Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 233

Page 233

ਸਬਦਿ ਮਨੁ ਰੰਗਿਆ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥ उसका मन नाम में मग्न रहता है और वह प्रभु में सुरति लगाकर रखता है।
ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਸਿਆ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਰਜਾਇ ॥੧॥ प्रभु की इच्छा से वह अपने आत्मस्वरूप में ही रहता है।॥ १॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿਐ ਜਾਇ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥ सतगुरु की सेवा करने से अभिमान दूर हो जाता है एवं
ਗੋਵਿਦੁ ਪਾਈਐ ਗੁਣੀ ਨਿਧਾਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुणों के भण्डार गोविन्द प्राप्त हो जाते हैं॥ १॥ रहाउ ॥
ਮਨੁ ਬੈਰਾਗੀ ਜਾ ਸਬਦਿ ਭਉ ਖਾਇ ॥ गुरु के दिव्य वचनों से प्रेरित होकर जब व्यक्ति ईश्वर के प्रति श्रद्धा और भय का अनुभव करता है, तो उसका चित्त माया के बंधनों से स्वतः मुक्त हो जाता है।
ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਨਿਰਮਲਾ ਸਭ ਤੈ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥ मेरा निर्मल प्रभु सर्वत्र व्यापत है।
ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਮਿਲੈ ਮਿਲਾਇ ॥੨॥ गुरु की कृपा से प्राणी प्रभु मिलन में मिल जाता है॥ २॥
ਹਰਿ ਦਾਸਨ ਕੋ ਦਾਸੁ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ॥ ईश्वर के सेवकों का सेवक आत्मिक सुख प्राप्त करता है।
ਮੇਰਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਇਨ ਬਿਧਿ ਪਾਇਆ ਜਾਏ ॥ मेरा प्रभु-परमेश्वर इस विधि से प्राप्त होता है।
ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਰਾਮ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥੩॥ परमेश्वर की कृपा से मनुष्य राम की गुणस्तुति करता है॥ ३॥
ਧ੍ਰਿਗੁ ਬਹੁ ਜੀਵਣੁ ਜਿਤੁ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਨ ਲਗੈ ਪਿਆਰੁ ॥ ऐसे लम्बे जीवन पर धिक्कार है जिसमें प्रभु के नाम से प्रेम नहीं होता।
ਧ੍ਰਿਗੁ ਸੇਜ ਸੁਖਾਲੀ ਕਾਮਣਿ ਮੋਹ ਗੁਬਾਰੁ ॥ सुन्दर स्त्री की सुखदायक सेज भी धिक्कार योग्य है जिससे मोह का अन्धेरा बना रहता है।
ਤਿਨ ਸਫਲੁ ਜਨਮੁ ਜਿਨ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ॥੪॥ उनका जीवन ही फलदायक है, जिन्हें नाम का सहारा प्राप्त है ॥४॥
ਧ੍ਰਿਗੁ ਧ੍ਰਿਗੁ ਗ੍ਰਿਹੁ ਕੁਟੰਬੁ ਜਿਤੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨ ਹੋਇ ॥ ऐसा गृहस्थ-जीवन एवं परिवार भी धिक्कार योग्य है, जिसके कारण प्रभु से प्रेम नहीं होता।
ਸੋਈ ਹਮਾਰਾ ਮੀਤੁ ਜੋ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਸੋਇ ॥ केवल वही मेरा मित्र है, जो उस ईश्वर का यश गायन करता है।
ਹਰਿ ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਮੈ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥੫॥ प्रभु के नाम बिना मेरा दूसरा कोई नहीं ॥ ५॥
ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਹਮ ਗਤਿ ਪਤਿ ਪਾਈ ॥ सतगुरु से मैंने मुक्ति एवं शोभा प्राप्त की है।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਦੂਖੁ ਸਗਲ ਮਿਟਾਈ ॥ भगवान् के नाम का ध्यान करने से सभी दुःख मिट गए हैं।
ਸਦਾ ਅਨੰਦੁ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੬॥ भगवान् के नाम में वृति लगाने से सदैव आनंद प्राप्त होता है ॥६॥
ਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਹਮ ਕਉ ਸਰੀਰ ਸੁਧਿ ਭਈ ॥ गुरु को मिलने से हमारा शरीर शुद्ध हो गया है।
ਹਉਮੈ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਸਭ ਅਗਨਿ ਬੁਝਈ ॥ जिससे अहंकार एवं तृष्णा की अग्नि बुझ गई है।
ਬਿਨਸੇ ਕ੍ਰੋਧ ਖਿਮਾ ਗਹਿ ਲਈ ॥੭॥ मेरा क्रोध मिट गया है और मैंने सहनशीलता धारण कर ली है॥ ७॥
ਹਰਿ ਆਪੇ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਨਾਮੁ ਦੇਵੈ ॥ भगवान् स्वयं ही कृपा करके अपना नाम प्रदान करता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਰਤਨੁ ਕੋ ਵਿਰਲਾ ਲੇਵੈ ॥ कोई विरला गुरमुख ही नाम-रत्न को प्राप्त करता है।
ਨਾਨਕੁ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਹਰਿ ਅਲਖ ਅਭੇਵੈ ॥੮॥੮॥ हे नानक ! वह तो अलक्ष्य तथा अभेद परमेश्वर की ही गुणस्तुति करता है ॥८॥८॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਬੈਰਾਗਣਿ ਮਹਲਾ ੩ ॥ राग गौड़ी बैरागन, तीसरे गुरु द्वारा: ३ ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਜੋ ਮੁਹ ਫੇਰੇ ਤੇ ਵੇਮੁਖ ਬੁਰੇ ਦਿਸੰਨਿ ॥ जो लोग सच्चे गुरु की बातों को नकार देते हैं और उन पर विश्वास नहीं करते, वे धोखेबाज़ और बुरे समझे जाते हैं।।
ਅਨਦਿਨੁ ਬਧੇ ਮਾਰੀਅਨਿ ਫਿਰਿ ਵੇਲਾ ਨਾ ਲਹੰਨਿ ॥੧॥ ऐसे व्यक्ति बन्धनों में फँसकर दिन-रात दुःख भोगते रहते हैं और फिर उन्हें बन्धनों से बचने का अवसर प्राप्त नहीं होता ॥ १॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਰਾਖਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਧਾਰਿ ॥ हे प्रभु-परमेश्वर ! कृपा करके हमारी रक्षा करें।
ਸਤਸੰਗਤਿ ਮੇਲਾਇ ਪ੍ਰਭ ਹਰਿ ਹਿਰਦੈ ਹਰਿ ਗੁਣ ਸਾਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे ईश्वर ! मुझे सत्संग में मिला दो, ताकि मैं अपने मन में प्रभु-परमेश्वर के गुणों को स्मरण करता रहूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਸੇ ਭਗਤ ਹਰਿ ਭਾਵਦੇ ਜੋ ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਾਇ ਚਲੰਨਿ ॥ भगवान् को वही भक्त प्रिय हैं, जो गुरु की इच्छानुसार चलते हैं।
ਆਪੁ ਛੋਡਿ ਸੇਵਾ ਕਰਨਿ ਜੀਵਤ ਮੁਏ ਰਹੰਨਿ ॥੨॥ वे अपना अहंकार त्यागकर प्रभु की सेवा-भक्ति करते हैं और संसार का कर्म करते हुए भी माया के मोह से मृत रहते हैं।॥ २॥
ਜਿਸ ਦਾ ਪਿੰਡੁ ਪਰਾਣ ਹੈ ਤਿਸ ਕੀ ਸਿਰਿ ਕਾਰ ॥ जिस प्रभु का दिया हुआ यह शरीर और यह प्राण है, उसकी ही सरकार है अर्थात् उसकी आज्ञा सब पर सक्रिय है।
ਓਹੁ ਕਿਉ ਮਨਹੁ ਵਿਸਾਰੀਐ ਹਰਿ ਰਖੀਐ ਹਿਰਦੈ ਧਾਰਿ ॥੩॥ उसको अपने हृदय से किसी भी अवस्था में क्यों विस्मृत करें ? हमें ईश्वर को अपने हृदय से लगाकर रखना चाहिए॥ ३॥
ਨਾਮਿ ਮਿਲਿਐ ਪਤਿ ਪਾਈਐ ਨਾਮਿ ਮੰਨਿਐ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥ यदि नाम प्राप्त हो जाए तो ही मनुष्य को मान-सम्मान मिलता है और नाम में आस्था रखने से उसको आत्मिक सुख मिलता है।
ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਨਾਮੁ ਪਾਈਐ ਕਰਮਿ ਮਿਲੈ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਇ ॥੪॥ सतगुरु से ही नाम प्राप्त होता है। उसकी अपनी कृपा से ही वह प्रभु पाया जाता है॥ ४॥
ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਜੋ ਮੁਹੁ ਫੇਰੇ ਓਇ ਭ੍ਰਮਦੇ ਨਾ ਟਿਕੰਨਿ ॥ जो व्यक्ति सतगुरु से मुँह फेर लेते हैं, वह (संसार में) भटकते ही रहते है और उन्हें शांति नहीं मिलती।
ਧਰਤਿ ਅਸਮਾਨੁ ਨ ਝਲਈ ਵਿਚਿ ਵਿਸਟਾ ਪਏ ਪਚੰਨਿ ॥੫॥ गुरु से विमुख होने वाले लोगों को धरती एवं गगन भी सहारा नहीं देते। विष्टा में गिरे हुए वह वहाँ गल-सड़ जाते हैं।॥ ५॥
ਇਹੁ ਜਗੁ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇਆ ਮੋਹ ਠਗਉਲੀ ਪਾਇ ॥ माया ने इस संसार को दुविधा में डालकर मोह की बूटी खिलाकर कुमार्गगामी बना दिया है
ਜਿਨਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟਿਆ ਤਿਨ ਨੇੜਿ ਨ ਭਿਟੈ ਮਾਇ ॥੬॥ लेकिन जिन्हें सतगुरु मिल जाते हैं, माया उनके निकट नहीं आती॥ ६ ॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਨਿ ਸੋ ਸੋਹਣੇ ਹਉਮੈ ਮੈਲੁ ਗਵਾਇ ॥ जो व्यक्ति सतगुरु की श्रद्धापूर्वक सेवा करते हैं, वह अति सुन्दर हैं। वह अपने अहंकार की मलिनता को दूर फेंक देते हैं।


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