Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 475

Page 475

ਨਾਨਕ ਸਾ ਕਰਮਾਤਿ ਸਾਹਿਬ ਤੁਠੈ ਜੋ ਮਿਲੈ ॥੧॥ हे नानक ! अद्भुत देन वह है, जो प्रभु की कृपा-दृष्टि होने पर प्राप्त होती है॥ १॥
ਮਹਲਾ ੨ ॥ महला २॥
ਏਹ ਕਿਨੇਹੀ ਚਾਕਰੀ ਜਿਤੁ ਭਉ ਖਸਮ ਨ ਜਾਇ ॥ यह कैसी चाकरी (सेवा) है, जिससे स्वामी का भय दूर नहीं होता ?
ਨਾਨਕ ਸੇਵਕੁ ਕਾਢੀਐ ਜਿ ਸੇਤੀ ਖਸਮ ਸਮਾਇ ॥੨॥ हे नानक ! सच्चा सेवक वही कहलवाता है, जो अपने स्वामी में समा जाता है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥
ਨਾਨਕ ਅੰਤ ਨ ਜਾਪਨ੍ਹ੍ਹੀ ਹਰਿ ਤਾ ਕੇ ਪਾਰਾਵਾਰ ॥ हे नानक ! परमात्मा का अन्त जाना नहीं जाता। उसका ओर-छोर कोई नहीं, वह अनन्त है।
ਆਪਿ ਕਰਾਏ ਸਾਖਤੀ ਫਿਰਿ ਆਪਿ ਕਰਾਏ ਮਾਰ ॥ वह स्वयं ही सृष्टि की रचना करता है और स्वयं ही अपनी रचित सृष्टि का नाश कर देता है।
ਇਕਨ੍ਹ੍ਹਾ ਗਲੀ ਜੰਜੀਰੀਆ ਇਕਿ ਤੁਰੀ ਚੜਹਿ ਬਿਸੀਆਰ ॥ कुछ जीवों के गले पर जंजीरें पड़ी हुई हैं अर्थात् बन्धनों में जकड़े हुए हैं और कई असंख्य घोड़ों पर सवार होकर आनंद प्राप्त करते हैं।
ਆਪਿ ਕਰਾਏ ਕਰੇ ਆਪਿ ਹਉ ਕੈ ਸਿਉ ਕਰੀ ਪੁਕਾਰ ॥ वह प्रभु स्वयं ही लीला करता है और स्वयं ही जीव से करवाता है। मैं किसके पास शिकायत कर सकता हूँ?
ਨਾਨਕ ਕਰਣਾ ਜਿਨਿ ਕੀਆ ਫਿਰਿ ਤਿਸ ਹੀ ਕਰਣੀ ਸਾਰ ॥੨੩॥ हे नानक ! जिस प्रभु ने सृष्टि की रचना की है, वही फिर उसकी देखरेख करता है॥ २३ ॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥ श्लोक महला १॥
ਆਪੇ ਭਾਂਡੇ ਸਾਜਿਅਨੁ ਆਪੇ ਪੂਰਣੁ ਦੇਇ ॥ भगवान ने स्वयं ही जीव रूपी बर्तन बनाए हैं एवं वह स्वयं ही उनके शरीर में गुण-अवगुण, सुख-दु:ख डालता है।
ਇਕਨ੍ਹ੍ਹੀ ਦੁਧੁ ਸਮਾਈਐ ਇਕਿ ਚੁਲ੍ਹ੍ਹੈ ਰਹਨ੍ਹ੍ਹਿ ਚੜੇ ॥ कुछ जीव रूपी बर्तनों में दूध भरा रहता है अर्थात् सद्गुण विद्यमान रहते हैं और कई चूल्हे पर ताप सहते रहते हैं।
ਇਕਿ ਨਿਹਾਲੀ ਪੈ ਸਵਨ੍ਹ੍ਹਿ ਇਕਿ ਉਪਰਿ ਰਹਨਿ ਖੜੇ ॥ कुछ भाग्यशाली बिछौने पर निश्चित होकर विश्राम करते हैं और कई उनकी सेवा में खड़े होकर पहरा देते हैं।
ਤਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਸਵਾਰੇ ਨਾਨਕਾ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ॥੧॥ हे नानक ! भगवान उन मनुष्यों का जीवन सुन्दर बना देता है, जिन पर वह अपनी कृपा-दृष्टि करता है॥ १॥
ਮਹਲਾ ੨ ॥ महला २॥
ਆਪੇ ਸਾਜੇ ਕਰੇ ਆਪਿ ਜਾਈ ਭਿ ਰਖੈ ਆਪਿ ॥ भगवान स्वयं ही दुनिया बनाता और स्वयं ही सबकुछ करता है। वह स्वयं ही अपनी रचना की देखभाल करता है।
ਤਿਸੁ ਵਿਚਿ ਜੰਤ ਉਪਾਇ ਕੈ ਦੇਖੈ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪਿ ॥ वह दुनिया में जीवों को उत्पन्न करके उनके जन्म-मरण को देखता रहता है।
ਕਿਸ ਨੋ ਕਹੀਐ ਨਾਨਕਾ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਆਪੇ ਆਪਿ ॥੨॥ हे नानक ! भगवान के अतिरिक्त किसके समक्ष प्रार्थना कर सकते हैं, जबकि वह स्वयं ही सब कुछ करता है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी॥
ਵਡੇ ਕੀਆ ਵਡਿਆਈਆ ਕਿਛੁ ਕਹਣਾ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਇ ॥ महान प्रभु की महिमा एवं बड़प्पन का वर्णन नहीं किया जा सकता।
ਸੋ ਕਰਤਾ ਕਾਦਰ ਕਰੀਮੁ ਦੇ ਜੀਆ ਰਿਜਕੁ ਸੰਬਾਹਿ ॥ वह विश्व का रचयिता, अपनी प्रकृति को बनाने वाला तथा स्वयं जीवों पर कृपा-दृष्टि करने वाला है। वह समस्त जीवों को भोजन प्रदान करता है।
ਸਾਈ ਕਾਰ ਕਮਾਵਣੀ ਧੁਰਿ ਛੋਡੀ ਤਿੰਨੈ ਪਾਇ ॥ जीव वही कर्म करता है, जो उसने आदि से ही भाग्य में लिख दिया है।
ਨਾਨਕ ਏਕੀ ਬਾਹਰੀ ਹੋਰ ਦੂਜੀ ਨਾਹੀ ਜਾਇ ॥ हे नानक ! उस एक प्रभु के अतिरिक्त दूसरा कोई शरण का स्थान नहीं।
ਸੋ ਕਰੇ ਜਿ ਤਿਸੈ ਰਜਾਇ ॥੨੪॥੧॥ ਸੁਧੁ वह वही कुछ करता है, जो उसे स्वीकृत होता है॥ २४॥ १॥ शुद्ध॥
ੴ ਸਤਿਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, उसका नाम सत्य है, वह सृष्टि की रचना करने वाला है। वह सर्वशक्तिमान है, वह भय से रहित है, उसका किसी से वैर नहीं, वस्तुतः सब पर उसकी समान दृष्टि है, वह कालातीत ब्रह्म मूर्ति अमर है, वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त है, वह स्वयं प्रकाशमान हुआ है, गुरु-कृपा से प्राप्त होता है।
ਰਾਗੁ ਆਸਾ ਬਾਣੀ ਭਗਤਾ ਕੀ ॥ रागु आसा बाणी भगता की ॥
ਕਬੀਰ ਜੀਉ ਨਾਮਦੇਉ ਜੀਉ ਰਵਿਦਾਸ ਜੀਉ ॥ कबीर जी नामदेउ जी रविदास जी ॥
ਆਸਾ ਸ੍ਰੀ ਕਬੀਰ ਜੀਉ ॥ आसा श्री कबीर जी ॥
ਗੁਰ ਚਰਣ ਲਾਗਿ ਹਮ ਬਿਨਵਤਾ ਪੂਛਤ ਕਹ ਜੀਉ ਪਾਇਆ ॥ मैं अपने गुरु के चरणों में लगकर विनती करता हूँ एवं पूछता हूँ कि मनुष्य क्यों उत्पन्न किया गया है ?
ਕਵਨ ਕਾਜਿ ਜਗੁ ਉਪਜੈ ਬਿਨਸੈ ਕਹਹੁ ਮੋਹਿ ਸਮਝਾਇਆ ॥੧॥ यह जगत किसलिए उत्पन्न होता है और क्यों इसका विनाश हो जाता है? ॥ १॥
ਦੇਵ ਕਰਹੁ ਦਇਆ ਮੋਹਿ ਮਾਰਗਿ ਲਾਵਹੁ ਜਿਤੁ ਭੈ ਬੰਧਨ ਤੂਟੈ ॥ हे गुरुदेव ! मुझ पर दया करो और सन्मार्ग लगाओ, जिससे मेरे भय के बन्धन टूट जाएँ।
ਜਨਮ ਮਰਨ ਦੁਖ ਫੇੜ ਕਰਮ ਸੁਖ ਜੀਅ ਜਨਮ ਤੇ ਛੂਟੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मुझ पर ऐसी सुख की कृपा करो कि मेरे पूर्व जन्म के जन्म-मरण के दु:ख नाश हो जाएँ और मेरी आत्मा जन्मों के चक्र से छूट जाए॥ १॥ रहाउ॥
ਮਾਇਆ ਫਾਸ ਬੰਧ ਨਹੀ ਫਾਰੈ ਅਰੁ ਮਨ ਸੁੰਨਿ ਨ ਲੂਕੇ ॥ मन माया की फाँसी के बन्धन को नहीं तोड़ता और इसलिए वह शून्य समाधि में लीन नहीं होता।
ਆਪਾ ਪਦੁ ਨਿਰਬਾਣੁ ਨ ਚੀਨ੍ਹ੍ਹਿਆ ਇਨ ਬਿਧਿ ਅਭਿਉ ਨ ਚੂਕੇ ॥੨॥ वह अपने अहंत्व एवं मोक्ष के पद की पहचान नहीं करता। इस विधि से उसकी जन्म-मरण की दुविधा दूर नहीं होती ॥ २ ॥
ਕਹੀ ਨ ਉਪਜੈ ਉਪਜੀ ਜਾਣੈ ਭਾਵ ਅਭਾਵ ਬਿਹੂਣਾ ॥ आत्मा कभी भी पैदा नहीं होती चाहे मनुष्य समझते हैं कि यह पैदा होती है।
ਉਦੈ ਅਸਤ ਕੀ ਮਨ ਬੁਧਿ ਨਾਸੀ ਤਉ ਸਦਾ ਸਹਜਿ ਲਿਵ ਲੀਣਾ ॥੩॥ यह तो जन्म-मरण से रहित है। जब मन का जन्म-मरण का विचार निवृत्त हो जाता है तो सदैव ही प्रभु की वृति में समाया रहता है॥ ३॥
ਜਿਉ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬੁ ਬਿੰਬ ਕਉ ਮਿਲੀ ਹੈ ਉਦਕ ਕੁੰਭੁ ਬਿਗਰਾਨਾ ॥ जैसे जल के घड़े में पड़ने वाला प्रतिबंब घड़े के फूटने से वस्तु में मिल जाता है,
ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਐਸਾ ਗੁਣ ਭ੍ਰਮੁ ਭਾਗਾ ਤਉ ਮਨੁ ਸੁੰਨਿ ਸਮਾਨਾਂ ॥੪॥੧॥ वैसे ही हे कबीर ! जब गुण के माध्यम से दुविधा भाग जाती है तो मन प्रभु में समा जाता है॥ ४॥ १॥
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