Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 353

Page 353

ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪਾਇਆ ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਨਉ ਨਿਧਿ ਪਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुरु-कृपा से जिसने नाम का अमृत चखा, वह नौ खजानों के तुल्य धन से भर गया। ॥ १॥ रहाउ॥
ਕਰਮ ਧਰਮ ਸਚੁ ਸਾਚਾ ਨਾਉ ॥ जिन मनुष्यों के कर्म एवं धर्म परमात्मा का सत्यनाम ही है,
ਤਾ ਕੈ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੈ ਜਾਉ ॥ उन पर मैं हमेशा बलिहारी जाता हूँ।
ਜੋ ਹਰਿ ਰਾਤੇ ਸੇ ਜਨ ਪਰਵਾਣੁ ॥ जो मनुष्य प्रभु में अनुरक्त रहते हैं, वे स्वीकृत हो जाते हैं।
ਤਿਨ ਕੀ ਸੰਗਤਿ ਪਰਮ ਨਿਧਾਨੁ ॥੨॥ उनकी संगति में महान् धन प्राप्त होता है।॥ २ ॥
ਹਰਿ ਵਰੁ ਜਿਨਿ ਪਾਇਆ ਧਨ ਨਾਰੀ ॥ धन्य है वह आत्म-वधू, जिसने अपने भीतर ही प्रभु को पाया।
ਹਰਿ ਸਿਉ ਰਾਤੀ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰੀ ॥ वह शब्द का चिन्तन करती है और प्रभु में मिल जाती है।
ਆਪਿ ਤਰੈ ਸੰਗਤਿ ਕੁਲ ਤਾਰੈ ॥ वह न केवल स्वयं ही (संसार सागर से) पार हो जाती है, अपितु परिवार को भी पार कर देती है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਤਤੁ ਵੀਚਾਰੈ ॥੩॥ वह सतगुरु की सेवा करती है और परम तत्व को सोचती समझती है॥ ३॥
ਹਮਰੀ ਜਾਤਿ ਪਤਿ ਸਚੁ ਨਾਉ ॥ प्रभु का सच्चा नाम मेरी जाति एवं प्रतिष्ठा है।
ਕਰਮ ਧਰਮ ਸੰਜਮੁ ਸਤ ਭਾਉ ॥ सत्य का प्रेम ही मेरा कर्म, धर्म एवं संयम है।
ਨਾਨਕ ਬਖਸੇ ਪੂਛ ਨ ਹੋਇ ॥ हे नानक ! जिस मनुष्य को प्रभु क्षमा कर देता है, उससे (कर्मो का) कोई लेखा-जोखा नहीं लिया जाता।
ਦੂਜਾ ਮੇਟੇ ਏਕੋ ਸੋਇ ॥੪॥੧੪॥ केवल प्रभु ही द्वैतवाद का नाश करने वाले हैं॥ ४॥ १४॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥ राग आसा, प्रथम गुरु द्वारा रचित १ ॥
ਇਕਿ ਆਵਹਿ ਇਕਿ ਜਾਵਹਿ ਆਈ ॥ कुछ मनुष्य दुनिया में जन्म लेते हैं और कुछ जन्म लेकर मर जाते हैं।
ਇਕਿ ਹਰਿ ਰਾਤੇ ਰਹਹਿ ਸਮਾਈ ॥ भगवान् में मग्न हुए कुछ मनुष्य उसमें ही समाए रहते हैं।
ਇਕਿ ਧਰਨਿ ਗਗਨ ਮਹਿ ਠਉਰ ਨ ਪਾਵਹਿ ॥ कुछ मनुष्यों को धरती एवं गगन कोई सुख का स्थान नहीं मिलता।
ਸੇ ਕਰਮਹੀਣ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨ ਧਿਆਵਹਿ ॥੧॥ क्योंकि वह कर्महीन (बदकिस्मत) मनुष्य प्रभु के नाम का चिन्तन नहीं करते॥ १ ॥
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਤੇ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਪਾਈ ॥ पूर्ण गुरु से मुक्ति का मार्ग प्राप्त होता है।
ਇਹੁ ਸੰਸਾਰੁ ਬਿਖੁ ਵਤ ਅਤਿ ਭਉਜਲੁ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਹਰਿ ਪਾਰਿ ਲੰਘਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ यह संसार विष जैसा महा भयानक सागर है। गुरु के शब्द द्वारा परमात्मा जीव को भवसागर से पार कर देता है॥ १॥ रहाउ॥
ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਕਉ ਆਪਿ ਲਏ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਲਿ ॥ जिन्हें प्रभु अपने साथ मिला लेता है,
ਤਿਨ ਕਉ ਕਾਲੁ ਨ ਸਾਕੈ ਪੇਲਿ ॥ उनको मृत्यु भी कुचल नहीं सकती।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਿਰਮਲ ਰਹਹਿ ਪਿਆਰੇ ॥ प्यारे गुरुमुख कमल की भाँति निर्मल रहते हैं
ਜਿਉ ਜਲ ਅੰਭ ਊਪਰਿ ਕਮਲ ਨਿਰਾਰੇ ॥੨॥ जो जल के भीतर-एवं ऊपर निर्लिप्त विचरते हैं।॥ २॥
ਬੁਰਾ ਭਲਾ ਕਹੁ ਕਿਸ ਨੋ ਕਹੀਐ ॥ बताओ, हम किसे बुरा अथवा भला कहें,"
ਦੀਸੈ ਬ੍ਰਹਮੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਚੁ ਲਹੀਐ ॥ जबकि प्रभु सबके भीतर नजर आता है। मैं गुरु के माध्यम से सत्य को जानता,"
ਅਕਥੁ ਕਥਉ ਗੁਰਮਤਿ ਵੀਚਾਰੁ ॥ गुरु के उपदेश द्वारा मैं अकथनीय प्रभु को समझ पाया हूँ।
ਮਿਲਿ ਗੁਰ ਸੰਗਤਿ ਪਾਵਉ ਪਾਰੁ ॥੩॥ मैं गुरुं की संगति में मिलकर प्रभु के पार की खोज करता हूँ॥ ३॥
ਸਾਸਤ ਬੇਦ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਬਹੁ ਭੇਦ ॥ शास्त्रों, वेदों एवं स्मृतियों के अधिकतर भेदों का ज्ञान
ਅਠਸਠਿ ਮਜਨੁ ਹਰਿ ਰਸੁ ਰੇਦ ॥ एवं अड़सठ तीर्थों को स्नान, हरि रस का हृदय में निवास ही है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਿਰਮਲੁ ਮੈਲੁ ਨ ਲਾਗੈ ॥ गुरुमुख बड़े पवित्र हैं क्योंकि उन्हें (विकारों की) कोई मैल नहीं लगती।
ਨਾਨਕ ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਵਡੇ ਧੁਰਿ ਭਾਗੈ ॥੪॥੧੫॥ हे नानक ! शुरु से ही जिनके भाग्य अच्छे लिखे हुए हों प्रभु का नाम उनके हृदय में ही बसता है॥ ४ ॥ १५ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥ राग आसा, प्रथम गुरु द्वारा रचित १ ॥
ਨਿਵਿ ਨਿਵਿ ਪਾਇ ਲਗਉ ਗੁਰ ਅਪੁਨੇ ਆਤਮ ਰਾਮੁ ਨਿਹਾਰਿਆ ॥ मैं झुक-झुक कर अपने गुरु के चरणों पर नतमस्तक होता हूँ, जिनकी दया से मैंने सर्वव्यापक राम को देख लिया है।
ਕਰਤ ਬੀਚਾਰੁ ਹਿਰਦੈ ਹਰਿ ਰਵਿਆ ਹਿਰਦੈ ਦੇਖਿ ਬੀਚਾਰਿਆ ॥੧॥ हरि के गुणों का विचार करके मैं उसे ही याद कर रहा हूँ और अपने हृदय में हरि के दर्शन-करके इसके गुणों का विचार कर रहा हूँ॥ १॥
ਬੋਲਹੁ ਰਾਮੁ ਕਰੇ ਨਿਸਤਾਰਾ ॥ राम-राम बोलो, चूंकि राम का नाम भवसागर से मुक्त करवा देता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਰਤਨੁ ਹਰਿ ਲਾਭੈ ਮਿਟੈ ਅਗਿਆਨੁ ਹੋਇ ਉਜੀਆਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुरु की कृपा से प्रभु रूपी रत्न मिलता है, जिससे अज्ञान मिट जाता है और प्रभु-ज्योति का उजाला हो जाता है। १॥ रहाउ ॥
ਰਵਨੀ ਰਵੈ ਬੰਧਨ ਨਹੀ ਤੂਟਹਿ ਵਿਚਿ ਹਉਮੈ ਭਰਮੁ ਨ ਜਾਈ ॥ केवल जिह्वा से उच्चारण करने से बन्धन नहीं टूटते और भीतर से अहंकार एवं दुविधा दूर नहीं होते।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਤ ਹਉਮੈ ਤੂਟੈ ਤਾ ਕੋ ਲੇਖੈ ਪਾਈ ॥੨॥ जब मनुष्य का मिलन सतगुरु से होता है तो उसकी दुविधा दूर हो जाती है। केवल तभी उसका मनुष्य जन्म सफल होता है॥ २॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਭਗਤਿ ਪ੍ਰਿਅ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਸੁਖ ਸਾਗਰੁ ਉਰ ਧਾਰੇ ॥ जो व्यक्ति सुखों के सागर प्रियतम परमात्मा को अपने हृदय में बसाता है, उसका हरि-हरि नाम जपता है और उसकी भक्ति करता रहता है,"
ਭਗਤਿ ਵਛਲੁ ਜਗਜੀਵਨੁ ਦਾਤਾ ਮਤਿ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੩॥ जो अपनी मति गुरुमत अनुसार रखता है, ऐसे भक्तजन को परमेश्वर भवसागर से पार कर देते हैं, चूंकि वह जग का जीवन, भक्तवत्सल एवं सबका दाता है॥ ३॥
ਮਨ ਸਿਉ ਜੂਝਿ ਮਰੈ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਏ ਮਨਸਾ ਮਨਹਿ ਸਮਾਏ ॥ जो जीव अपने मन से जूझता हुआ विकारों की ओर से मर जाता है, वह प्रभु को प्राप्त कर लेता है, उसकी अभिलाषा मन में ही मिट जाती है।
ਨਾਨਕ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਜਗਜੀਵਨੁ ਸਹਜ ਭਾਇ ਲਿਵ ਲਾਏ ॥੪॥੧੬॥ हे नानक ! यदि जगजीवन प्रभु कृपा करे तो जीव की सहज ही उसमें वृति लगी रहती है॥ ४॥ १६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥ राग आसा, प्रथम गुरु द्वारा रचित १ ॥
ਕਿਸ ਕਉ ਕਹਹਿ ਸੁਣਾਵਹਿ ਕਿਸ ਕਉ ਕਿਸੁ ਸਮਝਾਵਹਿ ਸਮਝਿ ਰਹੇ ॥ किसे कुछ कहें, किसे कुछ सुनाएँ और किसे कुछ समझाएँ ताकि वह समझदार हो जाए ?"
ਕਿਸੈ ਪੜਾਵਹਿ ਪੜਿ ਗੁਣਿ ਬੂਝੇ ਸਤਿਗੁਰ ਸਬਦਿ ਸੰਤੋਖਿ ਰਹੇ ॥੧॥ किसे पढ़ाए ताकी वह पढ़कर प्रभु के गुणों को समझ जाये और सच्चे गुरु शब्द द्वारा संतोष में बसा रहे॥ १॥


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