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ਆਸਾ ॥
आसा ॥
राग, आसा ॥
ਗਜ ਸਾਢੇ ਤੈ ਤੈ ਧੋਤੀਆ ਤਿਹਰੇ ਪਾਇਨਿ ਤਗ ॥
गज साढे तै तै धोतीआ तिहरे पाइनि तग ॥
जो व्यक्ति साढ़े तीन-तीन गज लम्बी धोती और त्रिसूती जनेऊ पहनते हैं।
ਗਲੀ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਜਪਮਾਲੀਆ ਲੋਟੇ ਹਥਿ ਨਿਬਗ ॥
गली जिन्हा जपमालीआ लोटे हथि निबग ॥
जिनके गले में जपमाला तथा हाथों में चमचमाते लोटे होते हैं।
ਓਇ ਹਰਿ ਕੇ ਸੰਤ ਨ ਆਖੀਅਹਿ ਬਾਨਾਰਸਿ ਕੇ ਠਗ ॥੧॥
ओइ हरि के संत न आखीअहि बानारसि के ठग ॥१॥
केवल इन्हीं बातों के कारण, वें हरि के संत नहीं कहलाते अपितु वे तो बनारस के ठग हैं।॥ १ ॥
ਐਸੇ ਸੰਤ ਨ ਮੋ ਕਉ ਭਾਵਹਿ ॥
ऐसे संत न मो कउ भावहि ॥
ऐसे संत मुझे बिल्कुल अच्छे नहीं लगते।
ਡਾਲਾ ਸਿਉ ਪੇਡਾ ਗਟਕਾਵਹਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
डाला सिउ पेडा गटकावहि ॥१॥ रहाउ ॥
जो लोग अपने पीड़ितों से केवल धन ही नहीं छीनते, बल्कि उनका जीवन भी नष्ट कर देते हैं, वे ऐसे हैं जैसे कोई केवल एक शाखा न तोड़कर पूरा पेड़ ही निगल जाए। १ ॥ रहाउ॥
ਬਾਸਨ ਮਾਂਜਿ ਚਰਾਵਹਿ ਊਪਰਿ ਕਾਠੀ ਧੋਇ ਜਲਾਵਹਿ ॥
बासन मांजि चरावहि ऊपरि काठी धोइ जलावहि ॥
वे अपने बर्तन को भली भांति रगड़कर साफ करके चूल्हे पर रखते हैं,
ਬਸੁਧਾ ਖੋਦਿ ਕਰਹਿ ਦੁਇ ਚੂਲੇ੍ਹ੍ਹ ਸਾਰੇ ਮਾਣਸ ਖਾਵਹਿ ॥੨॥
बसुधा खोदि करहि दुइ चूल्हे सारे माणस खावहि ॥२॥
दिखावे के लिए वे मिट्टी में दो चूल्हे बनाते हैं जैसे बहुत धार्मिक और शुद्ध हों परन्तु वास्तव में वे इतने क्रूर हैं कि अपने शिकार का शरीर तक खा जाते हैं।॥ २॥
ਓਇ ਪਾਪੀ ਸਦਾ ਫਿਰਹਿ ਅਪਰਾਧੀ ਮੁਖਹੁ ਅਪਰਸ ਕਹਾਵਹਿ ॥
ओइ पापी सदा फिरहि अपराधी मुखहु अपरस कहावहि ॥
वे पापी सदा अपराधों में भटकते रहते हैं और अपने आपको मुख से यूं कहलवाते हैं कि हम माया को स्पर्श नहीं करते, अपितु अस्पृष्ट हैं।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਫਿਰਹਿ ਅਭਿਮਾਨੀ ਸਗਲ ਕੁਟੰਬ ਡੁਬਾਵਹਿ ॥੩॥
सदा सदा फिरहि अभिमानी सगल कुट्मब डुबावहि ॥३॥
वे अभिमानी सदैव भटकते रहते हैं और अपने कुटुंब को भी डुबो देते हैं।॥ ३॥
ਜਿਤੁ ਕੋ ਲਾਇਆ ਤਿਤ ਹੀ ਲਾਗਾ ਤੈਸੇ ਕਰਮ ਕਮਾਵੈ ॥
जितु को लाइआ तित ही लागा तैसे करम कमावै ॥
मनुष्य उसी से लगा हुआ है, जिससे प्रभु ने उसे लगाया है और वह वैसे ही कर्म करता है।
ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਜਿਸੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟੈ ਪੁਨਰਪਿ ਜਨਮਿ ਨ ਆਵੈ ॥੪॥੨॥
कहु कबीर जिसु सतिगुरु भेटै पुनरपि जनमि न आवै ॥४॥२॥
हे कबीर ! सत्य तो यही है कि जिसका मिलन सतगुरु से हो जाता है, वह दुनिया में बार-बार जन्म नहीं लेता॥ ४॥ २॥
ਆਸਾ ॥
आसा ॥
राग, आसा ॥
ਬਾਪਿ ਦਿਲਾਸਾ ਮੇਰੋ ਕੀਨ੍ਹ੍ਹਾ ॥ ਸੇਜ ਸੁਖਾਲੀ ਮੁਖਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਦੀਨ੍ਹ੍ਹਾ ॥
बापि दिलासा मेरो कीन्हा ॥ सेज सुखाली मुखि अम्रितु दीन्हा ॥
मेरे पिता-परमेश्वर ने मुझे धैर्य और आश्वासन दिया है। उन्होंने नाम रूपी अमृत मेरे मुँह में डाल दिया है, जिससे मेरी हृदय रूपी सेज सुखदायी हो गई है।
ਤਿਸੁ ਬਾਪ ਕਉ ਕਿਉ ਮਨਹੁ ਵਿਸਾਰੀ ॥
तिसु बाप कउ किउ मनहु विसारी ॥
उस परमपिता को मैं अपने मन में से कैसे भुला सकता हूँ।
ਆਗੈ ਗਇਆ ਨ ਬਾਜੀ ਹਾਰੀ ॥੧॥
आगै गइआ न बाजी हारी ॥१॥
जब मैं परलोक में जाऊँगा तो अपनी जीवन बाजी नहीं हारूंगा ॥ १॥
ਮੁਈ ਮੇਰੀ ਮਾਈ ਹਉ ਖਰਾ ਸੁਖਾਲਾ ॥
मुई मेरी माई हउ खरा सुखाला ॥
माया, जिसे कभी माँ सा प्यार किया, अब मुझ पर असर नहीं करती और इसी में मुझे मुक्ति और आनंद मिला है।
ਪਹਿਰਉ ਨਹੀ ਦਗਲੀ ਲਗੈ ਨ ਪਾਲਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पहिरउ नही दगली लगै न पाला ॥१॥ रहाउ ॥
अब, मैं वास्तव में सहज हूं। मैं गुदड़ी नहीं पहनता और न ही मुझे सर्दी लगती है॥ १॥ रहाउ॥
ਬਲਿ ਤਿਸੁ ਬਾਪੈ ਜਿਨਿ ਹਉ ਜਾਇਆ ॥
बलि तिसु बापै जिनि हउ जाइआ ॥
मैं उस परमपिता पर बलिहारी जाता हूँ, जिसने मुझे जन्म दिया है।
ਪੰਚਾ ਤੇ ਮੇਰਾ ਸੰਗੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥
पंचा ते मेरा संगु चुकाइआ ॥
उसने पाँच विकारों-काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार से मेरी संगति समाप्त कर दी है।
ਪੰਚ ਮਾਰਿ ਪਾਵਾ ਤਲਿ ਦੀਨੇ ॥
पंच मारि पावा तलि दीने ॥
मैंने पाँचों विकारों को मार कर अपने पैरों के नीचे कुचल दिया है।
ਹਰਿ ਸਿਮਰਨਿ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਤਨੁ ਭੀਨੇ ॥੨॥
हरि सिमरनि मेरा मनु तनु भीने ॥२॥
अब मेरा मन एवं तन भगवान् के सिमरन में लीन रहता है॥ २ ॥
ਪਿਤਾ ਹਮਾਰੋ ਵਡ ਗੋਸਾਈ ॥
पिता हमारो वड गोसाई ॥
मेरा पिता संसार के महान स्वामी है।
ਤਿਸੁ ਪਿਤਾ ਪਹਿ ਹਉ ਕਿਉ ਕਰਿ ਜਾਈ ॥
तिसु पिता पहि हउ किउ करि जाई ॥
फिर उस पिता के पास मैं किस तरह जा सकता हूँ?
ਸਤਿਗੁਰ ਮਿਲੇ ਤ ਮਾਰਗੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥
सतिगुर मिले त मारगु दिखाइआ ॥
जब मुझे सतगुरु मिले तो उसने मार्गदर्शन प्रदान किया।
ਜਗਤ ਪਿਤਾ ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਭਾਇਆ ॥੩॥
जगत पिता मेरै मनि भाइआ ॥३॥
जगत् के पिता मेरे मन को अच्छे लगते हैं ॥३॥
ਹਉ ਪੂਤੁ ਤੇਰਾ ਤੂੰ ਬਾਪੁ ਮੇਰਾ ॥
हउ पूतु तेरा तूं बापु मेरा ॥
हे ईश्वर ! मैं आपका पुत्र हूँ और आप मेरे पिता है।
ਏਕੈ ਠਾਹਰ ਦੁਹਾ ਬਸੇਰਾ ॥
एकै ठाहर दुहा बसेरा ॥
हम दोनों का बसेरा भी एक ही स्थान पर है।
ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਜਨਿ ਏਕੋ ਬੂਝਿਆ ॥
कहु कबीर जनि एको बूझिआ ॥
हे कबीर ! सेवक केवल एक प्रभु को ही जानता है और
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਮੈ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਸੂਝਿਆ ॥੪॥੩॥
गुर प्रसादि मै सभु किछु सूझिआ ॥४॥३॥
गुरु की कृपा से मैंने सब कुछ समझ लिया है॥ ४ ॥ ३ ॥
ਆਸਾ ॥
आसा ॥
राग, आसा ॥
ਇਕਤੁ ਪਤਰਿ ਭਰਿ ਉਰਕਟ ਕੁਰਕਟ ਇਕਤੁ ਪਤਰਿ ਭਰਿ ਪਾਨੀ ॥
इकतु पतरि भरि उरकट कुरकट इकतु पतरि भरि पानी ॥
कबीर मानव शरीर को मांस और हड्डियों से भरे एक बर्तन की तरह और मन को जल से भरे दूसरे बर्तन के रूप में देखते हैं जो विचारों से छलका रहता है ।
ਆਸਿ ਪਾਸਿ ਪੰਚ ਜੋਗੀਆ ਬੈਠੇ ਬੀਚਿ ਨਕਟ ਦੇ ਰਾਨੀ ॥੧॥
आसि पासि पंच जोगीआ बैठे बीचि नकट दे रानी ॥१॥
इनके इर्द-गिर्द पाँच कामादिक योगी बैठ जाते हैं तथा मध्य में नकटी माया भी बैठी होती है॥ १॥
ਨਕਟੀ ਕੋ ਠਨਗਨੁ ਬਾਡਾ ਡੂੰ ॥
नकटी को ठनगनु बाडा डूं ॥
निर्लज्ज माया का बाजा हर दिशा में बज रहा है।
ਕਿਨਹਿ ਬਿਬੇਕੀ ਕਾਟੀ ਤੂੰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
किनहि बिबेकी काटी तूं ॥१॥ रहाउ ॥
कोई विवेकी पुरुष ही इसके बन्धनों को काट देता है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਗਲ ਮਾਹਿ ਨਕਟੀ ਕਾ ਵਾਸਾ ਸਗਲ ਮਾਰਿ ਅਉਹੇਰੀ ॥
सगल माहि नकटी का वासा सगल मारि अउहेरी ॥
सभी जीवों के मन में निर्लज्ज नकटी माया का निवास है। वह सभी को मारकर उनको निहारती है।
ਸਗਲਿਆ ਕੀ ਹਉ ਬਹਿਨ ਭਾਨਜੀ ਜਿਨਹਿ ਬਰੀ ਤਿਸੁ ਚੇਰੀ ॥੨॥
सगलिआ की हउ बहिन भानजी जिनहि बरी तिसु चेरी ॥२॥
वह रानी कहती है कि, “मैं सभी की बहन एवं भांजी हूँ परन्तु मैं उसकी दासी हूँ, जिसने मेरे साथ विवाह कर लिया है अर्थात् मुझे वश में कर लिया है”॥ २॥
ਹਮਰੋ ਭਰਤਾ ਬਡੋ ਬਿਬੇਕੀ ਆਪੇ ਸੰਤੁ ਕਹਾਵੈ ॥
हमरो भरता बडो बिबेकी आपे संतु कहावै ॥
वह कहती है, हमारा पति बड़ा विवेकी है और पूर्ण संत कहलाता है।
ਓਹੁ ਹਮਾਰੈ ਮਾਥੈ ਕਾਇਮੁ ਅਉਰੁ ਹਮਰੈ ਨਿਕਟਿ ਨ ਆਵੈ ॥੩॥
ओहु हमारै माथै काइमु अउरु हमरै निकटि न आवै ॥३॥
वह हमारे माथे पर स्थिर रहता है तथा कोई दूसरा हमारे निकट नहीं आता॥ ३॥
ਨਾਕਹੁ ਕਾਟੀ ਕਾਨਹੁ ਕਾਟੀ ਕਾਟਿ ਕੂਟਿ ਕੈ ਡਾਰੀ ॥
नाकहु काटी कानहु काटी काटि कूटि कै डारी ॥
हे कबीर ! संतजनों ने निर्लज्ज माया के नाक एवं कान काट दिए हैं और उसे भली भांति काट-पीटकर व्यर्थ करके बाहर निकाल दिया है।
ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਸੰਤਨ ਕੀ ਬੈਰਨਿ ਤੀਨਿ ਲੋਕ ਕੀ ਪਿਆਰੀ ॥੪॥੪॥
कहु कबीर संतन की बैरनि तीनि लोक की पिआरी ॥४॥४॥
वह निर्लज्ज माया संतजनों की शत्रु है परन्तु तीन लोक उसे बहुत प्रेम करते हैं और उनकी वह प्रिया है॥ ४ ॥ ४ ॥
ਆਸਾ ॥
आसा ॥
राग, आसा ॥
ਜੋਗੀ ਜਤੀ ਤਪੀ ਸੰਨਿਆਸੀ ਬਹੁ ਤੀਰਥ ਭ੍ਰਮਨਾ ॥
जोगी जती तपी संनिआसी बहु तीरथ भ्रमना ॥
चाहे कोई योगी, ब्रह्मचारी, तपस्वी एवं संन्यासी बन जाए, चाहे बहुत सारे तीर्थ-स्थानों पर भ्रमण करता रहे।
ਲੁੰਜਿਤ ਮੁੰਜਿਤ ਮੋਨਿ ਜਟਾਧਰ ਅੰਤਿ ਤਊ ਮਰਨਾ ॥੧॥
लुंजित मुंजित मोनि जटाधर अंति तऊ मरना ॥१॥
चाहे कोई जड़ से बालों को उखाड़ने वाला जैनी, साधु, वैरागी, मौन व्रत करने वाले मुनि एवं जटाधर दरवेश ही बन जाए। लेकिन फिर भी इन सभी ने अंततः मरना ही है॥ १॥
ਤਾ ਤੇ ਸੇਵੀਅਲੇ ਰਾਮਨਾ ॥
ता ते सेवीअले रामना ॥
इसलिए भला यही है कि राम-नाम का भजन करना चाहिए।
ਰਸਨਾ ਰਾਮ ਨਾਮ ਹਿਤੁ ਜਾ ਕੈ ਕਹਾ ਕਰੈ ਜਮਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
रसना राम नाम हितु जा कै कहा करै जमना ॥१॥ रहाउ ॥
जिसकी रसना राम के नाम से प्रेम करती है, उसका यमदूत कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता ॥ १ ॥ रहाउ॥
ਆਗਮ ਨਿਰਗਮ ਜੋਤਿਕ ਜਾਨਹਿ ਬਹੁ ਬਹੁ ਬਿਆਕਰਨਾ ॥
आगम निरगम जोतिक जानहि बहु बहु बिआकरना ॥
चाहे कोई शास्त्रों एवं वेदों का ज्ञाता है, ज्योतिष-विद्या एवं अनेक प्रकार की व्याकरण को जानता है,