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ਜਿਤੁ ਕੋ ਲਾਇਆ ਤਿਤ ਹੀ ਲਾਗਾ ॥
जिसके साथ प्रभु प्राणी को लगाता है, उसके साथ वह लग जाता है।
ਸੋ ਸੇਵਕੁ ਨਾਨਕ ਜਿਸੁ ਭਾਗਾ ॥੮॥੬॥
हे नानक ! प्रभु का सेवक केवल वही व्यक्ति बनता है जो भाग्यशाली है ॥८॥६॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਬਿਨੁ ਸਿਮਰਨ ਜੈਸੇ ਸਰਪ ਆਰਜਾਰੀ ॥
भगवान के सिमरन के बिना जैसे मनुष्य का जीवन सर्प जैसा है।
ਤਿਉ ਜੀਵਹਿ ਸਾਕਤ ਨਾਮੁ ਬਿਸਾਰੀ ॥੧॥
वैसे ही (भगवान से टूटा हुआ) शाक्त इन्सान नाम को भुलाकर जीवन बिताता है॥ १ ॥
ਏਕ ਨਿਮਖ ਜੋ ਸਿਮਰਨ ਮਹਿ ਜੀਆ ॥
जो व्यक्ति एक पल भर के लिए भी भगवान के सिमरन में समय बिताता है,
ਕੋਟਿ ਦਿਨਸ ਲਾਖ ਸਦਾ ਥਿਰੁ ਥੀਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ऐसा व्यक्ति समझो लाखों, करोड़ों दिनों सदा के लिए स्थिर हो जाता है। १॥ रहाउ॥
ਬਿਨੁ ਸਿਮਰਨ ਧ੍ਰਿਗੁ ਕਰਮ ਕਰਾਸ ॥
भगवान के सिमरन बिना अन्य सांसारिक कर्म करने धिक्कार योग्य हैं।
ਕਾਗ ਬਤਨ ਬਿਸਟਾ ਮਹਿ ਵਾਸ ॥੨॥
जिस तरह कौए की चोंच विष्टा में होती है, वैसे ही स्वेच्छाचारी का निवास विष्टा में होता है॥ २॥
ਬਿਨੁ ਸਿਮਰਨ ਭਏ ਕੂਕਰ ਕਾਮ ॥
भगवान के सिमरन बिना मनुष्य के कर्म कुत्ते जैसे हो जाते हैं।
ਸਾਕਤ ਬੇਸੁਆ ਪੂਤ ਨਿਨਾਮ ॥੩॥
शाक्त इन्सान वेश्या के पुत्र की भाँति बदनाम हो जाते हैं। ३॥
ਬਿਨੁ ਸਿਮਰਨ ਜੈਸੇ ਸੀਙ ਛਤਾਰਾ ॥
भगवान के सिमरन बिना प्राणी सींगों वाले मेंढे(भेड़) की तरह है।
ਬੋਲਹਿ ਕੂਰੁ ਸਾਕਤ ਮੁਖੁ ਕਾਰਾ ॥੪॥
शाक्त इन्सान झूठ व्यक्त करता है और जिस कारण दुनिया में उसका मुँह काला किया जाता है॥ ४॥
ਬਿਨੁ ਸਿਮਰਨ ਗਰਧਭ ਕੀ ਨਿਆਈ ॥
भगवान के सिमरन के बिना शाक्त इन्सान गधे की भाँति
ਸਾਕਤ ਥਾਨ ਭਰਿਸਟ ਫਿਰਾਹੀ ॥੫॥
अष्ट स्थानों पर भटकता रहता है॥५॥
ਬਿਨੁ ਸਿਮਰਨ ਕੂਕਰ ਹਰਕਾਇਆ ॥
भगवान के सिमरन बिना इन्सान पागल कुते की तरह भौंकता रहता है।
ਸਾਕਤ ਲੋਭੀ ਬੰਧੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥੬॥
शाक्त इन्सान लोभ में फंसकर बन्धनों में ही पड़ा रहता है॥ ६॥
ਬਿਨੁ ਸਿਮਰਨ ਹੈ ਆਤਮ ਘਾਤੀ ॥
भगवान के सिमरन बिना मनुष्य आत्मघाती है।
ਸਾਕਤ ਨੀਚ ਤਿਸੁ ਕੁਲੁ ਨਹੀ ਜਾਤੀ ॥੭॥
भगवान से टूटा हुआ इन्सान नीच है और उसकी कोई कुल अथवा जाति नहीं होती ॥७॥
ਜਿਸੁ ਭਇਆ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਤਿਸੁ ਸਤਸੰਗਿ ਮਿਲਾਇਆ ॥
जिस व्यक्ति पर ईश्वर कृपालु हो जाता है, उसको वह संतों की संगति में मिला देता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰਿ ਜਗਤੁ ਤਰਾਇਆ ॥੮॥੭॥
हे नानक ! गुरु जी ने समूचे संसार का कल्याण कर दिया है ॥८॥७॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਗੁਰ ਕੈ ਬਚਨਿ ਮੋਹਿ ਪਰਮ ਗਤਿ ਪਾਈ ॥
गुरु के वचन से मुझे परमगति मिल गई है।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਮੇਰੀ ਪੈਜ ਰਖਾਈ ॥੧॥
पूर्ण गुरु ने मेरा मान-सम्मान रख लिया है॥ १॥
ਗੁਰ ਕੈ ਬਚਨਿ ਧਿਆਇਓ ਮੋਹਿ ਨਾਉ ॥
गुरु के वचन से मैंने भगवान के नाम का ध्यान किया है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਮੋਹਿ ਮਿਲਿਆ ਥਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरु की कृपा से मुझे आत्मिक सुख का निवास प्राप्त हो गया है॥ १॥ रहाउ॥
ਗੁਰ ਕੈ ਬਚਨਿ ਸੁਣਿ ਰਸਨ ਵਖਾਣੀ ॥
मैं गुरु का वचन ही सुनता और अपनी जिव्हा से उच्चरित करता रहता हूँ।
ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਮੇਰੀ ਬਾਣੀ ॥੨॥
गुरु की कृपा से मेरी वाणी अमृत समान मधुर हो गई है॥ २॥
ਗੁਰ ਕੈ ਬਚਨਿ ਮਿਟਿਆ ਮੇਰਾ ਆਪੁ ॥
गुरु के वचन से मेरा अहंकार दूर हो गया है।
ਗੁਰ ਕੀ ਦਇਆ ਤੇ ਮੇਰਾ ਵਡ ਪਰਤਾਪੁ ॥੩॥
गुरु की कृपा से मेरा दुनिया में बड़ा प्रताप हो गया है॥ ३॥
ਗੁਰ ਕੈ ਬਚਨਿ ਮਿਟਿਆ ਮੇਰਾ ਭਰਮੁ ॥
गुरु के वचन से मेरा भ्रम मिट गया है।
ਗੁਰ ਕੈ ਬਚਨਿ ਪੇਖਿਓ ਸਭੁ ਬ੍ਰਹਮੁ ॥੪॥
गुरु के वचन से मैंने सर्वव्यापक परमात्मा के दर्शन कर लिए हैं।॥ ४॥
ਗੁਰ ਕੈ ਬਚਨਿ ਕੀਨੋ ਰਾਜੁ ਜੋਗੁ ॥
गुरु के वचन से मुझे राजयोग प्राप्त हुआ है।
ਗੁਰ ਕੈ ਸੰਗਿ ਤਰਿਆ ਸਭੁ ਲੋਗੁ ॥੫॥
गुरु की संगति करने से बहुत सारे लोग भवसागर से पार हो गए हैं।॥५॥
ਗੁਰ ਕੈ ਬਚਨਿ ਮੇਰੇ ਕਾਰਜ ਸਿਧਿ ॥
गुरु के वचन से मेरे तमाम कार्य सफल हो गए हैं।
ਗੁਰ ਕੈ ਬਚਨਿ ਪਾਇਆ ਨਾਉ ਨਿਧਿ ॥੬॥
गुरु के वचन से मुझे नाम का भण्डार मिल गया है॥ ६॥
ਜਿਨਿ ਜਿਨਿ ਕੀਨੀ ਮੇਰੇ ਗੁਰ ਕੀ ਆਸਾ ॥
जिस किसी व्यक्ति ने भी मेरे गुरु पर आस्था धारण की है,
ਤਿਸ ਕੀ ਕਟੀਐ ਜਮ ਕੀ ਫਾਸਾ ॥੭॥
उसकी मृत्यु का बन्धन कट गया है॥ ७॥
ਗੁਰ ਕੈ ਬਚਨਿ ਜਾਗਿਆ ਮੇਰਾ ਕਰਮੁ ॥
गुरु के वचन से ही मेरे भाग्य जाग गए हैं।
ਨਾਨਕ ਗੁਰੁ ਭੇਟਿਆ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ॥੮॥੮॥
हे नानक ! गुरु को मिलने से ही भगवान प्राप्त हो गया है ॥८॥८॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਤਿਸੁ ਗੁਰ ਕਉ ਸਿਮਰਉ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ॥
उस गुरु को मैं श्वास-श्वास से याद करता रहता हूँ।
ਗੁਰੁ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਾਣ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਰੀ ਰਾਸਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरु मेरे प्राणों का आधार है, यह सतिगुरु ही मेरी जीवन-पूंजी हैं॥ १॥ रहाउ॥
ਗੁਰ ਕਾ ਦਰਸਨੁ ਦੇਖਿ ਦੇਖਿ ਜੀਵਾ ॥
मैं गुरु के दर्शन करके ही जीवित रहता हूँ।
ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਣ ਧੋਇ ਧੋਇ ਪੀਵਾ ॥੧॥
मैं गुरु के चरण धो-धोकर उस चरणामृत का पान करता हूँ॥ १ ॥
ਗੁਰ ਕੀ ਰੇਣੁ ਨਿਤ ਮਜਨੁ ਕਰਉ ॥
मैं गुरु की चरण धूल में प्रतिदिन स्नान करता हूँ।
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੀ ਹਉਮੈ ਮਲੁ ਹਰਉ ॥੨॥
यूं मैंने जन्म-जन्मांतरों के अहंकार की मैल को धो दिया है॥ २॥
ਤਿਸੁ ਗੁਰ ਕਉ ਝੂਲਾਵਉ ਪਾਖਾ ॥
उस गुरु को मैं पंखा करता हूँ।
ਮਹਾ ਅਗਨਿ ਤੇ ਹਾਥੁ ਦੇ ਰਾਖਾ ॥੩॥
अपना हाथ देकर गुरु ने मुझे मोह-माया की महा अग्नि से बचा लिया है॥ ३॥
ਤਿਸੁ ਗੁਰ ਕੈ ਗ੍ਰਿਹਿ ਢੋਵਉ ਪਾਣੀ ॥
मैं उस गुरु के घर के लिए जल ढोता हूँ,
ਜਿਸੁ ਗੁਰ ਤੇ ਅਕਲ ਗਤਿ ਜਾਣੀ ॥੪॥
जिन से मैंने ज्ञान का मार्ग समझा है॥ ४॥
ਤਿਸੁ ਗੁਰ ਕੈ ਗ੍ਰਿਹਿ ਪੀਸਉ ਨੀਤ ॥
उस गुरु के घर के लिए मैं सदा ही चक्की पीसता हूँ,
ਜਿਸੁ ਪਰਸਾਦਿ ਵੈਰੀ ਸਭ ਮੀਤ ॥੫॥
जिसकी दया से मेरे तमाम शत्रु मित्र बन गए हैं।॥ ५॥