Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 470

Page 470

ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥ श्लोक महला १॥
ਨਾਨਕ ਮੇਰੁ ਸਰੀਰ ਕਾ ਇਕੁ ਰਥੁ ਇਕੁ ਰਥਵਾਹੁ ॥. हे नानक ! चौरासी लाख योनियों में सुमेरु पर्वत समान मानव-शरीर सर्वोच्च है। इस शरीर का एक रथ एवं एक रथवान है।
ਜੁਗੁ ਜੁਗੁ ਫੇਰਿ ਵਟਾਈਅਹਿ ਗਿਆਨੀ ਬੁਝਹਿ ਤਾਹਿ ॥ युग-युग के पश्चात् ये बदलते रहते हैं और ज्ञानी पुरुष ही इस भेद को समझते हैं।
ਸਤਜੁਗਿ ਰਥੁ ਸੰਤੋਖ ਕਾ ਧਰਮੁ ਅਗੈ ਰਥਵਾਹੁ ॥ सतयुग में मानव-शरीर का रथ संतोष का था और धर्म सारथी था।
ਤ੍ਰੇਤੈ ਰਥੁ ਜਤੈ ਕਾ ਜੋਰੁ ਅਗੈ ਰਥਵਾਹੁ ॥ त्रैता युग में (मानव-शरीर का) रथ ब्रह्मचर्य था और इच्छा सारथी थी।
ਦੁਆਪੁਰਿ ਰਥੁ ਤਪੈ ਕਾ ਸਤੁ ਅਗੈ ਰਥਵਾਹੁ ॥ द्वापर युग में (मानव-शरीर का) रथ तपस्या का था और सत्य सारथी था।
ਕਲਜੁਗਿ ਰਥੁ ਅਗਨਿ ਕਾ ਕੂੜੁ ਅਗੈ ਰਥਵਾਹੁ ॥੧॥ कलियुग में (मानव शरीर का) रथ तृष्णा रूपी अग्नि का रथ है और झूठ इसका सारथी है॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥ महला १॥
ਸਾਮ ਕਹੈ ਸੇਤੰਬਰੁ ਸੁਆਮੀ ਸਚ ਮਹਿ ਆਛੈ ਸਾਚਿ ਰਹੇ ॥ ਸਭੁ ਕੋ ਸਚਿ ਸਮਾਵੈ ॥ सामवेद कहता है कि जगत का स्वामी प्रभु श्वेत-वस्त्रों वाला है। सतियुग में प्रत्येक मनुष्य सत्य को चाहता था, सत्य में विचरता था और सत्य में ही समा जाता था।
ਰਿਗੁ ਕਹੈ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰਿ ॥ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਦੇਵਾ ਮਹਿ ਸੂਰੁ ॥ ऋग्वेद कहता है कि प्रभु सर्वव्यापक है और सभी देवताओं में परमात्मा का राम नाम सर्वश्रेष्ठ है।
ਨਾਇ ਲਇਐ ਪਰਾਛਤ ਜਾਹਿ ॥ ਨਾਨਕ ਤਉ ਮੋਖੰਤਰੁ ਪਾਹਿ ॥ राम नाम के सिमरन द्वारा प्रायश्चित हो जाता है अर्थात् पाप निवृत हो जाते हैं।हे नानक ! राम नाम लेने से ही मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
ਜੁਜ ਮਹਿ ਜੋਰਿ ਛਲੀ ਚੰਦ੍ਰਾਵਲਿ ਕਾਨ੍ਹ੍ਹ ਕ੍ਰਿਸਨੁ ਜਾਦਮੁ ਭਇਆ ॥ यजुर्वेद के समय (द्वापर में) यादव वंश के कृष्ण-कन्हैया हुए, जिन्होंने अपने बाहुबल से चंद्रावलि को छल लिया था।
ਪਾਰਜਾਤੁ ਗੋਪੀ ਲੈ ਆਇਆ ਬਿੰਦ੍ਰਾਬਨ ਮਹਿ ਰੰਗੁ ਕੀਆ ॥ श्रीकृष्ण अपनी गोपी (सत्यभामा) हेतु इन्द्र के उद्यान से पारिजात (कल्पवृक्ष) ले आए थे और वृन्दावन में चमत्कार रचे तथा आनंद मनाते रहे।
ਕਲਿ ਮਹਿ ਬੇਦੁ ਅਥਰਬਣੁ ਹੂਆ ਨਾਉ ਖੁਦਾਈ ਅਲਹੁ ਭਇਆ ॥ कलयुग में अथर्ववेद प्रसिद्ध हुआ तथा उसके अनुसार प्रभु का नाम 'अल्लाह एवं 'खुदा' विख्यात हो गया।
ਨੀਲ ਬਸਤ੍ਰ ਲੇ ਕਪੜੇ ਪਹਿਰੇ ਤੁਰਕ ਪਠਾਣੀ ਅਮਲੁ ਕੀਆ ॥ लोगों ने नीले रंग के वस्त्र पहने तथा तुर्कों एवं मुगलों का शासन हो गया।
ਚਾਰੇ ਵੇਦ ਹੋਏ ਸਚਿਆਰ ॥ इस तरह चारों वेद-सामवेद, ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद सच्चे कहे गए।
ਪੜਹਿ ਗੁਣਹਿ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਚਾਰ ਵੀਚਾਰ ॥ उनको पढ़ने एवं अध्ययन करने से मनुष्य उनमें चार सिद्धांत प्राप्त करता है।
ਭਾਉ ਭਗਤਿ ਕਰਿ ਨੀਚੁ ਸਦਾਏ ॥ ਤਉ ਨਾਨਕ ਮੋਖੰਤਰੁ ਪਾਏ ॥੨॥ हे नानक ! यदि मनुष्य प्रभु की भक्ति करके अपने आपको विनीत कहलवाए तो ही वह मोक्ष प्राप्त करता है॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਵਿਟਹੁ ਵਾਰਿਆ ਜਿਤੁ ਮਿਲਿਐ ਖਸਮੁ ਸਮਾਲਿਆ ॥ मैं अपने सतगुरु पर बलिहारी जाता हूँ, जिनके मिलन से भगवान का सिमरन किया है।
ਜਿਨਿ ਕਰਿ ਉਪਦੇਸੁ ਗਿਆਨ ਅੰਜਨੁ ਦੀਆ ਇਨ੍ਹ੍ਹੀ ਨੇਤ੍ਰੀ ਜਗਤੁ ਨਿਹਾਲਿਆ ॥ जिसने मुझे उपदेश देकर ज्ञान का सुरमा प्रदान किया है और इन नेत्रों से मैंने जगत के सत्य को देख लिया है।
ਖਸਮੁ ਛੋਡਿ ਦੂਜੈ ਲਗੇ ਡੁਬੇ ਸੇ ਵਣਜਾਰਿਆ ॥ जो व्यापारी (प्राणी) अपने प्रभु-पति को त्यागकर द्वैतवाद में लीन हुए, वे डूब गए हैं।
ਸਤਿਗੁਰੂ ਹੈ ਬੋਹਿਥਾ ਵਿਰਲੈ ਕਿਨੈ ਵੀਚਾਰਿਆ ॥ सतगुरु संसार-सागर में से पार करवाने वाला एक जहाज है, कुछ दुर्लभ पुरुष ही इसे अनुभव करते है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰਿਆ ॥੧੩॥ अपनी कृपा करके वह उनको संसार-सागर से पार कर देता है।॥ १३॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥ श्लोक महला १॥
ਸਿੰਮਲ ਰੁਖੁ ਸਰਾਇਰਾ ਅਤਿ ਦੀਰਘ ਅਤਿ ਮੁਚੁ ॥ सेमल का वृक्ष बड़ा सीधा, अत्यंत ऊँचा एवं बहुत मोटा होता है।
ਓਇ ਜਿ ਆਵਹਿ ਆਸ ਕਰਿ ਜਾਹਿ ਨਿਰਾਸੇ ਕਿਤੁ ॥ कितने ही पक्षी उसका फल खाने की आशा करके इसके पास आते हैं परन्तु निराश होकर चले जाते हैं।
ਫਲ ਫਿਕੇ ਫੁਲ ਬਕਬਕੇ ਕੰਮਿ ਨ ਆਵਹਿ ਪਤ ॥ चूंकि इसके फल बहुत फीके, फूल बकबके एवं पत्ते किसी काम के नहीं होते।
ਮਿਠਤੁ ਨੀਵੀ ਨਾਨਕਾ ਗੁਣ ਚੰਗਿਆਈਆ ਤਤੁ ॥ हे नानक ! नम्रता बड़ी मीठी होती है और यह सब गुणों एवं अच्छाइयों का निचोड़ है अर्थात् सर्वोत्तम गुण है।
ਸਭੁ ਕੋ ਨਿਵੈ ਆਪ ਕਉ ਪਰ ਕਉ ਨਿਵੈ ਨ ਕੋਇ ॥ प्रत्येक मनुष्य अपने स्वार्थ हेतु झुकता है परन्तु दूसरों की भलाई हेतु कोई नहीं झुकता।
ਧਰਿ ਤਾਰਾਜੂ ਤੋਲੀਐ ਨਿਵੈ ਸੁ ਗਉਰਾ ਹੋਇ ॥ यदि कोई वस्तु तुला पर रख कर तौली जाए तो तुला का जो पलड़ा झुकता है, वही भारी होता है।
ਅਪਰਾਧੀ ਦੂਣਾ ਨਿਵੈ ਜੋ ਹੰਤਾ ਮਿਰਗਾਹਿ ॥ मृग के शिकारी की भाँति अपराधी दुगुना झुकता है परन्तु
ਸੀਸਿ ਨਿਵਾਇਐ ਕਿਆ ਥੀਐ ਜਾ ਰਿਦੈ ਕੁਸੁਧੇ ਜਾਹਿ ॥੧॥ सिर झुकाने से क्या प्राप्त हो सकता है जब मनुष्य हृदय से ही मैला हो जाता है।॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥ महला १॥
ਪੜਿ ਪੁਸਤਕ ਸੰਧਿਆ ਬਾਦੰ ॥ पण्डित (वेद इत्यादि धार्मिक ग्रंथ) पुस्तकें पढ़ता है, सन्ध्या-वन्दन एवं वाद-विवाद करता है।
ਸਿਲ ਪੂਜਸਿ ਬਗੁਲ ਸਮਾਧੰ ॥ वह पत्थरों की पूजा करता है और बगुलों की भाँति समाधि लगाता है।
ਮੁਖਿ ਝੂਠ ਬਿਭੂਖਣ ਸਾਰੰ ॥ वह अपने मुख से झूठ बोलता है और सुन्दर आभूषणों की तरह दिखाता है।
ਤ੍ਰੈਪਾਲ ਤਿਹਾਲ ਬਿਚਾਰੰ ॥ वह दिन में तीन बार गायत्री मंत्र का पाठ करता है।
ਗਲਿ ਮਾਲਾ ਤਿਲਕੁ ਲਿਲਾਟੰ ॥ गले में माला और माथे पर तिलक धारण करता है।
ਦੁਇ ਧੋਤੀ ਬਸਤ੍ਰ ਕਪਾਟੰ ॥ दुहरी धोती पहनता और सिर पर वस्त्र भी रखता है।
ਜੇ ਜਾਣਸਿ ਬ੍ਰਹਮੰ ਕਰਮੰ ॥ परन्तु यदि यह पण्डित ब्रह्म का कर्म जानता हो तो
ਸਭਿ ਫੋਕਟ ਨਿਸਚਉ ਕਰਮੰ ॥ उसे पता लगेगा कि यह सभी निश्चय कर्म व्यर्थ के आडम्बर हैं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਨਿਹਚਉ ਧਿਆਵੈ ॥ हे नानक ! श्रद्धा धारण करके भगवान का ध्यान करना चाहिए।
ਵਿਣੁ ਸਤਿਗੁਰ ਵਾਟ ਨ ਪਾਵੈ ॥੨॥ सतगुरु के मार्गदर्शन के बिना नाम-सिमरन का मार्ग नहीं मिलता ॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी॥
ਕਪੜੁ ਰੂਪੁ ਸੁਹਾਵਣਾ ਛਡਿ ਦੁਨੀਆ ਅੰਦਰਿ ਜਾਵਣਾ ॥ इस शरीर रूपी सुन्दर वस्त्र एवं सौन्दर्य को इस दुनिया में ही छोड़कर जीव ने जाना है।
ਮੰਦਾ ਚੰਗਾ ਆਪਣਾ ਆਪੇ ਹੀ ਕੀਤਾ ਪਾਵਣਾ ॥ जीव ने स्वयं अपने अच्छे-बुरे कर्मों का फल भोगना है।
ਹੁਕਮ ਕੀਏ ਮਨਿ ਭਾਵਦੇ ਰਾਹਿ ਭੀੜੈ ਅਗੈ ਜਾਵਣਾ ॥ मनुष्य को इहलोक में ऐसी यातनाएँ सहन करनी पड़ेंगी, मानो आगे चलकर किसी संकरे रास्ते से निचोड़ा जा रहा हो अर्थात् परलोक में उसे कठिन मार्ग में से ही गुजरना होगा।
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