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ਰਾਜ ਭੁਇਅੰਗ ਪ੍ਰਸੰਗ ਜੈਸੇ ਹਹਿ ਅਬ ਕਛੁ ਮਰਮੁ ਜਨਾਇਆ ॥
जैसे अंधेरे में रस्सी को सांप समझने का प्रसंग है, वैसे ही मैं भूला हुआ था, पर अब तूने मुझे भेद बता दिया है।
ਅਨਿਕ ਕਟਕ ਜੈਸੇ ਭੂਲਿ ਪਰੇ ਅਬ ਕਹਤੇ ਕਹਨੁ ਨ ਆਇਆ ॥੩॥
जैसे भूलकर मैं अनेक कगनों को स्वर्ण से पृथक मानता था, वैसे ही मैं भूल गया था कि मैं तुझसे भिन्न हूँ। अब जब मेरा यह भ्रम दूर हो गया है तो अब यह भ्रम वाली बात कहनी शोभा नहीं देती ॥३ ॥
ਸਰਬੇ ਏਕੁ ਅਨੇਕੈ ਸੁਆਮੀ ਸਭ ਘਟ ਭੋੁਗਵੈ ਸੋਈ ॥
एक ईश्वर ही अनेक रूप धारण करके सर्वव्यापी है।वह तो सबके हृदय में सुख भोग रहा है।
ਕਹਿ ਰਵਿਦਾਸ ਹਾਥ ਪੈ ਨੇਰੈ ਸਹਜੇ ਹੋਇ ਸੁ ਹੋਈ ॥੪॥੧॥
रविदास जी का कथन है कि ईश्वर तो हाथों-पैरों से भी अत्यन्त निकट है, इसलिए जो कुछ प्राकृतिक रूप में हो रहा है, वह भला ही हो रहा है ॥४॥१॥
ਜਉ ਹਮ ਬਾਂਧੇ ਮੋਹ ਫਾਸ ਹਮ ਪ੍ਰੇਮ ਬਧਨਿ ਤੁਮ ਬਾਧੇ ॥
हे प्रभु जी ! यद्यपि हम सांसारिक मोह की फाँसी में बँधे हुए थे तो हमने तुझे भी अपने प्रेम-बन्धन में बाँध लिया है।
ਅਪਨੇ ਛੂਟਨ ਕੋ ਜਤਨੁ ਕਰਹੁ ਹਮ ਛੂਟੇ ਤੁਮ ਆਰਾਧੇ ॥੧॥
अब तुम इस प्रेम-बन्धन से मुक्त होने का यत्न करो, चूंकि हम तो तुम्हारी आराधना करके मुक्त हो गए हैं।१।
ਮਾਧਵੇ ਜਾਨਤ ਹਹੁ ਜੈਸੀ ਤੈਸੀ ॥
हे माधव ! जैसी तेरे साथ हमारी प्रीति है, वह तुम जानते ही हो।
ਅਬ ਕਹਾ ਕਰਹੁਗੇ ਐਸੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तेरे साथ हमारी ऐसी प्रीति होने से अब तुम हमारे साथ क्या करोगे ? ।॥१॥ रहाउ ॥
ਮੀਨੁ ਪਕਰਿ ਫਾਂਕਿਓ ਅਰੁ ਕਾਟਿਓ ਰਾਂਧਿ ਕੀਓ ਬਹੁ ਬਾਨੀ ॥
मनुष्य मछली को पकड़ता है, मछली को चीरता और काटता है तथा विभिन्न प्रकार से इसे भलीभांति पकाता है।
ਖੰਡ ਖੰਡ ਕਰਿ ਭੋਜਨੁ ਕੀਨੋ ਤਊ ਨ ਬਿਸਰਿਓ ਪਾਨੀ ॥੨॥
मछली के टुकड़े-टुकड़े करके भोजन किया जाता है परन्तु फिर भी मछली जल को नहीं भूलती॥ २ ॥
ਆਪਨ ਬਾਪੈ ਨਾਹੀ ਕਿਸੀ ਕੋ ਭਾਵਨ ਕੋ ਹਰਿ ਰਾਜਾ ॥
परमात्मा किसी के बाप की जायदाद नहीं है, अपितु वह समूचे विश्व का मालिक है, जो प्रेम-भावना के ही वशीभूत है।
ਮੋਹ ਪਟਲ ਸਭੁ ਜਗਤੁ ਬਿਆਪਿਓ ਭਗਤ ਨਹੀ ਸੰਤਾਪਾ ॥੩॥
समूचे जगत पर मोह का पद पड़ा हुआ है। परन्तु यह मोह भक्त को संताप नहीं देता।।३।
ਕਹਿ ਰਵਿਦਾਸ ਭਗਤਿ ਇਕ ਬਾਢੀ ਅਬ ਇਹ ਕਾ ਸਿਉ ਕਹੀਐ ॥
रविदास जी का कथन है कि एक प्रभु की भक्ति हृदय में बढ़ गई है, यह मैं अब किसे बताऊँ।
ਜਾ ਕਾਰਨਿ ਹਮ ਤੁਮ ਆਰਾਧੇ ਸੋ ਦੁਖੁ ਅਜਹੂ ਸਹੀਐ ॥੪॥੨॥
हे प्रभु! जिस दु:ख के कारण हमने तुम्हारी आराधना की थी, क्या वह दु:ख हमें अब भी सहन करना होगा ? ॥४॥२॥
ਦੁਲਭ ਜਨਮੁ ਪੁੰਨ ਫਲ ਪਾਇਓ ਬਿਰਥਾ ਜਾਤ ਅਬਿਬੇਕੈ ॥
यह दुर्लभ मनुष्य जन्म बड़े पुण्य फल के कारण प्राप्त हुआ है किन्तु अविवेक के कारण यह व्यर्थ ही बीतता जा रहा है।
ਰਾਜੇ ਇੰਦ੍ਰ ਸਮਸਰਿ ਗ੍ਰਿਹ ਆਸਨ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਕਹਹੁ ਕਿਹ ਲੇਖੈ ॥੧॥
यदि राजा इंद्र के स्वर्ग जैसे महल एवं सिंहासन भी हो तो भी भगवान की भक्ति के बिना बताओ यह मेरे लिए व्यर्थ ही हैं॥ १ ॥
ਨ ਬੀਚਾਰਿਓ ਰਾਜਾ ਰਾਮ ਕੋ ਰਸੁ ॥
जीव ने राम के नाम के स्वाद का चिंतन नहीं किया,
ਜਿਹ ਰਸ ਅਨਰਸ ਬੀਸਰਿ ਜਾਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिस नाम स्वाद में दूसरे सभी स्वाद विस्मृत हो जाते हैं॥ १ ॥ रहाउ ।
ਜਾਨਿ ਅਜਾਨ ਭਏ ਹਮ ਬਾਵਰ ਸੋਚ ਅਸੋਚ ਦਿਵਸ ਜਾਹੀ ॥
हम बावले हो गए हैं, हम उसे नहीं जानते, जो हमारे लिए जानने योग्य है और उसे नहीं सोचते, जिसे सोचना चाहिए।इस तरह हमारे जीवन के दिवस बीतते जा रहे हैं।
ਇੰਦ੍ਰੀ ਸਬਲ ਨਿਬਲ ਬਿਬੇਕ ਬੁਧਿ ਪਰਮਾਰਥ ਪਰਵੇਸ ਨਹੀ ॥੨॥
विषय-विकार भोगने वाली हमारी इन्द्रियाँ बहुत बलवान हैं, इसलिए हमारा विवेक बुद्धि का परमार्थ में प्रवेश नहीं हुआ।२ ।
ਕਹੀਅਤ ਆਨ ਅਚਰੀਅਤ ਅਨ ਕਛੁ ਸਮਝ ਨ ਪਰੈ ਅਪਰ ਮਾਇਆ ॥
हम कहते कुछ हैं और करते कुछ अन्य ही हैं। यह माया बड़ी प्रबल है और हमें इसकी कोई सूझ नहीं पड़ती।
ਕਹਿ ਰਵਿਦਾਸ ਉਦਾਸ ਦਾਸ ਮਤਿ ਪਰਹਰਿ ਕੋਪੁ ਕਰਹੁ ਜੀਅ ਦਇਆ ॥੩॥੩॥
रविदास जी का कथन है कि हे प्रभु! तेरे दास की मति उदास भाव परेशान हो रही है। इसलिए अपने क्रोध को दूर करके मेरे प्राणों पर दया करो ॥ ३॥ 3 ॥
ਸੁਖ ਸਾਗਰੁ ਸੁਰਤਰ ਚਿੰਤਾਮਨਿ ਕਾਮਧੇਨੁ ਬਸਿ ਜਾ ਕੇ ॥
परमात्मा सुखों का सागर है, जिसके वश में स्वर्ग के कल्पवृक्ष, चिंतामणि एवं कामधेनु है।
ਚਾਰਿ ਪਦਾਰਥ ਅਸਟ ਦਸਾ ਸਿਧਿ ਨਵ ਨਿਧਿ ਕਰ ਤਲ ਤਾ ਕੇ ॥੧॥
चार पदार्थ-धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष, अठारह सिद्धियाँ एवं नौ निधियाँ उसके हाथ की हथेली पर हैं॥ १ ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨ ਜਪਹਿ ਰਸਨਾ ॥
रसना हरि-हरि नाम का जाप क्यों नहीं करती ,"
ਅਵਰ ਸਭ ਤਿਆਗਿ ਬਚਨ ਰਚਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अन्य समस्त वाद-विवाद छोड़ कर वाणी में लीन हो जा ॥ १॥ रहाउ ।
ਨਾਨਾ ਖਿਆਨ ਪੁਰਾਨ ਬੇਦ ਬਿਧਿ ਚਉਤੀਸ ਅਖਰ ਮਾਂਹੀ ॥
पुराणों के भांति-भांति के प्रसंग, वेदों में बताई हुई कर्मकाण्ड की विधियाँ यह सभी चौंतीस अक्षरों में ही लिखी हुई हैं भाव यह अनुभवी ज्ञान नहीं है।
ਬਿਆਸ ਬਿਚਾਰਿ ਕਹਿਓ ਪਰਮਾਰਥੁ ਰਾਮ ਨਾਮ ਸਰਿ ਨਾਹੀ ॥੨॥
व्यास ऋषि ने सोच विचार कर यह परमार्थ बताया है कि राम-नाम के तुल्य अन्य कुछ भी नहीं है॥ २ ॥
ਸਹਜ ਸਮਾਧਿ ਉਪਾਧਿ ਰਹਤ ਫੁਨਿ ਬਡੈ ਭਾਗਿ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ॥
दु:ख-क्लेशों से रहित सहज अवस्था वाली मेरी समाधि लगी रहती है और फिर साथ ही सौभाग्य से प्रभु में सुरति भी लगी रहती है।
ਕਹਿ ਰਵਿਦਾਸ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ਰਿਦੈ ਧਰਿ ਜਨਮ ਮਰਨ ਭੈ ਭਾਗੀ ॥੩॥੪॥
रविदास जी का कथन है कि मेरे हृदय में सत्य की ज्योति का प्रकाश हो जाने से मेरा जन्म-मरण का भय भाग गया है|॥३॥४॥
ਜਉ ਤੁਮ ਗਿਰਿਵਰ ਤਉ ਹਮ ਮੋਰਾ ॥
हे ईश्वर ! यदि तुम सुन्दर पर्वत बन जाओ तो मैं तेरा मोर बन जाऊँ।
ਜਉ ਤੁਮ ਚੰਦ ਤਉ ਹਮ ਭਏ ਹੈ ਚਕੋਰਾ ॥੧॥
यदि तुम चांद बन जाओ तो मैं चकोर बन जाऊँ॥ १ ॥
ਮਾਧਵੇ ਤੁਮ ਨ ਤੋਰਹੁ ਤਉ ਹਮ ਨਹੀ ਤੋਰਹਿ ॥
हे माधव ! यदि तुम मुझ से प्रीत ना तोड़ो तो मैं भी तुझ से अपनी प्रीत नहीं तोडूंगा।
ਤੁਮ ਸਿਉ ਤੋਰਿ ਕਵਨ ਸਿਉ ਜੋਰਹਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मैं तुझ से अपनी प्रीत तोड़कर अन्य किससे जोड़ सकता हूँ? ॥१॥ रहाउ ॥
ਜਉ ਤੁਮ ਦੀਵਰਾ ਤਉ ਹਮ ਬਾਤੀ ॥
यदि तुम सुन्दर दीपक बन जाओ तो मैं तेरी बाती बन जाऊँ।
ਜਉ ਤੁਮ ਤੀਰਥ ਤਉ ਹਮ ਜਾਤੀ ॥੨॥
यदि तुम तीर्थ बन जाओ तो मैं तेरा तीर्थ-यात्री बन जाऊँ।२ ।