Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 466

Page 466

ਸੂਖਮ ਮੂਰਤਿ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨ ਕਾਇਆ ਕਾ ਆਕਾਰੁ ॥ सूखम मूरति नामु निरंजन काइआ का आकारु ॥ योगियों के अनुसार भगवान् निराकार, निर्लिप्त और सर्वव्यापक हैं; संपूर्ण ब्रह्मांड उनका ही स्वरूप है।
ਸਤੀਆ ਮਨਿ ਸੰਤੋਖੁ ਉਪਜੈ ਦੇਣੈ ਕੈ ਵੀਚਾਰਿ ॥ सतीआ मनि संतोखु उपजै देणै कै वीचारि ॥ दान देने के बारे में विचार करके दानी के मन में संतोष उत्पन्न होता है।
ਦੇ ਦੇ ਮੰਗਹਿ ਸਹਸਾ ਗੂਣਾ ਸੋਭ ਕਰੇ ਸੰਸਾਰੁ ॥ दे दे मंगहि सहसा गूणा सोभ करे संसारु ॥ वें स्वार्थवश दान करते हैं, ईश्वर से उसका कई गुना लौटाने की अपेक्षा रखते हैं और दुनिया से प्रशंसा की आशा करते हैं।
ਚੋਰਾ ਜਾਰਾ ਤੈ ਕੂੜਿਆਰਾ ਖਾਰਾਬਾ ਵੇਕਾਰ ॥ चोरा जारा तै कूड़िआरा खाराबा वेकार ॥ चोर, व्यभिचारी तथा झूठे आचरण वाले पापी विकारी ऐसे लोग भी हैं,
ਇਕਿ ਹੋਦਾ ਖਾਇ ਚਲਹਿ ਐਥਾਊ ਤਿਨਾ ਭਿ ਕਾਈ ਕਾਰ ॥ इकि होदा खाइ चलहि ऐथाऊ तिना भि काई कार ॥ पाप करते हुए वे अपने पूर्व पुण्यों को व्यर्थ कर अंततः खाली हाथ इस दुनिया से चले जाते हैं - यह उनका व्यर्थ कर्म है।
ਜਲਿ ਥਲਿ ਜੀਆ ਪੁਰੀਆ ਲੋਆ ਆਕਾਰਾ ਆਕਾਰ ॥ जलि थलि जीआ पुरीआ लोआ आकारा आकार ॥ समुद्र, धरती, देवताओं की पुरियों, लोकों, सूर्य, चन्द्रमा एवं तारों वाले इस जगत में बेअंत जीव रहते हैं।
ਓਇ ਜਿ ਆਖਹਿ ਸੁ ਤੂੰਹੈ ਜਾਣਹਿ ਤਿਨਾ ਭਿ ਤੇਰੀ ਸਾਰ ॥ ओइ जि आखहि सु तूंहै जाणहि तिना भि तेरी सार ॥ हे प्रभु ! यह जीव जो कुछ कहते हैं, आप उन्हें जानते हैं। तू ही उनका भरण-पोषण करता है।
ਨਾਨਕ ਭਗਤਾ ਭੁਖ ਸਾਲਾਹਣੁ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਆਧਾਰੁ ॥ नानक भगता भुख सालाहणु सचु नामु आधारु ॥ हे नानक ! भक्तों को परमात्मा की महिमा-स्तुति करने की भूख लगी रहती है और उसका सत्य नाम ही उनका आधार है।
ਸਦਾ ਅਨੰਦਿ ਰਹਹਿ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਗੁਣਵੰਤਿਆ ਪਾ ਛਾਰੁ ॥੧॥ सदा अनंदि रहहि दिनु राती गुणवंतिआ पा छारु ॥१॥ वे गुणवान पवित्र-पुरुषों के चरणों की धूल बनकर रात-दिन सदा आनंद में रहते हैं।॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥ मः १ ॥ श्लोक, प्रथम गुरु: १ ॥
ਮਿਟੀ ਮੁਸਲਮਾਨ ਕੀ ਪੇੜੈ ਪਈ ਕੁਮ੍ਹ੍ਹਿਆਰ ॥ मिटी मुसलमान की पेड़ै पई कुम्हिआर ॥ मुसलमान जब मरता है तो उसे दफनाया जाता है और उसका शरीर मिट्टी बन जाता है लेकिन जब वह मिट्टी कुम्हार के पास आती है तो
ਘੜਿ ਭਾਂਡੇ ਇਟਾ ਕੀਆ ਜਲਦੀ ਕਰੇ ਪੁਕਾਰ ॥ घड़ि भांडे इटा कीआ जलदी करे पुकार ॥ वह इससे बर्तन एवं ईंटें बनाता है, यह जलती हुई मिट्टी चीखती-चिल्लाती है।
ਜਲਿ ਜਲਿ ਰੋਵੈ ਬਪੁੜੀ ਝੜਿ ਝੜਿ ਪਵਹਿ ਅੰਗਿਆਰ ॥ जलि जलि रोवै बपुड़ी झड़ि झड़ि पवहि अंगिआर ॥ बेचारी मिट्टी जल-जलकर रोती है और जलते हुए अंगारे उस पर गिरते हैं।
ਨਾਨਕ ਜਿਨਿ ਕਰਤੈ ਕਾਰਣੁ ਕੀਆ ਸੋ ਜਾਣੈ ਕਰਤਾਰੁ ॥੨॥ नानक जिनि करतै कारणु कीआ सो जाणै करतारु ॥२॥ गुरु नानक देव जी कहते हैं कि जिस कर्ता प्रभु ने यह संसार बनाया है, वही इसका भेद जानते हैं कि जलाना भला है अथवा दफन करना ॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी॥
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਓ ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਆ ॥ बिनु सतिगुर किनै न पाइओ बिनु सतिगुर किनै न पाइआ ॥ सच्चे गुरु के बिना किसी भी मनुष्य को प्रभु प्राप्त नहीं हुआ और ना कभी होगा क्योंकि
ਸਤਿਗੁਰ ਵਿਚਿ ਆਪੁ ਰਖਿਓਨੁ ਕਰਿ ਪਰਗਟੁ ਆਖਿ ਸੁਣਾਇਆ ॥ सतिगुर विचि आपु रखिओनु करि परगटु आखि सुणाइआ ॥ सतगुरु के अन्तर्मन में प्रभु ने स्वयं को रखा हुआ है, मैंने यह तथ्य प्रत्यक्ष तौर पर कहकर सबको सुना दिया है।
ਸਤਿਗੁਰ ਮਿਲਿਐ ਸਦਾ ਮੁਕਤੁ ਹੈ ਜਿਨਿ ਵਿਚਹੁ ਮੋਹੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥ सतिगुर मिलिऐ सदा मुकतु है जिनि विचहु मोहु चुकाइआ ॥ जिन्होंने अपने अन्तर से सांसारिक मोह को मिटा दिया है, वे सतगुरु से मिलकर मुक्त हो गए हैं।
ਉਤਮੁ ਏਹੁ ਬੀਚਾਰੁ ਹੈ ਜਿਨਿ ਸਚੇ ਸਿਉ ਚਿਤੁ ਲਾਇਆ ॥ ਜਗਜੀਵਨੁ ਦਾਤਾ ਪਾਇਆ ॥੬॥ उतमु एहु बीचारु है जिनि सचे सिउ चितु लाइआ ॥ जगजीवनु दाता पाइआ ॥६॥ उत्तम विचार यही है कि जिसने अपना चित्त सत्य से लगा लिया है,उसने जगत का जीवनदाता प्रभु पा लिया है॥ ६॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥ सलोक मः १ ॥ श्लोक, महला १॥
ਹਉ ਵਿਚਿ ਆਇਆ ਹਉ ਵਿਚਿ ਗਇਆ ॥ हउ विचि आइआ हउ विचि गइआ ॥ मनुष्य अहंकार में जगत् में आया है और अहंकार में ही जगत् से चला गया है।
ਹਉ ਵਿਚਿ ਜੰਮਿਆ ਹਉ ਵਿਚਿ ਮੁਆ ॥ हउ विचि जमिआ हउ विचि मुआ ॥ उसने अहंकार में जन्म लिया था और अहंकार में ही मर गया है।
ਹਉ ਵਿਚਿ ਦਿਤਾ ਹਉ ਵਿਚਿ ਲਇਆ ॥ हउ विचि दिता हउ विचि लइआ ॥ अहंकार में ही उसने किसी को कुछ दिया था और अहंकार में ही किसी से कुछ लिया था।
ਹਉ ਵਿਚਿ ਖਟਿਆ ਹਉ ਵਿਚਿ ਗਇਆ ॥ हउ विचि खटिआ हउ विचि गइआ ॥ अहंकार में ही मनुष्य ने धन कमाया था और अहंकारवश ही वह गंवा गया था।
ਹਉ ਵਿਚਿ ਸਚਿਆਰੁ ਕੂੜਿਆਰੁ ॥ हउ विचि सचिआरु कूड़िआरु ॥ अहंकारवश ही वह सत्यवादी और झूठा बन जाता है।
ਹਉ ਵਿਚਿ ਪਾਪ ਪੁੰਨ ਵੀਚਾਰੁ ॥ हउ विचि पाप पुंन वीचारु ॥ अहंकार में ही वह पाप एवं पुण्य का विचार करता है।
ਹਉ ਵਿਚਿ ਨਰਕਿ ਸੁਰਗਿ ਅਵਤਾਰੁ ॥ हउ विचि नरकि सुरगि अवतारु ॥ अहंकार के कारण ही मनुष्य सुख और दुःख दोनों का अनुभव करता है।
ਹਉ ਵਿਚਿ ਹਸੈ ਹਉ ਵਿਚਿ ਰੋਵੈ ॥ हउ विचि हसै हउ विचि रोवै ॥ अहंकार में ही वह कभी हँसता है और अहंकारवश ही वह कभी रोता है।
ਹਉ ਵਿਚਿ ਭਰੀਐ ਹਉ ਵਿਚਿ ਧੋਵੈ ॥ हउ विचि भरीऐ हउ विचि धोवै ॥ अहंकार में व्यक्ति का मन कभी विकारों से भर जाता है, तो कभी वह उन्हें दूर करने का प्रयास करता है।
ਹਉ ਵਿਚਿ ਜਾਤੀ ਜਿਨਸੀ ਖੋਵੈ ॥ हउ विचि जाती जिनसी खोवै ॥ वह अहंकार में अपनी जाति-पाति भी गंवा लेता है।
ਹਉ ਵਿਚਿ ਮੂਰਖੁ ਹਉ ਵਿਚਿ ਸਿਆਣਾ ॥ हउ विचि मूरखु हउ विचि सिआणा ॥ अहंकारवश व्यक्ति कभी अज्ञानी, तो कभी बुद्धिमान की तरह आचरण करता है।
ਮੋਖ ਮੁਕਤਿ ਕੀ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣਾ ॥ मोख मुकति की सार न जाणा ॥ लेकिन वह मोक्ष एवं मुक्ति के सार (रहस्य) को नहीं जानता।
ਹਉ ਵਿਚਿ ਮਾਇਆ ਹਉ ਵਿਚਿ ਛਾਇਆ ॥ हउ विचि माइआ हउ विचि छाइआ ॥ वह अभिमान में ही माया को सत्य समझता है और अभिमान में ही इसे पेड़ की छाया की तरह झूठी समझता है।
ਹਉਮੈ ਕਰਿ ਕਰਿ ਜੰਤ ਉਪਾਇਆ ॥ हउमै करि करि जंत उपाइआ ॥ अहंकारवश ही प्राणी बार-बार योनियों में जन्म लेता है।
ਹਉਮੈ ਬੂਝੈ ਤਾ ਦਰੁ ਸੂਝੈ हउमै बूझै ता दरु सूझै ॥ यदि अहंकार दूर हो जाए तभी प्रभु का द्वार सूझता है।
ਗਿਆਨ ਵਿਹੂਣਾ ਕਥਿ ਕਥਿ ਲੂਝੈ ॥ गिआन विहूणा कथि कथि लूझै ॥ अन्यथा ज्ञान-विहीन मनुष्य वाद-विवादों में ही उलझा रहता है।
ਨਾਨਕ ਹੁਕਮੀ ਲਿਖੀਐ ਲੇਖੁ ॥ नानक हुकमी लिखीऐ लेखु ॥ हे नानक ! प्रभु के इच्छानुसार मनुष्य के भाग्य का लेख लिखा जाता है।
ਜੇਹਾ ਵੇਖਹਿ ਤੇਹਾ ਵੇਖੁ ॥੧॥ जेहा वेखहि तेहा वेखु ॥१॥ मनुष्य जैसी विचारधारा रखता है, वैसा ही सत्य को मानने लगता है॥ १ ॥
ਮਹਲਾ ੨ ॥ महला २ ॥ श्लोक, द्वितीय गुरु: २॥
ਹਉਮੈ ਏਹਾ ਜਾਤਿ ਹੈ ਹਉਮੈ ਕਰਮ ਕਮਾਹਿ ॥ हउमै एहा जाति है हउमै करम कमाहि ॥ अहंकार का यह स्वभाव है कि मनुष्य अहंकार में ही कर्म करता है।
ਹਉਮੈ ਏਈ ਬੰਧਨਾ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਜੋਨੀ ਪਾਹਿ ॥ हउमै एई बंधना फिरि फिरि जोनी पाहि ॥ यह अहंकार जीव के बंधनों का कारण है, इसलिए जीव बार-बार योनियों में पड़ता है।
ਹਉਮੈ ਕਿਥਹੁ ਊਪਜੈ ਕਿਤੁ ਸੰਜਮਿ ਇਹ ਜਾਇ ॥ हउमै किथहु ऊपजै कितु संजमि इह जाइ ॥ वास्तव में यह अहंकार कहाँ से उत्पन्न होता है और किस युक्ति द्वारा इस पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है?
ਹਉਮੈ ਏਹੋ ਹੁਕਮੁ ਹੈ ਪਇਐ ਕਿਰਤਿ ਫਿਰਾਹਿ ॥ हउमै एहो हुकमु है पइऐ किरति फिराहि ॥ ईश्वर की इच्छा से ही अहंकार उत्पन्न होता है, और लोग अपने कर्मों के अनुसार भटकते रहते हैं।
ਹਉਮੈ ਦੀਰਘ ਰੋਗੁ ਹੈ ਦਾਰੂ ਭੀ ਇਸੁ ਮਾਹਿ ॥ हउमै दीरघ रोगु है दारू भी इसु माहि ॥ अहंकार एक दीर्घ रोग है परन्तु इसका उपचार भी शामिल है।
ਕਿਰਪਾ ਕਰੇ ਜੇ ਆਪਣੀ ਤਾ ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਕਮਾਹਿ ॥ किरपा करे जे आपणी ता गुर का सबदु कमाहि ॥ यदि प्रभु कृपा-दृष्टि करे तो मनुष्य गुरु के शब्द अनुसार कर्म करता है (यही इस रोग का उपचार है)।
ਨਾਨਕੁ ਕਹੈ ਸੁਣਹੁ ਜਨਹੁ ਇਤੁ ਸੰਜਮਿ ਦੁਖ ਜਾਹਿ ॥੨॥ नानकु कहै सुणहु जनहु इतु संजमि दुख जाहि ॥२॥ नानक का कथन है कि हे लोगो ! सुनो, संयम द्वारा यह अहंकार दुःख का रोग निवृत्त हो जाता है। ॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी॥
ਸੇਵ ਕੀਤੀ ਸੰਤੋਖੀਈ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹੀ ਸਚੋ ਸਚੁ ਧਿਆਇਆ ॥ सेव कीती संतोखीईं जिन्ही सचो सचु धिआइआ ॥ जिन्होंने एक परम सत्य का ही ध्यान किया है, उन संतोषी व्यक्तियों ने ही परमात्मा की सेवा-भक्ति की है।


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top