Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 206

Page 206

ਕਰਿ ਕਰਿ ਹਾਰਿਓ ਅਨਿਕ ਬਹੁ ਭਾਤੀ ਛੋਡਹਿ ਕਤਹੂੰ ਨਾਹੀ ॥
ਏਕ ਬਾਤ ਸੁਨਿ ਤਾਕੀ ਓਟਾ ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਿਟਿ ਜਾਹੀ ॥੨॥ मैंने एक बात सुनी है कि संतजनों की संगति में उनकी जड़ें उखड़ जाती हैं। इसलिए मैंने उनकी शरण ली है॥ २॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਸੰਤ ਮਿਲੇ ਮੋਹਿ ਤਿਨ ਤੇ ਧੀਰਜੁ ਪਾਇਆ ॥ कृपा करके संत मुझे मिल गए हैं। उनसे मुझे धैर्य प्राप्त हो गया है।
ਸੰਤੀ ਮੰਤੁ ਦੀਓ ਮੋਹਿ ਨਿਰਭਉ ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਕਮਾਇਆ ॥੩॥ संतों ने मुझे निर्भय प्रभु का मंत्र (नाम) प्रदान किया है और मैंने गुरु के शब्द की कमाई की है॥ ३॥
ਜੀਤਿ ਲਏ ਓਇ ਮਹਾ ਬਿਖਾਦੀ ਸਹਜ ਸੁਹੇਲੀ ਬਾਣੀ ॥ सतिगुरु की आत्मिक स्थिरता एवं मधुर वाणी के प्रभाव से मैंने कामादिक झगड़ालू पाँचों शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर ली है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਮਨਿ ਭਇਆ ਪਰਗਾਸਾ ਪਾਇਆ ਪਦੁ ਨਿਰਬਾਣੀ ॥੪॥੪॥੧੨੫॥ हे नानक ! मेरे मन में प्रभु ज्योति का प्रकाश हो गया है और मैंने निर्वाण पद प्राप्त कर लिया है ॥ ४॥ ४॥ १२५॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी महला ५ ॥
ਓਹੁ ਅਬਿਨਾਸੀ ਰਾਇਆ ॥ हे मेरे प्रभु ! तुम एक वह राजा हो जो सदैव अनश्वर हो।
ਨਿਰਭਉ ਸੰਗਿ ਤੁਮਾਰੈ ਬਸਤੇ ਇਹੁ ਡਰਨੁ ਕਹਾ ਤੇ ਆਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हम (प्राणी) निडर होकर तेरे साथ निवास करते हैं। फिर यह भय कहाँ से आता है ॥१॥ रहाउ ॥
ਏਕ ਮਹਲਿ ਤੂੰ ਹੋਹਿ ਅਫਾਰੋ ਏਕ ਮਹਲਿ ਨਿਮਾਨੋ ॥ एक शरीर में तुम ही अभिमानी हो। और एक दूसरे शरीर में तुम विनीत हो।
ਏਕ ਮਹਲਿ ਤੂੰ ਆਪੇ ਆਪੇ ਏਕ ਮਹਲਿ ਗਰੀਬਾਨੋ ॥੧॥ एक शरीर में तुम सर्वाधिकारी हो और दूसरे शरीर में तुम बिल्कुल निर्धन हो ॥ १॥
ਏਕ ਮਹਲਿ ਤੂੰ ਪੰਡਿਤੁ ਬਕਤਾ ਏਕ ਮਹਲਿ ਖਲੁ ਹੋਤਾ ॥ एक शरीर में तुम विद्वान एवं वक्ता हो। एक शरीर में तुम मूर्ख हो।
ਏਕ ਮਹਲਿ ਤੂੰ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਗ੍ਰਾਹਜੁ ਏਕ ਮਹਲਿ ਕਛੂ ਨ ਲੇਤਾ ॥੨॥ एक शरीर में तुम सब कुछ संग्रह कर लेते हो और एक शरीर में तुम (विरक्त बनकर) कोई पदार्थ भी स्वीकार नहीं करते हो ॥ २॥
ਕਾਠ ਕੀ ਪੁਤਰੀ ਕਹਾ ਕਰੈ ਬਪੁਰੀ ਖਿਲਾਵਨਹਾਰੋ ਜਾਨੈ ॥ यह प्राणी बेचारा काठ की पुतली है, इसे खिलाने वाला (प्रभु) सब कुछ जानता है।
ਜੈਸਾ ਭੇਖੁ ਕਰਾਵੈ ਬਾਜੀਗਰੁ ਓਹੁ ਤੈਸੋ ਹੀ ਸਾਜੁ ਆਨੈ ॥੩॥ बाजीगर (ईश्वर) जैसा वेष (स्वांग) रचाता है, वह प्राणी वैसा ही वेष (स्वांग) रचता है अर्थात् जैसी भूमिका (संसार में) प्रभु निभाने के लिए प्राणी को देता है, वैसे ही भूमिका प्राणी (संसार में) निभाता है॥ ३॥
ਅਨਿਕ ਕੋਠਰੀ ਬਹੁਤੁ ਭਾਤਿ ਕਰੀਆ ਆਪਿ ਹੋਆ ਰਖਵਾਰਾ ॥ ईश्वर ने (संसार में विभिन्न योनियों के प्राणियों की) अनेक (देहि) कोठड़ियाँ बना दी हैं और ईश्वर स्वयं ही सबका रक्षक बना हुआ है।
ਜੈਸੇ ਮਹਲਿ ਰਾਖੈ ਤੈਸੈ ਰਹਨਾ ਕਿਆ ਇਹੁ ਕਰੈ ਬਿਚਾਰਾ ॥੪॥ जैसे शरीर रूपी मन्दिर में प्रभु प्राणी को रखता है, वैसे ही वह वास करता है। यह प्राणी बेचारा क्या कर सकता है ? ॥ ४॥
ਜਿਨਿ ਕਿਛੁ ਕੀਆ ਸੋਈ ਜਾਨੈ ਜਿਨਿ ਇਹ ਸਭ ਬਿਧਿ ਸਾਜੀ ॥ हे नानक ! जिस प्रभु ने सृष्टि की रचना की है, जिसने यह सारी क्रीड़ा बनाई है, वही उसके भेद को जानता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਅਪਰੰਪਰ ਸੁਆਮੀ ਕੀਮਤਿ ਅਪੁਨੇ ਕਾਜੀ ॥੫॥੫॥੧੨੬॥ वह प्रभु अपरंपार है। अपने कार्यों का मूल्य वह स्वयं ही जानता है॥ ५॥ ५॥ १२६॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी महला ५ ॥
ਛੋਡਿ ਛੋਡਿ ਰੇ ਬਿਖਿਆ ਕੇ ਰਸੂਆ ॥ हे प्राणी ! मोह-माया के स्वादों को त्याग दे।
ਉਰਝਿ ਰਹਿਓ ਰੇ ਬਾਵਰ ਗਾਵਰ ਜਿਉ ਕਿਰਖੈ ਹਰਿਆਇਓ ਪਸੂਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे मूर्ख प्राणी ! जैसे हरी-भरी फसल में पशु मस्त होता है वैसे ही तू (विकारों में) इन स्वादों में उलझा हुआ है ॥ १॥ रहाउ॥
ਜੋ ਜਾਨਹਿ ਤੂੰ ਅਪੁਨੇ ਕਾਜੈ ਸੋ ਸੰਗਿ ਨ ਚਾਲੈ ਤੇਰੈ ਤਸੂਆ ॥ हे मूर्ख प्राणी ! जिस पदार्थ को तू अपने काम आने वाला समझता है, वह तनिकमात्र भी तेरे साथ नहीं जाता।
ਨਾਗੋ ਆਇਓ ਨਾਗ ਸਿਧਾਸੀ ਫੇਰਿ ਫਿਰਿਓ ਅਰੁ ਕਾਲਿ ਗਰਸੂਆ ॥੧॥ हे प्राणी ! तू (जगत् में) नग्न आया था और नग्न ही (जगत् से) चला जाएगा। तू जन्म-मरण के चक्र में फँसकर योनियाँ काटेगा और मृत्यु का ग्रास हो जाएगा ॥ १॥
ਪੇਖਿ ਪੇਖਿ ਰੇ ਕਸੁੰਭ ਕੀ ਲੀਲਾ ਰਾਚਿ ਮਾਚਿ ਤਿਨਹੂੰ ਲਉ ਹਸੂਆ ॥ हे प्राणी ! कुसुम के फूल की भाँति क्षणभंगुर सांसारिक खेलों को देख-देख कर तू उनमें कैसे मस्त हो रहा है और जब तक वह कायम है तू हंसता और खेलता है।
ਛੀਜਤ ਡੋਰਿ ਦਿਨਸੁ ਅਰੁ ਰੈਨੀ ਜੀਅ ਕੋ ਕਾਜੁ ਨ ਕੀਨੋ ਕਛੂਆ ॥੨॥ तेरी अवस्था की डोरी दिन-रात क्षीण होती जा रही है। तूने अपनी आत्मा के काम आने वाला कोई भी कर्म नहीं किया॥ २॥
ਕਰਤ ਕਰਤ ਇਵ ਹੀ ਬਿਰਧਾਨੋ ਹਾਰਿਓ ਉਕਤੇ ਤਨੁ ਖੀਨਸੂਆ ॥ सांसारिक कर्म करता हुआ मनुष्य वृद्ध हो गया है। बुद्धि भी सुस्त हो गई है और शरीर भी दुर्बल हो गया है।
ਜਿਉ ਮੋਹਿਓ ਉਨਿ ਮੋਹਨੀ ਬਾਲਾ ਉਸ ਤੇ ਘਟੈ ਨਾਹੀ ਰੁਚ ਚਸੂਆ ॥੩॥ जैसे तुझे उस माया ने बाल्यावस्था में मोहित कर लिया था, उस लोभ में अब तक तनिकमात्र भी कमी नहीं हुई॥ ३॥
ਜਗੁ ਐਸਾ ਮੋਹਿ ਗੁਰਹਿ ਦਿਖਾਇਓ ਤਉ ਸਰਣਿ ਪਰਿਓ ਤਜਿ ਗਰਬਸੂਆ ॥ हे नानक ! गुरु ने मुझे दिखा दिया है कि दुनिया का मोह ऐसा है तो मैंने अहंकार को त्याग कर संत (गुरु) की शरण ले ली।
ਮਾਰਗੁ ਪ੍ਰਭ ਕੋ ਸੰਤਿ ਬਤਾਇਓ ਦ੍ਰਿੜੀ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਭਗਤਿ ਹਰਿ ਜਸੂਆ ॥੪॥੬॥੧੨੭॥ उस संत ने मुझे प्रभु-मिलन का मार्ग बता दिया है तथा अब मैंने भगवान की भक्ति एवं भगवान का यश अपने मन में दृढ़ कर लिया है॥ ४॥ ६॥ १२७ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी महला ५ ॥
ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਕਵਨੁ ਹਮਾਰਾ ॥ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ तेरे सिवाय हमारा अन्य कौन है ?
ਅੰਤਰ ਕੀ ਬਿਧਿ ਤੁਮ ਹੀ ਜਾਨੀ ਤੁਮ ਹੀ ਸਜਨ ਸੁਹੇਲੇ ॥ हे मेरे प्रियतम ! तू ही प्राणों का आधार है ! ॥ १॥ रहाउ॥
ਸਰਬ ਸੁਖਾ ਮੈ ਤੁਝ ਤੇ ਪਾਏ ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਅਗਹ ਅਤੋਲੇ ॥੧॥ मेरे अन्तर्मन की दशा को केवल तुम ही जानते हो। तुम ही मेरे साजन एवं सुखदाता हो।


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