਾ ॥ अपने आपको जगत से जोड़-जोड़ कर लोग बिल्कुल नष्ट हो गए हैं।
ਹਉ ਬਿਨੁ ਗਾਂਠੇ ਜਾਇ ਪਹੂਚਾ ॥੨॥ लेकिन बिना गांठे ही मैं प्रभु के पास पहुँच गया हूँ।॥२॥
ਰਵਿਦਾਸੁ ਜਪੈ ਰਾਮ ਨਾਮਾ ॥ रविदास तो राम के नाम का ही भजन करता रहता है और
ਮੋਹਿ ਜਮ ਸਿਉ ਨਾਹੀ ਕਾਮਾ ॥੩॥੭॥ अब उसका यम से कोई काम नहीं रहा ॥३॥७॥
ਰਾਗੁ ਸੋਰਠਿ ਬਾਣੀ ਭਗਤ ਭੀਖਨ ਕੀ रागु सोरठि बाणी भगत भीखन की
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਨੈਨਹੁ ਨੀਰੁ ਬਹੈ ਤਨੁ ਖੀਨਾ ਭਏ ਕੇਸ ਦੁਧ ਵਾਨੀ ॥ अब बुढ़ापे में मेरी यह अवस्था हो गई है कि नयनों में से जल बहता रहता है और तन भी क्षीण हो गया है तथा ये बाल दूध जैसे सफेद हो गए हैं।
ਰੂਧਾ ਕੰਠੁ ਸਬਦੁ ਨਹੀ ਉਚਰੈ ਅਬ ਕਿਆ ਕਰਹਿ ਪਰਾਨੀ ॥੧॥ मेरा गला बंद हो गया है, जिस कारण में एक शब्द भी नहीं बोल सकता। मेरे जैसा नश्वर जीव अब क्या कर सकता है? ॥ १॥
ਰਾਮ ਰਾਇ ਹੋਹਿ ਬੈਦ ਬਨਵਾਰੀ ॥ हे बनवारी ! हे राम ! तुम स्वयं ही वैद्य बनकर
ਅਪਨੇ ਸੰਤਹ ਲੇਹੁ ਉਬਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ अपने संतों को बचा लो ॥१॥ रहाउ ॥
ਮਾਥੇ ਪੀਰ ਸਰੀਰਿ ਜਲਨਿ ਹੈ ਕਰਕ ਕਰੇਜੇ ਮਾਹੀ ॥ मेरे माथे में पीड़ा, शरीर में जलन एवं हृदय में दर्द है।
ਐਸੀ ਬੇਦਨ ਉਪਜਿ ਖਰੀ ਭਈ ਵਾ ਕਾ ਅਉਖਧੁ ਨਾਹੀ ॥੨॥ मेरे भीतर ऐसी भयानक वेदना उत्पन्न हो गई है कि जिसकी कोई औषधि नहीं।॥२॥
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਜਲੁ ਨਿਰਮਲੁ ਇਹੁ ਅਉਖਧੁ ਜਗਿ ਸਾਰਾ ॥ हरि का नाम अमृतमयी निर्मल जल है और यह औषधि इस जगत में समस्त रोगों का निदान है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਕਹੈ ਜਨੁ ਭੀਖਨੁ ਪਾਵਉ ਮੋਖ ਦੁਆਰਾ ॥੩॥੧॥ भीखन का कथन है कि गुरु की कृपा से मैंने मोक्ष का द्वार प्राप्त कर लिया है ॥३॥१॥
ਐਸਾ ਨਾਮੁ ਰਤਨੁ ਨਿਰਮੋਲਕੁ ਪੁੰਨਿ ਪਦਾਰਥੁ ਪਾਇਆ ॥ हे भाई! परमात्मा का नाम ऐसा रत्न है जो बड़ा अमूल्य है।मैंने यह नाम-पदार्थ अपने पूर्व किए शुभ कर्मों के कारण प्राप्त किया है।
ਅਨਿਕ ਜਤਨ ਕਰਿ ਹਿਰਦੈ ਰਾਖਿਆ ਰਤਨੁ ਨ ਛਪੈ ਛਪਾਇਆ ॥੧॥ अनेकों यत्न करके मैंने इसे अपने हृदय में छिपा कर रखा परन्तु यह रत्न छिपाए छिपता नहीं।॥१॥
ਹਰਿ ਗੁਨ ਕਹਤੇ ਕਹਨੁ ਨ ਜਾਈ ॥ मुझ से वैसे ही भगवान की महिमा बताने से बताई नहीं जा सकती
ਜੈਸੇ ਗੂੰਗੇ ਕੀ ਮਿਠਿਆਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जैसे कोई गूँगा आदमी मिठाई खा कर उसका स्वाद नहीं बता सकता ॥१॥ रहाउ ॥
ਰਸਨਾ ਰਮਤ ਸੁਨਤ ਸੁਖੁ ਸ੍ਰਵਨਾ ਚਿਤ ਚੇਤੇ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥ ईश्वर का नाम जीभ से जप कर, कानों से सुनकर एवं चित से स्मरण करके मुझे सुख की अनुभूति हुई है।
ਕਹੁ ਭੀਖਨ ਦੁਇ ਨੈਨ ਸੰਤੋਖੇ ਜਹ ਦੇਖਾਂ ਤਹ ਸੋਈ ॥੨॥੨॥ भीखन का कथन है कि मेरे यह दोनों नयन संतुष्ट हो गए हैं। अब मैं जिधर भी देखता हूँ, उधर ही भगवान दिखाई देता है ॥२॥२॥


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