Page 359
ਆਸਾ ਘਰੁ ੫ ਮਹਲਾ ੧
राग आसा, पाँचवाँ ताल, प्रथम गुरु: १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਭੀਤਰਿ ਪੰਚ ਗੁਪਤ ਮਨਿ ਵਾਸੇ ॥
काम, कोध, लोभ, मोह एवं अहंकार ये पाँचों ही विकार मेरे मन में छिपकर रहते हैं और
ਥਿਰੁ ਨ ਰਹਹਿ ਜੈਸੇ ਭਵਹਿ ਉਦਾਸੇ ॥੧॥
वे स्थिर शांत नहीं रहते और भगौड़े की तरह उदासीन रहते हैं।॥ १॥
ਮਨੁ ਮੇਰਾ ਦਇਆਲ ਸੇਤੀ ਥਿਰੁ ਨ ਰਹੈ ॥
मेरा मन दयालु ईश्वर के स्मरण में नहीं टिकता।
ਲੋਭੀ ਕਪਟੀ ਪਾਪੀ ਪਾਖੰਡੀ ਮਾਇਆ ਅਧਿਕ ਲਗੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
यह मन लोभी, कपटी, पापी एवं पाखण्डी बन गया है और माया में लिप्त है॥ १॥ रहाउ ॥
ਫੂਲ ਮਾਲਾ ਗਲਿ ਪਹਿਰਉਗੀ ਹਾਰੋ ॥
मैं अपने कांत-प्रभु के गले में फूलों की माला पहनाऊँगी।
ਮਿਲੈਗਾ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਤਬ ਕਰਉਗੀ ਸੀਗਾਰੋ ॥੨॥
जब मेरा प्रियतम-प्रभु मिलेगा तो मैं हार-श्रृंगार करूँगी॥ २॥
ਪੰਚ ਸਖੀ ਹਮ ਏਕੁ ਭਤਾਰੋ ॥
हम पांच सहेलियाँ — दृष्टि, गंध, ध्वनि, स्पर्श और स्वाद के एकमात्र स्वामी आत्मा ही है।
ਪੇਡਿ ਲਗੀ ਹੈ ਜੀਅੜਾ ਚਾਲਣਹਾਰੋ ॥੩॥
यह ज्ञानेन्द्रियाँ शरीर रूपी पेड़ पर लगी हुई टहनियाँ हैं। जीवात्मा ने अवश्य ही छोड़कर चले जाना है॥ ३॥
ਪੰਚ ਸਖੀ ਮਿਲਿ ਰੁਦਨੁ ਕਰੇਹਾ ॥
(विछोह के समय) पाँचों सहेलियाँ (ज्ञानेन्द्रियॉ) विलाप करती हैं।
ਸਾਹੁ ਪਜੂਤਾ ਪ੍ਰਣਵਤਿ ਨਾਨਕ ਲੇਖਾ ਦੇਹਾ ॥੪॥੧॥੩੪॥
नानक वन्दना करते हैं कि जब जीवात्मा पकड़ी जाती है तो उसे कर्मों का लेखा देना पड़ता है। ॥४॥१॥३४॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਆਸਾ ਘਰੁ ੬ ਮਹਲਾ ੧ ॥
राग आसा, छठा ताल, प्रथम गुरु:१ ॥
ਮਨੁ ਮੋਤੀ ਜੇ ਗਹਣਾ ਹੋਵੈ ਪਉਣੁ ਹੋਵੈ ਸੂਤ ਧਾਰੀ ॥
यदि जीवात्मा अपने मन को निर्मल मोती समान आभूषण बना ले, यदि प्रत्येक सांस धागा बने,
ਖਿਮਾ ਸੀਗਾਰੁ ਕਾਮਣਿ ਤਨਿ ਪਹਿਰੈ ਰਾਵੈ ਲਾਲ ਪਿਆਰੀ ॥੧॥
यदि क्षमा अर्थात् सहनशीलता को वह श्रृंगार बनाकर अपनी देहि पर पहन ले तो वह पति-परमेश्वर की प्रियतमा होकर उसे मिल सकती है॥ १॥
ਲਾਲ ਬਹੁ ਗੁਣਿ ਕਾਮਣਿ ਮੋਹੀ ॥
हे प्रियतम ! मैं कामिनी आपके गुणों पर आसक्त हो गई हूँ।
ਤੇਰੇ ਗੁਣ ਹੋਹਿ ਨ ਅਵਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हे प्रियतम ! आपके जैसे गुण किसी अन्य में विद्यमान नहीं है। ॥ १॥ रहाउ ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਾਰੁ ਕੰਠਿ ਲੇ ਪਹਿਰੈ ਦਾਮੋਦਰੁ ਦੰਤੁ ਲੇਈ ॥
यदि जीवात्मा परमेश्वर के नाम की माला अपने गले में डाल ले और प्रभु-स्मरण को अपने दांतों का मंजन बना ले।
ਕਰ ਕਰਿ ਕਰਤਾ ਕੰਗਨ ਪਹਿਰੈ ਇਨ ਬਿਧਿ ਚਿਤੁ ਧਰੇਈ ॥੨॥
यदि वह सृजनहार प्रभु की भक्ति-सेवा को अपने हाथों का कंगन बना कर धारण कर ले तो इस प्रकार उसका मन प्रभु-चरणों में टिका रहेगा ॥ २॥
ਮਧੁਸੂਦਨੁ ਕਰ ਮੁੰਦਰੀ ਪਹਿਰੈ ਪਰਮੇਸਰੁ ਪਟੁ ਲੇਈ ॥
उसे ईश्वर के ध्यान को अपनी अंगूठी और उसकी सहायता को अपना रेशमी वस्त्र बना लेना चाहिए।"
ਧੀਰਜੁ ਧੜੀ ਬੰਧਾਵੈ ਕਾਮਣਿ ਸ੍ਰੀਰੰਗੁ ਸੁਰਮਾ ਦੇਈ ॥੩॥
आत्मा-दुल्हन को अपने बालों की लटों में धैर्य बुनना चाहिए और ईश्वर के प्रेम को अपनी आंखों का श्रृंगार बनाना चाहिए।॥ ३॥
ਮਨ ਮੰਦਰਿ ਜੇ ਦੀਪਕੁ ਜਾਲੇ ਕਾਇਆ ਸੇਜ ਕਰੇਈ ॥
यदि वह मन रूपी मंदिर में ज्ञान के दीपक को प्रज्वलित करे और अपनी काया को सेज बना ले तो
ਗਿਆਨ ਰਾਉ ਜਬ ਸੇਜੈ ਆਵੈ ਤ ਨਾਨਕ ਭੋਗੁ ਕਰੇਈ ॥੪॥੧॥੩੫॥
हे नानक ! जब आत्मा अपने हृदय में आध्यात्मिक ज्ञान के दाता, परमेश्वर को अनुभव करती है, तब वह उसके मिलन में परमानंद का अनुभव करती है।॥ ४॥ १॥ ३५ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
राग आसा, प्रथम गुरु: १ ॥
ਕੀਤਾ ਹੋਵੈ ਕਰੇ ਕਰਾਇਆ ਤਿਸੁ ਕਿਆ ਕਹੀਐ ਭਾਈ ॥
हे भाई ! परमात्मा का पैदा किया हुआ जीव वही कुछ करता है जो कुछ वह उससे करवाता है। उस परमात्मा को क्या कहा जाए ?
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰਣਾ ਸੋ ਕਰਿ ਰਹਿਆ ਕੀਤੇ ਕਿਆ ਚਤੁਰਾਈ ॥੧॥
प्राणी की कोई चतुरता काम नहीं आती, जो कुछ परमात्मा करना चाहता है, वही कुछ कर रहा है॥ १॥
ਤੇਰਾ ਹੁਕਮੁ ਭਲਾ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ॥
हे भगवान् ! जो आपको प्रसन्न करता है, उसके लिए आपकी इच्छा ही मधुर होती है।
ਨਾਨਕ ਤਾ ਕਉ ਮਿਲੈ ਵਡਾਈ ਸਾਚੇ ਨਾਮਿ ਸਮਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हे नानक ! केवल उस प्राणी को ही आदर-सम्मान मिलता है जो सत्यनाम में लीन रहता है।॥ १॥ रहाउ॥
ਕਿਰਤੁ ਪਇਆ ਪਰਵਾਣਾ ਲਿਖਿਆ ਬਾਹੁੜਿ ਹੁਕਮੁ ਨ ਹੋਈ ॥
हमारा भाग्य हमारे पूर्व कर्मों के अनुसार पहले से निर्धारित होता है और यह नियम सामान्यतः अपरिवर्तनीय माना गया है।
ਜੈਸਾ ਲਿਖਿਆ ਤੈਸਾ ਪੜਿਆ ਮੇਟਿ ਨ ਸਕੈ ਕੋਈ ॥੨॥
फिर जैसा जीवन-लेख लिखा होता है उसके अनुसार जीवन चलता है। कोई भी इसे मिटा नहीं सकता॥ २॥
ਜੇ ਕੋ ਦਰਗਹ ਬਹੁਤਾ ਬੋਲੈ ਨਾਉ ਪਵੈ ਬਾਜਾਰੀ ॥
यदि कोई प्राणी सभा में अत्याधिक बोलता है तो वह बातूनी कहा जाता है।
ਸਤਰੰਜ ਬਾਜੀ ਪਕੈ ਨਾਹੀ ਕਚੀ ਆਵੈ ਸਾਰੀ ॥੩॥
ईश्वर की इच्छा के बिना जीत व्यर्थ है; ऐसा व्यक्ति जीवन की बाज़ी हार जाता है और प्रभु-दरबार तक नहीं पहुंचता।॥ ३॥
ਨਾ ਕੋ ਪੜਿਆ ਪੰਡਿਤੁ ਬੀਨਾ ਨਾ ਕੋ ਮੂਰਖੁ ਮੰਦਾ ॥
इस मार्ग में न किसी को विद्वान, पण्डित अथवा बुद्धिमान कहा जा सकता है, न कोई (अनपढ़) मूर्ख अथवा दुष्ट स्वीकृत किया जा सकता है।
ਬੰਦੀ ਅੰਦਰਿ ਸਿਫਤਿ ਕਰਾਏ ਤਾ ਕਉ ਕਹੀਐ ਬੰਦਾ ॥੪॥੨॥੩੬॥
वही व्यक्ति सच्चा कहलाता है, जिसे ईश्वर अपनी इच्छा से अपना भजन करने का अधिकारी बनाते हैं।॥ ४॥ २॥ ३६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
राग आसा, प्रथम गुरु: १ ॥
ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਮਨੈ ਮਹਿ ਮੁੰਦ੍ਰਾ ਖਿੰਥਾ ਖਿਮਾ ਹਢਾਵਉ ॥
हे योगी, मैंने अपने मन में गुरु के वचन को गहनों की तरह धारण किया है और करुणा को अपने आचरण का वस्त्र बना लिया है।
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰੈ ਭਲਾ ਕਰਿ ਮਾਨਉ ਸਹਜ ਜੋਗ ਨਿਧਿ ਪਾਵਉ ॥੧॥
परमात्मा जो कुछ करता है उसे मैं भला मानता हूँ। इस तरह मैं योग निधि को सहज ही प्राप्त कर लेता हूँ॥ १॥