Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 605

Page 605

ਆਪੇ ਹੀ ਸੂਤਧਾਰੁ ਹੈ ਪਿਆਰਾ ਸੂਤੁ ਖਿੰਚੇ ਢਹਿ ਢੇਰੀ ਹੋਇ ॥੧॥ आपे ही सूतधारु है पिआरा सूतु खिंचे ढहि ढेरी होइ ॥१॥ भगवान् स्वयं अपनी शक्ति का वह धागा थामे हुए हैं, और जब वे उसे खींचते हैं, तो पूरा ब्रह्मांड जैसे ढेर बनकर गिर जाता है और नष्ट हो जाता है। ॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਮੈ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥ मेरे मन मै हरि बिनु अवरु न कोइ ॥ हे मेरे मन ! श्रीहरि के अतिरिक्त मेरा अन्य कोई आधार नहीं।
ਸਤਿਗੁਰ ਵਿਚਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਹੈ ਪਿਆਰਾ ਕਰਿ ਦਇਆ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਮੁਖਿ ਚੋਇ ॥ ਰਹਾਉ ॥ सतिगुर विचि नामु निधानु है पिआरा करि दइआ अम्रितु मुखि चोइ ॥ रहाउ ॥ सतगुरु के भीतर ही नाम का खजाना है और वह प्रिय प्रभु अपनी दया करके हमारे मुख में नामामृत डालता रहता है॥ रहाउ॥
ਆਪੇ ਜਲ ਥਲਿ ਸਭਤੁ ਹੈ ਪਿਆਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪੇ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਇ ॥ आपे जल थलि सभतु है पिआरा प्रभु आपे करे सु होइ ॥ प्रिय प्रभु स्वयं ही समुद्र, धरती में सर्वत्र विद्यमान है और जो कुछ भी स्वयं करता है, जग में वही होता है।
ਸਭਨਾ ਰਿਜਕੁ ਸਮਾਹਦਾ ਪਿਆਰਾ ਦੂਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥ सभना रिजकु समाहदा पिआरा दूजा अवरु न कोइ ॥ वह प्रियतम प्रभु समस्त प्राणियों को आहार प्रदान करता है उसके अतिरिक्त तो दूसरा कोई नहीं।
ਆਪੇ ਖੇਲ ਖੇਲਾਇਦਾ ਪਿਆਰਾ ਆਪੇ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਇ ॥੨॥ आपे खेल खेलाइदा पिआरा आपे करे सु होइ ॥२॥ वह परमेश्वर स्वयं दुनिया के खेल खेलता और खिलाता है, जो कुछ वह स्वयं करता है दुनिया में वही होता है॥ २॥
ਆਪੇ ਹੀ ਆਪਿ ਨਿਰਮਲਾ ਪਿਆਰਾ ਆਪੇ ਨਿਰਮਲ ਸੋਇ ॥ आपे ही आपि निरमला पिआरा आपे निरमल सोइ ॥ वह प्रिय प्रभु स्वयं ही निर्मल है और उसकी कीर्ति भी निर्मल है।
ਆਪੇ ਕੀਮਤਿ ਪਾਇਦਾ ਪਿਆਰਾ ਆਪੇ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਇ ॥ आपे कीमति पाइदा पिआरा आपे करे सु होइ ॥ वह स्वयं ही अपना मूल्यांकन जानता है और जो वह स्वयं करता है, वही होता है।
ਆਪੇ ਅਲਖੁ ਨ ਲਖੀਐ ਪਿਆਰਾ ਆਪਿ ਲਖਾਵੈ ਸੋਇ ॥੩॥ आपे अलखु न लखीऐ पिआरा आपि लखावै सोइ ॥३॥ ईश्वर अवर्णनीय है, उसका स्वरूप वर्णन से परे है; वह स्वयं ही कई लोगों को अपने स्वरूप का अनुभव कराते हैं।॥ ३॥
ਆਪੇ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰੁ ਹੈ ਪਿਆਰਾ ਤਿਸੁ ਜੇਵਡੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥ आपे गहिर ग्मभीरु है पिआरा तिसु जेवडु अवरु न कोइ ॥ वह प्रिय प्रभु स्वयं ही गहन और गंभीर है, उस जैसा महान् सृष्टि में कोई नहीं।
ਸਭਿ ਘਟ ਆਪੇ ਭੋਗਵੈ ਪਿਆਰਾ ਵਿਚਿ ਨਾਰੀ ਪੁਰਖ ਸਭੁ ਸੋਇ ॥ सभि घट आपे भोगवै पिआरा विचि नारी पुरख सभु सोइ ॥ वह प्रियतम समस्त हृदयों में व्याप्त होकर भोग भोगता है और समस्त स्त्रियों एवं पुरुषों में विद्यमान है।
ਨਾਨਕ ਗੁਪਤੁ ਵਰਤਦਾ ਪਿਆਰਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਰਗਟੁ ਹੋਇ ॥੪॥੨॥ नानक गुपतु वरतदा पिआरा गुरमुखि परगटु होइ ॥४॥२॥ हे नानक ! प्रिय प्रभु स्वयं ही गुप्त रूप में सर्वव्यापी है और गुरु के माध्यम से ही वह प्रगट होता है॥ ४ ॥ २ ॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੪ ॥ सोरठि महला ४ ॥ राग सोरठ, चौथे गुरु: ४ ॥
ਆਪੇ ਹੀ ਸਭੁ ਆਪਿ ਹੈ ਪਿਆਰਾ ਆਪੇ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪੈ ॥ आपे ही सभु आपि है पिआरा आपे थापि उथापै ॥ प्रभु स्वयं ही सर्वशक्तिमान है, वह स्वयं ही संसार बनाकर स्वयं ही उसका नाश कर देता है।
ਆਪੇ ਵੇਖਿ ਵਿਗਸਦਾ ਪਿਆਰਾ ਕਰਿ ਚੋਜ ਵੇਖੈ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪੈ ॥ आपे वेखि विगसदा पिआरा करि चोज वेखै प्रभु आपै ॥ परमेश्वर स्वयं ही अपनी सृष्टि रचना को देखकर खुश होते है और स्वयं अद्भुत कार्य करते हैं और स्वयं उन्हें देख भी रहे हैं।
ਆਪੇ ਵਣਿ ਤਿਣਿ ਸਭਤੁ ਹੈ ਪਿਆਰਾ ਆਪੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਪੈ ॥੧॥ आपे वणि तिणि सभतु है पिआरा आपे गुरमुखि जापै ॥१॥ वह प्रिय प्रभु स्वयं ही वनों एवं तृणों में सर्वत्र विद्यमान है और वह गुरु के माध्यम से ही मालूम होता है ॥१॥
ਜਪਿ ਮਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮ ਰਸਿ ਧ੍ਰਾਪੈ ॥ जपि मन हरि हरि नाम रसि ध्रापै ॥ हे मन ! हरि-नाम का जाप करो, नाम-रस से तू तृप्त हो जाएगा।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਮਹਾ ਰਸੁ ਮੀਠਾ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਚਖਿ ਜਾਪੈ ॥ ਰਹਾਉ ॥ अम्रित नामु महा रसु मीठा गुर सबदी चखि जापै ॥ रहाउ ॥ हरिनामामृत महा रस मीठा है और गुरु के शब्द द्वारा चखकर ही इसका स्वाद मालूम होता है ॥ रहाउ ॥
ਆਪੇ ਤੀਰਥੁ ਤੁਲਹੜਾ ਪਿਆਰਾ ਆਪਿ ਤਰੈ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪੈ ॥ आपे तीरथु तुलहड़ा पिआरा आपि तरै प्रभु आपै ॥ वह प्रिय प्रभु स्वयं ही तीर्थ एवं बेड़ा है और स्वयं ही पार करवाता है।
ਆਪੇ ਜਾਲੁ ਵਤਾਇਦਾ ਪਿਆਰਾ ਸਭੁ ਜਗੁ ਮਛੁਲੀ ਹਰਿ ਆਪੈ ॥ आपे जालु वताइदा पिआरा सभु जगु मछुली हरि आपै ॥ वह स्वयं ही जाल बिछाता है और वह हरि स्वयं ही सांसारिक जाल में फंसने वाली दुनिया रूपी मछली है।
ਆਪਿ ਅਭੁਲੁ ਨ ਭੁਲਈ ਪਿਆਰਾ ਅਵਰੁ ਨ ਦੂਜਾ ਜਾਪੈ ॥੨॥ आपि अभुलु न भुलई पिआरा अवरु न दूजा जापै ॥२॥ वह प्रियतम प्रभु अविस्मरणीय है और वह भूलता नहीं। उस जैसा महान् दूसरा कोई मुझे नज़र नहीं आता ॥ २॥
ਆਪੇ ਸਿੰਙੀ ਨਾਦੁ ਹੈ ਪਿਆਰਾ ਧੁਨਿ ਆਪਿ ਵਜਾਏ ਆਪੈ ॥ आपे सिंङी नादु है पिआरा धुनि आपि वजाए आपै ॥ वह प्रियतम प्रभु स्वयं ही (सिंडीनाद) योगी की वीणा एवं नाद है और अपने आप ही ध्वनि बजाता है।
ਆਪੇ ਜੋਗੀ ਪੁਰਖੁ ਹੈ ਪਿਆਰਾ ਆਪੇ ਹੀ ਤਪੁ ਤਾਪੈ ॥ आपे जोगी पुरखु है पिआरा आपे ही तपु तापै ॥ वह स्वयं ही योगी पुरुष है और स्वयं ही तपस्या करता है।
ਆਪੇ ਸਤਿਗੁਰੁ ਆਪਿ ਹੈ ਚੇਲਾ ਉਪਦੇਸੁ ਕਰੈ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪੈ ॥੩॥ आपे सतिगुरु आपि है चेला उपदेसु करै प्रभु आपै ॥३॥ वह प्रभु स्वयं ही सतगुरु और स्वयं ही शिष्य है और आप ही उपदेश करता है॥ ३॥
ਆਪੇ ਨਾਉ ਜਪਾਇਦਾ ਪਿਆਰਾ ਆਪੇ ਹੀ ਜਪੁ ਜਾਪੈ ॥ आपे नाउ जपाइदा पिआरा आपे ही जपु जापै ॥ वह प्रिय प्रभु स्वयं ही प्राणियों से नाम का जाप करवाते हैं और स्वयं ही जाप जपता है।
ਆਪੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਆਪਿ ਹੈ ਪਿਆਰਾ ਆਪੇ ਹੀ ਰਸੁ ਆਪੈ ॥ आपे अम्रितु आपि है पिआरा आपे ही रसु आपै ॥ वह प्रिय स्वयं ही अमृत है और स्वयं ही अमृत-रस का पान करता है।
ਆਪੇ ਆਪਿ ਸਲਾਹਦਾ ਪਿਆਰਾ ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਰਸਿ ਧ੍ਰਾਪੈ ॥੪॥੩॥ आपे आपि सलाहदा पिआरा जन नानक हरि रसि ध्रापै ॥४॥३॥ वह प्रिय प्रभु स्वयं ही अपनी सरहाना करता है। सेवक नानक तो हरि रस से तृप्त हो गया है॥ ४॥ ३॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੪ ॥ सोरठि महला ४ ॥ राग सोरठ, चौथे गुरु: ४ ॥
ਆਪੇ ਕੰਡਾ ਆਪਿ ਤਰਾਜੀ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪੇ ਤੋਲਿ ਤੋਲਾਇਆ ॥ आपे कंडा आपि तराजी प्रभि आपे तोलि तोलाइआ ॥ ईश्वर स्वयं ही संतुलन हैं, स्वयं ही उसे नापने वाले हैं। उन्होंने ही संसार को तोला है और संतुलित रखा है।
ਆਪੇ ਸਾਹੁ ਆਪੇ ਵਣਜਾਰਾ ਆਪੇ ਵਣਜੁ ਕਰਾਇਆ ॥ आपे साहु आपे वणजारा आपे वणजु कराइआ ॥ वह स्वयं ही साहूकार हैं, स्वयं ही व्यापारी है और स्वयं ही व्यापार करवाता है।
ਆਪੇ ਧਰਤੀ ਸਾਜੀਅਨੁ ਪਿਆਰੈ ਪਿਛੈ ਟੰਕੁ ਚੜਾਇਆ ॥੧॥ आपे धरती साजीअनु पिआरै पिछै टंकु चड़ाइआ ॥१॥ ईश्वर ने स्वयं अपनी एक आज्ञा से संसार को बनाया और इसे पूर्ण संतुलन में रखा।॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਧਿਆਇ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥ मेरे मन हरि हरि धिआइ सुखु पाइआ ॥ हे मेरे मन ! हरि-परमेश्वर का सिमरन करने से सुख प्राप्त हुआ है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਹੈ ਪਿਆਰਾ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਮੀਠਾ ਲਾਇਆ ॥ ਰਹਾਉ ॥ हरि हरि नामु निधानु है पिआरा गुरि पूरै मीठा लाइआ ॥ रहाउ ॥ प्रिय हरि-नाम सुख-समृद्धि का भण्डार है और और जो गुरु की बात मानता है, उसे पूर्ण गुरु सच्चा सुख प्रदान करते हैं। ॥ रहाउ॥
ਆਪੇ ਧਰਤੀ ਆਪਿ ਜਲੁ ਪਿਆਰਾ ਆਪੇ ਕਰੇ ਕਰਾਇਆ ॥ आपे धरती आपि जलु पिआरा आपे करे कराइआ ॥ वह स्वयं ही धरती एवं स्वयं ही जल है और वह स्वयं ही सब कुछ करता और जीवों से करवाता है।
ਆਪੇ ਹੁਕਮਿ ਵਰਤਦਾ ਪਿਆਰਾ ਜਲੁ ਮਾਟੀ ਬੰਧਿ ਰਖਾਇਆ ॥ आपे हुकमि वरतदा पिआरा जलु माटी बंधि रखाइआ ॥ वह प्रिय प्रभु स्वयं ही आदेश लागू करते हैं और जल एवं भूमि को बांधकर रखते हैं।
ਆਪੇ ਹੀ ਭਉ ਪਾਇਦਾ ਪਿਆਰਾ ਬੰਨਿ ਬਕਰੀ ਸੀਹੁ ਹਢਾਇਆ ॥੨॥ आपे ही भउ पाइदा पिआरा बंनि बकरी सीहु हढाइआ ॥२॥ ईश्वर ने स्वयं समुद्र में ऐसा भय भर दिया है कि वह ज़मीन को नष्ट नहीं कर सकता जैसे किसी ने बकरी और सिंह को एक ही रस्सी से बाँधकर शांति से साथ चला दिया हो।॥ २॥


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