Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 310

Page 310

ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਸਲਾਹਿ ਤੂ ਸਚੁ ਸਚੇ ਸੇਵਾ ਤੇਰੀ ਹੋਤਿ ॥੧੬॥ जन नानक नामु सलाहि तू सचु सचे सेवा तेरी होति ॥१६॥ हे नानक ! तुम प्रभु के नाम की महिमा-स्तुति करो, सचमुच तेरी यह सेवा ईश्वर के द्वार पर स्वीकृत होगी ॥ १६ ॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੪ ॥ सलोक मः ४ ॥ श्लोक, चौथे गुरु: ४॥
ਸਭਿ ਰਸ ਤਿਨ ਕੈ ਰਿਦੈ ਹਹਿ ਜਿਨ ਹਰਿ ਵਸਿਆ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥ सभि रस तिन कै रिदै हहि जिन हरि वसिआ मन माहि ॥ जिनके मन में भगवान् निवास करते हैं, वे जीवन में सभी सुखों का स्वाद लेते हैं।
ਹਰਿ ਦਰਗਹਿ ਤੇ ਮੁਖ ਉਜਲੇ ਤਿਨ ਕਉ ਸਭਿ ਦੇਖਣ ਜਾਹਿ ॥ हरि दरगहि ते मुख उजले तिन कउ सभि देखण जाहि ॥ भगवान् के दरबार में उनके मुख उज्ज्वल होते हैं और सभी उनके दर्शन हेतु जाते हैं।
ਜਿਨ ਨਿਰਭਉ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਤਿਨ ਕਉ ਭਉ ਕੋਈ ਨਾਹਿ ॥ जिन निरभउ नामु धिआइआ तिन कउ भउ कोई नाहि ॥ जिन लोगों ने निर्भय परमेश्वर के नाम का ध्यान किया है, उन्हें कोई भय नहीं होता।
ਹਰਿ ਉਤਮੁ ਤਿਨੀ ਸਰੇਵਿਆ ਜਿਨ ਕਉ ਧੁਰਿ ਲਿਖਿਆ ਆਹਿ ॥ हरि उतमु तिनी सरेविआ जिन कउ धुरि लिखिआ आहि ॥ जिनकी तकदीर में आदि से ही लिखा होता है, उन्होंने उत्तम परमात्मा का सिमरन किया है।
ਤੇ ਹਰਿ ਦਰਗਹਿ ਪੈਨਾਈਅਹਿ ਜਿਨ ਹਰਿ ਵੁਠਾ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥ ते हरि दरगहि पैनाईअहि जिन हरि वुठा मन माहि ॥ जिनके मन में भगवान् निवास करते हैं, उन्हें उसके दरबार में ख्याति मिलती है।
ਓਇ ਆਪਿ ਤਰੇ ਸਭ ਕੁਟੰਬ ਸਿਉ ਤਿਨ ਪਿਛੈ ਸਭੁ ਜਗਤੁ ਛਡਾਹਿ ॥ ओइ आपि तरे सभ कुट्मब सिउ तिन पिछै सभु जगतु छडाहि ॥ वह अपने समूचे परिवार सहित भवसागर से पार हो जाते हैं और उनके पद्चिन्हों पर चलकर सारी दुनिया मुक्त हो जाती है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਉ ਹਰਿ ਮੇਲਿ ਜਨ ਤਿਨ ਵੇਖਿ ਵੇਖਿ ਹਮ ਜੀਵਾਹਿ ॥੧॥ जन नानक कउ हरि मेलि जन तिन वेखि वेखि हम जीवाहि ॥१॥ नानक कहते हैं कि हे भगवान् ! मुझे भी ऐसे महापुरुषों से मिला दे, जिन्हें देख-देख कर हम जीते रहें ॥ १॥
ਮਃ ੪ ॥ मः ४ ॥ श्लोक, चौथे गुरु: ४॥
ਸਾ ਧਰਤੀ ਭਈ ਹਰੀਆਵਲੀ ਜਿਥੈ ਮੇਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਬੈਠਾ ਆਇ ॥ सा धरती भई हरीआवली जिथै मेरा सतिगुरु बैठा आइ ॥ जिस धरती पर मेरे सतगुरु आकर बैठे हैं, वह धरती समृद्ध हो गई है।
ਸੇ ਜੰਤ ਭਏ ਹਰੀਆਵਲੇ ਜਿਨੀ ਮੇਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਦੇਖਿਆ ਜਾਇ ॥ से जंत भए हरीआवले जिनी मेरा सतिगुरु देखिआ जाइ ॥ वे लोग भी कृतार्थ हो चुके हैं, जिन्होंने मेरे सतगुरु के जाकर दर्शन प्राप्त किए हैं।
ਧਨੁ ਧੰਨੁ ਪਿਤਾ ਧਨੁ ਧੰਨੁ ਕੁਲੁ ਧਨੁ ਧਨੁ ਸੁ ਜਨਨੀ ਜਿਨਿ ਗੁਰੂ ਜਣਿਆ ਮਾਇ ॥ धनु धंनु पिता धनु धंनु कुलु धनु धनु सु जननी जिनि गुरू जणिआ माइ ॥ हे माँ! वह पिता बड़ा भाग्यशाली है, वह कुल भी भाग्यवान है, वह माँ बड़ी भाग्यवान है, जिसने गुरु को जन्म दिया है।
ਧਨੁ ਧੰਨੁ ਗੁਰੂ ਜਿਨਿ ਨਾਮੁ ਅਰਾਧਿਆ ਆਪਿ ਤਰਿਆ ਜਿਨੀ ਡਿਠਾ ਤਿਨਾ ਲਏ ਛਡਾਇ ॥ धनु धंनु गुरू जिनि नामु अराधिआ आपि तरिआ जिनी डिठा तिना लए छडाइ ॥ धन्य हैं वे गुरु, जिन्होंने प्रभु-नाम का स्मरण कर न केवल स्वयं का उद्धार किया, अपितु जो भी उनके संग जुड़े, उन्हें भी इस संसार-सागर से पार कर दिया।
ਹਰਿ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਲਹੁ ਦਇਆ ਕਰਿ ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਧੋਵੈ ਪਾਇ ॥੨॥ हरि सतिगुरु मेलहु दइआ करि जनु नानकु धोवै पाइ ॥२॥ हे हरि ! दया करके मुझे (ऐसे) गुरु से मिला दे, ताकि सेवक नानक उनके चरण धोकर विनम्रता से सेवा कर सके॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी ॥
ਸਚੁ ਸਚਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਅਮਰੁ ਹੈ ਜਿਸੁ ਅੰਦਰਿ ਹਰਿ ਉਰਿ ਧਾਰਿਆ ॥ सचु सचा सतिगुरु अमरु है जिसु अंदरि हरि उरि धारिआ ॥ सत्य का पुंज सतगुरु अमर है, जिसने ईश्वर को अपने हृदय में बसाया है।
ਸਚੁ ਸਚਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਹੈ ਜਿਨਿ ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਬਿਖੁ ਮਾਰਿਆ ॥ सचु सचा सतिगुरु पुरखु है जिनि कामु क्रोधु बिखु मारिआ ॥ सत्य का पुंज सतगुरु ऐसे महापुरुष हैं, जिन्होंने अपने हृदय से काम-क्रोध रूपी विष को नाश कर दिया है।
ਜਾ ਡਿਠਾ ਪੂਰਾ ਸਤਿਗੁਰੂ ਤਾਂ ਅੰਦਰਹੁ ਮਨੁ ਸਾਧਾਰਿਆ ॥ जा डिठा पूरा सतिगुरू तां अंदरहु मनु साधारिआ ॥ जब पूर्ण सतगुरु के दर्शन किए तो मुझ में धैर्य हो गया,"
ਬਲਿਹਾਰੀ ਗੁਰ ਆਪਣੇ ਸਦਾ ਸਦਾ ਘੁਮਿ ਵਾਰਿਆ ॥ बलिहारी गुर आपणे सदा सदा घुमि वारिआ ॥ (इसलिए) मैं अपने गुरु पर बलिहारी जाता हूँ और सदैव उन पर न्यौछावर हूँ।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਿਤਾ ਮਨਮੁਖਿ ਹਾਰਿਆ ॥੧੭॥ गुरमुखि जिता मनमुखि हारिआ ॥१७॥ गुरमुख ने मानव जन्म सफल कर लिया है और स्वेच्छाचारी ने मानव जन्म व्यर्थ गंवा दिया है॥ १७ ॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੪ ॥ सलोक मः ४ ॥ श्लोक महला ४॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਲਿਓਨੁ ਮੁਖਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਸੀ ॥ करि किरपा सतिगुरु मेलिओनु मुखि गुरमुखि नामु धिआइसी ॥ भगवान् ने कृपा करके जिस व्यक्ति को सतिगुरु से मिला दिया है, ऐसा गुरमुख अपने मुख से भगवान् के नाम का ही ध्यान करता रहता है।
ਸੋ ਕਰੇ ਜਿ ਸਤਿਗੁਰ ਭਾਵਸੀ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਘਰੀ ਵਸਾਇਸੀ ॥ सो करे जि सतिगुर भावसी गुरु पूरा घरी वसाइसी ॥ वह गुरमुख वही कार्य करता है, जो कार्य सतिगुरु को अच्छा लगता है। अत: पूर्ण गुरु उसे आत्मस्वरूप में बसाते हैं।
ਜਿਨ ਅੰਦਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਹੈ ਤਿਨ ਕਾ ਭਉ ਸਭੁ ਗਵਾਇਸੀ ॥ जिन अंदरि नामु निधानु है तिन का भउ सभु गवाइसी ॥ जिनके अन्तर्मन में नाम रूपी खजाना है, गुरु उसका तमाम भय निवृत्त कर देता है।
ਜਿਨ ਰਖਣ ਕਉ ਹਰਿ ਆਪਿ ਹੋਇ ਹੋਰ ਕੇਤੀ ਝਖਿ ਝਖਿ ਜਾਇਸੀ ॥ जिन रखण कउ हरि आपि होइ होर केती झखि झखि जाइसी ॥ जिनकी भगवान् स्वयं रक्षा करता है, अनेकों ही उनको नुक्सान पहुँचाने के प्रयास में खप-खप कर मर जाते हैं।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਤੂ ਹਰਿ ਹਲਤਿ ਪਲਤਿ ਛੋਡਾਇਸੀ ॥੧॥ जन नानक नामु धिआइ तू हरि हलति पलति छोडाइसी ॥१॥ हे नानक ! तुम भगवान् के नाम का ध्यान करो। भगवान् लोक तथा परलोक में मुक्त कर देगा ॥ १ ॥
ਮਃ ੪ ॥ मः ४ ॥ श्लोक, चौथे गुरु: ४॥
ਗੁਰਸਿਖਾ ਕੈ ਮਨਿ ਭਾਵਦੀ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥ गुरसिखा कै मनि भावदी गुर सतिगुर की वडिआई ॥ सतगुरु की महिमा गुरु के सिक्खों को बड़ी प्यारी लगती है।
ਹਰਿ ਰਾਖਹੁ ਪੈਜ ਸਤਿਗੁਰੂ ਕੀ ਨਿਤ ਚੜੈ ਸਵਾਈ ॥ हरि राखहु पैज सतिगुरू की नित चड़ै सवाई ॥ भगवान् स्वयं ही सतगुरु की लाज-प्रतिष्ठा रखता है, इसलिए सतगुरु की महिमा नित्य ही बढ़ती रहती है।
ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਮਨਿ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਹੈ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਛਡਾਈ ॥ गुर सतिगुर कै मनि पारब्रहमु है पारब्रहमु छडाई ॥ सतगुरु के हृदय में भगवान् निवास करते हैं, इसलिए वह स्वयं ही गुरु को दुष्टों से बचाता है।
ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਤਾਣੁ ਦੀਬਾਣੁ ਹਰਿ ਤਿਨਿ ਸਭ ਆਣਿ ਨਿਵਾਈ ॥ गुर सतिगुर ताणु दीबाणु हरि तिनि सभ आणि निवाई ॥ भगवान् ही गुरु का बल एवं सहारा है। उस भगवान् ने सारी दुनिया लाकर गुरु के समक्ष झुका दी है।
ਜਿਨੀ ਡਿਠਾ ਮੇਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਭਾਉ ਕਰਿ ਤਿਨ ਕੇ ਸਭਿ ਪਾਪ ਗਵਾਈ ॥ जिनी डिठा मेरा सतिगुरु भाउ करि तिन के सभि पाप गवाई ॥ जिन्होंने श्रद्धा से मेरे सतगुरु के दर्शन किए हैं, उनके सभी पाप नाश हो गए हैं।
ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਤੇ ਮੁਖ ਉਜਲੇ ਬਹੁ ਸੋਭਾ ਪਾਈ ॥ हरि दरगह ते मुख उजले बहु सोभा पाई ॥ भगवान् के दरबार में ऐसे लोगों के मुख उज्जवल हुए हैं और उन्होंने बड़ी शोभा प्राप्त की है।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਮੰਗੈ ਧੂੜਿ ਤਿਨ ਜੋ ਗੁਰ ਕੇ ਸਿਖ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥੨॥ जनु नानकु मंगै धूड़ि तिन जो गुर के सिख मेरे भाई ॥२॥ नानक कहते हैं कि मैं उनकी चरण-धूलि माँगता हूँ जो गुरु के सिक्ख मेरे भाई हैं।॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी॥
ਹਉ ਆਖਿ ਸਲਾਹੀ ਸਿਫਤਿ ਸਚੁ ਸਚੁ ਸਚੇ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥ हउ आखि सलाही सिफति सचु सचु सचे की वडिआई ॥ जिस सत्य के पुंज सच्चे परमात्मा की कीर्ति सारे विश्व में हो रही है, मैं उस सच्चे (परमात्मा) की अपने मुख से महिमा-स्तुति करता हूँ।
ਸਾਲਾਹੀ ਸਚੁ ਸਲਾਹ ਸਚੁ ਸਚੁ ਕੀਮਤਿ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਈ ॥ सालाही सचु सलाह सचु सचु कीमति किनै न पाई ॥ वह सच्वा परमात्मा जो हमेशा ही सराहनीय है, उस सच्चे का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।


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