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ਰਾਮ ਰਾਮਾ ਰਾਮਾ ਗੁਨ ਗਾਵਉ ॥
हे मेरे मित्रो, मैं केवल सर्वव्यापी राम जी के गुण गाता हूँ।
ਸੰਤ ਪ੍ਰਤਾਪਿ ਸਾਧ ਕੈ ਸੰਗੇ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਉ ਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हे भाई ! संतों के प्रताप एवं गुरु की संगति में मिलकर मैं हरेि नाम का ध्यान करता रहता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਸਗਲ ਸਮਗ੍ਰੀ ਜਾ ਕੈ ਸੂਤਿ ਪਰੋਈ ॥
जिस परमात्मा के सूत्र में जगत की सारी सामग्री पिरोई हुई है,"
ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਰਵਿਆ ਸੋਈ ॥੨॥
वह प्रत्येक शरीर में विद्यमान है॥ २॥
ਓਪਤਿ ਪਰਲਉ ਖਿਨ ਮਹਿ ਕਰਤਾ ॥
प्रभु एक क्षण में ही सृष्टि की उत्पति एवं प्रलय कर देते हैं।
ਆਪਿ ਅਲੇਪਾ ਨਿਰਗੁਨੁ ਰਹਤਾ ॥੩॥
लेकिन निर्गुण प्रभु स्वयं निर्लिप्त रहते हैं। ३ ॥
ਕਰਨ ਕਰਾਵਨ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥
अन्तर्यामी प्रभु सब कुछ करने एवं जीवों से कराने में समर्थ है।
ਅਨੰਦ ਕਰੈ ਨਾਨਕ ਕਾ ਸੁਆਮੀ ॥੪॥੧੩॥੬੪॥
नानक के स्वामी सदैव आनंद में रहते हैं॥ ४॥ १३॥ ६४॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਕੋਟਿ ਜਨਮ ਕੇ ਰਹੇ ਭਵਾਰੇ ॥
अब मेरे करोड़ों जन्मों के चक्र नष्ट हो गए हैं।
ਦੁਲਭ ਦੇਹ ਜੀਤੀ ਨਹੀ ਹਾਰੇ ॥੧॥
मैं माया से पराजित नहीं हुआ, बल्कि दुर्लभ मानव जीवन सफलतापूर्वक जिया, जिसे पाना भी स्वयं में एक वरदान है।॥ १॥
ਕਿਲਬਿਖ ਬਿਨਾਸੇ ਦੁਖ ਦਰਦ ਦੂਰਿ ॥
शुभ-आचरण से सारे पाप नष्ट हो गए हैं और दुःख-दर्द दूर हो गए हैं।
ਭਏ ਪੁਨੀਤ ਸੰਤਨ ਕੀ ਧੂਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
संतों की चरण-धूलि से हम पावन हो गए हैं। ॥१॥रहाउ ॥
ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਸੰਤ ਉਧਾਰਨ ਜੋਗ ॥
प्रभु के संत दुनिया का उद्धार करने में समर्थ हैं।
ਤਿਸੁ ਭੇਟੇ ਜਿਸੁ ਧੁਰਿ ਸੰਜੋਗ ॥੨॥
ऐसे संत उसे मिलते हैं, जिसे उनका संयोग प्रारम्भ से लिखा होता है॥ २॥
ਮਨਿ ਆਨੰਦੁ ਮੰਤ੍ਰੁ ਗੁਰਿ ਦੀਆ ॥
गुरु के दिए नाम-मंत्र से मन आनंदित हो गया है।
ਤ੍ਰਿਸਨ ਬੁਝੀ ਮਨੁ ਨਿਹਚਲੁ ਥੀਆ ॥੩॥
तृष्णा बुझ गई है और मन स्थिर हो गया है॥ ३॥
ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਨਉ ਨਿਧਿ ਸਿਧਿ ॥ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਈ ਬੁਧਿ ॥੪॥੧੪॥੬੫॥
हे नानक ! गुरु से मुझे यह सुमति प्राप्त हुई है कि हरि का नाम रूपी पदार्थ ही नवनिधियों एवं सिद्धियों के तुल्य है। ॥ ४॥ १४॥ ६५॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਮਿਟੀ ਤਿਆਸ ਅਗਿਆਨ ਅੰਧੇਰੇ ॥
अज्ञानता के अँधकार के कारण मेरे मन में पैदा हुई तृष्णा मिट गई है।
ਸਾਧ ਸੇਵਾ ਅਘ ਕਟੇ ਘਨੇਰੇ ॥੧॥
संतों की सेवा करने से अनेक पाप मिट चुके हैं।॥ १॥
ਸੂਖ ਸਹਜ ਆਨੰਦੁ ਘਨਾ ॥
मुझे सहज सुख एवं बड़ा आनंद प्राप्त हो गया है।
ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤੇ ਭਏ ਮਨ ਨਿਰਮਲ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸੁਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरु की सेवा से मेरा मन निर्मल हो गया है। मैंने तो गुरु से श्रीहरि का ‘हरि-हरि' नाम ही सुना है॥ १॥ रहाउ ॥
ਬਿਨਸਿਓ ਮਨ ਕਾ ਮੂਰਖੁ ਢੀਠਾ ॥
मेरे मन की मूर्खता एवं ढीठता मिट गई है।
ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਭਾਣਾ ਲਾਗਾ ਮੀਠਾ ॥੨॥
प्रभु की इच्छा मुझे बड़ी मीठी लगती है॥ २॥
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੇ ਚਰਣ ਗਹੇ ॥
मैंने पूर्ण गुरु के चरण पकड़ लिए हैं और
ਕੋਟਿ ਜਨਮ ਕੇ ਪਾਪ ਲਹੇ ॥੩॥
मेरे करोड़ों जन्मों के पाप मिट गए हैं।॥ ३॥
ਰਤਨ ਜਨਮੁ ਇਹੁ ਸਫਲ ਭਇਆ ॥
मेरा यह रत्न जैसा अमूल्य जन्म सफल हो गया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਕਰੀ ਮਇਆ ॥੪॥੧੫॥੬੬॥
हे नानक ! प्रभु ने मुझ पर दया की है॥ ४॥ १५॥ ६६ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਅਪਨਾ ਸਦ ਸਦਾ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਰੇ ॥
अपने सतगुरु को हमेशा ही याद करते रहना चाहिए और
ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਨ ਕੇਸ ਸੰਗਿ ਝਾਰੇ ॥੧॥
गुरु चरणों में ऐसे झुको, जैसे अपनी लंबी दाढ़ी से उनके चरणों की धूल को पोंछ रहे हो। ॥ १॥
ਜਾਗੁ ਰੇ ਮਨ ਜਾਗਨਹਾਰੇ ॥
हे मेरे जागने वाले मन ! मोह-माया की नींद में से जाग जाओ अर्थात् सचेत हो जाओ।
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਅਵਰੁ ਨ ਆਵਸਿ ਕਾਮਾ ਝੂਠਾ ਮੋਹੁ ਮਿਥਿਆ ਪਸਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि के बिना तेरे कोई भी काम नहीं आएगा। परिवार का मोह झूठा है एवं माया का प्रसार नाशवान है॥ १॥ रहाउ॥
ਗੁਰ ਕੀ ਬਾਣੀ ਸਿਉ ਰੰਗੁ ਲਾਇ ॥
गुरु की वाणी से प्रेम लगाओ।
ਗੁਰੁ ਕਿਰਪਾਲੁ ਹੋਇ ਦੁਖੁ ਜਾਇ ॥੨॥
यदि गुरु कृपालु हो जाए तो दु:ख दूर हो जाते हैं।॥ २॥
ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਥਾਉ ॥
गुरु के अतिरिक्त दूसरा कोई स्थान सुखदायक नहीं। ३॥
ਗੁਰੁ ਦਾਤਾ ਗੁਰੁ ਦੇਵੈ ਨਾਉ ॥੩॥
क्योंकि गुरु दाता है और गुरु ही नाम प्रदान करते हैं॥
ਗੁਰੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪਰਮੇਸਰੁ ਆਪਿ ॥
गुरु स्वयं ही पारब्रह्म परमेश्वर हैं।
ਆਠ ਪਹਰ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਜਾਪਿ ॥੪॥੧੬॥੬੭॥
इसलिए हे नानक ! आठों प्रहर गुरु को जपते रहना चाहिए॥ ४॥ १६॥ ६७ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਆਪੇ ਪੇਡੁ ਬਿਸਥਾਰੀ ਸਾਖ ॥
यह संसार एक विशाल वृक्ष की भाँति है, जिसकी जड़ और तना स्वयं परमेश्वर हैं, और उसकी फैली हुई शाखाएँ इस सृष्टि का विस्तार हैं।
ਅਪਨੀ ਖੇਤੀ ਆਪੇ ਰਾਖ ॥੧॥
अपनी जगत रूपी फसल की वह स्वयं ही रक्षा करते हैं॥ १॥
ਜਤ ਕਤ ਪੇਖਉ ਏਕੈ ਓਹੀ ॥
जहाँ कहीं भी मैं देखता हूँ, मुझे प्रभु ही नज़र आते हैं।
ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਆਪੇ ਸੋਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
यह स्वयं ही प्रत्येक शरीर के भीतर उपस्थित है॥ १॥ रहाउ॥
ਆਪੇ ਸੂਰੁ ਕਿਰਣਿ ਬਿਸਥਾਰੁ ॥
प्रभु स्वयं ही सूर्य है और यह जगत समझो उसकी किरणों का विस्तार है।
ਸੋਈ ਗੁਪਤੁ ਸੋਈ ਆਕਾਰੁ ॥੨॥
वह स्वयं ही अदृष्ट है और स्वयं ही साक्षात् है॥ २॥
ਸਰਗੁਣ ਨਿਰਗੁਣ ਥਾਪੈ ਨਾਉ ॥
निर्गुण एवं सगुण नाम इन दोनों रूपों ने
ਦੁਹ ਮਿਲਿ ਏਕੈ ਕੀਨੋ ਠਾਉ ॥੩॥
मिलकर ईश्वर में ही स्थान बनाया हुआ है॥ ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰਿ ਭ੍ਰਮੁ ਭਉ ਖੋਇਆ ॥
हे नानक ! गुरु ने मेरा भ्रम एवं डर दूर कर दिया है और
ਅਨਦ ਰੂਪੁ ਸਭੁ ਨੈਨ ਅਲੋਇਆ ॥੪॥੧੭॥੬੮॥
मैं आनंद रूप परमेश्वर को ही अब अपने नयनों से हर जगह देखता हूँ॥ ४ ॥ १७ ॥ ६८ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਉਕਤਿ ਸਿਆਨਪ ਕਿਛੂ ਨ ਜਾਨਾ ॥
हे भगवान् ! मैं कोई उक्ति एवं चतुराई नहीं जानता।