Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 564

Page 564

ਤੁਧੁ ਆਪੇ ਕਾਰਣੁ ਆਪੇ ਕਰਣਾ ॥ तुधु आपे कारणु आपे करणा ॥ आप स्वयं ही कारण और आप ही करने वाले हैं।
ਹੁਕਮੇ ਜੰਮਣੁ ਹੁਕਮੇ ਮਰਣਾ ॥੨॥ हुकमे जमणु हुकमे मरणा ॥२॥ आपकी आज्ञा से ही जीवों का जन्म और मृत्यु होती है॥ २॥
ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ਮਨ ਤਨ ਆਧਾਰੀ ॥ नामु तेरा मन तन आधारी ॥ आपका नाम ही मेरे मन एवं तन का सहारा है।
ਨਾਨਕ ਦਾਸੁ ਬਖਸੀਸ ਤੁਮਾਰੀ ॥੩॥੮॥ नानक दासु बखसीस तुमारी ॥३॥८॥ दास नानक पर तो आपका ही आशीर्वाद है॥ ३॥ ८ ॥
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨॥ वडहंसु महला ५ घरु २ वदाहंस, दूसरी ताल, पांचवें गुरु: २
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਮੇਰੈ ਅੰਤਰਿ ਲੋਚਾ ਮਿਲਣ ਕੀ ਪਿਆਰੇ ਹਉ ਕਿਉ ਪਾਈ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ॥ मेरै अंतरि लोचा मिलण की पिआरे हउ किउ पाई गुर पूरे ॥ हे प्रियतम प्रभु ! मेरे हृदय में आप से मिलने की प्रबल अभिलाषा है। मैं अपने पूर्ण गुरु को किस तरह प्राप्त कर सकता हूँ ?
ਜੇ ਸਉ ਖੇਲ ਖੇਲਾਈਐ ਬਾਲਕੁ ਰਹਿ ਨ ਸਕੈ ਬਿਨੁ ਖੀਰੇ ॥ जे सउ खेल खेलाईऐ बालकु रहि न सकै बिनु खीरे ॥ चाहे बालक को सैकड़ों प्रकार के खेलों में लगाया जाए लेकिन वह दूध के बिना नहीं रह सकता।
ਮੇਰੈ ਅੰਤਰਿ ਭੁਖ ਨ ਉਤਰੈ ਅੰਮਾਲੀ ਜੇ ਸਉ ਭੋਜਨ ਮੈ ਨੀਰੇ ॥ मेरै अंतरि भुख न उतरै अमाली जे सउ भोजन मै नीरे ॥ हें मेरी सखी ! यदि मेरे लिए सैकड़ों प्रकार के स्वादिष्ट भोजन भी परोस दिए जाएँ, फिर भी मेरे हृदय की भूख दूर नहीं होती।
ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਪ੍ਰੇਮੁ ਪਿਰੰਮ ਕਾ ਬਿਨੁ ਦਰਸਨ ਕਿਉ ਮਨੁ ਧੀਰੇ ॥੧॥ मेरै मनि तनि प्रेमु पिरम का बिनु दरसन किउ मनु धीरे ॥१॥ मेरे मन एवं तन में अपने प्रियतम प्रभु का ही प्रेम बसता है और उसके दर्शनों के बिना मेरे मन को कैसे धैर्य हो सकता है ? ॥ १॥
ਸੁਣਿ ਸਜਣ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਭਾਈ ਮੈ ਮੇਲਿਹੁ ਮਿਤ੍ਰੁ ਸੁਖਦਾਤਾ ॥ सुणि सजण मेरे प्रीतम भाई मै मेलिहु मित्रु सुखदाता ॥ हे मेरे सज्जन ! हे प्रीतम भाई ! ध्यानपूर्वक सुन, मेरा मिलन उस सुखों के दाता मित्र से करवा दो, क्योंकि
ਓਹੁ ਜੀਅ ਕੀ ਮੇਰੀ ਸਭ ਬੇਦਨ ਜਾਣੈ ਨਿਤ ਸੁਣਾਵੈ ਹਰਿ ਕੀਆ ਬਾਤਾ ॥ ओहु जीअ की मेरी सभ बेदन जाणै नित सुणावै हरि कीआ बाता ॥ वह मेरे मन की समस्त पीड़ा-वेदना को जानता है और नित्य ही मुझे परमेश्वर की बातें सुनाता है।
ਹਉ ਇਕੁ ਖਿਨੁ ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਰਹਿ ਨ ਸਕਾ ਜਿਉ ਚਾਤ੍ਰਿਕੁ ਜਲ ਕਉ ਬਿਲਲਾਤਾ ॥ हउ इकु खिनु तिसु बिनु रहि न सका जिउ चात्रिकु जल कउ बिललाता ॥ मैं उसके बिना एक क्षण-मात्र भी नहीं रह सकता जैसे चातक स्वाति-बूंद हेतु विलाप करता रहता है, इसी प्रकार मैं भी उसके लिए विलाप करता हूँ।
ਹਉ ਕਿਆ ਗੁਣ ਤੇਰੇ ਸਾਰਿ ਸਮਾਲੀ ਮੈ ਨਿਰਗੁਣ ਕਉ ਰਖਿ ਲੇਤਾ ॥੨॥ हउ किआ गुण तेरे सारि समाली मै निरगुण कउ रखि लेता ॥२॥ हे परमेश्वर ! आपके कौन से गुणों को याद करके अपने चित्त में धारण करूँ, आप मुझ जैसे गुणहीन जीव की रक्षा करते रहते हो।॥ २॥
ਹਉ ਭਈ ਉਡੀਣੀ ਕੰਤ ਕਉ ਅੰਮਾਲੀ ਸੋ ਪਿਰੁ ਕਦਿ ਨੈਣੀ ਦੇਖਾ ॥ हउ भई उडीणी कंत कउ अमाली सो पिरु कदि नैणी देखा ॥ हे मेरी प्यारी सखी ! अपने स्वामी की प्रतीक्षा करती हुई मैं उदास हो गई हूँ।फिर मैं अपने उस पति-परमेश्वर को अपने नयनों से कब देखूंगी ?
ਸਭਿ ਰਸ ਭੋਗਣ ਵਿਸਰੇ ਬਿਨੁ ਪਿਰ ਕਿਤੈ ਨ ਲੇਖਾ ॥ सभि रस भोगण विसरे बिनु पिर कितै न लेखा ॥ पति-परमेश्वर के बिना मुझे समस्त रसों के भोग भूल गए हैं और वे किसी हिसाब में नहीं अर्थात् व्यर्थ ही हैं।
ਇਹੁ ਕਾਪੜੁ ਤਨਿ ਨ ਸੁਖਾਵਈ ਕਰਿ ਨ ਸਕਉ ਹਉ ਵੇਸਾ ॥ इहु कापड़ु तनि न सुखावई करि न सकउ हउ वेसा ॥ यह वस्त्र भी मेरे शरीर को अच्छे नहीं लगते, इसलिए इन वस्त्रों को भी नहीं पहन सकती।
ਜਿਨੀ ਸਖੀ ਲਾਲੁ ਰਾਵਿਆ ਪਿਆਰਾ ਤਿਨ ਆਗੈ ਹਮ ਆਦੇਸਾ ॥੩॥ जिनी सखी लालु राविआ पिआरा तिन आगै हम आदेसा ॥३॥ जिन सखियों ने अपने प्रियतम प्रभु को प्रसन्न करके रमण किया है, मैं उनके समक्ष प्रणाम करती हूँ॥ ३॥
ਮੈ ਸਭਿ ਸੀਗਾਰ ਬਣਾਇਆ ਅੰਮਾਲੀ ਬਿਨੁ ਪਿਰ ਕਾਮਿ ਨ ਆਏ ॥ मै सभि सीगार बणाइआ अमाली बिनु पिर कामि न आए ॥ हे मेरी सखी ! मैंने सभी हार-श्रृंगार किए हैं परन्तु अपने प्रियतम के बिना ये किसी काम के नहीं अर्थात् व्यर्थ हैं।
ਜਾ ਸਹਿ ਬਾਤ ਨ ਪੁਛੀਆ ਅੰਮਾਲੀ ਤਾ ਬਿਰਥਾ ਜੋਬਨੁ ਸਭੁ ਜਾਏ ॥ जा सहि बात न पुछीआ अमाली ता बिरथा जोबनु सभु जाए ॥ हे मेरी सखी ! जब मेरे स्वामी ही मेरी बात नहीं पूछते तो मेरा सारा यौवन व्यर्थ ही जा रहा है।
ਧਨੁ ਧਨੁ ਤੇ ਸੋਹਾਗਣੀ ਅੰਮਾਲੀ ਜਿਨ ਸਹੁ ਰਹਿਆ ਸਮਾਏ ॥ धनु धनु ते सोहागणी अमाली जिन सहु रहिआ समाए ॥ हे मेरी सखी ! वे सुहागिन जीव-स्त्रियाँ धन्य हैं, जिनके साथ उनका पति-प्रभु लीन हुआ रहता है।
ਹਉ ਵਾਰਿਆ ਤਿਨ ਸੋਹਾਗਣੀ ਅੰਮਾਲੀ ਤਿਨ ਕੇ ਧੋਵਾ ਸਦ ਪਾਏ ॥੪॥ हउ वारिआ तिन सोहागणी अमाली तिन के धोवा सद पाए ॥४॥ हे मेरी सखी ! मैं उन सुहागिन जीव-स्त्रियों पर बलिहारी जाती हूँ और हमेशा ही उनके चरण धोती हूँ॥ ४॥
ਜਿਚਰੁ ਦੂਜਾ ਭਰਮੁ ਸਾ ਅੰਮਾਲੀ ਤਿਚਰੁ ਮੈ ਜਾਣਿਆ ਪ੍ਰਭੁ ਦੂਰੇ ॥ जिचरु दूजा भरमु सा अमाली तिचरु मै जाणिआ प्रभु दूरे ॥ हे मेरी सखी ! जब तक मेरे भीतर द्वैतभाव का भ्रम था, तब तक मैंने अपने प्रभु को दूर ही जाना।
ਜਾ ਮਿਲਿਆ ਪੂਰਾ ਸਤਿਗੁਰੂ ਅੰਮਾਲੀ ਤਾ ਆਸਾ ਮਨਸਾ ਸਭ ਪੂਰੇ ॥ जा मिलिआ पूरा सतिगुरू अमाली ता आसा मनसा सभ पूरे ॥ हे मेरी सखी ! जब मुझे पूर्ण सतगुरु मिल गया तो मेरी समस्त आशाएँ एवं अभिलाषाएँ पूर्ण हो गई।
ਮੈ ਸਰਬ ਸੁਖਾ ਸੁਖ ਪਾਇਆ ਅੰਮਾਲੀ ਪਿਰੁ ਸਰਬ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰੇ ॥ मै सरब सुखा सुख पाइआ अमाली पिरु सरब रहिआ भरपूरे ॥ हे मेरी सखी ! मैंने सर्व-सुखों के सुख पति-प्रभु को प्राप्त कर लिया है, वह पति-परमेश्वर सबके हृदय में समाया हुआ है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਮਾਣਿਆ ਅੰਮਾਲੀ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਲਗਿ ਪੈਰੇ ॥੫॥੧॥੯॥ जन नानक हरि रंगु माणिआ अमाली गुर सतिगुर कै लगि पैरे ॥५॥१॥९॥ हे मेरी सखी ! गुरु-सतगुरु के चरणों में लगकर नानक ने भी हरि के प्रेम-रंग का आनंद भोग लिया है ॥५॥१॥६॥
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੩ ਅਸਟਪਦੀਆ॥ वडहंसु महला ३ असटपदीआ राग वादहंस, अष्टपदीस (आठ छंद) तीसरे गुरु:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਸਚੀ ਬਾਣੀ ਸਚੁ ਧੁਨਿ ਸਚੁ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਾ ॥ सची बाणी सचु धुनि सचु सबदु वीचारा ॥ वाणी सत्य है, अनहद ध्वनि सत्य है और शब्द का चिंतन सत्य है।
ਅਨਦਿਨੁ ਸਚੁ ਸਲਾਹਣਾ ਧਨੁ ਧਨੁ ਵਡਭਾਗ ਹਮਾਰਾ ॥੧॥ अनदिनु सचु सलाहणा धनु धनु वडभाग हमारा ॥१॥ मेरा बड़ा सौभाग्य है कि मैं दिन-रात सच्चे प्रभु का स्तुतिगान करता रहता हूँ॥ १॥
ਮਨ ਮੇਰੇ ਸਾਚੇ ਨਾਮ ਵਿਟਹੁ ਬਲਿ ਜਾਉ ॥ मन मेरे साचे नाम विटहु बलि जाउ ॥ हे मेरे मन ! सच्चे परमेश्वर के नाम पर न्यौछावर हो जाओ।
ਦਾਸਨਿ ਦਾਸਾ ਹੋਇ ਰਹਹਿ ਤਾ ਪਾਵਹਿ ਸਚਾ ਨਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ दासनि दासा होइ रहहि ता पावहि सचा नाउ ॥१॥ रहाउ ॥ यदि तू परमेश्वर का दासानुदास बन जाए तो तुझे सच्चा नाम प्राप्त हो जाएगा ॥ १॥ रहाउ॥


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top