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ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
आसा महला १ ॥
राग आसा, प्रथम गुरु द्वारा रचित १ ॥
ਕਰਮ ਕਰਤੂਤਿ ਬੇਲਿ ਬਿਸਥਾਰੀ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਫਲੁ ਹੂਆ ॥
करम करतूति बेलि बिसथारी राम नामु फलु हूआ ॥
शुभ कर्मों एवं नेक आचरण की लता फैली हुई है और उस लता को राम के नाम का फल लगा हुआ है।
ਤਿਸੁ ਰੂਪੁ ਨ ਰੇਖ ਅਨਾਹਦੁ ਵਾਜੈ ਸਬਦੁ ਨਿਰੰਜਨਿ ਕੀਆ ॥੧॥
तिसु रूपु न रेख अनाहदु वाजै सबदु निरंजनि कीआ ॥१॥
उस राम नाम का कोई स्वरूप अथवा रेखा नहीं। यह अनहद शब्द (सहज ही) गूंजता है। निरंजन ने इस शब्द को पैदा किया है॥ १॥
ਕਰੇ ਵਖਿਆਣੁ ਜਾਣੈ ਜੇ ਕੋਈ ॥
करे वखिआणु जाणै जे कोई ॥
यदि कोई मनुष्य इस शब्द को समझ ले तो ही वह इसकी व्याख्या कर सकता है
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਵੈ ਸੋਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अम्रितु पीवै सोई ॥१॥ रहाउ ॥
और केवल वही अमृत रस का पान करता है॥ १॥ रहाउ॥
ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਪੀਆ ਸੇ ਮਸਤ ਭਏ ਹੈ ਤੂਟੇ ਬੰਧਨ ਫਾਹੇ ॥
जिन्ह पीआ से मसत भए है तूटे बंधन फाहे ॥
जो मनुष्य अमृत को चखते हैं, वे मस्त हो जाते हैं। उनके बन्धन एवं फाँसी कट जाती है
ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਸਮਾਣੀ ਭੀਤਰਿ ਤਾ ਛੋਡੇ ਮਾਇਆ ਕੇ ਲਾਹੇ ॥੨॥
जोती जोति समाणी भीतरि ता छोडे माइआ के लाहे ॥२॥
जब वे ज्योति ज्योत समा जाते हैं तो उनकी माया की तृष्णा मिट जाती है।॥ २॥
ਸਰਬ ਜੋਤਿ ਰੂਪੁ ਤੇਰਾ ਦੇਖਿਆ ਸਗਲ ਭਵਨ ਤੇਰੀ ਮਾਇਆ ॥
सरब जोति रूपु तेरा देखिआ सगल भवन तेरी माइआ ॥
हे प्रभु ! समस्त ज्योतियों में मैं आपका ही रूप देखता हूँ। समस्त लोकों में आपकी ही माया विद्यमान है।
ਰਾਰੈ ਰੂਪਿ ਨਿਰਾਲਮੁ ਬੈਠਾ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਵਿਚਿ ਛਾਇਆ ॥੩॥
रारै रूपि निरालमु बैठा नदरि करे विचि छाइआ ॥३॥
यह विवादों वाला जगत आपका ही रूप है पर आप इसमें इन विवादों से निर्लिप्त बैठे हैं यह माया आपकी छाया है। आप मोह-माया में लीन जीवों पर अपनी कृपा-दृष्टि करता है॥ ३॥
ਬੀਣਾ ਸਬਦੁ ਵਜਾਵੈ ਜੋਗੀ ਦਰਸਨਿ ਰੂਪਿ ਅਪਾਰਾ ॥
बीणा सबदु वजावै जोगी दरसनि रूपि अपारा ॥
जो योगी शब्द की वीणा बजाता है, वह अनन्त सुन्दर स्वामी के दर्शन कर लेता है।
ਸਬਦਿ ਅਨਾਹਦਿ ਸੋ ਸਹੁ ਰਾਤਾ ਨਾਨਕੁ ਕਹੈ ਵਿਚਾਰਾ ॥੪॥੮॥
सबदि अनाहदि सो सहु राता नानकु कहै विचारा ॥४॥८॥
नानक यही विचार करते हैं कि वह योगी अनहद शब्द द्वारा अपने मालिक-प्रभु के प्रेम में मग्न रहता है।॥ ४ ॥ ८ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
आसा महला १ ॥
राग आसा, प्रथम गुरु द्वारा रचित १ ॥
ਮੈ ਗੁਣ ਗਲਾ ਕੇ ਸਿਰਿ ਭਾਰ ॥
मै गुण गला के सिरि भार ॥
मुझ में यही गुण है कि अपने सिर पर मैंने व्यर्थ बातों का बोझ उठाया हुआ है।
ਗਲੀ ਗਲਾ ਸਿਰਜਣਹਾਰ ॥
गली गला सिरजणहार ॥
हे जग के रचयिता ! सब बातों में आपकी बातें ही उत्तम हैं।
ਖਾਣਾ ਪੀਣਾ ਹਸਣਾ ਬਾਦਿ ॥
खाणा पीणा हसणा बादि ॥
तब तक खाना, पीना एवं हँसना निरर्थक है
ਜਬ ਲਗੁ ਰਿਦੈ ਨ ਆਵਹਿ ਯਾਦਿ ॥੧॥
जब लगु रिदै न आवहि यादि ॥१॥
जब तक हृदय में प्रभु याद नहीं आते॥ १॥
ਤਉ ਪਰਵਾਹ ਕੇਹੀ ਕਿਆ ਕੀਜੈ ॥
तउ परवाह केही किआ कीजै ॥
मनुष्यं किसलिए और क्यों किसी दूसरे की परवाह करे,"
ਜਨਮਿ ਜਨਮਿ ਕਿਛੁ ਲੀਜੀ ਲੀਜੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जनमि जनमि किछु लीजी लीजै ॥१॥ रहाउ ॥
यदि वह अपने समूचे जीवन में प्राप्त करने योग्य वस्तु नाम को एकत्रित करे ॥ १॥ रहाउ ॥
ਮਨ ਕੀ ਮਤਿ ਮਤਾਗਲੁ ਮਤਾ ॥
मन की मति मतागलु मता ॥
हमारे मन की बुद्धि मदमत्त हाथी जैसी है।
ਜੋ ਕਿਛੁ ਬੋਲੀਐ ਸਭੁ ਖਤੋ ਖਤਾ ॥
जो किछु बोलीऐ सभु खतो खता ॥
जो कुछ हम बोलते हैं वह सब गलत ही है।
ਕਿਆ ਮੁਹੁ ਲੈ ਕੀਚੈ ਅਰਦਾਸਿ ॥
किआ मुहु लै कीचै अरदासि ॥
कौन-सा मुँह लेकर हम (प्रभु के समक्ष) वन्दना करें,"
ਪਾਪੁ ਪੁੰਨੁ ਦੁਇ ਸਾਖੀ ਪਾਸਿ ॥੨॥
पापु पुंनु दुइ साखी पासि ॥२॥
जबकि पाप एवं पुण्य दोनों साक्षी के तौर पर निकट ही हैं॥ २॥
ਜੈਸਾ ਤੂੰ ਕਰਹਿ ਤੈਸਾ ਕੋ ਹੋਇ ॥
जैसा तूं करहि तैसा को होइ ॥
हे प्रभु ! जैसा आप किसी को बनाते हो, वैसा वह हो जाता है।
ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥
तुझ बिनु दूजा नाही कोइ ॥
आपके अतिरिक्त दूसरा कोई नहीं।
ਜੇਹੀ ਤੂੰ ਮਤਿ ਦੇਹਿ ਤੇਹੀ ਕੋ ਪਾਵੈ ॥
जेही तूं मति देहि तेही को पावै ॥
जैसी सूझ बुद्धि आप किसी को देते हो, वैसी ही वह प्राप्त करता है।
ਤੁਧੁ ਆਪੇ ਭਾਵੈ ਤਿਵੈ ਚਲਾਵੈ ॥੩॥
तुधु आपे भावै तिवै चलावै ॥३॥
जैसा आपको अच्छा लगता है, वैसे ही आप मनुष्य को चलाते हो।॥३॥
ਰਾਗ ਰਤਨ ਪਰੀਆ ਪਰਵਾਰ ॥
राग रतन परीआ परवार ॥
राग एवं रागिनियों का सारा परिवार एक उत्तम रत्न है
ਤਿਸੁ ਵਿਚਿ ਉਪਜੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਸਾਰ ॥
तिसु विचि उपजै अम्रितु सार ॥
और इन में नाम रूपी अमृत तत्व उत्पन्न होता है।
ਨਾਨਕ ਕਰਤੇ ਕਾ ਇਹੁ ਧਨੁ ਮਾਲੁ ॥ ਜੇ ਕੋ ਬੂਝੈ ਏਹੁ ਬੀਚਾਰੁ ॥੪॥੯॥
नानक करते का इहु धनु मालु ॥ जे को बूझै एहु बीचारु ॥४॥९॥
हे नानक ! यह सृजनहार प्रभु का धन एवं संपति है। क्या कोई ऐसा मनुष्य है जो इस विचार को समझता है॥ ४॥ ६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
आसा महला १ ॥
राग आसा, प्रथम गुरु द्वारा रचित १ ॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਅਪਨੈ ਘਰਿ ਆਇਆ ਤਾ ਮਿਲਿ ਸਖੀਆ ਕਾਜੁ ਰਚਾਇਆ ॥
करि किरपा अपनै घरि आइआ ता मिलि सखीआ काजु रचाइआ ॥
जब दया करके भगवान् हृदय में आए, तो मेरी समस्त इंद्रियाँ मिलन का उत्सव मनाने उमड़ पड़ीं।
ਖੇਲੁ ਦੇਖਿ ਮਨਿ ਅਨਦੁ ਭਇਆ ਸਹੁ ਵੀਆਹਣ ਆਇਆ ॥੧॥
खेलु देखि मनि अनदु भइआ सहु वीआहण आइआ ॥१॥
इस खेल को देख कर मेरा मन प्रसन्न हो गया है। मेरे पति-प्रभु मुझसे विवाह करने के लिए आए हैं। ॥१॥
ਗਾਵਹੁ ਗਾਵਹੁ ਕਾਮਣੀ ਬਿਬੇਕ ਬੀਚਾਰੁ ॥
गावहु गावहु कामणी बिबेक बीचारु ॥
हे स्त्रियो ! गाओ, विवेक एवं विचार के गीत गायन करो।
ਹਮਰੈ ਘਰਿ ਆਇਆ ਜਗਜੀਵਨੁ ਭਤਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हमरै घरि आइआ जगजीवनु भतारु ॥१॥ रहाउ ॥
मेरे घर में जगजीवन मेरा कंत -प्रभु पधारा है॥ १॥ रहाउ॥
ਗੁਰੂ ਦੁਆਰੈ ਹਮਰਾ ਵੀਆਹੁ ਜਿ ਹੋਆ ਜਾਂ ਸਹੁ ਮਿਲਿਆ ਤਾਂ ਜਾਨਿਆ ॥
गुरू दुआरै हमरा वीआहु जि होआ जां सहु मिलिआ तां जानिआ ॥
सतगुरु द्वारा मेरा विवाह हो गया। जब मैं अपने कंत -प्रभु से मिल गई तो मैंने उसे पहचान लिया।
ਤਿਹੁ ਲੋਕਾ ਮਹਿ ਸਬਦੁ ਰਵਿਆ ਹੈ ਆਪੁ ਗਇਆ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ॥੨॥
तिहु लोका महि सबदु रविआ है आपु गइआ मनु मानिआ ॥२॥
उसका अनहद शब्द रूपी नाम तीन लोकों में विद्यमान हो रहा है। जब मेरा अहंकार निवृत्त हो गया तो मेरा हृदय प्रसन्न हो गया।॥ २॥
ਆਪਣਾ ਕਾਰਜੁ ਆਪਿ ਸਵਾਰੇ ਹੋਰਨਿ ਕਾਰਜੁ ਨ ਹੋਈ ॥
आपणा कारजु आपि सवारे होरनि कारजु न होई ॥
अपना कार्य प्रभु स्वयं ही संवारते हैं। यह कार्य किसी दूसरे से संवर नहीं सकता अर्थात् सफल नहीं हो सकता।
ਜਿਤੁ ਕਾਰਜਿ ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਦਇਆ ਧਰਮੁ ਹੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝੈ ਕੋਈ ॥੩॥
जितु कारजि सतु संतोखु दइआ धरमु है गुरमुखि बूझै कोई ॥३॥
कोई विरला गुरुमुख ही इस तथ्य को समझता है, कि इस विवाह कार्य के फलस्वरूप सत्य, संतोष, दयां, धर्म पैदा होते हैं।॥ ३॥
ਭਨਤਿ ਨਾਨਕੁ ਸਭਨਾ ਕਾ ਪਿਰੁ ਏਕੋ ਸੋਇ ॥
भनति नानकु सभना का पिरु एको सोइ ॥
हे नानक ! एक प्रभु ही सब जीव-स्त्रियों का प्रिय है,"
ਜਿਸ ਨੋ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਸਾ ਸੋਹਾਗਣਿ ਹੋਇ ॥੪॥੧੦॥
जिस नो नदरि करे सा सोहागणि होइ ॥४॥१०॥
जिस पर वह अपनी दया-दृष्टि धारण करता है, वह सौभाग्यवती हो जाती हैं।॥ ४॥ १० ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
आसा महला १ ॥
राग आसा, प्रथम गुरु द्वारा रचित १ ॥
ਗ੍ਰਿਹੁ ਬਨੁ ਸਮਸਰਿ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥
ग्रिहु बनु समसरि सहजि सुभाइ ॥
जो मनुष्य सहजावस्था में रहता है, उसके लिए घर एवं जंगल एक समान हैं।
ਦੁਰਮਤਿ ਗਤੁ ਭਈ ਕੀਰਤਿ ਠਾਇ ॥
दुरमति गतु भई कीरति ठाइ ॥
उसकी दुर्मति नाश हो जाती है और परमात्मा की कीर्ति उसका स्थान ले लेती है।
ਸਚ ਪਉੜੀ ਸਾਚਉ ਮੁਖਿ ਨਾਂਉ ॥
सच पउड़ी साचउ मुखि नांउ ॥
मुँह से सत्यनाम का जाप करना ईश्वर के पास पहुँचने के लिए सच्ची सीढ़ी है।