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                    ਤਨਿ ਮਨਿ ਸੂਚੈ ਸਾਚੁ ਸੁ ਚੀਤਿ ॥
                   
                    
                                              
                        उस सत्यनाम को हृदय में बसाने से उनका तन-मन पवित्र हो जाता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਭਜੁ ਨੀਤਾ ਨੀਤਿ ॥੮॥੨॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! तू नित्य परमेश्वर का भजन करता रह॥ ८॥ २॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
                   
                    
                                              
                        राग गौड़ी ग्वरायरी, प्रथम गुरु: १ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾ ਮਨੁ ਮਰੈ ਨ ਕਾਰਜੁ ਹੋਇ ॥
                   
                    
                                              
                        मनुष्य का मन कामादिक विकारों के वश में होने के कारण मरता नहीं। इसलिए जीवन का मनोरथ सम्पूर्ण नहीं होता।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਨੁ ਵਸਿ ਦੂਤਾ ਦੁਰਮਤਿ ਦੋਇ ॥
                   
                    
                                              
                        मन दुष्कर्मों, मंदबुद्धि एवं द्वैतभाव के वश में है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਨੁ ਮਾਨੈ ਗੁਰ ਤੇ ਇਕੁ ਹੋਇ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        गुरु से ज्ञान प्राप्त करके मन तृप्त हो जाता है और ईश्वर से एकरूप हो जाता है।॥ १॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਿਰਗੁਣ ਰਾਮੁ ਗੁਣਹ ਵਸਿ ਹੋਇ ॥
                   
                    
                                              
                        निर्गुण राम गुणों के वश में है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਆਪੁ ਨਿਵਾਰਿ ਬੀਚਾਰੇ ਸੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        जो व्यक्ति अपने अहंकार को मिटा देता है, वह प्रभु का चिन्तन करता है॥ १॥ रहाउ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਨੁ ਭੂਲੋ ਬਹੁ ਚਿਤੈ ਵਿਕਾਰੁ ॥
                   
                    
                                              
                        भटका हुआ मन अधिकतर विकारों का ध्यान करता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਨੁ ਭੂਲੋ ਸਿਰਿ ਆਵੈ ਭਾਰੁ ॥
                   
                    
                                              
                        जब तक मन कुमार्ग पर चलता रहता है, तब तक पापों का बोझ उसके सिर पर रहता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਨੁ ਮਾਨੈ ਹਰਿ ਏਕੰਕਾਰੁ ॥੨॥
                   
                    
                                              
                        जब मन की संतुष्टि हो जाती है, तो वह केवल एक ईश्वर को अनुभव करता है॥ २॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਨੁ ਭੂਲੋ ਮਾਇਆ ਘਰਿ ਜਾਇ ॥
                   
                    
                                              
                        भटका हुआ मन पापों के गृह में प्रवेश करता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਾਮਿ ਬਿਰੂਧਉ ਰਹੈ ਨ ਠਾਇ ॥
                   
                    
                                              
                        कामग्रस्त मन उचित स्थान पर नहीं रहता।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਭਜੁ ਪ੍ਰਾਣੀ ਰਸਨ ਰਸਾਇ ॥੩॥
                   
                    
                                              
                        हे नश्वर प्राणी ! प्रेमपूर्वक अपनी जिह्वा से प्रभु के नाम का भजन कर ॥ ३॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗੈਵਰ ਹੈਵਰ ਕੰਚਨ ਸੁਤ ਨਾਰੀ ॥
                   
                    
                                              
                        हाथी, घोड़े, सोना, पुत्र एवं पत्नी
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬਹੁ ਚਿੰਤਾ ਪਿੜ ਚਾਲੈ ਹਾਰੀ ॥
                   
                    
                                              
                        प्राप्त करने की अधिकतर चिन्ता में प्राणी जीवन का खेल हार जाता है और प्रस्थान कर जाता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜੂਐ ਖੇਲਣੁ ਕਾਚੀ ਸਾਰੀ ॥੪॥
                   
                    
                                              
                        शतरंज की खेल में उसका मोहरा चलता नहीं ॥ ४॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸੰਪਉ ਸੰਚੀ ਭਏ ਵਿਕਾਰ ॥
                   
                    
                                              
                        जैसे-जैसे मनुष्य धन संग्रह करता है। उससे विकार उत्पन्न हो जाता है
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਖ ਸੋਕ ਉਭੇ ਦਰਵਾਰਿ ॥
                   
                    
                                              
                        और हर्ष एवं शोक उसके द्वार पर खड़े रहते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸੁਖੁ ਸਹਜੇ ਜਪਿ ਰਿਦੈ ਮੁਰਾਰਿ ॥੫॥
                   
                    
                                              
                        हृदय में परमात्मा का जाप करने से सहज ही सुख प्राप्त हो जाता है।॥ ५॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਤਾ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਏ ॥
                   
                    
                                              
                        जब प्रभु दया करते हैं, तब वह मनुष्य को गुरु से मिलाकर अपने साथ मिला लेते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗੁਣ ਸੰਗ੍ਰਹਿ ਅਉਗਣ ਸਬਦਿ ਜਲਾਏ ॥
                   
                    
                                              
                        ऐसा मनुष्य गुरु की शरण में रहकर गुणों का संग्रह करता है और गुरु के उपदेश द्वारा अपने अवगुणों को जला देता है
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਪਾਏ ॥੬॥
                   
                    
                                              
                        और गुरु के समक्ष होकर नाम-धन प्राप्त कर लेता है॥ ६ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਸਭ ਦੂਖ ਨਿਵਾਸੁ ॥
                   
                    
                                              
                        प्रभु के नाम सिमरन बिना मनुष्य सदा दुःखी रहता हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਨਮੁਖ ਮੂੜ ਮਾਇਆ ਚਿਤ ਵਾਸੁ ॥
                   
                    
                                              
                        मूर्ख स्वेच्छाचारी व्यक्ति का मन माया में मग्न रहता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗੁਰਮੁਖਿ ਗਿਆਨੁ ਧੁਰਿ ਕਰਮਿ ਲਿਖਿਆਸੁ ॥੭॥
                   
                    
                                              
                        पूर्व जन्म के शुभ कर्मों के कारण सौभाग्यवश मनुष्य गुरु से ज्ञान प्राप्त कर लेता है॥ ७ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਨੁ ਚੰਚਲੁ ਧਾਵਤੁ ਫੁਨਿ ਧਾਵੈ ॥
                   
                    
                                              
                        चंचल मन अस्थिर पदार्थों के पीछे बार-बार भागता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਾਚੇ ਸੂਚੇ ਮੈਲੁ ਨ ਭਾਵੈ ॥
                   
                    
                                              
                        सत्यस्वरूप एवं पवित्र प्रभु मलिनता को पसन्द नहीं करता।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ॥੮॥੩॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! गुरमुख ईश्वर की महिमा गायन करता रहता है ॥८॥३॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
                   
                    
                                              
                        राग गौड़ी ग्वरायरी, प्रथम गुरु: १ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਉਮੈ ਕਰਤਿਆ ਨਹ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥
                   
                    
                                              
                        अहंकार करने से सुख प्राप्त नहीं होता।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਨਮਤਿ ਝੂਠੀ ਸਚਾ ਸੋਇ ॥
                   
                    
                                              
                        ईश्वर सत्य और शाश्वत है लेकिन मन अल्पकालिक सांसारिक वस्तुओं की ओर आकर्षित होता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਗਲ ਬਿਗੂਤੇ ਭਾਵੈ ਦੋਇ ॥
                   
                    
                                              
                        जो व्यक्ति द्वैत भाव से प्रेम करते हैं, वह सभी नष्ट हो जाते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸੋ ਕਮਾਵੈ ਧੁਰਿ ਲਿਖਿਆ ਹੋਇ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        विधाता द्वारा जो प्राणी के भाग्य में लिखा होता है, उसी के अनुसार वह कर्म करता है। १॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਐਸਾ ਜਗੁ ਦੇਖਿਆ ਜੂਆਰੀ ॥
                   
                    
                                              
                        मैंने संसार को जुए का खेल खेलते देखा है
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਭਿ ਸੁਖ ਮਾਗੈ ਨਾਮੁ ਬਿਸਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        जो प्रभु के नाम को विस्मृत करके सर्वसुखों की याचना करता रहता है॥ १॥ रहाउ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਅਦਿਸਟੁ ਦਿਸੈ ਤਾ ਕਹਿਆ ਜਾਇ ॥
                   
                    
                                              
                        यदि अदृश्य प्रभु देख लिया जाए केवल तभी वह वर्णन किया जा सकता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬਿਨੁ ਦੇਖੇ ਕਹਣਾ ਬਿਰਥਾ ਜਾਇ ॥
                   
                    
                                              
                        बिना देखे उसका वर्णन निरर्थक है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗੁਰਮੁਖਿ ਦੀਸੈ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥
                   
                    
                                              
                        गुरु के समक्ष रहने वाले को प्रभु सहज ही दिखाई देते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸੇਵਾ ਸੁਰਤਿ ਏਕ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥੨॥
                   
                    
                                              
                        हे प्राणी ! अपनी वृति एक ईश्वर की सेवा एवं प्रेम के साथ लगा॥ २॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸੁਖੁ ਮਾਂਗਤ ਦੁਖੁ ਆਗਲ ਹੋਇ ॥
                   
                    
                                              
                        नाम के स्थान पर सुख माँगने से मनुष्य का दुःख बढ़ता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਗਲ ਵਿਕਾਰੀ ਹਾਰੁ ਪਰੋਇ ॥
                   
                    
                                              
                        क्योंकि सुख सभी विकारों में लिप्त है, मानो वह जीव पापों के हार से अपने आप को सजा रहा है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਏਕ ਬਿਨਾ ਝੂਠੇ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਇ ॥
                   
                    
                                              
                        झूठे मोह में ग्रस्त हुए जीव को एक परमेश्वर के नाम बिना मुक्ति नहीं मिलती।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਰਿ ਕਰਿ ਕਰਤਾ ਦੇਖੈ ਸੋਇ ॥੩॥
                   
                    
                                              
                        परमात्मा स्वयं ही सृष्टि-रचना करके इस खेल को देखता रहता है। ३॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਅਗਨਿ ਸਬਦਿ ਬੁਝਾਏ ॥
                   
                    
                                              
                        ईश्वर का नाम तृष्णाग्नि को बुझा देता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਦੂਜਾ ਭਰਮੁ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਏ ॥
                   
                    
                                              
                        तब द्वैत-भाव एवं सन्देह सहज ही मिट जाते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗੁਰਮਤੀ ਨਾਮੁ ਰਿਦੈ ਵਸਾਏ ॥
                   
                    
                                              
                        गुरु के उपदेश से नाम हृदय में वास करता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਾਚੀ ਬਾਣੀ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥੪॥
                   
                    
                                              
                        सच्ची वाणी द्वारा मनुष्य प्रभु का यशोगान करता है॥ ४॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਤਨ ਮਹਿ ਸਾਚੋ ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        सत्यस्वरूप प्रभु उसके मन में निवास करता है, जो गुरु के समक्ष रहकर उसके लिए प्रेम धारण करता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਨਾਹੀ ਨਿਜ ਠਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        नाम के बिना मनुष्य अपने आत्मस्वरूप को प्राप्त नहीं करता।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਪ੍ਰੇਮ ਪਰਾਇਣ ਪ੍ਰੀਤਮ ਰਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        प्रियतम प्रभु केवल प्रेम से ही मोहित होते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਤਾ ਬੂਝੈ ਨਾਉ ॥੫॥
                   
                    
                                              
                        यदि प्रभु दया करे तो मनुष्य उसके नाम को समझ लेता है ॥५॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਸਰਬ ਜੰਜਾਲਾ ॥
                   
                    
                                              
                        माया का मोह समस्त बन्धन ही है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਨਮੁਖ ਕੁਚੀਲ ਕੁਛਿਤ ਬਿਕਰਾਲਾ ॥
                   
                    
                                              
                        स्वेच्छाचारी जीव मलिन, कुत्सित एवं भयानक है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਚੂਕੈ ਜੰਜਾਲਾ ॥
                   
                    
                                              
                        सतगुरु की सेवा से विपदा मिट जाती है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਨਾਲਾ ॥੬॥
                   
                    
                                              
                        प्रभु के नाम अमृत से मनुष्य सदैव सुख में रहता है॥ ६॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝੈ ਏਕ ਲਿਵ ਲਾਏ ॥
                   
                    
                                              
                        गुरमुख व्यक्ति प्रभु को समझ लेता है, वह अपनी वृति एक ईश्वर में ही लगाता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਾਸੈ ਸਾਚਿ ਸਮਾਏ ॥
                   
                    
                                              
                        वह सदैव ही अपने आत्म-स्वरूप में रहता है और सत्य में ही समाया रहता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜੰਮਣੁ ਮਰਣਾ ਠਾਕਿ ਰਹਾਏ ॥
                   
                    
                                              
                        उसका आवागमन (जन्म-मरण का चक्र) मिट जाता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਇਹ ਮਤਿ ਪਾਏ ॥੭॥
                   
                    
                                              
                        किन्तु यह ज्ञान उसे पूर्ण गुरु से ही मिलता है॥ ७॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਥਨੀ ਕਥਉ ਨ ਆਵੈ ਓਰੁ ॥
                   
                    
                                              
                        जिस भगवान् की महिमा का कथन नहीं किया जा सकता, मैं तो उसकी ही महिमा करता हूँ।