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ਬਾਬਾ ਜੁਗਤਾ ਜੀਉ ਜੁਗਹ ਜੁਗ ਜੋਗੀ ਪਰਮ ਤੰਤ ਮਹਿ ਜੋਗੰ ॥
हे बाबा ! असल में वही योगी है, जो युगों-युगांतर तक परम तत्व परमात्मा के योग में लीन रहता है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨ ਪਾਇਆ ਗਿਆਨ ਕਾਇਆ ਰਸ ਭੋਗੰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिसे निरंजन प्रभु का अमृत नाम प्राप्त हुआ है, उसका शरीर ब्रह्मज्ञान के रस का भोग करता है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਿਵ ਨਗਰੀ ਮਹਿ ਆਸਣਿ ਬੈਸਉ ਕਲਪ ਤਿਆਗੀ ਬਾਦੰ ॥
वह तृष्णाओं एवं विवादों को त्याग देता है और शिव नगरी में ध्यानावस्था में आसन लगाता है।
ਸਿੰਙੀ ਸਬਦੁ ਸਦਾ ਧੁਨਿ ਸੋਹੈ ਅਹਿਨਿਸਿ ਪੂਰੈ ਨਾਦੰ ॥੨॥
सिंगी की आवाज से एक अनंत एवं सुन्दर ध्वनि उत्पन्न होती है। जो रात-दिन उसे दिव्य नाद से परिपूर्ण रखती है॥ २॥
ਪਤੁ ਵੀਚਾਰੁ ਗਿਆਨ ਮਤਿ ਡੰਡਾ ਵਰਤਮਾਨ ਬਿਭੂਤੰ ॥
ईश्वर के गुणों का चिंतन मेरा भिक्षापात्र है और ब्रह्मबोध मेरा डण्डा है। प्रभु को सर्वव्यापक देखना शरीर पर मलने वाली विभूति है।
ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਰਹਰਾਸਿ ਹਮਾਰੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪੰਥੁ ਅਤੀਤੰ ॥੩॥
परमात्मा की गुणस्तुति मेरी मर्यादा है और गुरु के सम्मुख टिके रहना ही धर्म-मार्ग है जो माया से विरक्त रखता है॥ ३॥
ਸਗਲੀ ਜੋਤਿ ਹਮਾਰੀ ਸੰਮਿਆ ਨਾਨਾ ਵਰਨ ਅਨੇਕੰ ॥
नानक का कथन है कि - हे भर्तृहरि योगी ! सुनो, समस्त जीवों में विभिन्न वर्णो रूपों में ईश्वर की ज्योति को देखना ही वैराग्यवृत्ति है
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੁਣਿ ਭਰਥਰਿ ਜੋਗੀ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਲਿਵ ਏਕੰ ॥੪॥੩॥੩੭॥
जो हमें प्रभु-चरणों में लीन होने के लिए बल प्रदान करती है॥ ४॥ ३॥ ३७॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
राग आसा, प्रथम गुरु: १ ॥
ਗੁੜੁ ਕਰਿ ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਕਰਿ ਧਾਵੈ ਕਰਿ ਕਰਣੀ ਕਸੁ ਪਾਈਐ ॥
हे योगी, दिव्य अमृत तैयार करने के लिए आध्यात्मिक ज्ञान को गुड़, ध्यान को फूल और अच्छे कर्मों को जड़ी-बूटियाँ बना।
ਭਾਠੀ ਭਵਨੁ ਪ੍ਰੇਮ ਕਾ ਪੋਚਾ ਇਤੁ ਰਸਿ ਅਮਿਉ ਚੁਆਈਐ ॥੧॥
दिव्य अमृत की धारा पाने हेतु वासनाओं को जलाने वाली भट्टी बनाओ और प्रभु-प्रेम को उसका लेप बना।॥ १॥
ਬਾਬਾ ਮਨੁ ਮਤਵਾਰੋ ਨਾਮ ਰਸੁ ਪੀਵੈ ਸਹਜ ਰੰਗ ਰਚਿ ਰਹਿਆ ॥
हे योगी ! नाम-अमृत का पान करने से मन मतवाला हो जाता है और प्रभु-रंग में सहज ही लीन रहता है।
ਅਹਿਨਿਸਿ ਬਨੀ ਪ੍ਰੇਮ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ਸਬਦੁ ਅਨਾਹਦ ਗਹਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
प्रभु-प्रेम में वृत्ति लगाने एवं अनहद शब्द को सुनने से रात-दिन सफल हो जाते हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਪੂਰਾ ਸਾਚੁ ਪਿਆਲਾ ਸਹਜੇ ਤਿਸਹਿ ਪੀਆਏ ਜਾ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ॥
यह सत्य का प्याला, परमात्मा सहज ही उसे पीने के लिए देता है, जिस पर वह अपनी कृपा-दृष्टि धारण करता है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਕਾ ਵਾਪਾਰੀ ਹੋਵੈ ਕਿਆ ਮਦਿ ਛੂਛੈ ਭਾਉ ਧਰੇ ॥੨॥
जो अमृत का व्यापारी है, वह तुच्छ मदिरा से कैसे प्रेम कर सकता है ? ॥ २॥
ਗੁਰ ਕੀ ਸਾਖੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਣੀ ਪੀਵਤ ਹੀ ਪਰਵਾਣੁ ਭਇਆ ॥
गुरु की शिक्षा अमृत वाणी है, जिसका पान करते ही मनुष्य प्रभु दरबार में स्वीकार हो जाता है।
ਦਰ ਦਰਸਨ ਕਾ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਹੋਵੈ ਮੁਕਤਿ ਬੈਕੁੰਠੈ ਕਰੈ ਕਿਆ ॥੩॥
जो मनुष्य प्रभु के दरबार एवं दर्शन का आकांक्षी होता है, वह मोक्ष एवं स्वर्ग की इच्छा नहीं करता ॥ ३ ॥
ਸਿਫਤੀ ਰਤਾ ਸਦ ਬੈਰਾਗੀ ਜੂਐ ਜਨਮੁ ਨ ਹਾਰੈ ॥
जो प्रभु की स्तुति में अनुरक्त है, वह सदैव ही वैरागी है और अपना जीवन जुए में नहीं हारता।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੁਣਿ ਭਰਥਰਿ ਜੋਗੀ ਖੀਵਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਧਾਰੈ ॥੪॥੪॥੩੮॥
गुरु नानक का कथन है कि हे भर्तृहरि योगी ! सुन, मैं अमृत की नदिया से मतवाला हो चुका हूँ॥४॥४॥३८॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
राग आसा, प्रथम गुरु: १ ॥
ਖੁਰਾਸਾਨ ਖਸਮਾਨਾ ਕੀਆ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨੁ ਡਰਾਇਆ ॥
मुगल बादशाह बाबर खुरासान पर विजय के पश्चात उसे किसी अन्य को सौंपकर हिन्दुस्तान को आतंकित करने हेतु अग्रसर हुआ।
ਆਪੈ ਦੋਸੁ ਨ ਦੇਈ ਕਰਤਾ ਜਮੁ ਕਰਿ ਮੁਗਲੁ ਚੜਾਇਆ ॥
सृष्टिकर्ता अपने कार्यों का दोष स्वयं नहीं लेते; भारत के अधर्मपूर्ण शासकों को दंड देने हेतु, मुगल बादशाह बाबर को यमराज बना कर हिन्दुस्तान भेज दिया।
ਏਤੀ ਮਾਰ ਪਈ ਕਰਲਾਣੇ ਤੈਂ ਕੀ ਦਰਦੁ ਨ ਆਇਆ ॥੧॥
हे प्रभु ! लोगों के साथ इतनी मारकाट हुई कि वे चीत्कार कर उठे परन्तु क्या आपको इन लोगों पर दया नहीं आई ? ॥ १ ॥
ਕਰਤਾ ਤੂੰ ਸਭਨਾ ਕਾ ਸੋਈ ॥
हे सृष्टि के रचयिता ! एक आप ही सब जीवों के मालिक है।
ਜੇ ਸਕਤਾ ਸਕਤੇ ਕਉ ਮਾਰੇ ਤਾ ਮਨਿ ਰੋਸੁ ਨ ਹੋਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
यदि एक शक्तिशाली दूसरे शक्तिशाली को मारे तो हृदय में क्रोध नहीं आता॥ १॥ रहाउ ॥
ਸਕਤਾ ਸੀਹੁ ਮਾਰੇ ਪੈ ਵਗੈ ਖਸਮੈ ਸਾ ਪੁਰਸਾਈ ॥
यदि बलवान सिंह पशुओं के झुण्ड पर आक्रमण कर दे तो उस झुण्ड के स्वामी से पूछताछ तो अवश्य होती है कि वह क्या कर रहा था।
ਰਤਨ ਵਿਗਾੜਿ ਵਿਗੋਏ ਕੁਤੀ ਮੁਇਆ ਸਾਰ ਨ ਕਾਈ ॥
इन मुगल रूपी कुत्तों ने रत्न जैसे इस देश तथा लोगों को मार-मार कर नष्ट कर दिया है और न तो मृतकों की पहचान की जा सकती है एवं न ही कोई उन्हें सम्मानपूर्वक अंतिम विदाई दे सकता है।
ਆਪੇ ਜੋੜਿ ਵਿਛੋੜੇ ਆਪੇ ਵੇਖੁ ਤੇਰੀ ਵਡਿਆਈ ॥੨॥
हे परमेश्वर ! आप स्वयं ही मिलाते और स्वयं ही जुदा करते हो। देखो, यह है आपकी बड़ाई॥ २॥
ਜੇ ਕੋ ਨਾਉ ਧਰਾਏ ਵਡਾ ਸਾਦ ਕਰੇ ਮਨਿ ਭਾਣੇ ॥
यदि कोई मनुष्य अपने आपको बड़ा कहलवाए और अपने चित्त को अच्छे लगते स्वादों का आनंद भोगे तो,
ਖਸਮੈ ਨਦਰੀ ਕੀੜਾ ਆਵੈ ਜੇਤੇ ਚੁਗੈ ਦਾਣੇ ॥
परमेश्वर की दृष्टि में केवल दाने चुगने वाला अर्थात् भोग-विलास में मस्त रहने वाला वह मनुष्य एक कीड़े के समान ही दिखाई देता है।
ਮਰਿ ਮਰਿ ਜੀਵੈ ਤਾ ਕਿਛੁ ਪਾਏ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੇ ॥੩॥੫॥੩੯॥
हे नानक ! जो मनुष्य विकारों की ओर से अहंत्व मार कर जीता है और परमात्मा का नाम-स्मरण करता है, वही सबकुछ हासिल करता है॥३॥५॥३९॥
ਰਾਗੁ ਆਸਾ ਘਰੁ ੨ ਮਹਲਾ ੩
राग आसा, दूसरा ताल, तीसरा गुरु:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਹਰਿ ਦਰਸਨੁ ਪਾਵੈ ਵਡਭਾਗਿ ॥
श्रीहरि का दर्शन कोई भाग्यशाली ही प्राप्त करता है।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸਚੈ ਬੈਰਾਗਿ ॥
गुरु के शब्द से सच्चा वैराग्य प्राप्त होता है।
ਖਟੁ ਦਰਸਨੁ ਵਰਤੈ ਵਰਤਾਰਾ ॥
(संसार में) हिन्दुओं के षड्दर्शन प्रचलित हैं