Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 373

Page 373

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु : ५ ॥
ਦੂਖ ਰੋਗ ਭਏ ਗਤੁ ਤਨ ਤੇ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ॥ हरि-परमेश्वर का गुणानुवाद करने से मेरा मन निर्मल हो गया है और मेरे तन से दुःख-रोग मिट गए हैं।
ਭਏ ਅਨੰਦ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਅਬ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਕਤ ਹੀ ਨ ਜਾਇ ॥੧॥ साधु की संगति में सम्मिलित होकर मैं आनंदित हो गया हूँ और अब मेरा मन कहीं भी नहीं भटकता ॥ १॥
ਤਪਤਿ ਬੁਝੀ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਮਾਇ ॥ हे मेरी माता ! गुरु-शब्द द्वारा मेरी भीतर की सांसारिक वासनाओं और विकारों की जलती अग्नि बुझ गई है।
ਬਿਨਸਿ ਗਇਓ ਤਾਪ ਸਭ ਸਹਸਾ ਗੁਰੁ ਸੀਤਲੁ ਮਿਲਿਓ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सहज ही ऐसे सुखदायक और शांति-प्रदायक गुरु मिल गए हैं, जिनकी संगति में मेरी सारी पीड़ा और भय स्वतः ही मिट गए। १॥ रहाउ॥
ਧਾਵਤ ਰਹੇ ਏਕੁ ਇਕੁ ਬੂਝਿਆ ਆਇ ਬਸੇ ਅਬ ਨਿਹਚਲੁ ਥਾਇ ॥ ईश्वर के एकत्व का बोध होते ही मेरी सारी भटकना शांत हो गई है और अब मेरा चित्त समता में स्थिर है।
ਜਗਤੁ ਉਧਾਰਨ ਸੰਤ ਤੁਮਾਰੇ ਦਰਸਨੁ ਪੇਖਤ ਰਹੇ ਅਘਾਇ ॥੨॥ हे प्रभु ! आपके साधु जगत का उद्धार करने वाले हैं। उनके दर्शन करके मैं तृप्त हो गया हूँ॥ २॥
ਜਨਮ ਦੋਖ ਪਰੇ ਮੇਰੇ ਪਾਛੈ ਅਬ ਪਕਰੇ ਨਿਹਚਲੁ ਸਾਧੂ ਪਾਇ ॥ अनेक जन्मों के दोषों से मेरी मुक्ति हो गई है और अब अटल साधु के चरण पकड़ लिए हैं।
ਸਹਜ ਧੁਨਿ ਗਾਵੈ ਮੰਗਲ ਮਨੂਆ ਅਬ ਤਾ ਕਉ ਫੁਨਿ ਕਾਲੁ ਨ ਖਾਇ ॥੩॥ अब मेरा मन सहज ही ईश्वर की दिव्य स्तुति में लीन रहता है, क्योंकि उसे पूर्ण विश्वास है कि अब उसे आत्मिक मृत्यु का कोई भय नहीं सताएगा। ॥ ३॥
ਕਰਨ ਕਾਰਨ ਸਮਰਥ ਹਮਾਰੇ ਸੁਖਦਾਈ ਮੇਰੇ ਹਰਿ ਹਰਿ ਰਾਇ ॥ हे मेरे हरि परमेश्वर ! आप मुझे सुख देने वाले हैं और आप ही सबकुछ करने एवं कराने में समर्थावान है।
ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ਜਪਿ ਜੀਵੈ ਨਾਨਕੁ ਓਤਿ ਪੋਤਿ ਮੇਰੈ ਸੰਗਿ ਸਹਾਇ ॥੪॥੯॥ नानक, आपके नाम का ध्यान करके आध्यात्मिक रूप से जाग्रत और जीवित हैं — आप ही मेरे सतत सहारा और संबल हैं। ॥ ४ ॥ ६ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਅਰੜਾਵੈ ਬਿਲਲਾਵੈ ਨਿੰਦਕੁ ॥ साधु-संतों की निंदा करने वाला मनुष्य बहुत चीखता-चिल्लाता एवं विलाप करता है।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪਰਮੇਸਰੁ ਬਿਸਰਿਆ ਅਪਣਾ ਕੀਤਾ ਪਾਵੈ ਨਿੰਦਕੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ निंदक ने परब्रह्म-परमेश्वर को विस्मृत कर दिया है जिसके परिणामस्वरूप वह अपने किए कर्मों का फल भोग रहा है॥ १॥ रहाउ॥
ਜੇ ਕੋਈ ਉਸ ਕਾ ਸੰਗੀ ਹੋਵੈ ਨਾਲੇ ਲਏ ਸਿਧਾਵੈ ॥ (हे भाई !) यदि कोई पुरुष उस निंदक का संगी बने तो वह निंदक उसे भी अपने साथ (नरककुण्ड में) डूबो लेता है।
ਅਣਹੋਦਾ ਅਜਗਰੁ ਭਾਰੁ ਉਠਾਏ ਨਿੰਦਕੁ ਅਗਨੀ ਮਾਹਿ ਜਲਾਵੈ ॥੧॥ निंदक अजगर के भार के समान अनन्त बोझ उठाए फिरता है और अपने आपको निन्दा की अग्नि में सदैव जलाता है॥ १॥
ਪਰਮੇਸਰ ਕੈ ਦੁਆਰੈ ਜਿ ਹੋਇ ਬਿਤੀਤੈ ਸੁ ਨਾਨਕੁ ਆਖਿ ਸੁਣਾਵੈ ॥ नानक बता रहे हैं और प्रकट रूप से वर्णन कर रहे हैं कि भगवान के दरबार में निंदक की दशा क्या होती है।
ਭਗਤ ਜਨਾ ਕਉ ਸਦਾ ਅਨੰਦੁ ਹੈ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਇ ਬਿਗਸਾਵੈ ॥੨॥੧੦॥ भक्तजन हमेशा आनंद में रहते हैं। चूंकि हरि का कीर्ति-गान करने से वे सदा प्रसन्न रहते हैं।॥ २॥ १०॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਜਉ ਮੈ ਕੀਓ ਸਗਲ ਸੀਗਾਰਾ ॥ मैंने बहुत सारे हार-श्रृंगार किए हैं
ਤਉ ਭੀ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਨ ਪਤੀਆਰਾ ॥ फिर भी मेरा मन तृप्त नहीं हुआ।
ਅਨਿਕ ਸੁਗੰਧਤ ਤਨ ਮਹਿ ਲਾਵਉ ॥ मैं अनेक सुगंधियाँ अपने शरीर पर लगाती हूँ परन्तु
ਓਹੁ ਸੁਖੁ ਤਿਲੁ ਸਮਾਨਿ ਨਹੀ ਪਾਵਉ ॥ उस सुख को मैं तिलमात्र भी प्राप्त नहीं करती हूँ।
ਮਨ ਮਹਿ ਚਿਤਵਉ ਐਸੀ ਆਸਾਈ ॥ हे मेरी माँ! मैंने अपने हृदय में ऐसी आशा धारण की है कि
ਪ੍ਰਿਅ ਦੇਖਤ ਜੀਵਉ ਮੇਰੀ ਮਾਈ ॥੧॥ अपने प्रियतम-प्रभु को देख कर मैं जीवित रहूँ॥ १॥
ਮਾਈ ਕਹਾ ਕਰਉ ਇਹੁ ਮਨੁ ਨ ਧੀਰੈ ॥ हे मेरी माँ! मैं क्या करूं ? मेरा यह मन धैर्य धारण नहीं करता।
ਪ੍ਰਿਅ ਪ੍ਰੀਤਮ ਬੈਰਾਗੁ ਹਿਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ प्रियतम की लालसा ने इसे बहुत मोहित कर लिया है।॥ १॥ रहाउ॥
ਬਸਤ੍ਰ ਬਿਭੂਖਨ ਸੁਖ ਬਹੁਤ ਬਿਸੇਖੈ ॥ ਓਇ ਭੀ ਜਾਨਉ ਕਿਤੈ ਨ ਲੇਖੈ ॥ सुन्दर वस्त्र, आभूषण एवं बहुत सारे ऐश्वर्य-वैभव उनको भी में किसी हिसाब में नहीं जानती।
ਪਤਿ ਸੋਭਾ ਅਰੁ ਮਾਨੁ ਮਹਤੁ ॥ भले ही आदर, शोभा, महानता एवं मान-प्रतिष्ठा मिले,
ਆਗਿਆਕਾਰੀ ਸਗਲ ਜਗਤੁ ॥ सारा संसार मेरी आज्ञा में चले,"
ਗ੍ਰਿਹੁ ਐਸਾ ਹੈ ਸੁੰਦਰ ਲਾਲ ॥ अति सुन्दर एवं अमूल्य घर मिले तो भी
ਪ੍ਰਭ ਭਾਵਾ ਤਾ ਸਦਾ ਨਿਹਾਲ ॥੨॥ सदैव प्रसन्न तभी रह सकती हूँ यदि प्रियतम-प्रभु को अच्छी लगूं॥ २॥
ਬਿੰਜਨ ਭੋਜਨ ਅਨਿਕ ਪਰਕਾਰ ॥ यदि अनेक प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन-भोजन मिलें,"
ਰੰਗ ਤਮਾਸੇ ਬਹੁਤੁ ਬਿਸਥਾਰ ॥ और सभी प्रकार के सुख और मनोरंजन,"
ਰਾਜ ਮਿਲਖ ਅਰੁ ਬਹੁਤੁ ਫੁਰਮਾਇਸਿ ॥ भले ही मेरे पास अपार साम्राज्य हो, और विशाल प्रदेशों पर मेरा अधिकार हो,
ਮਨੁ ਨਹੀ ਧ੍ਰਾਪੈ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਨ ਜਾਇਸਿ ॥ यह मन तृप्त नहीं होता और इसकी तृष्णा नहीं मिटती।
ਬਿਨੁ ਮਿਲਬੇ ਇਹੁ ਦਿਨੁ ਨ ਬਿਹਾਵੈ ॥ पति-परमेश्वर से मिले बिना यह दिन व्यतीत नहीं होता।
ਮਿਲੈ ਪ੍ਰਭੂ ਤਾ ਸਭ ਸੁਖ ਪਾਵੈ ॥੩॥ यदि पति-परमेश्वर मिल जाए तो सर्व सुख प्राप्त हो जाते हैं।॥ ३॥
ਖੋਜਤ ਖੋਜਤ ਸੁਨੀ ਇਹ ਸੋਇ ॥ खोजते-खोजते मुझे यह खबर मिली है कि
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਬਿਨੁ ਤਰਿਓ ਨ ਕੋਇ ॥ सत्संगति के बिना कोई भी मनुष्य पार नहीं हो सका।
ਜਿਸੁ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗੁ ਤਿਨਿ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ॥ जिसके मस्तक पर भाग्य उदय हो, वह सतगुरु को पा लेता है।
ਪੂਰੀ ਆਸਾ ਮਨੁ ਤ੍ਰਿਪਤਾਇਆ ॥ फिर उसकी आशा पूर्ण हो जाती है और मन भी तृप्त हो जाता है।
ਪ੍ਰਭ ਮਿਲਿਆ ਤਾ ਚੂਕੀ ਡੰਝਾ ॥ जब प्रभु मिल जाते हैं तो सारी जलन एवं प्यास बुझ जाती है।
ਨਾਨਕ ਲਧਾ ਮਨ ਤਨ ਮੰਝਾ ॥੪॥੧੧॥ हे नानक ! उस परब्रह्म-प्रभु को मैंने मन-तन में प्राप्त कर लिया है॥ ४ ॥ ११॥


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