Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 574

Page 574

ਜਿਨੀ ਦਰਸਨੁ ਜਿਨੀ ਦਰਸਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਪੁਰਖ ਨ ਪਾਇਆ ਰਾਮ ॥ जिनी दरसनु जिनी दरसनु सतिगुर पुरख न पाइआ राम ॥ जिन्होंने महापुरुष सतगुरु के दर्शन नहीं किए,
ਤਿਨ ਨਿਹਫਲੁ ਤਿਨ ਨਿਹਫਲੁ ਜਨਮੁ ਸਭੁ ਬ੍ਰਿਥਾ ਗਵਾਇਆ ਰਾਮ ॥ तिन निहफलु तिन निहफलु जनमु सभु ब्रिथा गवाइआ राम ॥ उन्होंने अपना मानव जीवन व्यर्थ ही गंवा दिया है और
ਨਿਹਫਲੁ ਜਨਮੁ ਤਿਨ ਬ੍ਰਿਥਾ ਗਵਾਇਆ ਤੇ ਸਾਕਤ ਮੁਏ ਮਰਿ ਝੂਰੇ ॥ निहफलु जनमु तिन ब्रिथा गवाइआ ते साकत मुए मरि झूरे ॥ उन्होंने अपना जीवन व्यर्थ गंवा दिया, धन-सम्पदा और सत्ता के उपासक बनकर ऐसे लोग आध्यात्मिक रूप से मृत हैं।
ਘਰਿ ਹੋਦੈ ਰਤਨਿ ਪਦਾਰਥਿ ਭੂਖੇ ਭਾਗਹੀਣ ਹਰਿ ਦੂਰੇ ॥ घरि होदै रतनि पदारथि भूखे भागहीण हरि दूरे ॥ हृदय में भगवान् के नाम का अनमोल रत्न समाए होने पर भी वे अभागे लोग भूखे रहे और उसके दिव्य आशीर्वाद से वंचित रह गए।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਤਿਨ ਕਾ ਦਰਸੁ ਨ ਕਰੀਅਹੁ ਜਿਨੀ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨ ਧਿਆਇਆ ॥ हरि हरि तिन का दरसु न करीअहु जिनी हरि हरि नामु न धिआइआ ॥ हे परमेश्वर ! मैं उनके दर्शन नहीं करना चाहता, जिन्होंने हरि-नाम का ध्यान नहीं किया और
ਜਿਨੀ ਦਰਸਨੁ ਜਿਨੀ ਦਰਸਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਪੁਰਖ ਨ ਪਾਇਆ ॥੩॥ जिनी दरसनु जिनी दरसनु सतिगुर पुरख न पाइआ ॥३॥ न ही महापुरुष सतगुरु के दर्शन किए हैं।॥ ३॥
ਹਮ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਹਮ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਦੀਨ ਹਰਿ ਪਾਸਿ ਬੇਨੰਤੀ ਰਾਮ ॥ हम चात्रिक हम चात्रिक दीन हरि पासि बेनंती राम ॥ हम दीन-चातक हैं और अपने हरि-परमेश्वर के समक्ष निवेदन करते हैं कि
ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਗੁਰ ਮੇਲਿ ਮੇਰਾ ਪਿਆਰਾ ਹਮ ਸਤਿਗੁਰ ਕਰਹ ਭਗਤੀ ਰਾਮ ॥ गुर मिलि गुर मेलि मेरा पिआरा हम सतिगुर करह भगती राम ॥ हमें प्रियतम गुरु से मिला दें ताकि हम सतगुरु की भक्ति करें।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਤਿਗੁਰ ਕਰਹ ਭਗਤੀ ਜਾਂ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੇ ॥ हरि हरि सतिगुर करह भगती जां हरि प्रभु किरपा धारे ॥ जब हरि-प्रभु की कृपा होती है तो ही सतगुरु की भक्ति करते हैं।
ਮੈ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ਬੇਲੀ ਗੁਰੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪ੍ਰਾਣ ਹਮ੍ਹ੍ਹਾਰੇ ॥ मै गुर बिनु अवरु न कोई बेली गुरु सतिगुरु प्राण हम्हारे ॥ गुरु के बिना मेरा कोई मित्र नहीं और गुरु सतगुरु ही हमारे प्राण हैं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜ੍ਹਾਇਆ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਸਤੀ ॥ कहु नानक गुरि नामु द्रिड़्हाइआ हरि हरि नामु हरि सती ॥ नानक का कथन है कि गुरु ने मेरे भीतर परमात्मा का नाम बसा दिया है और उस सच्चे हरि-परमेश्वर के नाम का सिमरन करता हूँ,
ਹਮ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਹਮ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਦੀਨ ਹਰਿ ਪਾਸਿ ਬੇਨੰਤੀ ॥੪॥੩॥ हम चात्रिक हम चात्रिक दीन हरि पासि बेनंती ॥४॥३॥ हम दीन चातक हैं और अपने प्रभु के समक्ष निवेदन करते हैं।॥ ४॥ ३॥
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੪ ॥ वडहंसु महला ४ ॥ राग वदाहंस, चौथे गुरु: ४ ॥
ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਕਰਿ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਲਿ ਸੁਖਦਾਤਾ ਰਾਮ ॥ हरि किरपा हरि किरपा करि सतिगुरु मेलि सुखदाता राम ॥ हे हरि ! मुझ पर कृपा करो एवं सुखों के दाता सतगुरु से मिला दो।
ਹਮ ਪੂਛਹ ਹਮ ਪੂਛਹ ਸਤਿਗੁਰ ਪਾਸਿ ਹਰਿ ਬਾਤਾ ਰਾਮ ॥ हम पूछह हम पूछह सतिगुर पासि हरि बाता राम ॥ सतगुरु से मैं हरि की स्तुति की बातें पूछँगा।
ਸਤਿਗੁਰ ਪਾਸਿ ਹਰਿ ਬਾਤ ਪੂਛਹ ਜਿਨਿ ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਪਾਇਆ ॥ सतिगुर पासि हरि बात पूछह जिनि नामु पदारथु पाइआ ॥ जिसने नाम-धन प्राप्त किया है, मैं उस सतगुरु से हरि की स्तुति की बातें पूछँगा।
ਪਾਇ ਲਗਹ ਨਿਤ ਕਰਹ ਬਿਨੰਤੀ ਗੁਰਿ ਸਤਿਗੁਰਿ ਪੰਥੁ ਬਤਾਇਆ ॥ पाइ लगह नित करह बिनंती गुरि सतिगुरि पंथु बताइआ ॥ गुरु सतगुरु ने मुझे मार्ग बताया है, इसलिए मैं नित्य उसके चरण स्पर्श करता हूँ और उसके समक्ष सदा निवेदन करता हूँ।
ਸੋਈ ਭਗਤੁ ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਸਮਤੁ ਕਰਿ ਜਾਣੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਹਰਿ ਰਾਤਾ ॥ सोई भगतु दुखु सुखु समतु करि जाणै हरि हरि नामि हरि राता ॥ जो हरि-नाम एवं हरि से रंगा हुआ है, वही भक्त दुःख-सुख को एक समान समझता है।
ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਕਰਿ ਗੁਰੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਲਿ ਸੁਖਦਾਤਾ ॥੧॥ हरि किरपा हरि किरपा करि गुरु सतिगुरु मेलि सुखदाता ॥१॥ हे हरि ! मुझ पर कृपा करो और मुझे सुखों के दाता गुरु से मिला दो॥ १॥
ਸੁਣਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੁਣਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮਿ ਸਭਿ ਬਿਨਸੇ ਹੰਉਮੈ ਪਾਪਾ ਰਾਮ ॥ सुणि गुरमुखि सुणि गुरमुखि नामि सभि बिनसे हंउमै पापा राम ॥ गुरु के मुख से परमात्मा का नाम सुनकर मेरे सभी पाप एवं अहंकार नष्ट हो गए हैं।
ਜਪਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਲਥਿਅੜੇ ਜਗਿ ਤਾਪਾ ਰਾਮ ॥ जपि हरि हरि जपि हरि हरि नामु लथिअड़े जगि तापा राम ॥ हरि-नाम का भजन करने से संसार के सभी रोग निवृत्त हो जाते हैं।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਿਨੀ ਆਰਾਧਿਆ ਤਿਨ ਕੇ ਦੁਖ ਪਾਪ ਨਿਵਾਰੇ ॥ हरि हरि नामु जिनी आराधिआ तिन के दुख पाप निवारे ॥ जिन्होंने हरि-नाम की आराधना की है, उनके दुःख एवं पाप नाश हो गए हैं।
ਸਤਿਗੁਰਿ ਗਿਆਨ ਖੜਗੁ ਹਥਿ ਦੀਨਾ ਜਮਕੰਕਰ ਮਾਰਿ ਬਿਦਾਰੇ ॥ सतिगुरि गिआन खड़गु हथि दीना जमकंकर मारि बिदारे ॥ जिन्हें सच्चे गुरु ने अपने दिव्य ज्ञान की तलवार से आशीष दिया है, वे मृत्यु के भय से सदा के लिए मुक्त हो जाते हैं।
ਹਰਿ ਪ੍ਰਭਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਧਾਰੀ ਸੁਖਦਾਤੇ ਦੁਖ ਲਾਥੇ ਪਾਪ ਸੰਤਾਪਾ ॥ हरि प्रभि क्रिपा धारी सुखदाते दुख लाथे पाप संतापा ॥ सुखों के दाता हरि-प्रभु ने मुझ पर कृपा धारण की है और मैं दुःख, पाप एवं संताप से मुक्त हो गया हूँ।
ਸੁਣਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੁਣਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਸਭਿ ਬਿਨਸੇ ਹੰਉਮੈ ਪਾਪਾ ॥੨॥ सुणि गुरमुखि सुणि गुरमुखि नामु सभि बिनसे हंउमै पापा ॥२॥ गुरु से परमात्मा का नाम सुनकर मेरे सभी पाप एवं अहंकार नष्ट हो गए हैं।॥ २॥
ਜਪਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਭਾਇਆ ਰਾਮ ॥ जपि हरि हरि जपि हरि हरि नामु मेरै मनि भाइआ राम ॥ हरि का भजन करने से हरि का नाम मेरे मन को बहुत अच्छा लगा है।
ਮੁਖਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮੁਖਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਪਿ ਸਭਿ ਰੋਗ ਗਵਾਇਆ ਰਾਮ ॥ मुखि गुरमुखि मुखि गुरमुखि जपि सभि रोग गवाइआ राम ॥ गुरुमुख बनकर परमात्मा का भजन करने से सभी रोग नष्ट हो गए हैं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਪਿ ਸਭਿ ਰੋਗ ਗਵਾਇਆ ਅਰੋਗਤ ਭਏ ਸਰੀਰਾ ॥ गुरमुखि जपि सभि रोग गवाइआ अरोगत भए सरीरा ॥ गुरुमुख बनकर परमात्मा की आराधना करने से सभी रोग दूर हो गए हैं और शरीर आरोग्य हो गया है।
ਅਨਦਿਨੁ ਸਹਜ ਸਮਾਧਿ ਹਰਿ ਲਾਗੀ ਹਰਿ ਜਪਿਆ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰਾ ॥ अनदिनु सहज समाधि हरि लागी हरि जपिआ गहिर ग्मभीरा ॥ रात-दिन सहज समाधि हरि में लगी रहती है ताकि मैंने गहरे एवं गंभीर हरि का ही ध्यान किया है।
ਜਾਤਿ ਅਜਾਤਿ ਨਾਮੁ ਜਿਨ ਧਿਆਇਆ ਤਿਨ ਪਰਮ ਪਦਾਰਥੁ ਪਾਇਆ ॥ जाति अजाति नामु जिन धिआइआ तिन परम पदारथु पाइआ ॥ उच्च कुल अथवा निम्न कुल से संबंधित जिस व्यक्ति ने भी परमात्मा का ध्यान-मनन किया है, उसने परम पदार्थ (मोक्ष) पा लिया है।
ਜਪਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਭਾਇਆ ॥੩॥ जपि हरि हरि जपि हरि हरि नामु मेरै मनि भाइआ ॥३॥ हरि का भजन करने से हरि-नाम मेरे मन को अच्छा लगा है ॥३॥


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