Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 374

Page 374

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ਪੰਚਪਦੇ ॥ राग आसा, पंच-पद, पंचम गुरु: ॥
ਪ੍ਰਥਮੇ ਤੇਰੀ ਨੀਕੀ ਜਾਤਿ ॥ हे जीव रूपी नारी ! सर्वप्रथम, तेरी जाति कुलीन है।
ਦੁਤੀਆ ਤੇਰੀ ਮਨੀਐ ਪਾਂਤਿ ॥ द्वितीय, तेरा वंश भी महान् माना जाता है।
ਤ੍ਰਿਤੀਆ ਤੇਰਾ ਸੁੰਦਰ ਥਾਨੁ ॥ तृतीय, तेरा निवास स्थान अति सुन्दर है परन्तु
ਬਿਗੜ ਰੂਪੁ ਮਨ ਮਹਿ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥੧॥ तेरा रूप कुरूप ही रहा क्योंकि तेरे मन में अभिमान है॥ १॥
ਸੋਹਨੀ ਸਰੂਪਿ ਸੁਜਾਣਿ ਬਿਚਖਨਿ ॥ हे सुन्दर स्वरूप वाली, बुद्धिमान एवं चतुर नारी !"
ਅਤਿ ਗਰਬੈ ਮੋਹਿ ਫਾਕੀ ਤੂੰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ तू अत्यंत अहंकार एवं मोह-माया में फँसी हुई है॥ १॥ रहाउ॥
ਅਤਿ ਸੂਚੀ ਤੇਰੀ ਪਾਕਸਾਲ ॥ हे जीव रूपी नारी ! तेरी पाकशाला अर्थात् रसोई बड़ी पावन है।
ਕਰਿ ਇਸਨਾਨੁ ਪੂਜਾ ਤਿਲਕੁ ਲਾਲ ॥ तुम स्नान करके पूजा भी करती हो एवं माथे पर लाल तिलक लगाती हो।
ਗਲੀ ਗਰਬਹਿ ਮੁਖਿ ਗੋਵਹਿ ਗਿਆਨ ॥ अपने मुख से तुम ज्ञान की बातें करती हो परन्तु अभिमान ने तुझे नष्ट कर दिया है।
ਸਭ ਬਿਧਿ ਖੋਈ ਲੋਭਿ ਸੁਆਨ ॥੨॥ लेकिन कुत्ते जैसे लालच ने तुझे हर दिशा से नष्ट कर दिया है। ॥ २॥
ਕਾਪਰ ਪਹਿਰਹਿ ਭੋਗਹਿ ਭੋਗ ॥ तुम सुन्दर वस्त्र धारण करती हो, भोग-विलास करती हो।
ਆਚਾਰ ਕਰਹਿ ਸੋਭਾ ਮਹਿ ਲੋਗ ॥ संसार में शोभा पाने के लिए धर्म-कर्म करती हो।
ਚੋਆ ਚੰਦਨ ਸੁਗੰਧ ਬਿਸਥਾਰ ॥ अपने शरीर पर इत्र, चन्दन एवं अन्य सुगन्धियां प्रयुक्त करती हो,"
ਸੰਗੀ ਖੋਟਾ ਕ੍ਰੋਧੁ ਚੰਡਾਲ ॥੩॥ लेकिन चाण्डाल क्रोध तेरा सदा खोटा साथी बना हुआ है॥ ३॥
ਅਵਰ ਜੋਨਿ ਤੇਰੀ ਪਨਿਹਾਰੀ ॥ दूसरी समस्त योनियाँ तेरी दासी हैं।
ਇਸੁ ਧਰਤੀ ਮਹਿ ਤੇਰੀ ਸਿਕਦਾਰੀ ॥ इस धरती पर तेरा ही प्रभुत्व स्थापित है।
ਸੁਇਨਾ ਰੂਪਾ ਤੁਝ ਪਹਿ ਦਾਮ ॥ तेरे पास सोना-चांदी इत्यादि धन पदार्थ हैं लेकिन
ਸੀਲੁ ਬਿਗਾਰਿਓ ਤੇਰਾ ਕਾਮ ॥੪॥ कामवासना ने तेरा शील भ्रष्ट कर दिया है॥ ४॥
ਜਾ ਕਉ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਮਇਆ ਹਰਿ ਰਾਇ ॥ जिस पर भगवान् कृपादृष्टि करते हैं,"
ਸਾ ਬੰਦੀ ਤੇ ਲਈ ਛਡਾਇ ॥ वह (विकारों की) कैद से मुक्ति प्राप्त कर लेता है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪਾਇਆ ॥ जो सत्संगति में सम्मिलित होकर हरि-रस का आस्वादन करती है॥ ५॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਫਲ ਓਹ ਕਾਇਆ ॥੫॥ हे नानक ! वही काया सफल है
ਸਭਿ ਰੂਪ ਸਭਿ ਸੁਖ ਬਨੇ ਸੁਹਾਗਨਿ ॥ हे जीव रूपी नारी ! तब तुम समस्त रूप एवं समस्त सुखों वाली सुहागिन बन जाओगी।
ਅਤਿ ਸੁੰਦਰਿ ਬਿਚਖਨਿ ਤੂੰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ਦੂਜਾ ॥੧੨॥ तब तुम सचमुच अत्यंत सुन्दर एवं चतुर बन जाओगी ॥ १॥ रहाउ दूसरा ॥ १२ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ਇਕਤੁਕੇ ੨ ॥ राग आसा, इक-तुकास 2, पाँचवें गुरु : ॥
ਜੀਵਤ ਦੀਸੈ ਤਿਸੁ ਸਰਪਰ ਮਰਣਾ ॥ जो व्यक्ति (मोह-माया में फँसा) जीवित दिखाई देता है, उसने निश्चित ही मर जाना है।
ਮੁਆ ਹੋਵੈ ਤਿਸੁ ਨਿਹਚਲੁ ਰਹਣਾ ॥੧॥ लेकिन जो व्यक्ति मोह-माया से निर्लिप्त है, वह सदैव ही स्थिर रहेगा।॥ १ ॥
ਜੀਵਤ ਮੁਏ ਮੁਏ ਸੇ ਜੀਵੇ ॥ जो लोग अभिमान में जीवित रहते हैं वे मरे हुए हैं और जो लोग अपना अभिमान समाप्त कर देते हैं, वास्तव में वही जीवित हैं।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਵਖਧੁ ਮੁਖਿ ਪਾਇਆ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਰਸੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਵੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ वे हरि-नाम की औषधि अपने मुँह में रखते हैं और गुरु-शब्द के माध्यम से अमर करने वाले अमृत रस का पान करते हैं॥ १॥ रहाउ॥
ਕਾਚੀ ਮਟੁਕੀ ਬਿਨਸਿ ਬਿਨਾਸਾ ॥ यह देहि रूपी कच्चा घड़ा अवश्य ही टूट जाएगा।
ਜਿਸੁ ਛੂਟੈ ਤ੍ਰਿਕੁਟੀ ਤਿਸੁ ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ॥੨॥ लेकिन जिस मनुष्य की रजो, तमो एवं सतो गुण की त्रिकुटी रूपी कैद से मुक्ति हो गई है, वह अपने आत्मस्वरूप में निवास करता है॥ २॥
ਊਚਾ ਚੜੈ ਸੁ ਪਵੈ ਪਇਆਲਾ ॥ जो अत्यंत ऊँचा चढ़ता है अर्थात् अभिमान करता है, ऐसा अभिमानी अंततः पाताल में ही गिरता है।
ਧਰਨਿ ਪੜੈ ਤਿਸੁ ਲਗੈ ਨ ਕਾਲਾ ॥੩॥ जो मनुष्य धरती पर गिरे हुए अर्थात् विनम्रतापूर्वक रहते हैं उन्हें काल स्पर्श नहीं कर सकता॥ ३॥
ਭ੍ਰਮਤ ਫਿਰੇ ਤਿਨ ਕਿਛੂ ਨ ਪਾਇਆ ॥ जो मनुष्य भटकते रहते हैं, उन्हें कुछ भी प्राप्त नहीं होता।
ਸੇ ਅਸਥਿਰ ਜਿਨ ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਕਮਾਇਆ ॥੪॥ लेकिन जिन्होंने गुरु के शब्द का आचरण किया है, वे स्थिरचित रहते हैं।॥ ४॥
ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਹਰਿ ਕਾ ਮਾਲੁ ॥ हे नानक ! यह प्राण एवं शरीर सब ईश्वर का ही उपहार हैं,
ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਭਏ ਨਿਹਾਲ ॥੫॥੧੩॥ गुरु से मिलकर मनुष्य आनंदित हो गए हैं॥ ५॥ १३॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਪੁਤਰੀ ਤੇਰੀ ਬਿਧਿ ਕਰਿ ਥਾਟੀ ॥ हे मानव ! तेरी यह शरीर रूपी पुतली की संरचना अति बुद्धिमत्ता से हुई है परन्तु
ਜਾਨੁ ਸਤਿ ਕਰਿ ਹੋਇਗੀ ਮਾਟੀ ॥੧॥ तू यह बात सत्य जान कि इसने (एक दिन) मिट्टी हो जाना है॥ १॥
ਮੂਲੁ ਸਮਾਲਹੁ ਅਚੇਤ ਗਵਾਰਾ ॥ हे मूर्ख गंवार ! अपने मूल परमात्मा को याद कर।
ਇਤਨੇ ਕਉ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਕਿਆ ਗਰਬੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ तुम अपनी इस तुच्छ काया का अभिमान क्यों करते हो।॥ १॥ रहाउ॥
ਤੀਨਿ ਸੇਰ ਕਾ ਦਿਹਾੜੀ ਮਿਹਮਾਨੁ ॥ तू इस दुनिया में एक अतिथि है, जिसे रोजाना तीन सेर अन्न खाने को मिलता है।
ਅਵਰ ਵਸਤੁ ਤੁਝ ਪਾਹਿ ਅਮਾਨ ॥੨॥ अन्य सभी वस्तुएँ तेरे पास धरोहर रूप में रखी हुई हैं।॥ २॥
ਬਿਸਟਾ ਅਸਤ ਰਕਤੁ ਪਰੇਟੇ ਚਾਮ ॥ तुम विष्टा, हड्डियों, रक्त एवं चमड़ी में लपेटे हुए हो।
ਇਸੁ ਊਪਰਿ ਲੇ ਰਾਖਿਓ ਗੁਮਾਨ ॥੩॥ लेकिन तुम इस पर ही घमण्ड कर रहे हो॥ ३॥
ਏਕ ਵਸਤੁ ਬੂਝਹਿ ਤਾ ਹੋਵਹਿ ਪਾਕ ॥ यदि तुम एक नाम रूपी वस्तु का बोध कर लोगे तो तुम पवित्र-जीवन वाले हो जाओगे।
ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਤੂੰ ਸਦਾ ਨਾਪਾਕ ॥੪॥ प्रभु-नाम की सूझ बिना तुम सदैव ही अपवित्र हो।॥ ४॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਕਉ ਕੁਰਬਾਨੁ ॥ हे नानक ! मैं अपने गुरु पर बलिहारी जाता हूँ
ਜਿਸ ਤੇ ਪਾਈਐ ਹਰਿ ਪੁਰਖੁ ਸੁਜਾਨੁ ॥੫॥੧੪॥ जिसके माध्यम से सर्वज्ञ परमात्मा मिलते हैं।॥ ५॥ १४॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ਇਕਤੁਕੇ ਚਉਪਦੇ ॥ राग आसा, एक पंक्ति (इक-तुक), चार पंक्तियाँ (चौ-पद), पाँचवें गुरु: ॥
ਇਕ ਘੜੀ ਦਿਨਸੁ ਮੋ ਕਉ ਬਹੁਤੁ ਦਿਹਾਰੇ ॥ परमेश्वर से वियोग की एक घड़ी भी दिन में मेरे लिए बहुत दिनों के समान है।
ਮਨੁ ਨ ਰਹੈ ਕੈਸੇ ਮਿਲਉ ਪਿਆਰੇ ॥੧॥ मेरा मन उसके बिना रह नहीं सकता। फिर मैं अपने प्रियतम से कैसे मिलूँगी॥ १॥
ਇਕੁ ਪਲੁ ਦਿਨਸੁ ਮੋ ਕਉ ਕਬਹੁ ਨ ਬਿਹਾਵੈ ॥ दिन में एक क्षण भी ईश्वर से अलग होकर व्यतीत नहीं होता।


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