Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 465

Page 465

ਗਿਆਨੁ ਨ ਗਲੀਈ ਢੂਢੀਐ ਕਥਨਾ ਕਰੜਾ ਸਾਰੁ ॥ गिआनु न गलीई ढूढीऐ कथना करड़ा सारु ॥ ज्ञान की प्राप्ति केवल बातों से नहीं होती, दिव्य ज्ञान की प्राप्ति को समझाना, मानो लोहे को चबाने जैसा कठिन है।
ਕਰਮਿ ਮਿਲੈ ਤਾ ਪਾਈਐ ਹੋਰ ਹਿਕਮਤਿ ਹੁਕਮੁ ਖੁਆਰੁ ॥੨॥ करमि मिलै ता पाईऐ होर हिकमति हुकमु खुआरु ॥२॥ यदि भगवान् की कृपा हो जाए तो ही ज्ञान प्राप्त होता है, अन्य चतुराई एवं छल-कपट तो केवल निराशा ही देते हैं। २॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी॥
ਨਦਰਿ ਕਰਹਿ ਜੇ ਆਪਣੀ ਤਾ ਨਦਰੀ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ॥ नदरि करहि जे आपणी ता नदरी सतिगुरु पाइआ ॥ यदि दयालु प्रभु करुणा-दृष्टि करे तो उसकी कृपा से सच्चे गुरु की प्राप्ति होती है।
ਏਹੁ ਜੀਉ ਬਹੁਤੇ ਜਨਮ ਭਰੰਮਿਆ ਤਾ ਸਤਿਗੁਰਿ ਸਬਦੁ ਸੁਣਾਇਆ ॥ एहु जीउ बहुते जनम भरमिआ ता सतिगुरि सबदु सुणाइआ ॥ जब तक सतगुरु ने उसे दिव्य नाम का उपदेश नहीं दिया, तब तक यह जीवात्मा अनेक जन्मों में भटकती रही।
ਸਤਿਗੁਰ ਜੇਵਡੁ ਦਾਤਾ ਕੋ ਨਹੀ ਸਭਿ ਸੁਣਿਅਹੁ ਲੋਕ ਸਬਾਇਆ ॥ सतिगुर जेवडु दाता को नही सभि सुणिअहु लोक सबाइआ ॥ हे संसार के सब लोगो ! ध्यान से सुनो, सतगुरु जैसा कोई परोपकारी नहीं है।
ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਸਚੁ ਪਾਇਆ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹੀ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਇਆ ॥ सतिगुरि मिलिऐ सचु पाइआ जिन्ही विचहु आपु गवाइआ ॥ जो मनुष्य अपने मन से अहंकार मिटा देता है उसे सतगुरु मिलते हैं और सच्चे गुरु के माध्यम से सत्य की प्राप्ति होती है।
ਜਿਨਿ ਸਚੋ ਸਚੁ ਬੁਝਾਇਆ ॥੪॥ जिनि सचो सचु बुझाइआ ॥४॥ सच्चा गुरु ही सत्य के रहस्य को समझाता है॥ ४॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥ सलोक मः १ ॥ श्लोक, प्रथम गुरु: ॥
ਘੜੀਆ ਸਭੇ ਗੋਪੀਆ ਪਹਰ ਕੰਨ੍ਹ੍ਹ ਗੋਪਾਲ ॥ घड़ीआ सभे गोपीआ पहर कंन्ह गोपाल ॥ जैसे रासघारी रास करते हैं, वैसे ही परमात्मा की भी रासलीला हो रही है। इस रासलीला में घड़ियाँ नृत्य करने वाली गोपियाँ हैं और सारे प्रहर कान्हा-गोपाल है।
ਗਹਣੇ ਪਉਣੁ ਪਾਣੀ ਬੈਸੰਤਰੁ ਚੰਦੁ ਸੂਰਜੁ ਅਵਤਾਰ ॥ गहणे पउणु पाणी बैसंतरु चंदु सूरजु अवतार ॥ पवन, पानी एवं अग्नि इस रास लीला के पात्रों के आभूषण हैं और सूर्य एवं चाँद स्वांग धारण करने वाले नट हैं।
ਸਗਲੀ ਧਰਤੀ ਮਾਲੁ ਧਨੁ ਵਰਤਣਿ ਸਰਬ ਜੰਜਾਲ ॥ सगली धरती मालु धनु वरतणि सरब जंजाल ॥ समस्त धरती नाटक करने वालों का माल, धन है परन्तु ये सभी जंजाल ही हैं।
ਨਾਨਕ ਮੁਸੈ ਗਿਆਨ ਵਿਹੂਣੀ ਖਾਇ ਗਇਆ ਜਮਕਾਲੁ ॥੧॥ नानक मुसै गिआन विहूणी खाइ गइआ जमकालु ॥१॥ हे नानक ! ज्ञान से विहीन दुनिया इस नाटक में लुट जाती है और यमदूत उसे अपना ग्रास बना लेता है॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥ मः १ ॥ श्लोक, प्रथम गुरु: ॥
ਵਾਇਨਿ ਚੇਲੇ ਨਚਨਿ ਗੁਰ ॥ वाइनि चेले नचनि गुर ॥ (समाज की अदभुत विडम्बना है कि) चेले ताल बजाते हैं और उनके गुरु नाचते हैं।
ਪੈਰ ਹਲਾਇਨਿ ਫੇਰਨ੍ਹ੍ਹਿ ਸਿਰ ॥ पैर हलाइनि फेरन्हि सिर ॥ वह धुंघरु बांधकर अपने पैर हिलाते हैं और मस्त होकर अपना सिर घुमाते हैं।
ਉਡਿ ਉਡਿ ਰਾਵਾ ਝਾਟੈ ਪਾਇ ॥ उडि उडि रावा झाटै पाइ ॥ उनके सिर के बालों पर उड़-उड़कर धूल पड़ती है।
ਵੇਖੈ ਲੋਕੁ ਹਸੈ ਘਰਿ ਜਾਇ ॥ वेखै लोकु हसै घरि जाइ ॥ यह तमाशा देखकर लोग हँसते हैं और घर को चले जाते हैं।
ਰੋਟੀਆ ਕਾਰਣਿ ਪੂਰਹਿ ਤਾਲ ॥ रोटीआ कारणि पूरहि ताल ॥ रोटी के कारण वे ताल मिलाते हैं
ਆਪੁ ਪਛਾੜਹਿ ਧਰਤੀ ਨਾਲਿ ॥ आपु पछाड़हि धरती नालि ॥ वह अपने आपको धरती पर पछाड़ते हैं।
ਗਾਵਨਿ ਗੋਪੀਆ ਗਾਵਨਿ ਕਾਨ੍ਹ੍ਹ ॥ गावनि गोपीआ गावनि कान्ह ॥ (संसार के मंच पर नाटक करने वाले जीव) गोपियों एवं कान्हा बनकर गाते हैं।
ਗਾਵਨਿ ਸੀਤਾ ਰਾਜੇ ਰਾਮ ॥ गावनि सीता राजे राम ॥ सीता, राजा राम बनकर गाते हैं।
ਨਿਰਭਉ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ॥ निरभउ निरंकारु सचु नामु ॥ किन्तु निर्भय, निरंकार प्रभु का ही नाम सत्य है
ਜਾ ਕਾ ਕੀਆ ਸਗਲ ਜਹਾਨੁ ॥ जा का कीआ सगल जहानु ॥ जिसने सम्पूर्ण सृष्टि की रचना की है।
ਸੇਵਕ ਸੇਵਹਿ ਕਰਮਿ ਚੜਾਉ ॥ सेवक सेवहि करमि चड़ाउ ॥ जिन सेवकों का भाग्य उदय होता है, वे प्रभु की सेवा करते हैं।
ਭਿੰਨੀ ਰੈਣਿ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਮਨਿ ਚਾਉ ॥ भिंनी रैणि जिन्हा मनि चाउ ॥ जिनके मन में प्रभु प्रेम का इच्छा है उनकी रात्रि सुहावनी हो जाती है।
ਸਿਖੀ ਸਿਖਿਆ ਗੁਰ ਵੀਚਾਰਿ ॥ सिखी सिखिआ गुर वीचारि ॥ जिन्होंने गुरु विचारधारा द्वारा यह शिक्षा सीख ली है,
ਨਦਰੀ ਕਰਮਿ ਲਘਾਏ ਪਾਰਿ ॥ नदरी करमि लघाए पारि ॥ दयालु स्वामी अपनी कृपा-दृष्टि से ही उन्हें मुक्ति प्रदान कर देते हैं।
ਕੋਲੂ ਚਰਖਾ ਚਕੀ ਚਕੁ ॥ कोलू चरखा चकी चकु ॥ अनेकों ही कोल्हू, चरखा, चक्कियों एवं चाक हैं।
ਥਲ ਵਾਰੋਲੇ ਬਹੁਤੁ ਅਨੰਤੁ ॥ थल वारोले बहुतु अनंतु ॥ रेगिस्तान में असंख्य, अनगिनत बवंडर।
ਲਾਟੂ ਮਾਧਾਣੀਆ ਅਨਗਾਹ ॥ लाटू माधाणीआ अनगाह ॥ अनेकों ही लद्रु, मधानियाँ एवं अन्न निकालने के यन्त्र हैं।
ਪੰਖੀ ਭਉਦੀਆ ਲੈਨਿ ਨ ਸਾਹ ॥ पंखी भउदीआ लैनि न साह ॥ पक्षी घूमते हुए दम नहीं लेते।
ਸੂਐ ਚਾੜਿ ਭਵਾਈਅਹਿ ਜੰਤ ॥ सूऐ चाड़ि भवाईअहि जंत ॥ कई यंत्र लोहे के शूल पर चढ़ाकर घुमाए जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਭਉਦਿਆ ਗਣਤ ਨ ਅੰਤ ॥ नानक भउदिआ गणत न अंत ॥ हे नानक ! घूमने वाले एवं यंत्रों की गणना का कोई अन्त नहीं।
ਬੰਧਨ ਬੰਧਿ ਭਵਾਏ ਸੋਇ ॥ बंधन बंधि भवाए सोइ ॥ जो प्राणी माया के बन्धनों में फंस जाते हैं, उन्हें धर्मराज ऐसे ही कर्मों के अनुसार घुमाता है।
ਪਇਐ ਕਿਰਤਿ ਨਚੈ ਸਭੁ ਕੋਇ ॥ पइऐ किरति नचै सभु कोइ ॥ अपने किए कर्मो अनुसार ही प्रत्येक जीव नृत्य करता है।
ਨਚਿ ਨਚਿ ਹਸਹਿ ਚਲਹਿ ਸੇ ਰੋਇ ॥ नचि नचि हसहि चलहि से रोइ ॥ जगत् की माया में फँसकर जो लोग जीवन भर इधर-उधर भागते रहते हैं, वे अपने अंतिम प्रस्थान पर रोएँगे।
ਉਡਿ ਨ ਜਾਹੀ ਸਿਧ ਨ ਹੋਹਿ ॥ उडि न जाही सिध न होहि ॥ वे न तो उच्च आध्यात्मिक स्थिति प्राप्त कर पाते हैं और न ही सांसारिक मामलों में पारंगत हो पाते हैं।
ਨਚਣੁ ਕੁਦਣੁ ਮਨ ਕਾ ਚਾਉ ॥ नचणु कुदणु मन का चाउ ॥ उनका नाचना-कूदना सब मन का मनोरंजन मात्र है।
ਨਾਨਕ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਮਨਿ ਭਉ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਮਨਿ ਭਾਉ ॥੨॥ नानक जिन्ह मनि भउ तिन्हा मनि भाउ ॥२॥ हे नानक ! जिनके हृदय में प्रभु का भय विद्यमान है, उनके हृदय में ही उसका प्रेम है ॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी ॥
ਨਾਉ ਤੇਰਾ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ਹੈ ਨਾਇ ਲਇਐ ਨਰਕਿ ਨ ਜਾਈਐ ॥ नाउ तेरा निरंकारु है नाइ लइऐ नरकि न जाईऐ ॥ हे प्रभु ! आपका नाम निरंकार है और आपका नाम याद करने से मनुष्य नरक में नहीं जाता।
ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਤਿਸ ਦਾ ਦੇ ਖਾਜੈ ਆਖਿ ਗਵਾਈਐ ॥ जीउ पिंडु सभु तिस दा दे खाजै आखि गवाईऐ ॥ प्राण एवं तन उस प्रभु के दिए हुए हैं, जो कुछ वह देता है, जीव वही कुछ खाता है। अन्य कुछ कहना निरर्थक है।
ਜੇ ਲੋੜਹਿ ਚੰਗਾ ਆਪਣਾ ਕਰਿ ਪੁੰਨਹੁ ਨੀਚੁ ਸਦਾਈਐ ॥ जे लोड़हि चंगा आपणा करि पुंनहु नीचु सदाईऐ ॥ यदि आप अपना कल्याण चाहते हैं तो पुण्य कर्म करो और विनम्र महसूस करो।
ਜੇ ਜਰਵਾਣਾ ਪਰਹਰੈ ਜਰੁ ਵੇਸ ਕਰੇਦੀ ਆਈਐ ॥ जे जरवाणा परहरै जरु वेस करेदी आईऐ ॥ यदि कोई जोरावर मनुष्य बुढ़ापे को दूर रखना चाहे तो भी बुढ़ापा अपना वेष धारण करके आ ही जाता है।
ਕੋ ਰਹੈ ਨ ਭਰੀਐ ਪਾਈਐ ॥੫॥ को रहै न भरीऐ पाईऐ ॥५॥ जब मनुष्य के जीवन की घड़ियाँ पूरी हो जाती हैं तो दुनिया में कोई नहीं रह सकता अर्थात् आयु पूर्ण होने के बाद मृत्यु ही प्राप्त होती है।॥ ५॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥ सलोक मः १ ॥ श्लोक, प्रथम गुरु द्वारा:॥
ਮੁਸਲਮਾਨਾ ਸਿਫਤਿ ਸਰੀਅਤਿ ਪੜਿ ਪੜਿ ਕਰਹਿ ਬੀਚਾਰੁ ॥ मुसलमाना सिफति सरीअति पड़ि पड़ि करहि बीचारु ॥ मुसलमानों को शरीअत की प्रशंसा सबसे अच्छी लगती है और वे उसे पढ़-पढ़कर विचार करते हैं (अर्थात् शरीअत को ऊँचा मानते हुए उसे ही कानून समझते हैं)।
ਬੰਦੇ ਸੇ ਜਿ ਪਵਹਿ ਵਿਚਿ ਬੰਦੀ ਵੇਖਣ ਕਉ ਦੀਦਾਰੁ ॥ बंदे से जि पवहि विचि बंदी वेखण कउ दीदारु ॥ मुसलमानों का यही मानना है कि खुदा का प्यारा बन्दा वही है जो अल्लाह के दर्शन-दीदार करने हेतु शरीअत की बन्दिश में पड़ता है।
ਹਿੰਦੂ ਸਾਲਾਹੀ ਸਾਲਾਹਨਿ ਦਰਸਨਿ ਰੂਪਿ ਅਪਾਰੁ ॥ हिंदू सालाही सालाहनि दरसनि रूपि अपारु ॥ हिन्दू शास्त्र द्वारा प्रशंसनीय भगवान् की स्तुति करते हैं, जिसका रूप बेअंत सुन्दर है।
ਤੀਰਥਿ ਨਾਵਹਿ ਅਰਚਾ ਪੂਜਾ ਅਗਰ ਵਾਸੁ ਬਹਕਾਰੁ ॥ तीरथि नावहि अरचा पूजा अगर वासु बहकारु ॥ वे तीर्थ-स्थानों पर स्नान करते, देवताओं की मूर्तियों की पूजा-अर्चना करते हैं और चन्दन की सुगन्धि का प्रयोग करते हैं।
ਜੋਗੀ ਸੁੰਨਿ ਧਿਆਵਨ੍ਹ੍ਹਿ ਜੇਤੇ ਅਲਖ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾਰੁ ॥ जोगी सुंनि धिआवन्हि जेते अलख नामु करतारु ॥ योगी समाधि लगाकर निर्गुण प्रभु का ध्यान करते हैं और करतार को ‘अलख' नाम से पुकारते हैं।


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top