Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 572

Page 572

ਘਰ ਮਹਿ ਨਿਜ ਘਰੁ ਪਾਇਆ ਸਤਿਗੁਰੁ ਦੇਇ ਵਡਾਈ ॥ घर महि निज घरु पाइआ सतिगुरु देइ वडाई ॥ वह अपने हृदय में अपना यथार्थ घर प्राप्त कर लेता है और सतगुरु उसे मान-सम्मान प्रदान करते हैं।
ਨਾਨਕ ਜੋ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਸੇਈ ਮਹਲੁ ਪਾਇਨਿ ਮਤਿ ਪਰਵਾਣੁ ਸਚੁ ਸਾਈ ॥੪॥੬॥ नानक जो नामि रते सेई महलु पाइनि मति परवाणु सचु साई ॥४॥६॥ हे नानक ! जो प्राणी परमेश्वर के नाम में लीन रहते हैं, वे सच्चे दरबार को प्राप्त कर लेते हैं और सच्चे प्रभु के सन्मुख उनकी मति स्वीकृत हो जाती है॥ ४॥ ६॥
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੪ ਛੰਤ॥ वडहंसु महला ४ छंत राग वदाहंस, चतुर्थ गुरु, छंद:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਸਤਿਗੁਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗਾਈ ਰਾਮ ॥ मेरै मनि मेरै मनि सतिगुरि प्रीति लगाई राम ॥ सतगुरु ने मेरे मन में प्रभु से प्रीति लगा दी है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮੇਰੈ ਮੰਨਿ ਵਸਾਈ ਰਾਮ ॥ हरि हरि हरि हरि नामु मेरै मंनि वसाई राम ॥ उसने मेरे मन में परमात्मा का हरि नाम बसा दिया है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮੇਰੈ ਮੰਨਿ ਵਸਾਈ ਸਭਿ ਦੂਖ ਵਿਸਾਰਣਹਾਰਾ ॥ हरि हरि नामु मेरै मंनि वसाई सभि दूख विसारणहारा ॥ सभी दुःख मिटाने वाला हरि का हरि-नाम गुरु ने मेरे मन में बसा दिया है।
ਵਡਭਾਗੀ ਗੁਰ ਦਰਸਨੁ ਪਾਇਆ ਧਨੁ ਧਨੁ ਸਤਿਗੁਰੂ ਹਮਾਰਾ ॥ वडभागी गुर दरसनु पाइआ धनु धनु सतिगुरू हमारा ॥ सौभाग्य से मुझे गुरु के दर्शन प्राप्त हुए हैं और मेरे सतगुरु धन्य है।
ਊਠਤ ਬੈਠਤ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਹ ਜਿਤੁ ਸੇਵਿਐ ਸਾਂਤਿ ਪਾਈ ॥ ऊठत बैठत सतिगुरु सेवह जितु सेविऐ सांति पाई ॥ मैं उठते-बैठते गुरु की सेवा ही करता रहता हूँ, जिसकी सेवा के फलस्वरूप शांति प्राप्त हुई है।
ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗਾਈ ॥੧॥ मेरै मनि मेरै मनि सतिगुर प्रीति लगाई ॥१॥ मेरे मन में सतगुरु ने परमात्मा से प्रीति लगा दी है॥ १॥
ਹਉ ਜੀਵਾ ਹਉ ਜੀਵਾ ਸਤਿਗੁਰ ਦੇਖਿ ਸਰਸੇ ਰਾਮ ॥ हउ जीवा हउ जीवा सतिगुर देखि सरसे राम ॥ सतगुरु को देखकर मैं जीता हूँ और मेरा मन फूलों की भाँति खिला रहता है।
ਹਰਿ ਨਾਮੋ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ਜਪਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਿਗਸੇ ਰਾਮ ॥ हरि नामो हरि नामु द्रिड़ाए जपि हरि हरि नामु विगसे राम ॥ गुरु ने मेरे मन में हरि-नाम बसा दिया है और हरि-नाम जपकर मेरा मन खिला रहता है।
ਜਪਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਕਮਲ ਪਰਗਾਸੇ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨਵੰ ਨਿਧਿ ਪਾਈ ॥ जपि हरि हरि नामु कमल परगासे हरि नामु नवं निधि पाई ॥ हरि-नाम का भजन करने से हृदय-कमल खिल गया है और हरि-नाम द्वारा ही नवनिधियाँ प्राप्त कर ली हैं।
ਹਉਮੈ ਰੋਗੁ ਗਇਆ ਦੁਖੁ ਲਾਥਾ ਹਰਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਧਿ ਲਗਾਈ ॥ हउमै रोगु गइआ दुखु लाथा हरि सहजि समाधि लगाई ॥ अहंकार का रोग दूर हो गया है, पीड़ा भी मिट गई है और मैंने सहज अवस्था में हरि में समाधि लगाई है।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਡਾਈ ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਪਾਈ ਸੁਖੁ ਸਤਿਗੁਰ ਦੇਵ ਮਨੁ ਪਰਸੇ ॥ हरि नामु वडाई सतिगुर ते पाई सुखु सतिगुर देव मनु परसे ॥ हरि के नाम की कीर्ति मुझे सतगुरु से प्राप्त हुई है और सुखदाता सतगुरु के चरण-स्पर्श से मन आनंदित हो गया है।
ਹਉ ਜੀਵਾ ਹਉ ਜੀਵਾ ਸਤਿਗੁਰ ਦੇਖਿ ਸਰਸੇ ॥੨॥ हउ जीवा हउ जीवा सतिगुर देखि सरसे ॥२॥ सतगुरु को देखकर मैं जीवन जीता हूँ और मेरा मन फूलों की भाँति खिला रहता है॥ २॥
ਕੋਈ ਆਣਿ ਕੋਈ ਆਣਿ ਮਿਲਾਵੈ ਮੇਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਰਾਮ ॥ कोई आणि कोई आणि मिलावै मेरा सतिगुरु पूरा राम ॥ कोई आकर मुझे मेरे पूर्ण सतगुरु से मिला दे।
ਹਉ ਮਨੁ ਤਨੁ ਹਉ ਮਨੁ ਤਨੁ ਦੇਵਾ ਤਿਸੁ ਕਾਟਿ ਸਰੀਰਾ ਰਾਮ ॥ हउ मनु तनु हउ मनु तनु देवा तिसु काटि सरीरा राम ॥ मैं अपना मन-तन उसे अर्पण कर दूँगा और अपने शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके उसे भेंट कर दूँगा।
ਹਉ ਮਨੁ ਤਨੁ ਕਾਟਿ ਕਾਟਿ ਤਿਸੁ ਦੇਈ ਜੋ ਸਤਿਗੁਰ ਬਚਨ ਸੁਣਾਏ ॥ हउ मनु तनु काटि काटि तिसु देई जो सतिगुर बचन सुणाए ॥ मैं मोह-माया का परित्याग कर दूँगा, और अपने मन व तन को उस महापुरुष के चरणों में अर्पित कर दूँगा, जो मुझे सच्चे गुरु के वचन सुनाएगा।
ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਬੈਰਾਗੁ ਭਇਆ ਬੈਰਾਗੀ ਮਿਲਿ ਗੁਰ ਦਰਸਨਿ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ॥ मेरै मनि बैरागु भइआ बैरागी मिलि गुर दरसनि सुखु पाए ॥ मेरा वैरागी मन संसार से विरक्त हो गया है और गुरु के दर्शन करके इसे सुख प्राप्त हो गया है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਹੁ ਸੁਖਦਾਤੇ ਦੇਹੁ ਸਤਿਗੁਰ ਚਰਨ ਹਮ ਧੂਰਾ ॥ हरि हरि क्रिपा करहु सुखदाते देहु सतिगुर चरन हम धूरा ॥ हे सुखों के दाता ! हे हरि-परमेश्वर ! मुझ पर कृपा करो, मुझे सतगुरु की चरण-धूलि प्रदान करो।
ਕੋਈ ਆਣਿ ਕੋਈ ਆਣਿ ਮਿਲਾਵੈ ਮੇਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ॥੩॥ कोई आणि कोई आणि मिलावै मेरा सतिगुरु पूरा ॥३॥ कोई आकर मुझे मेरे पूर्ण सतगुरु से मिला दे ॥ ३॥
ਗੁਰ ਜੇਵਡੁ ਗੁਰ ਜੇਵਡੁ ਦਾਤਾ ਮੈ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ਰਾਮ ॥ गुर जेवडु गुर जेवडु दाता मै अवरु न कोई राम ॥ गुरु जैसा महान् दाता मुझे कोई अन्य दिखाई नहीं आता।
ਹਰਿ ਦਾਨੋ ਹਰਿ ਦਾਨੁ ਦੇਵੈ ਹਰਿ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਸੋਈ ਰਾਮ ॥ हरि दानो हरि दानु देवै हरि पुरखु निरंजनु सोई राम ॥ वह मुझे हरि के नाम का दान प्रदान करते है और वह स्वयं ही निरंजन हरि-परमेश्वर है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਿਨੀ ਆਰਾਧਿਆ ਤਿਨ ਕਾ ਦੁਖੁ ਭਰਮੁ ਭਉ ਭਾਗਾ ॥ हरि हरि नामु जिनी आराधिआ तिन का दुखु भरमु भउ भागा ॥ जिन्होंने हरि-नाम की आराधना की है, उनका दु:ख, भ्रम एवं भय भाग गए हैं।
ਸੇਵਕ ਭਾਇ ਮਿਲੇ ਵਡਭਾਗੀ ਜਿਨ ਗੁਰ ਚਰਨੀ ਮਨੁ ਲਾਗਾ ॥ सेवक भाइ मिले वडभागी जिन गुर चरनी मनु लागा ॥ वे धन्य हैं, जिनका मन गुरु के वचनों में लीन हुआ है। उन्होंने अपनी भक्ति के माध्यम से परमात्मा में पूर्ण एकत्व प्राप्त कर लिया।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਆਪਿ ਮਿਲਾਏ ਮਿਲਿ ਸਤਿਗੁਰ ਪੁਰਖ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥ कहु नानक हरि आपि मिलाए मिलि सतिगुर पुरख सुखु होई ॥ नानक कहते हैं कि हरि-परमेश्वर स्वयं जीव को गुरु से मिलाते हैं और महापुरुष सतगुरु को मिलने से सुख प्राप्त होता है।
ਗੁਰ ਜੇਵਡੁ ਗੁਰ ਜੇਵਡੁ ਦਾਤਾ ਮੈ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥੪॥੧॥ गुर जेवडु गुर जेवडु दाता मै अवरु न कोई ॥४॥१॥ गुरु जैसा महान् दाता मुझे कोई और नज़र नहीं आता ॥४॥१॥
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੪ ॥ वडहंसु महला ४ ॥ राग वदाहंस, चौथे गुरु: ४ ॥
ਹੰਉ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਹੰਉ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਖਰੀ ਨਿਮਾਣੀ ਰਾਮ ॥ हंउ गुर बिनु हंउ गुर बिनु खरी निमाणी राम ॥ गुरु के बिना में बड़ी विनीत एवं मानहीन थी
ਜਗਜੀਵਨੁ ਜਗਜੀਵਨੁ ਦਾਤਾ ਗੁਰ ਮੇਲਿ ਸਮਾਣੀ ਰਾਮ ॥ जगजीवनु जगजीवनु दाता गुर मेलि समाणी राम ॥ गुरु की संगति और उनके उपदेशों का अनुसरण करके, मैंने जीवन के रक्षक परमात्मा का अनुभव किया और उसी में मेरा अंतर्मन लीन होकर एक हो गया।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਲਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਣੀ ਜਪਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥ सतिगुरु मेलि हरि नामि समाणी जपि हरि हरि नामु धिआइआ ॥ सच्चे गुरु के मिलाप से मैं हरि-नाम में समा गई हूँ और हरि-नाम का भजन एवं ध्यान करती रहती हूँ।
ਜਿਸੁ ਕਾਰਣਿ ਹੰਉ ਢੂੰਢਿ ਢੂਢੇਦੀ ਸੋ ਸਜਣੁ ਹਰਿ ਘਰਿ ਪਾਇਆ ॥ जिसु कारणि हंउ ढूंढि ढूढेदी सो सजणु हरि घरि पाइआ ॥ जिस प्रभु को मिलने के कारण मैं खोज-तलाश कर रही थी, उस सज्जन हरि को मैंने हृदय-घर में ही पा लिया है।


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