Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 471

Page 471

ਨੰਗਾ ਦੋਜਕਿ ਚਾਲਿਆ ਤਾ ਦਿਸੈ ਖਰਾ ਡਰਾਵਣਾ ॥ जब वह नग्न ही नरक को जाता है तो वह सचमुच ही बड़ा भयानक लगता है।
ਕਰਿ ਅਉਗਣ ਪਛੋਤਾਵਣਾ ॥੧੪॥ वह अपने किए हुए अवगुणों पर पश्चाताप करता है॥ १४ ॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥ श्लोक महला १॥
ਦਇਆ ਕਪਾਹ ਸੰਤੋਖੁ ਸੂਤੁ ਜਤੁ ਗੰਢੀ ਸਤੁ ਵਟੁ ॥ हे पण्डित ! दया की कपास हो, संतोष का धागा हो, ब्रह्मचर्य की गांठ हो और सत्य द्वारा बल डाला हो,
ਏਹੁ ਜਨੇਊ ਜੀਅ ਕਾ ਹਈ ਤ ਪਾਡੇ ਘਤੁ ॥ यह ही आत्मा का जनेऊ है, हे पण्डित ! यदि तेरे पास ऐसा जनेऊ है तो मुझे पहना दे।
ਨਾ ਏਹੁ ਤੁਟੈ ਨ ਮਲੁ ਲਗੈ ਨਾ ਏਹੁ ਜਲੈ ਨ ਜਾਇ ॥ ऐसा आत्मा का जनेऊ न ही टूटता है, न इसे मैल लगती है, न ही यह जलता है और न ही यह गुम होता है।
ਧੰਨੁ ਸੁ ਮਾਣਸ ਨਾਨਕਾ ਜੋ ਗਲਿ ਚਲੇ ਪਾਇ ॥ हे नानक ! वह मनुष्य धन्य हैं जिन्होंने ऐसा जनेऊ अपने गले में पहन लिया है।
ਚਉਕੜਿ ਮੁਲਿ ਅਣਾਇਆ ਬਹਿ ਚਉਕੈ ਪਾਇਆ ॥ हे पण्डित ! यह जनेऊ तो तुमने चार कौड़ियाँ मूल्य देकर मंगवा लिया और विशिष्ट अनुष्ठान पर अपने यजमान के चौके में बैठकर उसके गले में पहना दिया,
ਸਿਖਾ ਕੰਨਿ ਚੜਾਈਆ ਗੁਰੁ ਬ੍ਰਾਹਮਣੁ ਥਿਆ ॥ फिर तुम उसे कान में उपदेश देते हो कि आज से तेरा गुरु ब्राह्मण हो गया।
ਓਹੁ ਮੁਆ ਓਹੁ ਝੜਿ ਪਇਆ ਵੇਤਗਾ ਗਇਆ ॥੧॥ परन्तु कुछ समय उपरांत वह यजमान जब प्राण त्याग देता है तो वह जनेऊ उसके पार्थिव शरीर सहित जल जाता है और आत्मा धागे के बिना ही दुनिया से चली जाती है॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥ महला १॥
ਲਖ ਚੋਰੀਆ ਲਖ ਜਾਰੀਆ ਲਖ ਕੂੜੀਆ ਲਖ ਗਾਲਿ ॥ इन्सान लाखों ही चोरियाँ, लाखों ही व्यभिचार करता है और लाखों ही झूठ एवं लाखों ही कटु वचन बोलता है।
ਲਖ ਠਗੀਆ ਪਹਿਨਾਮੀਆ ਰਾਤਿ ਦਿਨਸੁ ਜੀਅ ਨਾਲਿ ॥ वह दिन-रात लाखों ही ठगियों एवं गोपनीय पाप प्राणों के साथ बनाए रखता है।
ਤਗੁ ਕਪਾਹਹੁ ਕਤੀਐ ਬਾਮ੍ਹ੍ਹਣੁ ਵਟੇ ਆਇ ॥ कपास को कातकर धागा बनाया जाता है और ब्राह्मण आकर इसे बल देकर पहना देता है।
ਕੁਹਿ ਬਕਰਾ ਰਿੰਨ੍ਹ੍ਹਿ ਖਾਇਆ ਸਭੁ ਕੋ ਆਖੈ ਪਾਇ ॥ घर आए हुए अतिथियों को बकरा मार कर पकाया एवं खिलाया जाता है। सभी लोग कहते हैं कि जनेऊ पहना दो।
ਹੋਇ ਪੁਰਾਣਾ ਸੁਟੀਐ ਭੀ ਫਿਰਿ ਪਾਈਐ ਹੋਰੁ ॥ जब जनेऊ पुराना हो जाता है तो इसे फेंककर नया जनेऊ पहना दिया जाता है।
ਨਾਨਕ ਤਗੁ ਨ ਤੁਟਈ ਜੇ ਤਗਿ ਹੋਵੈ ਜੋਰੁ ॥੨॥ हे नानक ! यदि धागे में दया, संतोष एवं सत्य का बल हो तो आत्मा का यह धागा कभी टूटता नहीं ॥ २ ॥
ਮਃ ੧ ॥ महला १॥
ਨਾਇ ਮੰਨਿਐ ਪਤਿ ਊਪਜੈ ਸਾਲਾਹੀ ਸਚੁ ਸੂਤੁ ॥ यदि श्रद्धा से प्रभु का नाम-सिमरन किया जाए तो ही सम्मान उत्पन्न होता है।
ਦਰਗਹ ਅੰਦਰਿ ਪਾਈਐ ਤਗੁ ਨ ਤੂਟਸਿ ਪੂਤ ॥੩॥ प्रभु की गुणस्तुति ही सच्चा जनेऊ है। ऐसा पवित्र धागा प्रभु की सभा में पहनाया जाता है और यह कभी टूटता नहीं ॥ ३॥
ਮਃ ੧ ॥ महला १ ॥
ਤਗੁ ਨ ਇੰਦ੍ਰੀ ਤਗੁ ਨ ਨਾਰੀ ॥ मनुष्य की इन्द्रिय हेतु कोई धागा नहीं और नारी के लिए भी कोई धागा नहीं अर्थात् स्त्री-पुरुष के भोग-विलास के अंगों पर कोई बन्धन नहीं।
ਭਲਕੇ ਥੁਕ ਪਵੈ ਨਿਤ ਦਾੜੀ ॥ इनके कारण मनुष्य की दाढ़ी (मुँह) पर नित्य ही अपमान का थूक जाता है अर्थात् भोग-विलास के कारण अपमानित होता है।
ਤਗੁ ਨ ਪੈਰੀ ਤਗੁ ਨ ਹਥੀ ॥ पैरों के लिए कोई धागा नहीं जो बुरे स्थान पर जाते हैं और न ही कोई हाथों के लिए धागा है जो बुरे कर्म करते हैं।
ਤਗੁ ਨ ਜਿਹਵਾ ਤਗੁ ਨ ਅਖੀ ॥ धागा जीभ के लिए भी नहीं जो पराई निंदा करती है और न ही नेत्रों के लिए कोई धागा है जो पराया रूप देखते हैं।
ਵੇਤਗਾ ਆਪੇ ਵਤੈ ॥ਵਟਿ ਧਾਗੇ ਅਵਰਾ ਘਤੈ ॥ यद्यपि वह स्वयं सत्यता के धागे के बिना भटकता रहता है किन्तु दूसरों को धागे बना-बना कर डालता रहता है।
ਲੈ ਭਾੜਿ ਕਰੇ ਵੀਆਹੁ ॥ विवाह करवाने का वह किराया लेता है और
ਕਢਿ ਕਾਗਲੁ ਦਸੇ ਰਾਹੁ ॥ पत्री निकाल कर वह मार्ग दिखाता है।
ਸੁਣਿ ਵੇਖਹੁ ਲੋਕਾ ਏਹੁ ਵਿਡਾਣੁ ॥ हे लोगो ! सुनो और देखो, यह कितनी आश्चर्यचकित बात है कि
ਮਨਿ ਅੰਧਾ ਨਾਉ ਸੁਜਾਣੁ ॥੪॥ आत्मिक तौर पर अन्धा होता हुआ भी पण्डित अपना नाम (बुद्धिमान) सुजान कहलवाता है॥ ४ ॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी॥
ਸਾਹਿਬੁ ਹੋਇ ਦਇਆਲੁ ਕਿਰਪਾ ਕਰੇ ਤਾ ਸਾਈ ਕਾਰ ਕਰਾਇਸੀ ॥ जब प्रभु दयालु होता है तो कृपा करके वह जीवों से कर्म करवाता है।
ਸੋ ਸੇਵਕੁ ਸੇਵਾ ਕਰੇ ਜਿਸ ਨੋ ਹੁਕਮੁ ਮਨਾਇਸੀ ॥ वही सेवक उसकी सेवा-भक्ति करता है, जिसे वह आज्ञा का भेद बताकर मनवा लेता है।
ਹੁਕਮਿ ਮੰਨਿਐ ਹੋਵੈ ਪਰਵਾਣੁ ਤਾ ਖਸਮੈ ਕਾ ਮਹਲੁ ਪਾਇਸੀ ॥ प्रभु की आज्ञा मानने से मनुष्य स्वीकृत हो जाता है और तब वह सत्य के महल को पा लेता है।
ਖਸਮੈ ਭਾਵੈ ਸੋ ਕਰੇ ਮਨਹੁ ਚਿੰਦਿਆ ਸੋ ਫਲੁ ਪਾਇਸੀ ॥ जो कुछ प्रभु-पति को अच्छा लगता है, वही कुछ वह (पालन) करता है, जब उसकी सेवा सफल हो जाती है तो उसे मनोवांछित फल मिल जाता है।
ਤਾ ਦਰਗਹ ਪੈਧਾ ਜਾਇਸੀ ॥੧੫॥ वह तब मान-सम्मान सहित प्रभु के दरबार में जाता है॥ १५ ॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥ श्लोक महला १॥
ਗਊ ਬਿਰਾਹਮਣ ਕਉ ਕਰੁ ਲਾਵਹੁ ਗੋਬਰਿ ਤਰਣੁ ਨ ਜਾਈ ॥ हे भाई ! गाय एवं ब्राह्मण पर तो तुम कर लगाते हो। गाय के गोबर ने तुझे मोक्ष प्रदान नहीं करना।
ਧੋਤੀ ਟਿਕਾ ਤੈ ਜਪਮਾਲੀ ਧਾਨੁ ਮਲੇਛਾਂ ਖਾਈ ॥ एक ओर धोती, तिलक एवं माला धारण करते हो लेकिन दूसरी ओर मुसलमानों से धन-धान्य खाते हो, जिन्हें मलेच्छ कह कर पुकारते हो।
ਅੰਤਰਿ ਪੂਜਾ ਪੜਹਿ ਕਤੇਬਾ ਸੰਜਮੁ ਤੁਰਕਾ ਭਾਈ ॥ हे भाई ! अपने घर के अन्दर तुम पूजा-अर्चना करते हो लेकिन बाहर मुसलमानों से डर कर पाखंड करके कुरान पढ़ते एवं मुसलमानों की भाँति जीवन-आचरण धारण करते हो।
ਛੋਡੀਲੇ ਪਾਖੰਡਾ ॥ हे भाई ! यह पाखण्ड त्याग दो।
ਨਾਮਿ ਲਇਐ ਜਾਹਿ ਤਰੰਦਾ ॥੧॥ प्रभु का नाम-सिमरन करने से ही तुझे मोक्ष प्राप्त होगा ॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥ महला १॥
ਮਾਣਸ ਖਾਣੇ ਕਰਹਿ ਨਿਵਾਜ ॥ मानव-भक्षी मुसलमान पाँच वक्त की नमाज़ पढ़ते हैं।
ਛੁਰੀ ਵਗਾਇਨਿ ਤਿਨ ਗਲਿ ਤਾਗ ॥ दूसरी ओर अत्याचार की छुरी चलाते हैं, उनके गले में धागा है।
ਤਿਨ ਘਰਿ ਬ੍ਰਹਮਣ ਪੂਰਹਿ ਨਾਦ ॥ उनके घर में ब्राह्मण शंख बजाते हैं।
ਉਨ੍ਹ੍ਹਾ ਭਿ ਆਵਹਿ ਓਈ ਸਾਦ ॥ उनको भी वही स्वाद आता है।
ਕੂੜੀ ਰਾਸਿ ਕੂੜਾ ਵਾਪਾਰੁ ॥ उनकी पूंजी झूठी है और उनका व्यापार झूठा है।
ਕੂੜੁ ਬੋਲਿ ਕਰਹਿ ਆਹਾਰੁ ॥ झुठ बोलकर वह भोजन ग्रहण करते हैं।
ਸਰਮ ਧਰਮ ਕਾ ਡੇਰਾ ਦੂਰਿ ॥ लज्जा एवं धर्म का बसेरा उनसे कहीं दूर है।
ਨਾਨਕ ਕੂੜੁ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰਿ ॥ हे नानक ! झूठ उन सभी को भरपूर कर रहा है।
ਮਥੈ ਟਿਕਾ ਤੇੜਿ ਧੋਤੀ ਕਖਾਈ ॥ वे माथे पर तिलक लगाते हैं और कमर के साथ भगवां धोती पहनते हैं।
ਹਥਿ ਛੁਰੀ ਜਗਤ ਕਾਸਾਈ ॥ उनके हाथ में छुरी है और जगत पर कसाइयों की भाँति अत्याचार कर रहे हैं।
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