Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 414

Page 414

ਕੰਚਨ ਕਾਇਆ ਜੋਤਿ ਅਨੂਪੁ ॥ कंचन काइआ जोति अनूपु ॥ ऐसे व्यक्ति का शरीर ईश्वर के दिव्य प्रकाश की अनुपम आभा से शुद्ध स्वर्ण के समान निर्मल और निष्कलंक हो जाता है।
ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਦੇਵਾ ਸਗਲ ਸਰੂਪੁ ॥ त्रिभवण देवा सगल सरूपु ॥ वह तीन लोकों में प्रभु का स्वरूप देख लेता है।
ਮੈ ਸੋ ਧਨੁ ਪਲੈ ਸਾਚੁ ਅਖੂਟੁ ॥੪॥ मै सो धनु पलै साचु अखूटु ॥४॥ मेरे दामन में प्रभु नाम का सच्चा एवं अक्षय धन है॥ ४॥
ਪੰਚ ਤੀਨਿ ਨਵ ਚਾਰਿ ਸਮਾਵੈ ॥ पंच तीनि नव चारि समावै ॥ प्रभु पाँच तत्वों, माया के तीन गुणों, नवखण्डों एवं चारों दिशाओं में व्याप्त है।
ਧਰਣਿ ਗਗਨੁ ਕਲ ਧਾਰਿ ਰਹਾਵੈ ॥ धरणि गगनु कल धारि रहावै ॥ अपनी शक्ति से वह धरती एवं गगन को सहारा दे रहे हैं ।
ਬਾਹਰਿ ਜਾਤਉ ਉਲਟਿ ਪਰਾਵੈ ॥੫॥ बाहरि जातउ उलटि परावै ॥५॥ प्रभु प्राणी के बाहर दौड़ते हुए मन को उल्ट कर सन्मार्ग पर ले आते हैं ॥ ५ ॥
ਮੂਰਖੁ ਹੋਇ ਨ ਆਖੀ ਸੂਝੈ ॥ मूरखु होइ न आखी सूझै ॥ जो जीव मूर्ख है, वह ब्रह्मांड में व्याप्त ईश्वरीय सत्ता को अपनी आत्मिक आँखों से नहीं देखता।
ਜਿਹਵਾ ਰਸੁ ਨਹੀ ਕਹਿਆ ਬੂਝੈ ॥ जिहवा रसु नही कहिआ बूझै ॥ उसकी जिह्वा ने नाम-अमृत का स्वाद नहीं चखा और हृदय गुरु की शिक्षाओं को नहीं समझ पाया है।
ਬਿਖੁ ਕਾ ਮਾਤਾ ਜਗ ਸਿਉ ਲੂਝੈ ॥੬॥ बिखु का माता जग सिउ लूझै ॥६॥ वह विषैली माया में मस्त होकर दुनिया के साथ झगड़ता रहता है॥ ६॥
ਊਤਮ ਸੰਗਤਿ ਊਤਮੁ ਹੋਵੈ ॥ ऊतम संगति ऊतमु होवै ॥ उत्तम संगति करने से जीव उत्तम बन जाता है।
ਗੁਣ ਕਉ ਧਾਵੈ ਅਵਗਣ ਧੋਵੈ ॥ गुण कउ धावै अवगण धोवै ॥ ऐसा मनुष्य गुणों के पीछे भागता है और अपने अवगुणों को मिटा देता है।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਸੇਵੇ ਸਹਜੁ ਨ ਹੋਵੈ ॥੭॥ बिनु गुर सेवे सहजु न होवै ॥७॥ गुरु की सेवा के बिना सहज सुख प्राप्त नहीं होता।॥ ७॥
ਹੀਰਾ ਨਾਮੁ ਜਵੇਹਰ ਲਾਲੁ ॥ हीरा नामु जवेहर लालु ॥ प्रभु का नाम हीरा, जवाहर एवं माणिक के समान अमूल्य है।
ਮਨੁ ਮੋਤੀ ਹੈ ਤਿਸ ਕਾ ਮਾਲੁ ॥ मनु मोती है तिस का मालु ॥ जीव का मोती जैसा अनमोल मन उस स्वामी का धन है।
ਨਾਨਕ ਪਰਖੈ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲੁ ॥੮॥੫॥ नानक परखै नदरि निहालु ॥८॥५॥ हे नानक ! प्रभु भक्तजनों को परखते हैं और कृपादृष्टि से उन्हें कृतार्थ कर देते हैं। ॥ ८॥ ५॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥ आसा महला १ ॥ राग आसा, प्रथम गुरु:१ ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਮਨਿ ਮਾਨੁ ॥ गुरमुखि गिआनु धिआनु मनि मानु ॥ गुरु के माध्यम से ही ज्ञान, ध्यान एवं मन को संतोष प्राप्त होते हैं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਹਲੀ ਮਹਲੁ ਪਛਾਨੁ ॥ गुरमुखि महली महलु पछानु ॥ गुरु की शिक्षाओं का पालन करने ही प्रभु का अनुभव होता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੁਰਤਿ ਸਬਦੁ ਨੀਸਾਨੁ ॥੧॥ गुरमुखि सुरति सबदु नीसानु ॥१॥ गुरु-वचनों का अनुसरण करें और ईश्वर-स्तुति के पावन शब्दों को अपने अंतर में दिव्य प्रतीक की भाँति स्थापित करें। १॥
ਐਸੇ ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਵੀਚਾਰੀ ॥ ऐसे प्रेम भगति वीचारी ॥ गुरु के वचनों पर मनन करके, जब कोई प्रेमपूर्ण भक्ति करता है,
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਚਾ ਨਾਮੁ ਮੁਰਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुरमुखि साचा नामु मुरारी ॥१॥ रहाउ ॥ गुरुमुख बन कर ही मुरारी प्रभु का सत्यनाम प्राप्त होता है॥ १॥ रहाउ ॥
ਅਹਿਨਿਸਿ ਨਿਰਮਲੁ ਥਾਨਿ ਸੁਥਾਨੁ ॥ अहिनिसि निरमलु थानि सुथानु ॥ जो गुरुमुख बनता है वह दिन-रात निर्मल रहता है और उसका हृदय पवित्र स्थल बन जाता है।
ਤੀਨ ਭਵਨ ਨਿਹਕੇਵਲ ਗਿਆਨੁ ॥ तीन भवन निहकेवल गिआनु ॥ उसे तीन लोकों का ज्ञान हो जाता है।
ਸਾਚੇ ਗੁਰ ਤੇ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਨੁ ॥੨॥ साचे गुर ते हुकमु पछानु ॥२॥ सच्चे गुरु के माध्यम से प्रभु का आदेश पहचाना जाता है॥ २॥
ਸਾਚਾ ਹਰਖੁ ਨਾਹੀ ਤਿਸੁ ਸੋਗੁ ॥ साचा हरखु नाही तिसु सोगु ॥ वह सच्ची प्रसन्नता प्राप्त करता है और उसे कोई दु:ख स्पर्श नहीं करता।
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਗਿਆਨੁ ਮਹਾ ਰਸੁ ਭੋਗੁ ॥ अम्रितु गिआनु महा रसु भोगु ॥ वह अमृत ज्ञान एवं महारस का आनंद प्राप्त करता है।
ਪੰਚ ਸਮਾਈ ਸੁਖੀ ਸਭੁ ਲੋਗੁ ॥੩॥ पंच समाई सुखी सभु लोगु ॥३॥ उसके कामादिक पाँचों विकार नष्ट हो जाते हैं और वह सारी दुनिया में सुखी हो जाता है॥ ३॥
ਸਗਲੀ ਜੋਤਿ ਤੇਰਾ ਸਭੁ ਕੋਈ ॥ सगली जोति तेरा सभु कोई ॥ हे प्रभु ! आपकी ज्योति सर्वत्र व्याप्त है और हर कोई आपका ही है।
ਆਪੇ ਜੋੜਿ ਵਿਛੋੜੇ ਸੋਈ ॥ आपे जोड़ि विछोड़े सोई ॥ वह स्वयं ही मिलाता और स्वयं ही अलग करता है।
ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਈ ॥੪॥ आपे करता करे सु होई ॥४॥ जो कुछ सृजनहार प्रभु स्वयं करता है, वही होता है॥ ४॥
ਢਾਹਿ ਉਸਾਰੇ ਹੁਕਮਿ ਸਮਾਵੈ ॥ ढाहि उसारे हुकमि समावै ॥ ईश्वर स्वयं ही सृष्टि को ध्वस्त करके स्वयं ही निर्मित करता है, उसके आदेश अनुसार ही सृष्टि पुनः उसमें समा जाती है।
ਹੁਕਮੋ ਵਰਤੈ ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ॥ हुकमो वरतै जो तिसु भावै ॥ जो कुछ उसे अच्छा लगता है, उसकी इच्छा अनुसार हो जाता है।
ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਪੂਰਾ ਕੋਇ ਨ ਪਾਵੈ ॥੫॥ गुर बिनु पूरा कोइ न पावै ॥५॥ गुरु के बिना कोई भी पूर्ण प्रभु को प्राप्त नहीं कर सकता ॥ ५॥
ਬਾਲਕ ਬਿਰਧਿ ਨ ਸੁਰਤਿ ਪਰਾਨਿ ॥ बालक बिरधि न सुरति परानि ॥ प्राणी को बाल्यावस्था एवं वृद्धावस्था में कोई होश नहीं होती।
ਭਰਿ ਜੋਬਨਿ ਬੂਡੈ ਅਭਿਮਾਨਿ ॥ भरि जोबनि बूडै अभिमानि ॥ भरपूर यौवन में वह अभिमान में डूब जाता है।
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਕਿਆ ਲਹਸਿ ਨਿਦਾਨਿ ॥੬॥ बिनु नावै किआ लहसि निदानि ॥६॥ नाम के बिना वह मूर्ख क्या प्राप्त कर सकता है?॥ ६॥
ਜਿਸ ਕਾ ਅਨੁ ਧਨੁ ਸਹਜਿ ਨ ਜਾਨਾ ॥ जिस का अनु धनु सहजि न जाना ॥ मनुष्य उस प्रभु को नहीं जानता, जिसका दिया अन्न एवं धन वह प्रयोग करता है।
ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਨਾ ਫਿਰਿ ਪਛੁਤਾਨਾ ॥ भरमि भुलाना फिरि पछुताना ॥ दुविधा में कुमार्गगामी होकर वह बाद में पछताता है।
ਗਲਿ ਫਾਹੀ ਬਉਰਾ ਬਉਰਾਨਾ ॥੭॥ गलि फाही बउरा बउराना ॥७॥ परन्तु मूर्ख मनुष्य के गले में मोह की फाँसी पड़ी हुई है॥ ७॥
ਬੂਡਤ ਜਗੁ ਦੇਖਿਆ ਤਉ ਡਰਿ ਭਾਗੇ ॥ बूडत जगु देखिआ तउ डरि भागे ॥ इस संसार को (मोह-माया में) डूबता हुआ देखकर मनुष्य भयभीत होकर भाग जाते हैं।
ਸਤਿਗੁਰਿ ਰਾਖੇ ਸੇ ਵਡਭਾਗੇ ॥ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਕੀ ਚਰਣੀ ਲਾਗੇ ॥੮॥੬॥ सतिगुरि राखे से वडभागे ॥ नानक गुर की चरणी लागे ॥८॥६॥ हे नानक ! जिनकी सच्चे गुरु ने रक्षा की है, वे बड़े भाग्यशाली हैं। वे गुरु के चरणों से लग जाते हैं।॥ ८॥ ६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥ आसा महला १ ॥ राग आसा, प्रथम गुरु: १ ॥
ਗਾਵਹਿ ਗੀਤੇ ਚੀਤਿ ਅਨੀਤੇ ॥ गावहि गीते चीति अनीते ॥ जिनके मन बुरे विचारों से ग्रस्त हैं, फिर भी वे दूसरों के समक्ष भक्ति गीत गाते हैं;
ਰਾਗ ਸੁਣਾਇ ਕਹਾਵਹਿ ਬੀਤੇ ॥ राग सुणाइ कहावहि बीते ॥ वे धर्म-संगीत का प्रदर्शन करते हैं और स्वयं को आध्यात्मिक रूप से श्रेष्ठ मानते हैं।
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਮਨਿ ਝੂਠੁ ਅਨੀਤੇ ॥੧॥ बिनु नावै मनि झूठु अनीते ॥१॥ लेकिन नाम के बिना उनके मन में झूठ और बुरे विचार भरे रहते हैं।॥ १॥
ਕਹਾ ਚਲਹੁ ਮਨ ਰਹਹੁ ਘਰੇ ॥ कहा चलहु मन रहहु घरे ॥ हे मन ! तुम कहाँ जाते हो ? अपने हृदय घर में ही वास करो।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਤ੍ਰਿਪਤਾਸੇ ਖੋਜਤ ਪਾਵਹੁ ਸਹਜਿ ਹਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुरमुखि राम नामि त्रिपतासे खोजत पावहु सहजि हरे ॥१॥ रहाउ ॥ गुरुमुख राम के नाम से तृप्त हो जाते हैं और खोज करने से वह सहज ही प्रभु को ढूंढ लेते हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਮਨਿ ਮੋਹੁ ਸਰੀਰਾ ॥ कामु क्रोधु मनि मोहु सरीरा ॥ जिस व्यक्ति के मन में काम-क्रोध निवास करते हैं, उसे शरीर का मोह चिपका रहता है।
ਲਬੁ ਲੋਭੁ ਅਹੰਕਾਰੁ ਸੁ ਪੀਰਾ ॥ लबु लोभु अहंकारु सु पीरा ॥ लालच, लोभ एवं अहंकार उसके मन को बहुत दु:खी करते हैं।
ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਕਿਉ ਮਨੁ ਧੀਰਾ ॥੨॥ राम नाम बिनु किउ मनु धीरा ॥२॥ राम के नाम बिना मन को धैर्य कैसे आ सकता है?॥ २॥
ਅੰਤਰਿ ਨਾਵਣੁ ਸਾਚੁ ਪਛਾਣੈ ॥ अंतरि नावणु साचु पछाणै ॥ जो मनुष्य अपने अन्तर्मन को विकारों से मुक्त कर लेता है, वह सत्य प्रभु को पहचान लेता है।
ਅੰਤਰ ਕੀ ਗਤਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਣੈ ॥ अंतर की गति गुरमुखि जाणै ॥ गुरुमुख अपने अन्तर्मन की गति को स्वयं ही जानता है।
ਸਾਚ ਸਬਦ ਬਿਨੁ ਮਹਲੁ ਨ ਪਛਾਣੈ ॥੩॥ साच सबद बिनु महलु न पछाणै ॥३॥ कोई भी गुरु शब्द के बिना प्रभु को अपने हृदय में अनुभव नहीं किया जा सकता॥ ३॥
ਨਿਰੰਕਾਰ ਮਹਿ ਆਕਾਰੁ ਸਮਾਵੈ ॥ निरंकार महि आकारु समावै ॥ जो निरंकार प्रभु में ब्रह्मांड को लीन देखता है।
ਅਕਲ ਕਲਾ ਸਚੁ ਸਾਚਿ ਟਿਕਾਵੈ ॥ अकल कला सचु साचि टिकावै ॥ और अपने हृदय में उस शाश्वत परमेश्वर को स्थापित करता है, जिसकी शक्ति सीमाओं से परे
ਸੋ ਨਰੁ ਗਰਭ ਜੋਨਿ ਨਹੀ ਆਵੈ ॥੪॥ सो नरु गरभ जोनि नही आवै ॥४॥ वह मनुष्य दोबारा योनियों में प्रवेश नहीं करता॥ ४॥
ਜਹਾਂ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਤਹ ਜਾਉ ॥ जहां नामु मिलै तह जाउ ॥ हे प्रभु! मुझे ऐसा आशीर्वाद दें कि मैं वहाँ पहुँच सकूँ, जहाँ आपका पवित्र नाम सजीव हो उठे।


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