Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 621

Page 621

ਅਟਲ ਬਚਨੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਤੇਰਾ ਸਫਲ ਕਰੁ ਮਸਤਕਿ ਧਾਰਿਆ ॥੨॥੨੧॥੪੯॥ अटल बचनु नानक गुर तेरा सफल करु मसतकि धारिआ ॥२॥२१॥४९॥ नानक कहते हैं कि हे गुरु ! आपका दिव्य वचन शाश्वत है; आप अपनी कृपा और समर्थन से प्राणियों की रक्षा करते हैं। ॥२॥२१॥४९॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सोरठि महला ५ ॥ राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਜੀਅ ਜੰਤ੍ਰ ਸਭਿ ਤਿਸ ਕੇ ਕੀਏ ਸੋਈ ਸੰਤ ਸਹਾਈ ॥ जीअ जंत्र सभि तिस के कीए सोई संत सहाई ॥ सभी जीव-जन्तु उस (परमेश्वर) के पैदा किए हुए हैं और वही संतों के सहायक है।
ਅਪੁਨੇ ਸੇਵਕ ਕੀ ਆਪੇ ਰਾਖੈ ਪੂਰਨ ਭਈ ਬਡਾਈ ॥੧॥ अपुने सेवक की आपे राखै पूरन भई बडाई ॥१॥ अपने सेवक की वह स्वयं ही रक्षा करते हैं और उनकी कृपा से भक्त का मान सदा अक्षुण्ण बना रहता है।॥ १ ॥
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪੂਰਾ ਮੇਰੈ ਨਾਲਿ ॥ पारब्रहमु पूरा मेरै नालि ॥ पूर्ण पारब्रह्म-परमेश्वर सदा मेरे साथ है।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਪੂਰੀ ਸਭ ਰਾਖੀ ਹੋਏ ਸਰਬ ਦਇਆਲ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुरि पूरै पूरी सभ राखी होए सरब दइआल ॥१॥ रहाउ ॥ पूर्ण गुरु ने भलीभांति पूर्णतया मेरी लाज-प्रतिष्ठा बचा ली है और सभी जन मेरे प्रति दयालु हो गए हैं।॥ १॥ रहाउ ॥
ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਨਕੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਏ ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨ ਕਾ ਦਾਤਾ ॥ अनदिनु नानकु नामु धिआए जीअ प्रान का दाता ॥ दास नानक रात-दिन जीवन एवं प्राणों के दाता परमेश्वर के नाम का ही ध्यान करते रहते हैं।
ਅਪੁਨੇ ਦਾਸ ਕਉ ਕੰਠਿ ਲਾਇ ਰਾਖੈ ਜਿਉ ਬਾਰਿਕ ਪਿਤ ਮਾਤਾ ॥੨॥੨੨॥੫੦॥ अपुने दास कउ कंठि लाइ राखै जिउ बारिक पित माता ॥२॥२२॥५०॥ अपने दास को वह ऐसे गले से लगाकर रखते हैं जैसे माता-पिता अपनी संतान को गले से लगाकर रखते हैं।॥ २॥ २२॥ ५०॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੩ ਚਉਪਦੇ सोरठि महला ५ घरु ३ चउपदे राग सोरठ, पंचम गुरु, तृतीय ताल, चार पंक्तियाँ
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਮਿਲਿ ਪੰਚਹੁ ਨਹੀ ਸਹਸਾ ਚੁਕਾਇਆ ॥ मिलि पंचहु नही सहसा चुकाइआ ॥ चिंतनशील ज्ञानियों का सान्निध्य प्राप्त होने पर भी, अंतःकरण में उठते विकारों और विवेक के द्वंद्व का समाधान न हो सका।
ਸਿਕਦਾਰਹੁ ਨਹ ਪਤੀਆਇਆ ॥ सिकदारहु नह पतीआइआ ॥ चौधरियों से भी मेरी संतुष्टि नहीं हुई।
ਉਮਰਾਵਹੁ ਆਗੈ ਝੇਰਾ ॥ उमरावहु आगै झेरा ॥ इस मानसिक द्वंद्व को शासकों के समक्ष रखने पर भी कोई समाधान नहीं मिला।
ਮਿਲਿ ਰਾਜਨ ਰਾਮ ਨਿਬੇਰਾ ॥੧॥ मिलि राजन राम निबेरा ॥१॥ अंततः यह आंतरिक संघर्ष (ईश्वर) उस सर्वशक्तिमान सम्राट की साक्षात अनुभूति से शांत हो जाता है।॥ १॥
ਅਬ ਢੂਢਨ ਕਤਹੁ ਨ ਜਾਈ ॥ अब ढूढन कतहु न जाई ॥ अब मैं इधर-उधर ढूँढने के लिए नहीं जाता चूंकि
ਗੋਬਿਦ ਭੇਟੇ ਗੁਰ ਗੋਸਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥ गोबिद भेटे गुर गोसाई ॥ रहाउ ॥ सृष्टि के स्वामी गुरु-परमेश्वर मुझे मिल गए हैं॥ रहाउ॥
ਆਇਆ ਪ੍ਰਭ ਦਰਬਾਰਾ ॥ आइआ प्रभ दरबारा ॥ जब मैं प्रभु के दरबार में आया तो
ਤਾ ਸਗਲੀ ਮਿਟੀ ਪੂਕਾਰਾ ॥ ता सगली मिटी पूकारा ॥ तब उसकी सभी शिकायतें और मन को व्याकुल करने वाले विचार स्वतः शांत हो जाते हैं।
ਲਬਧਿ ਆਪਣੀ ਪਾਈ ॥ लबधि आपणी पाई ॥ जब किसी को वह नाम प्राप्त हो जाता है, जिसकी उसे सच्ची खोज थी
ਤਾ ਕਤ ਆਵੈ ਕਤ ਜਾਈ ॥੨॥ ता कत आवै कत जाई ॥२॥ तब मन का भटकाव शांत हो जाता है, और उसे कहीं और जाने की आवश्यकता नहीं रह जाती। ॥२॥
ਤਹ ਸਾਚ ਨਿਆਇ ਨਿਬੇਰਾ ॥ तह साच निआइ निबेरा ॥ वहाँ सत्य के न्यायालय में सच्चा न्याय होता है।
ਊਹਾ ਸਮ ਠਾਕੁਰੁ ਸਮ ਚੇਰਾ ॥ ऊहा सम ठाकुरु सम चेरा ॥ प्रभु के दरबार में तो जैसा मालिक है, वैसा ही नौकर है।
ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਜਾਨੈ ॥ अंतरजामी जानै ॥ अंतर्यामी प्रभु सर्वज्ञाता है और
ਬਿਨੁ ਬੋਲਤ ਆਪਿ ਪਛਾਨੈ ॥੩॥ बिनु बोलत आपि पछानै ॥३॥ मनुष्य के कुछ बोले बिना ही वह स्वयं ही मनोरथ को पहचान लेता है।॥३॥
ਸਰਬ ਥਾਨ ਕੋ ਰਾਜਾ ॥ सरब थान को राजा ॥ वह सब स्थानों का राजा है,
ਤਹ ਅਨਹਦ ਸਬਦ ਅਗਾਜਾ ॥ तह अनहद सबद अगाजा ॥ वहाँ अनहद शब्द गूंजता रहता है।
ਤਿਸੁ ਪਹਿ ਕਿਆ ਚਤੁਰਾਈ ॥ तिसु पहि किआ चतुराई ॥ उसे प्राप्त करने के लिए कोई भी व्यक्ति चतुराई या बुद्धि का सहारा नहीं ले सकता।
ਮਿਲੁ ਨਾਨਕ ਆਪੁ ਗਵਾਈ ॥੪॥੧॥੫੧॥ मिलु नानक आपु गवाई ॥४॥१॥५१॥ हे नानक ! अपने अहंकार को दूर करके प्रभु से मिलन करो।॥ ४॥ १॥ ५१॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सोरठि महला ५ ॥ राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਵਸਾਇਹੁ ॥ हिरदै नामु वसाइहु ॥ अपने हृदय में परमात्मा के नाम को बसाओ और
ਘਰਿ ਬੈਠੇ ਗੁਰੂ ਧਿਆਇਹੁ ॥ घरि बैठे गुरू धिआइहु ॥ घर में बैठे ही गुरु का ध्यान करो।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਸਚੁ ਕਹਿਆ ॥ गुरि पूरै सचु कहिआ ॥ पूर्ण गुरु ने सत्य ही कहा है कि
ਸੋ ਸੁਖੁ ਸਾਚਾ ਲਹਿਆ ॥੧॥ सो सुखु साचा लहिआ ॥१॥ सच्चा सुख भगवान् से ही प्राप्त होता है॥ १॥
ਅਪੁਨਾ ਹੋਇਓ ਗੁਰੁ ਮਿਹਰਵਾਨਾ ॥ अपुना होइओ गुरु मिहरवाना ॥ हे मित्रो, जिन लोगों पर गुरु की कृपा होती है,
ਅਨਦ ਸੂਖ ਕਲਿਆਣ ਮੰਗਲ ਸਿਉ ਘਰਿ ਆਏ ਕਰਿ ਇਸਨਾਨਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥ अनद सूख कलिआण मंगल सिउ घरि आए करि इसनाना ॥ रहाउ ॥ जिसके फलस्वरूप आनंद, सुख, कल्याण एवं मंगल सहित मैं स्नान करके अपने घर में आ गया हूँ॥ रहाउ॥
ਸਾਚੀ ਗੁਰ ਵਡਿਆਈ ॥ साची गुर वडिआई ॥ मेरे गुरु की महिमा सत्य है,
ਤਾ ਕੀ ਕੀਮਤਿ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ॥ ता की कीमति कहणु न जाई ॥ जिसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।
ਸਿਰਿ ਸਾਹਾ ਪਾਤਿਸਾਹਾ ॥ सिरि साहा पातिसाहा ॥ वह तो राजाओं का भी महाराजा है।
ਗੁਰ ਭੇਟਤ ਮਨਿ ਓਮਾਹਾ ॥੨॥ गुर भेटत मनि ओमाहा ॥२॥ गुरु से भेंट करके मन में उत्साह उत्पन्न हो जाता है॥ २॥
ਸਗਲ ਪਰਾਛਤ ਲਾਥੇ ॥ ਮਿਲਿ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਕੈ ਸਾਥੇ ॥ सगल पराछत लाथे ॥ मिलि साधसंगति कै साथे ॥ तब सभी पाप नाश हो जाते हैं जब संतों की संगति में सम्मिलित होते है ।
ਗੁਣ ਨਿਧਾਨ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ॥ गुण निधान हरि नामा ॥ हरि का नाम गुणों का खजाना है,
ਜਪਿ ਪੂਰਨ ਹੋਏ ਕਾਮਾ ॥੩॥ जपि पूरन होए कामा ॥३॥ जिसका जाप करने से कार्य सम्पूर्ण हो जाते हैं।॥ ३॥
ਗੁਰਿ ਕੀਨੋ ਮੁਕਤਿ ਦੁਆਰਾ ॥ गुरि कीनो मुकति दुआरा ॥ गुरु ने मोक्ष का द्वार खोल दिया और
ਸਭ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਕਰੈ ਜੈਕਾਰਾ ॥ सभ स्रिसटि करै जैकारा ॥ सारी दुनिया गुरु की जय-जयकार करती है।
ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰੈ ਸਾਥੇ ॥ नानक प्रभु मेरै साथे ॥ हे नानक ! प्रभु मेरे साथ है,
ਜਨਮ ਮਰਣ ਭੈ ਲਾਥੇ ॥੪॥੨॥੫੨॥ जनम मरण भै लाथे ॥४॥२॥५२॥ इसलिए मेरा जन्म-मरण का भय दूर हो गया है ॥४॥२॥५२॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सोरठि महला ५ ॥ राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ॥ गुरि पूरै किरपा धारी ॥ पूर्ण गुरु ने मुझ पर बड़ी कृपा की है,
ਪ੍ਰਭਿ ਪੂਰੀ ਲੋਚ ਹਮਾਰੀ ॥ प्रभि पूरी लोच हमारी ॥ जिसके फलस्वरूप प्रभु ने हमारी मनोकामना पूरी कर दी है।
ਕਰਿ ਇਸਨਾਨੁ ਗ੍ਰਿਹਿ ਆਏ ॥ करि इसनानु ग्रिहि आए ॥ नाम का स्नान करके मैं घर आ गया हूँ और
ਅਨਦ ਮੰਗਲ ਸੁਖ ਪਾਏ ॥੧॥ अनद मंगल सुख पाए ॥१॥ मुझे आनंद, मंगल एवं सुख की प्राप्ति हो गई है॥ १॥
ਸੰਤਹੁ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਨਿਸਤਰੀਐ ॥ संतहु राम नामि निसतरीऐ ॥ हे संतो ! राम-नाम के सिमरन से ही मुक्ति प्राप्त होती है।
ਊਠਤ ਬੈਠਤ ਹਰਿ ਹਰਿ ਧਿਆਈਐ ਅਨਦਿਨੁ ਸੁਕ੍ਰਿਤੁ ਕਰੀਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ऊठत बैठत हरि हरि धिआईऐ अनदिनु सुक्रितु करीऐ ॥१॥ रहाउ ॥ इसलिए हमें उठते-बैठते हर समय परमात्मा का ध्यान करना चाहिए और प्रतिदिन शुभ कर्म ही करने चाहिए ॥ १॥ रहाउ ॥


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